Friday, December 31, 2010

नैराश्य के हीरो

प्रिण्ट में दो लोगों का वन्दन चल रहा है। विकीलीक्स के श्री असांजे और कंट्रोलर एवम ऑडीटर जनरल श्री विनोद राय। ये हीरो हमें कोई नया पथ नया लक्ष्य नहीं दिखा रहे; केवल आसपास फैली सड़ान्ध और बजबजाहट की परत उघाड़ कर दिखा रहे हैं।

इनमें से कोई आने वाले समय को बदलने का ब्लू-प्रिण्ट नहीं जानता। इनकी जितनी सोचता हूं, उतना मन में नैराश्य उपजता है।

Monday, December 27, 2010

अरविन्द पुन:

DSC02947अरविन्द से मैं सन 2009 के प्रारम्भ में मिला था। गंगा किनारे खेती करते पाया था उसे। तब वह हर बात को पूरा कर वह सम्पुट की तरह बोल रहा था - “और क्या करें, बाबूजी, यही काम है”।

कल वह पुन: दिखा। वहीं। रेत में खेती करता। आसपास मुझ जैसे दो तीन तमाशबीन थे। कोंहड़ा की कतारें बड़ी हो गयी थीं। वह कोंहड़ा के आस पास तीन गढ्ढ़े खोद रहा था - करीब दो हाथ गहराई वाले। उनमें वह गोबर की खाद डालकर कुछ यूरिया डालेगा। कोंहड़े की जड़ इतनी नीचे तक जायेगी। वहां तक उनको पोषक तत्व देगी खाद।

खोदते हुये वह कहता भी जा रहा था - "क्या करें, यही काम है।"

बोल रहा था कि पिछली खेती में नफा नहीं हुआ। उसके पहले की में (जिसकी पहले वाली पोस्ट है) ठीक ठाक कमाई हो गई थी। "अबकी देखें क्या होता है?" 

व्यथित होना अरविन्द के पर्सोना का स्थाई भाव है। कह रहा था कि गंगा बहुत पीछे चली गई हैं; सो खोदना फावड़े से नहीं बन पा रहा। वह यह नहीं कह रहा था कि गंगा इतना पीछे चली गई हैं कि खेती को बहुत जगह मिल गई है!

Saturday, December 25, 2010

होरी, तुम शाश्वत सत्‍य हो!

Photos from Peepli Live_1293189630557‘‘पीपली लाइव‘‘ फिल्‍म देखी । फिल्‍म की विशेषता भारतीय गांव का सजीव व यथार्थ चित्रण है ,जिसमे किसानों की कर्ज में डूबने के बाद आत्‍महत्‍या की बढ़ती प्रवृत्‍ति की पृष्ठ भूमि में कूकरमुत्‍तों की तरह फैले खबरी न्‍यूज चैनलों तथा देश की राजनीति पर करारे व्‍यंग किये गये हैं।

Sunday, December 19, 2010

मोटी-मांऊ

Nattu and Motherनत्तू पांड़े आजकल ननिहाल आये हुये हैं। अब डेढ़ साल के हुये हैं तो कारकुन्नी भी उसी स्तर के हैं। कुछ ज्यादा ही। उनकी नानी मगन भी हैं और परेशान भी रहती हैं। अजब कॉम्बिनेशन है उनकी खुशी और उनकी व्यग्रता का।

नाना; पण्डित ज्ञानदत्त पाण्डेय उन्हे प्रधानमन्त्री बनाना चाहते हैं और वे हैं कि अपनी ठुमुकि चलत वाले फेज़ की गतिविधियां करने में ही व्यस्त हैं। कोई गम्भीरता नहीं दिखा रहे आगे की जिम्मेदारियों के प्रति!

उनको भोजन करना एक प्रॉजेक्ट होता है। एक छोटी सी थाली, जिसमें कटोरी एम्बेडेड है; में उनका खाना निकलता है और उसके साथ होने लगते हैं उनके नखरे – न खाने की मुद्रायें दिखाने वाले। तब घर के सारे लोग उन्हे भोजन कराने में जुट जाते हैं। कोई ताली बजाता है। कोई मुन्नी बदनाम सुनाने लगता है तो कोई जो भी श्लोक याद है, उसका पाठ करने लगता है। यह सिर्फ इस लिये कि नत्तू पांडे का ध्यान बंटे और उनके मुंह में एक कौर और डाल दिया जाये।

Friday, December 17, 2010

सुरेश जोसेफ

SJसुरेश जोसेफ से मैं मिला नही‍। जानता भी नहीं। पर गौरी सक्सेना ने मुझे उनके बारे में बताया।

गौरी मेरी सहकर्मी हैं। वे उत्तर-मध्य रेलवे का सामान्य वाणिज्य प्रबन्धन देखती हैं – वैसे ही जैसे मैं मालगाड़ी प्रबन्धन देखता हूं। परसो‍ उन्होने बताया कि सुरेश जोसेफ उनसे मिलने आ रहे हैं। आयेंगे तो वे मुझे फोन कर मिलवायेंगी। पर जोसेफ के आने पर मैं किसी और काम में व्यस्त था, और मुलाकात न हो सकी।

जोसेफ रेल अधिकारी थे, मेरी तरह के। फिर उन्होने रेलवे छोड़ दी। उसके बाद कोच्ची में एक कण्टेनर टर्मिनल का काम देखा। वह प्रोजेक्ट पूरा होने पर इस साल उन्होने अपनी लड़की की शादी की। अब अपने एक मित्र की एक मारुति स्विफ्ट कार उधार ले कर अकेले भ्रमण पर निकले हैं भारत का। बहुत अच्छी तरह नियोजन कर यात्रा प्रारम्भ की है अक्तूबर’१० के प्रारम्भ में।

Sunday, December 12, 2010

कुछ उभर रही शंकायें

पिछले चार-पांच महीनों में सोच में कुछ शंकायें जन्म ले रही हैं:

    1. लौकी के नीचे दबा सिर अगर मुक्त होती अर्थव्यवस्था सही है, तो छत्तीसगढ़-झारखण्ड-ओडिसा के आदिवासियों की (कम या नगण्य) मुआवजे पर जमीन से बेदखली को सही कहा जा सकता है? माओवादियों या लाइमलाइट तलाशती उन देवियों की तरफदारी को नकारा जाये, तब भी।
    2. मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर यत्न करते भारत के डेढ़ दशक से ज्यादा हो गया। आठ-नौ परसेण्ट की ग्रोथ रेट आने लगी है। पर न करप्शन कम हो रहा है न क्राइम। बढ़ता ही नजर आ रहा है। गड़बड़ कहां है?
    3. प्राइवेट सेक्टर प्रॉडक्ट बेचने में बहुत तत्पर रहता है। पर जब सेवायें देने की बात आती है, तो लड़खड़ाने लगता है। चाहे वह प्रॉडक्ट सम्बन्धित सेवायें हों या फिर विशुद्ध सेवायें - सफाई, प्रॉजेट के ठेके, खानपान।
    4. कम्प्यूटरों पर सरकारी दफ्तरों में बेशुमार खर्च है। पर कर्मचारियों की भरमार में काम करने वाले कर्मचारी दीखते ही नहीं। कम्प्यूटर भी मेण्टेन नहीं - न ढंग के एण्टीवाइरस, न स्तरीय प्रोग्राम।

Saturday, December 11, 2010

ओह, गिरिजेश, यही है!

ब्लॉग पर एक सशक्त ट्रेवलॉग - जिसमें सपाटबयानी नहीं संतृप्तबयानी हो, उसका प्रतिमान मिला गिरिजेश राव के कल दिये उनके ब्लॉग के लिंक में:

भाँग, भैया, भाटिन, भाभियाँ, गाजर घास ... तीन जोड़ी लबालब आँखें

आठवाँ भाग मैने पढ़ा इण्टरनेट पर। उसके बाद बाकी सात भाग वर्ड डाक्यूमेण्ट में कॉपी किये। उनका प्रिण्टआउट लिया। और फिर इत्मीनान से पढ़ा।

कौन मुगलिया बादशाह (?) था, जिसने कश्मीर के बारे में कहा था:

‘‘गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त।
हमीनस्तो, हमीनस्तो हमीनस्त’’

Friday, December 10, 2010

ट्रेवलॉग पर फिर

DSC02726मालुम है, लोग सक्षम हैं ट्रेवलॉग आर्धारित हिन्दी में ब्लॉगों के दसियों लिंक ठेल देने में। पर फिर भी विषयनिष्ठ ब्लॉगों की बात करूंगा तो ट्रेवलॉग आर्धारित ब्लॉग उसमें एक जरूर से तत्व होंगे।

बहुत कम यात्रा करता हूं मैं। फिलहाल डाक्टरी सलाह भी है कि न यात्रा करूं रेल की पटरी के इर्द-गिर्द। संकल्प लेने के बावजूद यहां से तीस किलोमीटर दूर करछना भी न जा पाया हूं। फिर भी साध है यात्रा करने और ट्रेवलॉग लिखने की।

ट्रेवलॉग मुझे वह इण्टेलेक्चुअल संतुष्टि देगा, जो आज तक न मिल सकी। और, शर्तिया, साहित्यकार मर्मज्ञ जी, जो कहते हैं कि मैं निरर्थक लिखता हूं, को भी कुछ काम की चीज मिल सकेगी - उनकी कविता के पासंग में/आस पास!

Sunday, December 5, 2010

कैसा था वह मन - आप पढ़ कर देखें!

एक किताब, उपन्यास, वह भी एक नारी का लिखा। पढ़ते समय बहुत से प्रश्न मन में आते हैं - कैसे लिखती हैं उपन्यास वे। कितना वास्तविकता होती है, कितना मिथक। कितनी कोमलता, कितनी सेंसिटिविटी, कितना जबरी की नारीवादिता और कितना अभिजात्य युक्त छद्म। चाहे शिवानी हो, चाहे महाश्वेता देवी। चाहे अरुन्धति रॉय हों। पढ़ते समय इन सब बिन्दुओं पर लेखन को तोलता रहता है मन। और बहुधा अधपढ़ी रह जाती है पुस्तक। 

पर यह उपन्यास - कैसा था वह मन - तो लगभग निरंतर पढ़ गया मैं।

एक छोटे शहर की लड़की, एक मध्यवित्त परिवार के लड़के से व्याही जाती है। लड़का बन गया है अफसर। शायद रेल का। और वह अब उस अफसर के साथ जगह जगह रहती है। बड़े बंगले, उनमें अकेला पन और उनमें नर्सरी राइम्स और बाल कथायें बुनती यह महिला। कुछ अलग सी है यह महिला।

सामान्यत: मैने अफसरों की बीवियों को देखा है। क्लब और महिला समिति में अपने आप को प्रोजेक्ट करने की उधेड़बुन में लिप्त। एक दूसरे की बुराई और अपने को सभ्य बताने की होड़ में जिन्दगी गंवाने वाली औरते। तीज त्यौहार में देशज समझ से अनजान एक अजीब सा अफसरापन दिखाती औरतें। बेकार सी औरतें।

Thursday, December 2, 2010

ट्वीट्स से विशेषज्ञता

डैम! लीक्स और टेप्स के जमाने में इंस्टेण्ट कमेण्ट्स और इंस्टेण्ट विशेषज्ञता का विस्तार हो रहा है। एनडीटीवी का दस बजे का कार्यक्रम देख #बरखागेट पर ट्विटर कमेण्ट्स की भरमार हो गयी है। वाल स्ट्रीट जर्नल का इण्डिया रीयलटाइम का ब्लॉग-छत्ता फटाफट पोस्ट/कमेण्ट/पोल्स दिये जा रहा है।

Sunday, November 28, 2010

खबर न बताने की नैतिकता

बिजनेस स्टेण्डर्ड में (टी एन नाइनन का) २७ नवम्बर’२०१० का सम्पादकीय:

INFOबस कहें, क्षमा करें > … अगर ये दोनो (बीडी और वीएस) खुद यह मान लें कि उन्होंने सीमा लांघी हैं और इसके लिए माफी मांग लें और यह कहें कि आगे ऐसा नहीं होगा तो पूरा पत्रकार समुदाय राहत की सांस ले सकेगा और अपना सर थोड़ा ऊपर उठा सकेगा।

साथ ही युवा पत्रकार छात्रों की पीढ़ी और इस पेशे में अभी-अभी कदम रखने वाले पत्रकार जो दत्त और दूसरे पत्रकारों को अपना आदर्श मानते आए हैं उन्हें भी इस बात से राहत मिलेगी।

सांघवी और दत्त दोनों ही अपने पेशे के आदर्श हैं और ऐसे समय में जबकि ढेरों प्रकाशक मीडिया की साख नष्ट करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं तो इनसे इनके पेशे और सहकर्मियों को यही उम्मीद है।

वाह! आप एक महाकाण्ड की खबर जेब में धर कर साल भर से ज्यादा बैठे रहें। अन्तत आपसे नहीं, सीएजी से पता चले।

और गली कूचे के मनई से आप ह्विसिल ब्लोअर बनने की उम्मीद रखें। उसे नैतिकता और देश भक्ति का पाठ पढ़ायें। चाहे वो गरीब मरे गैंगेस्टर या एनकाउण्टर की गोली से। और आप, मीडियाशक्तिमान खबर न बताने पर (मैं यहां सूचना का दुरुपयोग नहीं लिख रहा; आखिर उसका कोई भ्रष्ट कोण है या नहीं, कह नहीं सकते) खुद क्षमायाचना मात्र से सटक लें।

जय हो!


Saturday, November 27, 2010

महिलाओं से धुनाई खेलकूद?!

गूगल महान है। मैं गूगल न्यूज का हिन्दी संस्करण अपने होमपेज की तरह प्रयोग करता हूं। कल यह नभाटा की खबर गूगल ने पकड़ी - मेट्रो के महिला कोच में घुसे युवक को महिलाओं ने धुना|

Tuesday, November 23, 2010

टिप्पणियों का प्रणामवादी युग

namaste

टिप्पणियों में प्रणामवादी युग का प्रारम्भ

टिप्पणियों का साधुवादी युग समाप्त हुआ। रवीन्द्र प्रभात चाहें तो इसे अपने इतिहासनामे में दर्ज कर लें। आई नो, समीरलाल शायद आपत्ति दर्ज करायें। शायद ना भी करायें - शादी-वादी के इंतजाम में बिजी हों तो। सुकुल चाहें तो साहित्त वालों से पुछवा लें। ज्यादा डाऊट लगे तो नामवर सिंह जी; या जे हे ने से, नये सम्मेलन में जो कोई कवी जी आये थे, उनका विचार भी ले लें। अपुन को कोई फरक नहीं पड़ता।

Sunday, November 21, 2010

अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगिंग सम्मेलन, शिवकुटी, इलाहाबाद

अखिल भारतीय हिन्दी ब्लॉगिंग सम्मेलन हुआ, काहे से कि इसमें यूपोरियन और कलकत्तन प्रतिनिधित्व था। और कई महान ब्लॉगर आ नहीं पाये। उन तक समय से निमन्त्रण नहीं पंहुच पाया। मच्छर भगाने के लिये हाई पावर हिट का प्रयोग किया गया था। वातानुकूलित कमरे की व्यवस्था थी, पर जाड़ा शुरू होने के कारण बिजली का खर्चा बचा लिया गया।

कुल दो लोग थे। बोलें तो वरिष्ठ। इनमें शिवकुमार मिश्र तो महान ब्लॉगर हैं। आशा है कि वे मुझे टिप्पणी में महान बतायेंगे।

इन्होने हिन्दी ब्लॉगिंग के भूत वर्तमान भविष्य पर चर्चा की। सर्वसम्मति से यह तय पाया गया कि ब्लॉगरों की संख्या एक करोड़ तक ले जाने के लिये सघन/व्यापक टिप्पणी अभियान जरूरी है। और एक करोड़ ब्लॉगर होने के बाद ही हिन्दी ब्लॉगिंग का कोई आर्थिक पक्ष हो सकेगा।

 

सम्मेलन का उत्तरार्ध, अगर समय निकल पाया तो, लंचोपरान्त होगा। Open-mouthed smile 


अपडेट: लंच के आकार-प्रकार को देखते हुये सर्वसम्मति से सम्मेलन समाप्त मान लिया गया। सोना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा गया। वैसे भी मुझे यह मलाल है कि मुझे महान नहीं माना शिवकुमार मिश्र ने! Smile  

Saturday, November 20, 2010

हुबली का सौन्दर्य

मैने कहा कि मैं बिना किसी ध्येय के घूमना चाहता हूं। गंगा के कछार में। यह एक ओपन स्टेटमेण्ट था – पांच-छ रेल अधिकारियों के बीच। लोगों ने अपनी प्रवृति अनुसार कहा, पर बाद में इस अफसर ने मुझे अपना अभिमत बताया - "जब आपको दौड़ लगा कर जगहें छू कर और पैसे फैंक सूटकेस भर कर वापस नहीं आना है, तो हुबली से बेहतर क्या जगह हो सकती है"। बदामी-पट्टळखळ-अइहोळे की चालुक्य/विजयनगर जमाने की विरासत वहां पत्थर पत्थर में बिखरी हुई है।

वह अधिकारी – रश्मि बघेल, नये जमाने की लड़की (मेरे सामने तो लड़की ही है!) ऐसा कह सकती है, थोड़ा अजीब लगा और अच्छा भी।

Saturday, November 13, 2010

लेट थे डाला छठ के सूरज

लगता है रात देर से सोये थे। मेरी तरह नींद की गोली गटक कर। देर हो गयी उठने में सूरज देव को। घाट पर भीड़ को मजे से इन्तजार कराया।

लेकिन थे खूब चटक, लाल। उस अधेड़ मेहरारू की डलिया से लप्प से एक ठोकवा गपके और चढ़ गये आसमान की अटारी पर। हमसे बतियाये नहीं। नहीं तो हम बता देते कि आज वीक-एण्ड है। छुट्टी ले सकते हैं। नहीं तो कैजूअल लीव। उनकी सारी कैजूअल लीव पड़ी हैं। आखिर लैप्स ही तो होनी हैं।

जय सूर्यदेव।

Friday, November 12, 2010

गुल्ले; टेम्पो कण्डक्टर

वह तब नहीं था, जब मैं टेम्पो में गोविन्द पुरी में बैठा। डाट की पुलिया के पास करीब पांच सौ मीटर की लम्बाई में सड़क धरती की बजाय चन्द्रमा की जमीन से गुजरती है और जहां हचकोले खाती टेम्पो में हम अपने सिर की खैरियत मनाते हैं कि वह टेम्पो की छत से न जा टकराये, वहीं अचानक वह मुझे टेम्पो चालक की बगल में बैठा दीखा।

Tuesday, November 9, 2010

करछना की गंगा

मैने देखा नहीं करछना की गंगा को। छ महीने से मनसूबे बांध रहा हूं। एक दिन यूं ही निकलूंगा। सबेरे की पसीजर से। करछना उतरूंगा। करछना स्टेशन के स्टेशन मास्टर साहब शायद किसी पोर्टर को साथ कर दें। पर शायद वह भी ठीक नहीं कि अपनी साहबी आइडेण्टिटी जाहिर करूं!

Saturday, November 6, 2010

मोहम्मद यूसुफ धुनकर

मेरे मोहल्ले के पास जहां खंडहर है और जहां दीवार पर लिखा रहता है “देखो गधा पेशाब कर रहा है”; वहां साल में नौ महीने जानी पहचानी गंघ आती है पेशाब की। बाकी तीन महीने साफ सफाई कर डेरा लगाते हैं रुई धुनकर। नई और पुरानी रुई धुन कर सिलते हैं रजाई।

मैं रुई धुन रहे जवान की फोटो खींच चुका तो पास ही बैठा अधेड़ पूछ बैठा – क्या करेंगे फोटो का? उसे बताना कठिन था कि ब्लॉग क्या होता है। मैने कहा – यूं ही, अपने शौक के लिये ले रहा हूं। कम्प्यूटर में रहेगी फोटो। … अश्वत्थामा हत: जैसा सत्य!

सर्विसेज

मेरी पत्नीजी अपने परिवेश से जुड़ना चाहती थीं – लोग, उनकी समस्यायें, मेला, तीज-त्योहार आदि से। मैने भी कहा कि बहुत अच्छा है। पर यह जुड़ना किसी भी स्तर पर पुलीस या प्रशासन से इण्टरेक्शन मांगता हो तो दूर से नमस्कार कर लो। इस बात को प्रत्यक्ष परखने का अवसर जल्द मिल गया। वह वर्दी वाला पुलिसिया दम्भी अकड़ के साथ बैठा रहा मुहल्ले की मेला-बैठक में। मेरी पत्नीजी ने परिचय कराने पर उसका अभिवादन करने की गलती भी कर ली। [१]

Thursday, November 4, 2010

भाग ७ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की कैलीफोर्निया प्रवास पर सातवीं अतिथि पोस्ट है।


इस बार भी तसवीरों के माध्यम से आप को अपनी बात बताना चाहता हूँ।

यहाँ तसवीरें छोटी आकार में दिखेंगी। यहां तसवीरों को resize करके यहाँ पेश रहे हैं ताकि पन्ना जल्द ही लोड हो जाए। साथ ही पिकासा स्लाइड-शो का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे पन्ना भी ज्यादा स्क्रॉल न करना पड़े।

आपकी यदि मूल तसवीर में रुचि है तो पोस्ट के अंत में दी हुई कडी पर जाकर पूरी तसवीर देख लीजिए। पिछले पोस्ट पर कुछ मित्रों ने टिप्प्णी की थी के चित्र बहुत छोटे हैं, इस लिये इस बार हमने यह तरीका अपनाया।

Tuesday, November 2, 2010

कानी गदहिया बनाम बैंजनी मूली

नैनीताल के ड़ेढ़ दिन के प्रवास में एक आने की भी चीज नहीं खरीदी। वापसी की यात्रा में देखा कि टेढ़ी मेढ़ी उतरती सड़कों के किनारे कुछ लोग स्थानीय उत्पाद बेच रहे थे। एक के पास मूली थी, दूसरे के पास माल्टे। पीले गोल माल्टे की खटास दूर से ही समझ आ रही थी। वे नहीं चाहियें थे। मूली बैंजनी रंग लिये थी। आकर्षित कर रही थी। एक जगह रुक कर चबूतरे पर बैठे किशोर से खरीदी। दस रुपया ढ़ेरी। दो ढ़ेरी।

Monday, November 1, 2010

एक (निरर्थक) मूल्य-खोज

DSC02733 नैनीताल के हॉलीडे होम के स्यूट में यह रूम हीटर मुंह में चमक रहा है, फिर भी अच्छी लग रही है उसकी पीली रोशनी! मानो गांव में कौड़ा बरा हो और धुंआ खतम हो गया हो। बची हो शुद्ध आंच। मेरी पत्नीजी साथ में होतीं तो जरूर कहतीं – यह है स्नॉबरी – शहरी परिवेश में जबरी ग्रामीण प्रतीक ढूंढ़ने की आदत।

Sunday, October 31, 2010

पर्यटन क्या है?

मैं पर्यटन पर नैनीताल नहीं आया। अगर आया होता तो यहां की भीड़ और शानेपंजाब/शेरेपंजाब होटल की रोशनी, झील में तैरती बतख नुमा नावें, कचरा और कुछ न कुछ खरीदने/खाने की संस्कृति को देख पर्यटन का मायने खो बैठता।

Saturday, October 30, 2010

रामपुर

DSC02658आज सवेरे आठ बजे रामपुर था, मेरी काठगोदाम तक की यात्रा में। चटकदार सफेद यूनीफार्म में एक दुबले सज्जन ने अभिवादन किया। श्री एस के पाण्डे। स्टेशन मैनेजर। बताया कि वे जौनपुर के हैं पर अवधी का पुट नहीं था भाषा में। बहुत समय से हैं वे रामपुर में।

रामपुर मुस्लिम रियासत थी। शहर की ढाई लाख की आबादी में साठ चालीस का अनुपात है मुस्लिम हिंदू का। मोहम्मद आजम खान हिंयां राजनीति करते हैं। राजनीति या नौटंकनीति? एक बार तो वे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पसर गये थे – इस बात पर कि उनके बाप दादा के जमाने का फर्श तोड़ कर टाइल्स क्यों लगवाई जा रही हैं।

Sunday, October 24, 2010

लल्लू

हमें बताया कि लोहे का गेट बनता है आलू कोल्ड स्टोरेज के पास। वहां घूम आये। मिट्टी का चाक चलाते कुम्हार थे वहां, पर गेट बनाने वाले नहीं। घर आ कर घर का रिनोवेशन करने वाले मिस्तरी-इन-चार्ज भगत जी को कहा तो बोले – ऊंही त बा, पतन्जली के लग्गे (वहीं तो है, पतंजलि स्कूल के पास में)!

यानी भगत जी ने हमें गलत पता दिया था। पतंजलि स्कूल कोल्ड स्टोरेज के विपरीत दिशा में है।

Friday, October 22, 2010

भाग ६ - कैलीफिर्निया में श्री विश्वनाथ

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की अमरीकी/कैलीफोर्निया प्रवास पर छठी अतिथि पोस्ट है।


इस बार बातें कम करेंगे और केवल चित्रों के माध्यम से आप से संप्रेषण करेंगे।

शॉपिंग:
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एक जमाना था, जब हम विदेश से चीजें खरीदकर लाने में गर्व महसूस करते थे। अब भूल जाइए इस बात को। कुछ चीज़ों को छोडकर, हम भारतीयों के लिए वहाँ से कुछ खरीदना मूर्खता ही लगता है।

सब कुछ यहाँ भारत में उपलब्ध है और बहुत ही कम दामों में।
कई सारी चीज़ें तो भारत, चीन, बंगला देश से वहाँ भेजी जाती हैं जहाँ तीन या चार गुना दामों पर बिकती हैं।

Sunday, October 17, 2010

अपने आप से झूठ

Devid Law पता नहीं यह यहां स्वीकार या अस्वीकार करने से फर्क पड़ता है मैं झूठ भी बोलता हूं। झूठ बोलना मानव स्वभाव का बहुत स्वाभाविक अंग है। यह इससे भी सही लगता है कि सदाचार की पुस्तकों और पत्रिकाओं में बहुत कुछ बल इस बात पर होता है कि सच बोला जाये। पर मूल बात यह है कि आदमी अपने आप से कितना झूठ बोलता है।

Wednesday, October 13, 2010

बेंगाला का नहीं, कैलीफोर्निया का फैण्टम

हमने पढ़ा है कि फैण्टम नामक मशहूर कामिक्स का चरित्र बेंगाला नामक अफ्रीकी देश (नक्शे पर नहीं मिलेगा, यह मिथकीय देश है) का है। पर हमारे गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी को एक अन्य फैण्टम के दर्शन उनके कैलीफोर्निया प्रवास में हुये। मैने उनसे नहीं पूछा कि उन्हे डायना पॉमर भी दिखी या नहीं। आप पूछने के लिये स्वतंत्र हैं!

आप उनकी इस अतिथि पोस्ट में उनके संस्मरणों की पांचवीं किश्त पढ़ें: 


अब कुछ निजी अनुभवों के बारे में जानकारी दे दूँ।

सोचा इस बार कम लिखूँगा और चित्रों को बोलने दूँगा।

Monday, October 11, 2010

दो चौकियां

अस्थि-पंजर ढ़ीले हैं उन चौकियों के। बीच बीच के लकड़ी के पट्टे गायब हैं। उन्हे छोटे लकड़ी के टुकड़ों से जहां तहां पैबन्दित कर दिया गया है। समय की मार और उम्र की झुर्रियां केवल मानव शरीर पर नहीं होतीं। गंगा किनारे पड़ी चौकी पर भी पड़ती हैं।

Sunday, October 10, 2010

व्यक्तित्वनिष्ठ आचारसंहिता छद्म है

आपको भाषाई छद्म देखने हैं तो सब से आसान जगह है - आप ब्लॉगर्स के प्रोफाइल देखें। एक से बढ़ कर एक गोलमोल लेखन। उनकी बजाय अज़दक को समझना आसान है।

हम बेनामी हों या न हों, जो हम दिखना चाहते हैं और जो हैं, दो अलग अलग चीजें हैं। इनका अंतर जितना कम होता जायेगा। जितनी ट्रांसपेरेंसी बढ़ती जायेगी, उतनी कम होगी जरूरत आचार संहिता की। इस की प्रक्रिया में हम जो हैं की ओर नहीं जायेंगे। सामान्यत, सयास, हम जो हैं, उसे जो दिखना चाहते हैं के समीप ले जायेंगे।

Sunday, October 3, 2010

भाग ४ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ

यदि आपको गाडियों का शौक है तो अवश्य एक बार वहाँ (कैलीफोर्निया) हो आइए।

कारों की विविधता, गति, शक्ति और अन्दर की जगह और सुविधाएं देखकर मैं तो दंग रह गया।
शायद ही कोई है जिसके पास अपनी खुद की कार न हो।

औसत मध्यवर्गीय परिवार के तो एक नहीं बल्कि दो कारें थी। एक मियाँ के लिए, एक बीवी के लिए।

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की उनकी कैलीफोर्निया यात्रा के दौरान हुये ऑब्जर्वेशन्स पर आर्धारित चौथी अतिथि पोस्ट है।

गैराज तो इतने बडे कि कम से काम दो कारें अगल बगल इसमें आसानी से खड़ी की जा सकती हैं।

गैराज के अन्दर जगह इतनी कि भारत में तो इतनी जगह में एक पूरा घर बन सकता था।

Friday, October 1, 2010

Saturday, September 25, 2010

द्विखण्डित

Gyan900-001 कटरा, इलाहाबाद में कपड़े की दुकान का मालिक, जो स्त्रियों के कपड़े सिलवा भी देता है, अपनी व्यथा सुना रहा था – “तेईस तारीख से ही सारे कारीगर गायब हो गये हैं। किसी की मां बीमार हो गई है। किसी के गांव से खबर आई है कि वापस आ जा। तुझे मार डालेंगे, काट कर फैंक देंगे!”

“कौन हैं कारीगर? हिन्दू कि मुसलमान?”

“ज्यादातर मुसलमान हैं।”

Thursday, September 23, 2010

भाग तीन – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की उनकी कैलीफोर्निया यात्रा के दौरान हुये ऑब्जर्वेशन्स पर आर्धारित तीसरी अतिथि पोस्ट है:


Saturday, September 18, 2010

भाग दो - कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की अतिथि पोस्ट है:

एक और बात मैंने नोट की और वह है ये अमरीकी लोग अपनी प्राइवेसी (privacy) पर कुछ ज्यादा ही जोर देते हैं।  अमरीकी नागरिक खुलकर  बातें नहीं करते थे हम लोगों से। हम जैसे कम्यूनिकेटिव (communicative) नहीं होते। शायद मेरा यह अनुमान गलत है और सिर्फ़ मेरे साथ ऐसा हुआ। या फ़िर मैं ही कुछ ज्यादा बोलता हूँ!

रास्ते में टहलते समय, अजनबी लोग भी भले  "Hi" या "Hello there" या "Good morning" कहते, पर उसके बाद झट से निकल जाते थे।

Thursday, September 16, 2010

“रुद्र” काशिकेय पर प्रथम टीप

अपनी मूर्खता पर हंसी आती है। कुछ वैसा हुआ – छोरा बगल में ढुंढाई शहर में! 

राहुल सिंह जी की टिप्पणी थी टल्लू वाली पोस्ट पर -

अपरिग्रही टल्‍लू ने जीवन के सत्‍य का संधान कर लिया है और आपने टल्‍लू का, बधाई। जगदेव पुरी जी से आपकी मुलाकात होती रहे। अब आपसे क्‍या कहें कि एक थे शिव प्रसाद मिश्र "रूद्र" काशिकेय

Tuesday, September 14, 2010

हिन्दी में पुस्तक अनुवाद की सीमायें

दो पुस्तकें मैं पढ़ रहा हूं। लगभग पढ़ ली हैं। वे कुछ पोस्ट करने की खुरक पैदा कर रही हैं।

खुरक शायद पंजाबी शब्द है। जिसका समानार्थी itching या तलब होगा।

पहली पुस्तक है शिव प्रसाद मिश्र “रुद्र” काशिकेय जी की – बहती गंगा। जिसे पढ़ने की प्रेरणा राहुल सिंह जी से मिली। ठिकाना बताया बोधिसत्त्व जी ने। विलक्षण पुस्तक! इसके बारे में बाद में कहूंगा। आगे किसी पोस्ट में।

Sunday, September 12, 2010

कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ

यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी की अतिथि पोस्ट है।


हाल ही में पत्नी के साथ कैलिफ़ोर्निया गया था। अपने बेटी और दामाद के यहाँ कुछ समय बिताकर वापस लौटा हूँ।

P1000905s बेटी और दामाद पिछले १० साल से वहीं रह रहे हैं और कई बार हमें आमंत्रित किए थे पर पारिवारिक और व्यवसाय संबन्धी मजबूरियों के कारण मैं जा न सका।

Saturday, September 11, 2010

हरतालिका तीज

आज सवेरे मन्दिर के गलियारे में शंकर-पार्वती की कच्ची मिट्टी की प्रतिमायें और उनके श्रृंगार का सस्तौआ सामान ले कर फुटपाथिया बैठा था। अच्छा लगा कि प्रतिमायें कच्ची मिट्टी की थीं – बिना रंग रोगन के। विसर्जन में गंगाजल को और प्रदूषित नहीं करेंगी।

Friday, September 3, 2010

टल्लू की मछरियाँ

टल्लू का भाई भोला बिजनिस करता है और बचे समय में दारू पीता है। टल्लू दारू पीता है और बचे समय में अब तक माल ढोने की ट्राली चलाता था। दारू की किल्लत भई तो नौ सौ रुपये में ट्राली बेच दी। अब वे नौ सौ भी खतम हो चुके हैं।

Tuesday, August 31, 2010

ललही छठ

कल ललही छठ थी। हल छठ – हलधर (बलराम) का जन्म दिन। कभी यह प्रांत (उत्तरप्रदेश) मातृ-शक्ति पूजक हो गया होगा, या स्त्रियां संस्कृति को जिन्दा रखने वाली रह गई होंगी तो उसे ललही माता से जोड़ दिया उन्होने।

स्त्रियां इस दिन हल चला कर उपजाया अन्न नहीं खातीं व्रत में। लिहाजा प्रयोग करती हैं – तिन्नी का धान। तिन्नी का धान तालाब में छींटा जाता है और यूं ही उपज जाता है। मेरी बुआ यह व्रत कर रही थीं – उनसे मांगा मैने तिन्नी का चावल। देखने में सामान्य पर पक जाने पर लालिमा युक्त।

Sunday, August 29, 2010

ट्विट ट्विट ट्वीट!

दीपक बाबा जी कहते हैं - 

ज्ञानदत्त जी, आपके ब्लॉग पर तो ट्वीट चल रहा है ..... चार लाइन आप लिख देते हो बाकी ३०-४० टिप्पणियाँ जगह पूरी कर देती हैं. कुल मिला कर हो गया एक लेख पूरा.
शायद बुरा मान जाओ ......... पर मत मानना ....... इत्ता तो कह सकते हैं.

दीपक जी ने मेरी सन २००७-२००८ की पोस्टें नहीं देखीं; टिप्पणी के हिसाब से मरघटीय पोस्टें!

और फिर दिव्या कहती हैं -

Friday, August 27, 2010

बोकरिया, नन्दी, बेलपत्र और मधुमेह

अपनी पूअर फोटोग्राफी पर खीझ हुई। बोकरिया नन्दी के पैर पर पैर सटाये उनके माथे से टटका चढ़ाया बेलपत्र चबा रही थी। पर जब तक मैं कैमरा सेट करता वह उतरने की मुद्रा में आ चुकी थी!

बेलपत्र? सुना है इसे पीस कर लेने से मधुमेह नहीं होता। बोकरिया को कभी मधुमेह नहीं होगा। पक्का। कहो तो रामदेविया शर्त!

Wednesday, August 25, 2010

गौतम शंकर बैनर्जी

उस दिन शिव कुमार मिश्र ने आश्विन सांघी की एक पुस्तक के बारे में लिखा, जिसमें इतिहास और रोमांच का जबरदस्त वितान है। सांघी पेशेवर लेखक नहीं, व्यवसायी हैं।

कुछ दिन पहले राजीव ओझा ने आई-नेक्स्ट में हिन्दी ब्लॉगर्स के बारे में लिखा जो पेशेवर लेखक नहीं हैं – कोई कम्प्यूटर विशेषज्ञ है, कोई विद्युत अभियंता-कम-रेलगाड़ी प्रबन्धक, कोई चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट, कई वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रबन्धक और टेक्नोक्रेट हैं। और बकौल राजीव टॉप ब्लॉगर्स हैं।

क्या है इन व्यक्तियों में?

Monday, August 23, 2010

आखरी सुम्मार

मन्दिर को जाने वाली सड़क पर एक (अन)अधिकृत चुंगी बना ली है लुंगाड़ो नें। मन्दिर जाने वालों को नहीं रोकते। आने वाले वाहनों से रोक कर वसूली करते हैं। श्रावण के महीने में चला है यह। आज श्रावण महीने का आखिरी सोमवार है। अब बन्द होने वाली है यह भलेण्टियरी।

Friday, August 20, 2010

जगदेव पुरी

जगदेव पुरी जी शिवकुटी के हनुमान मन्दिर में पूजा कार्य देखते हैं। उम्र लगभग ८५। पर लगते पैंसठ-सत्तर के हैं। यह पता चलते ही कि वे पचासी के हैं, मेरी पत्नीजी ने तुरत एक लकड़ी तोड़ी – आपको नजर न लगे। आप तो सत्तर से ऊपर के नहीं लगते! आप सौ से ऊपर जियें!

हम दोनो ने उनके पैर छुये। हमें अच्छा लगा। उन्हे भी लगा ही होगा। 

इतिहास में घूमना

सवेरे मैं अपने काम का खटराग छेडने से पहले थोडा आस-पास घूमता हूं। मेरा लड़का साथ में रहता है - शैडो की तरह। वह इस लिये कि (तथाकथित रूप से) बीमार उसका पिता अगर लड़खड़ा कर गिरे तो वह संभाल ले। कभी जरूरत नहीं पड़ी; पर क्या पता पड़ ही जाये!

वैसे घूमना सड़क पर कम होता है, मन में ज्यादा। गंगा आकर्षित करती हैं पर घाट पर उतरना वर्जित है मेरे लिये। यूं भी नदी के बारे में बहुत लिख चुका। कि नहीं?

Wednesday, August 18, 2010

निठल्ला

Mags बिना अपना काम किये कैसे जिया जा सकता है? पिछले डेढ़ महीने मेरे लिये बहुत यातनामय रहे, जब मेरी कार्यक्षमता कम थी और सरकारी काम के प्रति पूरा न्याय नहीं हो पा रहा था।

पढ़ा कि कई उच्च मध्य वर्ग की महिलायें स्कूल में मास्टरानियों के पद पर हैं। पर स्कूल नहीं जातीं। अपना हस्ताक्षर कर तनख्वाह उठाती हैं। घर में अपने बच्चों को क्या जीवन मूल्य देती होंगी!?

Monday, August 16, 2010

मेला फिर!

मेला फिर लगेगा। अभी तड़के देखा – तिकोनिया पार्क में झूला लगने लगा है। लगाने वाले अपने तम्बू में लम्बी ताने थे। कल से गहमागहमी होगी दो दिन। सालाना की गहमागहमी।

अनरसा, गुलगुला, नानखटाई, चाट, पिपिहरी, गुब्बारा, चौका, बेलन, चाकू से ले कर सस्तौआ आरती और फिल्मी गीतों की किताबें – सब मिलेगा। मन्दिर में नई चप्पलें गायब होंगी और भीड़ की चेंचामेची में जेबें कटेंगी।

Sunday, August 15, 2010

छोटू सपेरे की मोनी

नागपंचमी के दिन घाट पर कुछ अंधे बैठे थे। सामने कथरी बिछाये। गंगा नहा आते लोग अपनी श्रद्धा वश कुछ अन्न या पैसा उनकी कथरी पर गिराते जा रहे थे।

उन्ही के पास बैठा था एक लड़का। पैंट-बुशशर्ट पहने। कई दिनों से न नहाने से उलझे बाल। बीन और सांप रखने वाली मोनी (बांस की तीलियो से बना गोल डिब्बा) लिये। सामने कथरी पर कुछ पैसे और कुछ अनाज था। हमें देख कर बोला – नागराज भला करेंगे। दीजिये उनके लिये।

अच्छा, दिखाओ जरा नाग।

Saturday, August 14, 2010

बिम्ब, उपमा और न जाने क्या!?


कल सुकुल कहे कि फलानी पोस्ट देखें, उसमें बिम्ब है, उपमा है, साहित्त है, नोक झोंक है।

हम देखे। साहित्त जो है सो ढेर नहीं बुझाता। बुझाता तो ब्लॉग लिखते? बड़ा बड़ा साहित्त - ग्रन्थ लिखते। ढेर पैसा पीटते। पिछलग्गू बनाते!

Sunday, August 1, 2010

रविवार भोर ६ बजे

तख्ती पर बैठे पण्डा। जजमानों के इन्तजार में। गंगा तट पर नहाते पुरुष और स्त्रियां। पण्डा के बाईं ओर जमीन पर बैठा मुखारी करता जवाहिर लाल। गंगा बढ़ी हुई हैं। सावन में ही भदईं गंगा का अहसास!

Wednesday, July 28, 2010

गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी का स्वास्थ्य

परसों प्राप्त ई-मेल से श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी के स्वास्थ्य के विषय में पता चला:


GV attempting rowing ज्ञानजी,

इस लंबी अवधि की चुप्पी के लिए क्षमा चाहता हूँ।

कई महीनों से ब्लॉग जगत से दूर रहा था। जाल जगत से भी संपर्क सीमित था।

व्यवसाय संबन्धी कठिनाइयों के कारण और स्वास्थ्य अचानक बिगडने के कारण कई अच्छे मित्रों से भी ई मेल संपर्क टूट गया था।

Sunday, July 25, 2010

मॉडर्न भौतिकी और सुंघनी

mdern physics वे जवान और गम्भीर प्रकृति के छात्र हैं। विज्ञान के छात्र। मॉडर्न भौतिकी पढ़ते हैं और उसी की टमिनॉलॉजी में बात करते दीखते हैं। अधिकांशत: ऐसे मुद्दों पर बात करते हैं, जो मुझे और मेरी पत्नीजी को; हमारी सैर के दौरान समझ में नहीं आते। हम ज्यादातर समझने का यत्न भी नहीं करते – हमें तो उनकी गम्भीर मुख मुद्रायें ही पसन्द आती हैं।

शिवकुटी है तो मात्र जवान लड़के दिखाई देते हैं। परदेश होता तो उनकी गोल में एक-आध जवान लड़की भी होती – एक फिल्म की संकल्पना को साकार करती हुई। अभी ज्यादातर के पैरों में हवाई चप्पल या सस्ते जूते होते हैं; परदेश में कुछ ट्रेण्डी कपड़े होते।

उस खाली प्लॉट के पास वे ज्यादा देर तक रुक कर चर्चा करते हैं।

Gyan771-001 Gyan769-001 कभी-कभी उनके द्वारा चर्चित मुद्दे हमारी पकड़ में आ जाते हैं। एक बार वे नमकीन की पन्नी हाथ में लिये नमकीन सेंव बनाने की प्रकिया को मॉडर्न फीजिक्स की टर्मिनॉलॉजी में डिस्कस कर रहे थे। एक दूसरे समय में वे नाइक्विस्ट थ्यॉरम की चर्चा सुंघनी व्यवसाय के सन्दर्भ में कर रहे थे। सहसों वाले प्रसिद्ध सुंघनी व्यवसाई भोलाराम जायसवाल ने कभी नाइक्विस्ट थ्यॉरम के बारे में सुना भी होगा – मुझे भयंकर संदेह है। संदेह ही नहीं, भयंकर विश्वास भी है कि उसे मालूम न होगा!

पर हमारे उन जवान विद्यर्थियों की सीरियसता पर हमें पूरा विश्वास है।

Saturday, July 24, 2010

ब्लॉग चरित्र

शिवकुमार मिश्र का सही कहना है कि ब्लॉग चरित्र महत्वपूर्ण है। बहुत से ब्लॉगर उसे वह नहीं दे पाते। मेरे ब्लॉग का चरित्र क्या है? यह बहुत कुछ निर्भर करता है कि मेरा चरित्र क्या है – वह इस लिये कि आठ सौ से अधिक पोस्टें बिना अपना चरित्र झलकाये नहीं लिख सकता।

Wednesday, July 7, 2010

उम्र की फिसलपट्टी उतरता सीनियरत्व

मैने यह पोस्ट पोस्ट न की होती अगर मुझे प्रवीण की एक नई पोस्ट के बारे में सूचना देने की कवायद न करनी होती। यह पोस्ट ड्राफ्ट में बहुत समय से पड़ी थी। और अब तो काफी घटनायें गुजर चुकी हैं। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के काण्ड के लिये बापी महतो को पकड़ा जा चुका है (अच्छा हुआ, पकड़ गया, नहीं तो उसके कामरेड लोग समाप्त कर देते!)


प्रवीण पाण्डेय ने अपने ब्लॉग पर नई पोस्ट लिखी है – २८ घण्टे उसे पढ़ने के लिये आप उनके ब्लॉग पर जायें। यह पोस्ट पढ़ कर मुझे लगा जैसे नव विवाहित कवि हृदय गद्य में कविता लिख रहा हो -

Saturday, July 3, 2010

त्रासदियां – प्रवीण पाण्डेय की पोस्ट

भोपाल त्रासदी गुजर गई। वह किसी अन्य रूप में पुन: सम्भव है। ऐसी ही एक घटना सन २०१८ में घटी। उसके विषय में  प्रवीण पाण्डेय के ब्लॉग पर उनकी पोस्ट त्रासदियां में पढ़ें।


Wednesday, June 30, 2010

बिज्जू

paws स्वप्न, बीमार हो तो बहुत आते हैं। स्वप्न में हल्की रोशनी में दीखता है मुझे बिज्जू। जंगली बिलाव सा कोई जन्तु। वह भी मुझे देख चुका है। आत्म रक्षा में अपनी जगह बैठे गुर्राहट के साथ दांत बाहर निकाल रहा है।

मुझे प्रतिक्रिया करने की जरूरत नहीं है। अपने रास्ते निकल सकता हूं। पर आशंकित हूं कि कहीं वह आक्रमण कर बैठा तो? मैं अपने पैर का चप्पल निकाल चला देता हूं। कितने बड़े चप्पल! बाइबल की कहानियों के गोलायथ जैसे का चप्पल!

पर वह निशाने पर नहीं लगता। पहला वार खाली। युद्ध में पहले वार की महत्ता है युद्ध का दोष तय करने को। पहला वार, पहला तीर, पहली गोली! पहला शंख किसने बजाया था महाभारत में?!

Saturday, June 26, 2010

नई पोस्ट - प्रवीण पाण्डेय

प्रवीण पाण्डेय की नई पोस्ट - मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा, उनके ब्लॉग न दैन्यं न पलायनम् पर।

Babaji 
कृपया लिंक पर जाने का कष्ट करें।

Wednesday, June 23, 2010

न दैन्यं न पलायनम्

प्रवीण पाण्डेय ने अन्तत: अपना ब्लॉग बना लिया – न दैन्यं न पलायनम्

पहली पोस्ट आज पब्लिश हो रही है। उसका अंश - 

स्वर्ग

नहीं, यह यात्रा वृत्तान्त नहीं है और अभी स्वर्ग के वीज़ा के लिये आवेदन भी नहीं देना है। यह घर को ही स्वर्ग बनाने का एक प्रयास है जो भारत की संस्कृति में कूट कूट कर भरा है। इस स्वर्गतुल्य अनुभव को व्यक्त करने में आपको थोड़ी झिझक हो सकती है, मैं आपकी वेदना को हल्का किये देता हूँ। …

प्रवीण की पोस्ट पूरा पढ़ने के लिये उनके ब्लॉग-पोस्ट पर जाने का कष्ट करें।


Saturday, June 19, 2010

मधुगिरि के चित्र

यह स्लाइड-शो है मधुगिरि के चित्रों का। पिकासा पर अप-लोड करना, चित्रों पर कैप्शन देना और पोस्ट बनाना काफी उबाऊ काम है। पर मैने पूरा कर ही लिया!

ललकारती-गरियाती पोस्टें लिखना सबसे सरल ब्लॉगिंग है। परिवेश का वैल्यू-बढ़ाती पोस्टें लिखना कठिन, और मोनोटोनी वाला काम कर पोस्ट करना उससे भी कठिन! :-)

Wednesday, June 16, 2010

मधुगिरि

Master Plan विश्व के द्वितीय व एशिया के सर्वाधिक बड़े शिलाखण्ड की विशालकाया को जब अपने सम्मुख पाया तो प्रकृति की महत्ता का अनुभव होने लगा। जमीन के बाहर 400 मी की ऊँचाई व 1500 मी की चौड़ाई की चट्टान के शिखर पर बना किला देखा तो प्रकृति की श्रेष्ठ सन्तान मानव की जीवटता का भाव व सन्निहित भय भी दृष्टिगोचर होने लगा।

बंगलोर से लगभग 110 किमी की दूरी पर स्थित मधुगिरि तुमकुर जिले की एक सबडिवीज़न है। वहीं पर ही स्थित है यह विशाल शिलाखण्ड। एक ओर से मधुमक्खी के छत्ते जैसा, दूसरी ओर से हाथी की सूँड़ जैसा व अन्य दो दिशाओं से एक खड़ी दीवाल जैसा दिखता है यह शिलाखण्ड। गूगल मैप पर ऊपर से देखिये तो एक शिवलिंग के आकार का दिखेगा यही शिलाखण्ड।

Sunday, June 13, 2010

नत्तू गुण्डा पांड़े

Gyan674-001 आगे टीशर्ट चढ़ी तोंद और पीछे डायपर युक्त तशरीफ लिये साल भर के नत्तू को जब उसकी मां घसीट कर कमरे में ले जाने का यत्न करती है तो बद्द-बद्द चलते वह दूसरे हाथ और दोनो पैर से जो भी चीज सीमा में आ जाती है, उसको गिराने-लुढ़काने या ठोकर मारने का पूरा प्रयास करता है। उसकी नानी का कथन है कि उसकी जीनेटिक संरचना में बनारसी गुण्डों वाले गुणसूत्रतत्व प्रमुखता से आ जुड़े हैं।

उसे हम भागीरथ, प्रधानमंत्री या नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक बनाने के चक्कर में थे; अभी फिलहाल उसका गुण्डत्व ही देख पाये हैं।

Wednesday, June 9, 2010

बिल्लियाँ

बिल्लियाँ आरोपों के काल में कुत्ते बिल्लियों के ऊपर लिखे गये ब्लॉग हेय दृष्टि से देखे गये थे। इसलिये जब बिटिया ने बिल्ली पालने के लिये हठ किया तो उसको समझाया कि गाय, कुत्ते, बिल्ली यदि हिन्दी ब्लॉग में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं तो उनको घर में लाने से मेरी भी हिन्दी ब्लॉगिंग प्रतिभा व रैंकिंग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

बालमन पशुओं के प्रेम व आत्मीयता से इतने ओतप्रोत रहते हैं कि उन्हें ब्लॉगिंग के सौन्दर्यबोध का ज्ञान ही नहीं। बिटिया ने मेरे तर्कों पर भौंहे सिकोड़कर एक अवर्णनीय विचित्र सा मुँह बनाया और साथ ही साथ याद दिलाया कि कुछ दिनों पहले तक इसी घर में सात गायें और दो कुत्ते रहते थे। यह देख सुन कर मेरा सारा ब्लॉगरतत्व पंचतत्व में विलीन हो गया।

Monday, June 7, 2010

एपिलेप्सी-रोधी दवाओं के साथ वापसी

DSC02400 (Small)काफी समय पहले मैने वैतरणी नाले के पानी से कछार में खेती करते श्री अर्जुन प्रसाद पटेल की मड़ई और उनके क्रियाकलाप पर लिखा था। मैं उनकी मेहनत से काफी प्रभावित था। कल पुन: उनकी मड़ई का दूर से अवलोकन किया। उस नाले में पर्याप्त सूअर घूमते हैं। अत: उनकी क्यारियों की सब्जी में न्यूरोसिस्टिसर्कोसिस (NEUROCYSTICERCOSIS) के मामले बनाने की क्षमता होगी!
खैर, मेरी पत्नी और मैने, बावजूद इस बीमारी के, हरी सब्जियां खाना बन्द न करने का फैसला किया है!

चौबीस मई को शाम नौ बजे मुझे बायें हाथ में अनियंत्रित दौरे जैसा कुछ हुआ। तेजी से बिना नियंत्रण के हिलते हाथ को दायां हाथ पूरे प्रयास से भी नहीं रोक पा रहा था। लगभग चार मिनट तक यह चला। उसके बाद कलाई के आगे का हाथ मानसिक नियंत्रण में नहीं रहा।

मैने दो फोन किये। एक अपने बॉस को आपात अवस्था बताते हुये और दूसरा अपने रिश्ते में आनेवाले आजमगढ़ के सी.एम.ओ. ड़ा. एस.के. उपाध्याय को। बॉस श्री उपेन्द्र कुमार सिंह ने अस्पताल ले जाने की तुरन्त व्यवस्था की। ड़ा. उपाध्याय ने यह स्पष्ट किया कि मामला किसी अंग विशेष/तंत्रिकातन्त्र में स्पॉडिलाइटिस का भी नहीं, वरन मस्तिष्क से सम्बन्धित है। मस्तिष्क की समस्या जानकर मैं और व्यग्र हो गया।

Sunday, May 23, 2010

ब्लॉग पढ़ने की चीज है?

मेरे मस्तिष्क में दायीं ओर सूजन होने के कारण बायें हाथ में शैथिल्य है। उसके चलते इस ब्लॉग पर गतिविधि २५ मई से नहीं हो पा रही, यद्यपि मन की हलचल यथावत है। अत: सम्भवत: १५-२० जून तक गतिविधि नहीं कर पाऊंगा। मुझे खेद है।

ब्लॉग लिखे जा रहे हैं, पढ़े नहीं जा रहे। पठनीय भी पढ़े नहीं जा रहे। जोर टिप्पणियों पर है। जिनके लिये पोस्ट ब्राउज करना भर पर्याप्त है, पढ़ने की जरूरत नहीं। कम से कम समय में अधिक से अधिक टिप्पणियां – यही ट्रेण्ड बन गया है।

Friday, May 21, 2010

3जी की 67,000 करोड़ की नीलामी

Gyan623-001 मेरे दोनो अखबार – बिजनेस स्टेण्डर्ड और इण्डियन एक्स्प्रेस बड़ी हेडलाइन दे रहे हैं कि सरकार को 3जी की नीलामी में छप्परफाड (उनके शब्द – Windfall और Bonanza) कमाई हुई है।

तीन दशक पहले – जब मैं जूनियर अफसर था तो १५० लोगों के दफ्तर में पांच-सात फोन थे। उनमें से एक में एसटीडी थी। घर में फोन नहीं था। पीसीओ बूथ भी नहीं थे। अब मेरे घर में लैण्डलाइन और मोबाइल मिला कर सात-आठ फोन हैं। सभी लोकल और दूर-कॉल में सक्षम। हाल ही में रेलवे ने एक अतिरिक्त सिमकार्ड दिया है। इसके अलावा हमारे भृत्य के पास अलग से दो मोबाइल हैं।

Wednesday, May 19, 2010

होगेनेक्कल जलप्रपात

Station1 (Small) नीरज जाट जी, डॉ अरविन्द मिश्र जी व आशा जोगलेकर जी के यात्रा-वृत्तान्तों का प्रभाव, बच्चों की घर में ऊबने की अकुलाहट और रेलवे के मॉडल स्टेशन के निरीक्षण का उपक्रम मुझे तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले ले गये।


बंगलोर से 150 किमी रेलयात्रा पर है धर्मपुरी, वहाँ से 40 किमी की रोड यात्रा पर होगेनेक्कल है।

Monday, May 17, 2010

चूनी की रोटी

बारह बिस्वा में अरहर बुवाई थी। कुल बारह किलो मिली। अधिया पर बोने वाले को नफा नहीं हुआ। केवल रँहठा (अरहर का सूखा तना) भर मिला होगा। बारह किलो अरहर का अनुष्ठान चलने वाला है – कहुलने (तसला में गर्म करने) और फिर उसे चकरी में दलने का।

Sunday, May 16, 2010

आत्मोन्नति और अपमान

एक जवान आदमी आत्मोन्नति के पथ पर चलना चाहता था। उसे एबॉट (abbot – मठाधीश) ने कहा – जाओ, साल भर तक प्रत्येक उस आदमी को, जो तुम्हारा अपमान करे, एक सिक्का दो।

अगले बारह महीने तक उस जवान ने प्रत्येक अपमान करने वाले को एक सिक्का दिया। साल पूरा होने पर वह मठाधीश के पास गया, यह पता करने कि अगला चरण क्या होगा आत्मोन्नति के लिये। एबॉट ने कहा – जाओ, शहर से मेरे खाने के लिये भोजन ले कर आओ।

Wednesday, May 12, 2010

ड्रीम गर्ल

Nand Yashoda पिछले दिनों हेमामालिनीजी का बंगलोर आगमन हुआ। आमन्त्रण रेलवे की महिला कल्याण समिति का था। कृष्ण की लीलाओं पर आधारित एक मन्त्रमुग्ध कर देने वाली नृत्य नाटिका प्रस्तुत की उन्होने। कुल 60 कलाकारों का विलक्षण प्रदर्शन, ऐसा लगा कि वृन्दावन उतर कर आपके सामने अठखेलियाँ कर रहा हो। मैं ठगा सा बैठा बस देखता ही रहा, एकटक निहारता ही रहा। सुन्दरता, सौम्यता, सरलता, निश्छलता और वात्सल्य, सब मिलकर छलक रहा था, यशोदा के मुखमण्डल से।

Tuesday, May 11, 2010

कौन बेहतर ब्लॉगर है शुक्ल या लाल?

समीर लाल अपने टिपेरने की कला पर बेहतर फॉलोइंग रखते हैं। उनकी टिप्पणियां जबरदस्त होती हैं। पर उनकी पोस्टों का कण्टेण्ट बहुत बढ़िया नहीं है। कभी कभी तो चुकायमान सा लगता है। उनकी हिन्दी सेवा की झण्डाबरदारी यूं लगती है जैसे अपने को व्यक्ति नहीं, संस्था मानते हों!

अनूप शुक्ल की पोस्टें दमदार होती थीं, होती हैं और होती रहेंगी (सम्भावना)। चिठ्ठा-चर्चा के माध्यम से मुरीद भी बना रखे हैं ढेरों। पर उनकी हाल की झगड़े बाजी जमती नहीं। दम्भ और अभिमान तत्व झलकता है। मौज लेने की कोई लक्ष्मण रेखा तय नहीं कर पाये पण्डित।

Monday, May 10, 2010

अतिक्रमण हटा; फिर?

DSC00105 (Small) गंगा तट की सीढ़ियों का अतिक्रमण हट गया।

इस काम में कई लोग लगे थे, पर हमारी ओर से लगे थे श्री विनोद शुक्ल। पुलीस वालों से और स्थानीय लोगों से सम्पर्क करना, उनको इकठ्ठा करना, समय पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में सहायक बनना – यह उन्होने किया। मैने विनोद शुक्ल को धन्यवाद दिया। एक दिन पहले जब वे बता रहे थे कि कुछ हो नहीं पा रहा है तो वे विलेन नजर आ रहे थे। मैने उन्हे ही नहीं, जाने किन किन को कोसा था।

Sunday, May 9, 2010

बापीयॉटिक पोस्टों की दरकार है!

Baapi2 बापी ओडीसा जाने के बाद क्या कर रहा है? मैं सतीश पंचम जी से फॉलो-अप का अनुरोध करता हूं।

बापी वाली पोस्ट एक महत्वपूर्ण पोस्ट है हिन्दी ब्लॉगिंग की – भाषा और विषय वस्तु में नया प्रयोग। यह बिना फॉलो-अप के नहीं जाना चाहिये। अगर आपने सतीश जी की उक्त पोस्ट नहीं पढ़ी है तो कृपया पढ़ें। बापी मुम्बई की जिन्दगी की करमघसेटी को किन तर्कों के साथ तिलांजलि देता है, और किस भाषा में, वह पढ़ने की चीज है। 

रिवर्स माइग्रेशन एक स्वप्न की वस्तु नहीं है। अर्थव्यवस्था में अच्छी वृद्धि दर के साथ समृद्धि छोटे शहरों/गांवों/कस्बों में पसीजनी चाहिये। अन्यथा असमान विकास अपने को झेल नहीं पायेगा।

Friday, May 7, 2010

सीमाओं के साथ जीना

हम चाहें या न चाहें, सीमाओं के साथ जीना होता है।

घाट की सीढियों पर अवैध निर्माण

गंगा किनारे घूमने जाते हैं। बड़े सूक्ष्म तरीके से लोग गंगा के साथ छेड़ छाड़ करते हैं। अच्छा नहीं लगता पर फिर भी परिवर्तन देखते चले जाने का मन होता है।

अचानक हम देखते हैं कि कोई घाट पर सीधे अतिक्रमण कर रहा है। एक व्यक्ति अपने घर से पाइप बिछा घर का मैला पानी घाट की सीढ़ियों पर फैलाने का इन्तजाम करा रहा है। घाट की सीढियों के एक हिस्से को वह व्यक्तिगत कोर्टयार्ड के रूप में हड़पने का निर्माण भी कर रहा है! यह वह बहुत तेजी से करता है, जिससे कोई कुछ कहने-करने योग्य ही न रहे - फेट एकम्प्ली - fait accompli!

वह आदमी सवेरे मिलता नहीं। अवैध निर्माण कराने के बाद यहां रहने आयेगा।

मैं अन्दर ही अन्दर उबलता हूं। पर मेरी पत्नीजी तो वहां मन्दिर पर आश्रित रहने वालों को खरी-खोटी सुनाती हैं। वे लोग चुपचाप सुनते हैं। निश्चय ही वे मन्दिर और घाट को अपने स्वार्थ लिये दोहन करने वाले लोग हैं। उस अतिक्रमण करने वाले की बिरादरी के। ऐसे लोगों के कारण भारत में अधिकांश मन्दिरों-घाटों का यही हाल है। इसी कारण से वे गटरहाउस लगने लगते हैं।

Wednesday, May 5, 2010

छलकना गुस्ताख़ी है ज़नाब

हिमांशु मोहन जी ने पंकज उपाध्याय जी को एक चेतावनी दी थी।

“आप अपने बर्तनों को भरना जारी रखें, महानता का जल जैसे ही ख़तरे का निशान पार करेगा, लोग आ जाएँगे बताने, शायद हम भी।”

यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं।

हिमांशु जी का यह अवलोकन बहुत गहरे तक भेद कर बैठा है भारतीय सामाजिक मानसिकता को।

पर यह बताईये कि अच्छे गुणों से डर कैसा? यदि है तो किसको?

बात आपकी विद्वता की हो, भावों की हो, सेवा की हो या सौन्दर्य की क्यों न हो...........छलकना मना है।

Tuesday, May 4, 2010

नाले पर जाली - फॉलोअप

मैने इक्कीस फरवरी’२०१० को लिखा था :

Vaitarni Nala Jaali_thumb[2] गंगा सफाई का एक सरकारी प्रयास देखने में आया। वैतरणी नाला, जो शिवकुटी-गोविन्दपुरी का जल-मल गंगा में ले जाता है, पर एक जाली लगाई गई है। यह ठोस पदार्थ, पॉलीथीन और प्लॉस्टिक आदि गंगा में जाने से रोकेगी।

अगर यह कई जगह किया गया है तो निश्चय ही काफी कचरा गंगाजी में जाने से रुकेगा।

Sunday, May 2, 2010

टेलीवीजन (या रेडियो) की जरूरत

लम्बे समय से मैने टेलीवीजन देखना बन्द कर रखा है। मैं फिल्म या सीरियल की कमी महसूस नहीं करता। पर कुछ दिन पहले सवेरे जब मैं अपनी मालगाड़ियों की पोजीशन ले रहा था तो मुझे बताया गया कि दादरी के पास लोग ट्रैक पर आ गये हैं और दोनो ओर से ट्रेन यातायात ठप है। पूछने पर बताया कि समाजवादी पार्टी वाले मंहगाई के विरोध में भारत बन्द कर रहे हैं।

Friday, April 30, 2010

प्रधान, पोखरा, ग्रीस और पुर्तगाल

मैं पिछले महीने में प्रधान जी से कई बार बात करने का यत्न कर चुका। हर बार पता चलता है कि पोखरा (तालाब) खुदा रहे हैं। लगता है नरेगा की स्कीम उनका बहुत समय ले ले रही है। सरकार बहुत खर्च कर रही है। पैसा कहीं से आ रहा होगा।

Wednesday, April 28, 2010

महानता के मानक - मैं और आप

पिछली तीन पोस्टों में सबकी टिप्पणियों पर सज्ञान प्रतिटिप्पणियाँ देकर आज जब विचारों को विश्राम दिया और दर्पण में अपना व्यक्तित्व निहारा तो कुछ धुँधले काले धब्बे, जो पहले नहीं दिखते थे, दिखायी पड़ने लगे।

कुछ दिन हुये एक चर्चित अंग्रेजी फिल्म देखी थी, "मैट्रिक्स"।

Monday, April 26, 2010

महानता से छूटा तो गंगा को भागा

महानता से पगहा तुड़ा गंगा तट पर भागा। देखा कि तट के पास वाली मुख्य धारा में पानी और कम हो गया है। अब तो एक कुक्कुर भी आधा तैरता और आधा पैदल चलता पार कर टापू पर पंहुच गया। पानी कम होने के साथ किनारे छोडती गंगा माई की गंदगी और झलकने लगी।

Gyan472 (Small)

Saturday, April 24, 2010

महानता के मानक-3 / क्यों गिरते हैं महान

थरूर, टाइगर वुड्स, क्लिंटन, तमिल अभिनेत्री के साथ स्वामी, चर्च के स्कैन्डल पर पोप, सत्यम, इनरॉन, रोमन राज्य। कड़ी लम्बी है पर सब में एक छोटी सी बात विद्यमान है। सब के सब ऊँचाई से गिरे हैं। सभी को गहरी चोट लगी, कोई बताये या छिपाये। हम कभी ऊँचाई पर पहुँचे नहीं इसलिये उनके दुख का वर्णन नहीं कर सकते हैं पर संवेदना पूरी है क्योंकि उन्हें चोट लगी है। पर कोई कभी मिल गया तो एक प्रश्न अवश्य पूँछना है।

Thursday, April 22, 2010

महानता के मानक-2

सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग।
ये 6 विशेषतायें न केवल आपको आकर्षित करती हैं वरन देश, समाज, सभ्यतायें और आधुनिक कम्पनियाँ भी इनके घेरे में हैं। यही घेरा मेरी चिन्तन प्रक्रिया को एक सप्ताह से लपेटे हुये हैं।

Tuesday, April 20, 2010

महानता के मानक

यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं। प्रवीण इस विषय पर दो और पोस्टें प्रस्तुत करेंगे -एक एक दिन के अंतराल पर।
विषय यदि एब्स्ट्रैक्ट हो तो चिन्तन प्रक्रिया में दिमाग का फिचकुर निकल आता है। महानता भी उसी श्रेणी में आता है। सदियों से लोग इसमें जूझ रहे हैं। थोड़ी इन्ट्रॉपी हम भी बढ़ा दिये। बिना निष्कर्ष के ओपेन सर्किट छोड़ रहे हैं। सम्हालिये।
सादर, प्रवीण|
महानता एक ऐसा विषय है जिस पर जब भी कोई पुस्तक मिली, पढ़ डाली। अभी तक पर कोई सुनिश्चित अवधारणा नहीं बन पायी है। इण्टरनेट पर सर्च ठोंकिये तो सूचना का पहाड़ आप पर भरभरा कर गिर पड़ेगा और झाड़ते-फूँकते बाहर आने में दो-तीन दिन लग जायेंगे। निष्कर्ष कुछ नहीं।
तीन प्रश्न हैं। कौन महान हैं, क्यों महान हैं और कैसे महान बने? पूर्ण उत्तर तो मुझे भी नहीं मिले हैं पर विचारों की गुत्थियाँ आप के सम्मुख सरका रहा हूँ।

Sunday, April 18, 2010

दहेज

वक्र टिप्पणियों का बहुधा मैं बुरा नहीं मानता। शायद मैं भी करता रहता हूं। पर विवेक सिंह की यह पिछली पोस्ट पर वक्र टिप्पणी चुभ गई:

"मेरी पत्नीजी के खेत का गेंहूं है।"
क्या ! आप अभी तक दहेज लिए जा रहे है ?

नवान्न

वैशाखी बीत गई। नवान्न का इन्तजार है। नया गेहूं। बताते हैं अरहर अच्छी नहीं हुई। एक बेरियां की छीमी पुष्ट नहीं हुई कि फिर फूल आ गये। यूपोरियन अरहर तो चौपट, पता नहीं विदर्भ का क्या हाल है?

Friday, April 16, 2010

बदलाव

ब्लॉगिंग सामाजिकता संवर्धन का औजार है। दूसरों के साथ जुड़ने का अन्तिम लक्ष्य मूल्यों पर आर्धारित नेतृत्व विकास है।

क्या होता है यह? संजीत त्रिपाठी मुझसे बारबार पूछते रहे हैं कि ब्लॉगिंग ने मुझमें क्या बदलाव किये। और मैं यह सोच पाया हूं कि एक बेहद अंतर्मुखी नौकरशाह से कुछ ओपनिंग अप हुई है।

हम एक दो-आयामी स्थिति की कल्पना करें। उसमें y-axis आत्मविकास की है और x-axis सामाजिकता की है। आत्मविकास और सामाजिकता के विभिन्न संयोगों से हम  व्यक्तियों को मोटे तौर चार प्रकार के समूहों में बांट सकते हैं। यह चित्र में स्पष्ट होगा -

Wednesday, April 14, 2010

लैपटॉप का लीप-फार्वर्ड

कहीं बहुत पहले सुना था,

बाप मरा अँधियारे में, बेटा पॉवर हाउस ।

आज जब हमारे लैपटॉप महोदय कायाकल्प करा के लौटे और हमारी लैप पर आकर विराजित हुये तो यही उद्गार मुँह से निकल पड़े। अब इनकी वाइटल स्टेटिस्टिक्स इस प्रकार हैं।

Tuesday, April 13, 2010

नाऊ - II

Bhairo Prasad Barbar भैरो प्रसाद का सैलून कार्ड-बोर्ड फेक्टरी (अब बन्द) की दीवार के सहारे फुटपाठ पर है। शाम के समय मैने देखा तो वह फुटपाथ पर झाड़ू से कटे बाल बटोर रहे थे। एक कुर्सी, शीशा, बाल बनाने के औजार, एक बेंच और एक स्टूल है उनकी दुकान में। छत के नाम पर बल्लियों के सहारे तानी गई एक चादर।

बताया कि एक हेयर कटिंग का १० रुपया [१] लेते हैं। मैने पूछा कि कितनी आमदनी हो जाती है, तो हां हूं में कुछ नॉन कमिटल कहा भैरो प्रसाद ने। पर बॉडी लेंग्वेज कह रही थी कि असंतुष्ट या निराश नहीं हैं वे।

Sunday, April 11, 2010

नाऊ

पिलानी में जब मैं पढ़ता था को कनॉट (शिवगंगा शॉपिंग सेण्टर को हम कनॉट कहते थे) में एक सैलून था। वहां बाल काटने वाला एक अधेड़ व्यक्ति था – रुकमानन्द। उसकी दुकान की दीवार पर शीशे में मढ़ा एक कागज था -

रुकमानन्द एक कुशल नाऊ है। मैं जब भी पिलानी आता हूं, यही मेरे बाल बनाता है।

- राजेन्द्र प्रसाद

Saturday, April 10, 2010

कॉज बेस्ड ब्लॉगिंग (Cause Based Blogging)

क्या करें, हिन्दी सेवा का कॉज लपक लें? पर समस्या यह है कि अबतक की आठ सौ से ज्यादा पोस्टों में अपनी लंगड़ी-लूली हिन्दी से काम चलाया है। तब अचानक हिन्दी सेवा कैसे कॉर्नर की जा सकती है?

हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात हो रही है। यह एक नोबल कॉज (noble cause) है। लोग टपकाये जा रहे हैं पोस्ट। वे सोचते हैं कि अगर वे न टपकायें पोस्ट तो दंगा हो जाये। देश भरभरा कर गिर जाये। लोग बाग भी पूरे/ठोस/मौन/मुखर समर्थन में टिपेरे जा रहे हैं – गंगा-जमुनी संस्कृति (क्या है?) लहलहायमान है। इसी में शिवकुमार मिश्र भी फसल काट ले रहे हैं।

उधर सुरेश चिपलूणकर की उदग्र हिन्दुत्व वादी पोस्टों पर भी लोग समर्थन में बिछ रहे हैं। केसरिया रंग चटक है। शुद्ध हरे रंग वाली पोस्टें पढ़ी नहीं; सो उनके बारे में कॉण्ट से!

Wednesday, April 7, 2010

भीष्म उठ निर्णय सुनाओ

भीष्म का अभिशाप यह था कि उन्होने जिस कलह से कुल को बचाने के लिये अपने सुखों की बलि देते हुये भीष्म प्रतिज्ञा ली, उसी कुल के संहार महाभारत के प्रथम सेनानायक बने। जिस कुल की कलह कम करने के लिये अपना मुँह नहीं खोले, उसी कुल का पूर्ण विनाश युद्धक्षेत्र में लेटे हुये देखे। इस विषय पर अध्याय लिखे जा सकते हैं कि भीष्म का कितना दोष था। मन पर मानता नहीं है कि कोई बुजुर्ग जो श्रेष्ठ था, वह उस समय भी मौन क्यों साधे रहा जब सबके नेत्र उनकी ओर टिके थे। भविष्य के किस कोने से यह घटना बिना उत्तर दिये निकल जाने दी जायेगी?

Sunday, April 4, 2010

परस्पर संवादात्मक ब्लॉगिंग – असफल प्रयोग!

DisQus मेरे बारे में अनूप शुक्ल का पुराना कथन है कि मैं मात्र विषय प्रवर्तन करता हूं, लोग टिप्पणी से उसकी कीमत बढ़ाते हैं। यह कीमत बढ़ाना का खेला मैने बज़ पर देखा। एक सज्जन ने कहा कि यह सामुहिक चैटिंग सा लग रहा है। परस्पर संवाद। पोस्ट नेपथ्य में चली जाती है, लोगों का योगदान विषय उभारता है। ब्लॉग पर यह उभारने वाला टूल चाहिये।

परस्पर संवादात्मक ब्लॉगिंग

DisQusमेरे बारे में अनूप शुक्ल का पुराना कथन है कि मैं मात्र विषय प्रवर्तन करता हूं, लोग टिप्पणी से उसकी कीमत बढ़ाते हैं। यह कीमत बढ़ाना का खेला मैने बज़ पर देखा। एक सज्जन ने कहा कि यह सामुहिक चैटिंग सा लग रहा है। परस्पर संवाद। पोस्ट नेपथ्य में चली जाती है, लोगों का योगदान विषय उभारता है। ब्लॉग पर यह उभारने वाला टूल चाहिये।

Saturday, April 3, 2010

अभिव्यक्ति का स्फोट

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सांझ घिर आई है। पीपल पर तरह तरह की चिड़ियां अपनी अपनी आवाज में बोल रही हैं। जहां बैठती हैं तो कुछ समय बाद वह जगह पसन्द न आने पर फुदक कर इधर उधर बैठती हैं। कुछ एक पेड़ से उड़ कर दूसरे पर बैठने चली जाती हैं।

क्या बोल रहीं हैं वे?! जो न समझ पाये वह (मेरे जैसा) तो इसे अभिव्यक्ति का (वि)स्फोट ही कहेगा। बहुत कुछ इण्टरनेट जैसा। ब्लॉग – फीड रीडर – फेसबुक – ट्विटर – बज़ – साधू – महन्त – ठेलक – हेन – तेन! रात होने पर पक्षी शान्त हो जाते हैं। पर यहां तो चलती रहती है अभिव्यक्ति।

Friday, April 2, 2010

हें हें हें, यह हिन्दी सेवा में है!

गूगल बज़ पर ब्लॉग पोस्टें बड़ी सरलता से जा रही हैं। लोग वहीं धो-पोंछ ले रहे हैं। पर जो गूगल बज़ से प्रारम्भ होता है, वह ब्लॉग में आने का रीवर्स माइग्रेशन अगर चल निकले तो मजा आये।

मैने एक हिन्दी सेवात्मक बज़ लिखा था। जो पर्याप्त बज़ा। उसपर प्राइमरी के मास्टर जी ने पुन: बज़ाया। वह सब नीचे पुन: गेर रहा हूं ताकि सनद रहे ब्लॉग पर।

इसमें चर्चा में आया है कि अनूप सुकुल और संजीत त्रिपाठी के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन का मामला भी बनता है। अब उन्हे भुगतना है, वे भुगतें! हम तो ठेल कर चले। बहुत काम बचा पड़ा है! :-)

हां, इस पोस्ट पर टिप्पणी बन्द नहीं है। 

Wednesday, March 31, 2010

पिज्जा, खिलौना, विकल्प और मानव जीवन

यह प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। एक सामान्य घरेलू स्थिति से दर्शन में कैसे उतरा जाता है, वह प्रवीण से सीखने योग्य है:


बच्चों की परीक्षायें समाप्त हुयीं और घर के वातावरण का उत्सवीकरण हो गया। अब युद्धक्षेत्र से लौटे विजयी (लगता तो है) योद्धाओं को उपहार चाहिये। निश्चय हुआ कि पहले वसुधैव कुटुम्बकम् को चरित्रार्थ करते हुये डोमिनो(अमेरिकन) में पिज्जा(इटेलियन) बिना छुरी-काँटा(भारतीय) उड़ाया जायेगा। यहाँ पर छुरी-काँटे का जुझारु उपयोग देखकर या कॉस्ट कटिंग के चलते यह सुविधा डोमिनो ने हटा ली है।

बाबा रामदेव जी का समुचित सम्मान घर में है पर माह में एक दिन हमारी सोच वैश्विक स्तर की हो जाती है।