|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Wednesday, September 30, 2009
सिविल सेवा परीक्षा
इस वर्ष की सिविल सेवा परीक्षा के प्रथम 100 चयनित अभ्यर्थियों में केवल एक के विषय गणित और भौतिकी हैं। मुझे यह तब पता लगा जब मैंने एक परिचित अभ्यर्थी से उसके विषयों के बारे में पूछा। आश्चर्य की बात यह थी कि वह एक इन्जीनियर हैं और विज्ञान के विषय न लेकर बिल्कुल ही नये विषय लेकर तैयारी कर रहे हैं।
Tuesday, September 29, 2009
ब्लॉगिंग और फीड एग्रेगेटर
मुझे लगता है कि फीड एग्रेगेटर के बारे में जो पोस्टों में व्यग्रता व्यक्त की जा रही है, उसका बेहतर डिस्कशन ट्विटर पर हो सकता है। एक सौ चालीस अक्षरों की सीमा में।
Monday, September 28, 2009
ट्रेन परिचालन का नियंत्रण
एक मित्र श्री सुभाष यादव जी ने प्रश्न किया है कि ट्रेन नियंत्रक एक स्थान से इतनी सारी रेलगाड़ियों का नियंत्रण कैसे कर लेता है। पिछली रेल जानकारी विषयक पोस्ट के बाद मैं पाता हूं कि कुछ सामान्य रेल विषयक प्रश्न ब्लॉग पर लिये जा सकते हैं।
ओके, उदाहरण के लिये मानें कि कानपुर से टूण्डला के मध्य रेल की दोहरी लाइन पर ट्रेन परिचालन की बात है। यह बहुत सघन यातायात का खण्ड है। इसमें लगभग १२० गाड़ियां नित्य आती और जाती हैं। कुल २४० ट्रेनों में आधी सवारी गाड़ियां होती हैं और शेष माल गाड़ियां। इस खण्ड के नियंत्रक के पास हर समय २०-२५ गाड़ियां नियंत्रण के लिये होती हैं। हर घण्टे वह आजू-बाजू के खण्डों से लगभग दस गाड़ियां लेता और उतनी ही देता है। इस खण्ड के पैंतीस चालीस स्टेशन मास्टर उसे फोन पर गाड़ियों के आवागमन की स्थिति बताते रहते हैं।
Friday, September 25, 2009
गंगातट की वर्णव्यवस्था
इस घाट पर सवर्ण जाते हैं। सवर्णघाट? कोटेश्वर महादेव मन्दिर से सीढ़ियां उतर कर सीध में है यह घाट। रेत के शिवलिंग यहीं बनते हैं। इसी के किनारे पण्डा अगोरते हैं जजमानों को। संस्कृत पाठशाला के छात्र – जूनियर और सीनियर साधक यहीं अपनी चोटी बांध, हाथ में कुशा ले, मन्त्रोच्चार के साथ स्नानानुष्ठान करते हैं। यहीं एक महिला आसनी जमा किसी पुस्तक से पाठ करती है नित्य। फूल, अगरबत्ती और पूजन सामग्री यहीं दीखते हैं।
Wednesday, September 23, 2009
कितना बोझ उठाये हैं हम सब!
... पर जिनके पास विकल्प हैं और फिर भी जो जीवन को कूड़ाघर बनाये हुये हैं, उनसे यह विनती की जा सकती है कि जीवन का सरलीकरण कर उसका स्तर सुधारें।
शरीर जितना स्थूल होता है उसकी गति भी उतनी ही कम हो जाती है। शरीर हल्का होगा तो न केवल गति बढ़ेगी अपितु ऊर्जा बढ़ेगी। यही जीवन के साथ होता है। जीवन सादा रखना बहुत ही आवश्यक व कठिन कार्य है।
Monday, September 21, 2009
नौ दिन का अनुष्ठान
उन महिला को तीन दिन से शाम के समय देख रहा हूं, गंगा तट पर दीपक जला पूजा करते। कल ध्यान से सुना। कोई श्लोक-मन्त्र जाप नहीं कर रही थीं। अपनी देशज भाषा में हाथ जोड़ गंगा माई – देवी माई की गुहार कर रही थीं। काफी देर चली पूजा। उनके हटने पर मैं और एक कुकुर दोनो पूजा स्थल की ओर बढ़े। मैं फोटो लेने और कुकुर पूजा स्थल पर चढ़ाये बताशे लेने। कुकुर को एक लात मार अलग करना पड़ा अन्यथा पूजा स्थल का दृष्य वह बिगाड़ देता।
तीन दिये थे। फूलों के तीन अण्डाकार दीर्घवृत्तों में। अगरबत्ती जल रही थी। श्रद्धा की गंध व्यप्त थी। मैं कौतूहल भरा फोटो ले रहा था पर कुछ श्रद्धा – त्वचा के कुछ अंदर तक – तो मेरे शरीर में भी प्रवेश कर गयी थी। … या देवी सर्व भूतेषु …
Sunday, September 20, 2009
फ़र्जी काम (Fake Work)
मेरे मित्र और मेरे पश्चिम मध्य रेलवे के काउण्टरपार्ट श्री सैय्यद निशात अली ने मुझे फेक वर्क (Fake Work) नामक पुस्तक के बारे में बताया है।
हम सब बहुत व्यस्त हैं। रोज पहाड़ धकेल रहे हैं। पर अन्त में क्या पाते हैं? निशात जी ने जो बताया, वह अहसास हमें जमाने से है। पर उसकी किताब में फ़र्जी काम की चर्चा और उसकी जगह असली काम करने की स्ट्रेटेजी की बात है; यह पढ़ने का मन हो रहा है।
आप तो फेक वर्क की साइट देखें। उसमें एक कथा दी गयी है फ़र्जी काम को समझाने को -
Saturday, September 19, 2009
श्राद्धपक्ष का अन्तिम दिन
सवेरे का सूरज बहुत साफ और लालिमायुक्त था। एक कालजयी कविता के मानिन्द। किनारे पर श्राद्धपक्ष के अन्तिम दिन की गहमा गहमी। एक व्यक्ति नंगे बदन जमीन पर; सामने एक पत्तल पर ढेर से आटे के पिण्ड, कुशा और अन्य सामग्री ले कर बैठा; पिण्डदान कर रहा था पण्डाजी के निर्देशन में। थोड़ी दूर नाई एक आदमी का मुण्डन कर रहा था।
पण्डाजी के आसपास भी बहुत से लोग थे। सब किसी न किसी प्रकार श्राद्धपक्ष की अनिवार्यतायें पूरा करने को आतुर। सब के ऊपर हिन्दू धर्म का दबाव था। मैं यह अनुमान लगाने का यत्न कर रहा था कि इनमें से कितने, अगर समाज के रीति-रिवाजों को न पालन करने की छूट पाते तो भी, यह कर्मकाण्ड करते। मुझे लगा कि अधिकांशत: करते। यह सब इस जगह के व्यक्ति की प्रवृत्ति में है।
Friday, September 18, 2009
कछार पर कब्जा
भाद्रपद बीत गया। कुआर के शुरू में बारिश झमाझम हो रही है। अषाढ़-सावन-भादौं की कमी को पूरा कर रहे हैं बादल। पर गंगामाई कभी उतरती हैं, कभी चढ़ती हैं। कभी टापू दीखने लगते हैं, कभी जलमग्न हो जाते हैं।
दिवाली के बाद कछार में सब्जी की खेती करने वाले तैयारी करने लगे हैं। पहले कदम के रूप में, कछार पर कब्जा करने की कवायद प्रारम्भ हो गयी है।
Wednesday, September 16, 2009
मृत्यु, पुनर्जन्म और असीमितता
जब परीक्षित को लगा कि सात दिनों में उसकी मृत्यु निश्चित है तो उन्होने वह किया जो उन्हें सर्वोत्तम लगा।
मुझे कुछ दिन पहले स्टीव जॉब (Apple Company) का एक व्याख्यान सुनने को मिला तो उनके मुख से भी वही बात सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ। उनके शब्दों में -
Monday, September 14, 2009
बन्दर पांडे
बन्दर पांडे भटक कर आ गये हैं। इकल्ले। भोजन छीन कर खाते हैं – सो बच्चों को बनाते हैं सॉफ्ट टार्गेट। पड़ोस के शुक्ला जी के किरायेदार के लड़के और लड़की को छीना-झपटी में काट चुके हैं। बिचारे किरायेदार जी इस चक्कर में ड्यूटी पर न जा सके।
हनुमानजी के आईकॉन हैं बन्दर पांडे – इसलिये कोई मार डालने का पाप नहीं ले सकता। हमारे घर को उन्होने अपने दफ्तर का एनेक्सी बना लिया है। लिहाजा एक छड़ी और एक लोहे की रॉड ढूंढ़ निकाली गयी है उन्हे डराने को। देखें कब तक रहते हैं यहां!
Sunday, September 13, 2009
गरिमामय वृद्धावस्था
झुकी कमर सजदे में नहीं, उम्र से। और उम्र भी ऐसी परिपक्व कि समय के नियमों को चुनौती देती है। यहीं पास में किसी गली में रहती है वृद्धा। बिला नागा सवेरे जाती है गंगा तट पर। धोती में एक डोलू (स्टील का बेलनाकार पानी/दूध लाने का डिब्बा) बंधा होता है। एक हाथ में स्नान-पूजा की डोलची और दूसरे में यदाकदा एक लाठी। उनकी उम्र में हम शायद ग्राउण्डेड हो जायें। पर वे बहुत सक्रिय हैं।
Friday, September 11, 2009
रेलगाड़ियों का नम्बर तय करने की प्रणाली
उस दिन बीबीसी के अपूर्व कृष्ण जी सवारी रेलगाड़ियों के चार अंक के नम्बर देने की प्रणाली के विषय में जानना चाहते थे।
रेलवे पर आधिकारिक रूप से बोलना नहीं चाहता था। मुझे मालुम है कि ऑन द रिकार्ड बोलने का चस्का जबरदस्त होता है। माइक या पब्लिश बटन आपके सामने हो तो आप अपने को विशेषज्ञ मानने लगते हैं। यह विशेषज्ञता का आभामण्डल अपने पर ओढ़ना नहीं चाहता। अन्यथा रेल विषयक जानकारी बहुत ठेली जा सकती है। आप एक जानकारी दें तो उसके सप्लीमेण्ट्री प्रश्न आपको सदैव सजग रहने को बाध्य करते हैं कि कितना बोलना चाहिये!
Wednesday, September 9, 2009
गाय
मुझे लगभग हर रेलवे स्टेशन पर गाय दिखीं। वडोदरा, भोपाल, सिहोर, बीना व झाँसी में गऊ माँ के दर्शन करने से मेरी यात्रा सुखद रही। मनुष्यों और गायों के बीच कहीं पर भी अस्तित्व सम्बन्धी कोई भी झगड़ा देखने को नहीं मिला। समरसता व सामन्जस्य हर जगह परिलक्षित थे।
Tuesday, September 8, 2009
संस्कृत के छात्र
पास के सिसोदिया हाउस की जमीन कब्जियाने के चक्कर में थे लोग। सो उसे बचाने को उन्होने एक संस्कृत विद्यालय खोल दिया है वहां। बारह-चौदह साल के बालक वहां धोती कुरता में रहते हैं। सवेरे सामुहिक सस्वर मन्त्र पाठ करते उनकी आवाज आती है। गंगा किनारे से सुनाई देती है।
Sunday, September 6, 2009
टिप्पनिवेस्टमेण्ट
सवेरे सवेरे पोस्ट पर पहली टिप्पणी का इन्तजार है। कहां चले गये ये समीरलाल “समीर”? कल बता दिया था कि फलानी पोस्ट है, पर फिर भी टिपेरने में कोताही! टापमटाप चिठेरे हो लिये हैं, तब्बै नखरे बढ़ गये हैं!
तब तक शलभ से तितली बनने की प्रक्रिया रत एक नवोदित ब्लॉगर की टिप्पणी आती है। ज्यादा ही कॉन्स्टीपेटेड। “अच्छा लिखा, बहुत अच्छी जानकारी।” अच्छा तो खैर हम लिखते ही हैं। पर अच्छी जानकारी? बकरी भेंड़ी नेनुआ ऊंट में कौन जानकारी जी?! जानकारिऐ हमारे पास होती तो अनुनाद सिंह जी के बारंबार उकसाने पर हिन्दी विकीपेडिया पर न ठेलते?
Friday, September 4, 2009
टिटिहरी
टिटिहरी या कुररी नित्य की मिलने वाली पक्षी है। मुझे मालुम है कि गंगा तट पर वह मेरा आना पसन्द नहीं करती। रेत में अण्डे देती है। जब औरों के बनाये रास्ते से इतर चलने का प्रयास करता हूं - और कोई भी खब्ती मनुष्य करता है - तब टिटिहरी को लगता है कि उसके अण्डे ही चुराने आ रहा हूं।
Wednesday, September 2, 2009
देसी शराब
उस शाम सीधे घाट पर जाने की बजाय हम तिरछे दूर तक चले गये। किनारे पर एक नाव रेत में औंधी पड़ी थी। मैने उसका फोटो लिया। अचानक शराब की तेज गंध आई। समझ में आ गया कि उस नाव के नीचे रखी है देसी शराब। लगा कि वहां हमारे लिये कुछ खास नहीं है। वापस आने लगे। तभी किनारे अपना जवाहिरलाल (उर्फ मंगल उर्फ सनिचरा) दिखा। उसी लुंगी में और उतना ही शैगी।