Thursday, December 31, 2009

कबीर पर जरूरी विजिट

मेरे मित्र श्री सैयद निशात अली ने एल एस.एम.एस. किया है। वह जरूरी है मेरे, आपके, हम सब के लिये।
लिहाजा मैं प्रस्तुत कर देता हूं -

Wednesday, December 30, 2009

जेल, जेल न रही!

सन 1867 में स्थापित बैंगळुरु की सैंण्ट्रल जेल अब फ्रीडम पार्क में तब्दील हो गयी है। प्रवीण पाण्डेय के सवेरे के भ्रमण का स्थान। इसने ट्रिगर की है यह पोस्ट - जेल से स्वतंत्रता तक की यात्रा की हलचल बयान करती।

यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं।

जब कभी भी अपने गृहनगर (हमीरपुर, उप्र) जाता हूँ तो घुसते ही सबसे पहले जेल के दर्शन होते हैं। हमीरपुर डकैतों का इलाका रहा है, इस तथ्य को शहर के इतिहास में स्थायी रूप से सत्यापित करती है यह जेल। जेल अन्दर से कभी देखी नहीं पर उत्सुक मन में जेल के बारे में एक रोमांचपूर्ण और भय मिश्रित अवधारणा बनी रही।

Monday, December 28, 2009

फेरीवाले

बहुत से आते हैं। बहुत प्रकार की चीजों को बेचते। विविध आवाजें। कई बार एक बार में सौदा नहीं पटता तो पलटकर आते हैं। वे चीजें बेचना चाहते हैं और लोग खरीदना। जबरदस्त कम्पीटीटिव सिनर्जी है कि कौन कितने मुनाफे में बेच सकता है और कौन कितने कम में खरीद सकता है। विन-विन सिचयुयेशन भी होती है और भिन-भिन सिचयुयेशन भी! यूफोरिया भी और बड़बड़ाहट भी!

Sunday, December 27, 2009

नारायण दत्त तिवारी का इस्तीफा

ND Tiwari यह नाराण दत्त तिवारी का मामला मेरी समझ के परे है।

ताजा समाचार के अनुसार, उन्होंने अपना त्यागपत्र दे दिया है।

८६ की आयु में क्या कोई मर्द ऐसी मर्दानगी का प्रदर्शन कर सकता है?

एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीन तीन महिलाओं के साथ बिस्तर पर लेटे लेटे रति-क्रीडा करने की क्षमता रख सकता है?

क्या ये महिलाएं उनकी पोतियाँ के बराबर नहीं होंगी?

Friday, December 25, 2009

सर्दी कम, सब्जी कम

Arjun Patel अर्जुन प्रसाद पटेल अपनी मड़ई पर नहीं थे। पिछली उस पोस्ट में मैने लिखा था कि वे सब्जियों की क्यारियां बनाते-रखवाली करते दिन में भी वहीं कछार में होते हैं और रात में भी। उनका न होना मुझे सामान्य न लगा।

एक लड़की दसनी बिछा कर धूप में लेटी थी। बोली – बाबू काम पर गये है। बढ़ई का काम करते हैं।

Wednesday, December 23, 2009

हरा बैंगळुरू; भरा बैंगळुरू

विकास के पथ पर पेड़ो का अर्ध्य सबसे पहले चढ़ता है पर बेंगळुरु में हरियाली का आदर सदैव ही किया जाता रहा है। गूगल मैप पर देखिये तो शहर हरा भी दिखायी पड़ेगा और भरा भी। सड़कों के किनारे वृक्ष अपने अन्दर कई दशकों का इतिहास समेटे शान से खड़े हैं। बरगद के पेड़ों की जटाओं में पूरा का पूरा पार्क समाहित है। घरों की संरचना उपस्थित पेड़ों के इर्द गिर्द ही की जाती है।

botanical-garden-bangalore-india S लालबाग, बैंगळुरु

बेंगळुरु को बागों का शहर कहा जाता है और वही बाग बढ़ती हुयी वाहनों की संख्या का उत्पात सम्हाले हुये हैं। पार्कों के बीचों बीच बैठकर आँख बन्द कर पूरी श्वास भरता हूँ तो लगता है कि वायुमण्डल की पूरी शीतलता शरीर में समा गयी है। यहाँ का मौसम अत्यधिक सुहावना है। वर्ष में ६ माह वर्षा होती है। अभी जाड़े में भी वसन्त का आनन्द आ रहा है। कुछ लिखने के लिये आँख बन्द करके सोचना प्रारम्भ करता हूँ तो रचनात्मक शान्ति आने के पहले ही नींद आ जाती है। यही कारण है कि यह शहर आकर्षक है।

Monday, December 21, 2009

बैटरी वाली लालटेन

शाम के समय घर आते आते कम से कम सवा सात तो बज ही जाते हैं। अंधेरा हो जाता है। घर आते ही मैरी पत्नीजी और मैं गंगा तट पर जाते हैं। अंधेरे पक्ष में तट पर कुछ दीखता नहीं। कभी दूर के तट पर कोई लुक्की बारता प्रतीत होता है। शायद टापुओं पर दिन में सब्जी की खेती करने वाले लोग रहते हैं। और शायद अवैध शराब बनाने का धन्धा भी टापुओं पर शिफ्ट हो गया है।  

Saturday, December 19, 2009

मालगाड़ी या राजधानी एक्स्प्रेस?!

क्या राजधानी की तरह चली हमारी मालगाड़ी!

राजधानी एक्स्प्रेस दिल्ली से मुगलसराय तक नौ घण्टा समय लेती है। कालका मेल सवेरे सात बज कर सैतीस मिनट पर गाजियाबाद से चल कर शाम आठ बज कर दस मिनट पर मुगलसराय पंहुचती है।

Vidit Tiwari श्री विदित तिवारी, मुख्य गाड़ी नियंत्रक, इलाहाबाद रेल मण्डल अपने नियंत्रण कक्ष में। इन्ही के मण्डल में गाजियाबाद से मुगल सराय का खण्ड आता है।

यह मालगाड़ी कल सवेरे आठ बजकर तीस मिनट पर गाजियाबाद से निकली और शाम छ बज कर सत्रह मिनट पर मुगलसराय पंहुच गई थी। यानी कुल नौ घण्टे सैंतालीस मिनट में! कालका मेल को रास्ते में पीछे छोड़ती। जबरदस्त सनसनी का मामला था जी!

हमें हाल ही में बॉक्सएन एच.एल. (BOXNHL) वैगनों की रेक लदी दशा में ७५ कि.मी.प्र.घ. और खाली दशा में १०० कि.मी.प्र.घ. से चलाने की अनुमति कमिश्नर रेलवे सेफ्टी की अनुशंसा पर रेलवे बोर्ड ने प्रदान की है। उसके बाद खाली दशा में गति का पूरा पोटेंशियल दोहन कर पाने के प्रयास प्रारम्भ हुये।

Wednesday, December 16, 2009

गांव खत्म, शहर शुरू – बेंगळुरु/जैमालुरु

Hebbal Flyoverहेब्बल फ्लाईओवर, बेंगळुरू
पहली बार महानगरीय जीवन जी रहा हूँ । वह उस समय जब मैं श्री ज्ञानदत्त जी को ११ सूत्रीय सुझाव दे चुका हूँ, गाँवों की ओर प्रयाण हेतु। सुझाव बेंगलुरु में स्थानान्तरण के पहले दिया था और उस समय तक महानगरीय रहन सहन के बारे में चिन्तन मात्र किया था, अनुभव नहीं। लगभग दो माह का समय बीतने को आया है और आगे आने वाले जीवन की बयार मिल चुकी है।

Sunday, December 13, 2009

गांव की ओर

Peepal Tree द्वारकापुर गांव में गंगा किनारे पीपल का पेड़
मैं गांव गया। इलाहाबाद-वाराणसी के बीच कटका रेलवे स्टेशन के पास गांव में। मैने बच्चों को अरहर के तने से विकेट बना क्रिकेट खेलते देखा। आपस में उलझे बालों वाली आठ दस साल की लड़कियों को सड़क के किनारे बर्तन मांजते देखा। उनके बालों में जुयें जरूर रही होंगी, पर वे किसी फिल्मी चरित्र से कम सुन्दर न थीं। लोग दुपहरी में उनचन वाली सन की खटिया पर ऊंघ रहे थे। हल्की सर्दी में धूप सेंकते।

Tuesday, December 8, 2009

नत्तू "भागीरथ" पांड़े

NattuBahgirath Pandey कल मैं नत्तू पांड़े से बात कर रहा था कि उन्हे इस युग में भागीरथ बन कर मृतप्राय गंगा को पुन: जीवन्त करना है। नत्तू पांड़े सात महीने के हो रहे हैं। पता नहीं अगर भागीरथ बन भी पायेंगे तो कैसे बनेंगे। उसके बाबा तो शायद उससे अपनी राजनैतिक विरासत संभालने की बात करें। उसके पिता उसे एक सफल व्यवसायी/उद्योगपति बनाने के स्वप्न देखें। पर उसे अगर भागीरथ बनना है तो भारत के सूक्ष्म तत्व को पहचान कर बहुत चमत्कारी परिवर्तन करने होंगे भारतीय मेधा और जीवन पद्यति में।

Sunday, December 6, 2009

ओवरवैल्यूड शब्द

मसिजीवी का कमेण्ट महत्वपूर्ण है - टिप्‍पणी इस अर्थव्‍यवस्‍था की एक ओवरवैल्‍यूड कोमोडिटी हो गई है... कुछ करेक्‍शन होना चाहिए! ..नही?

मैं उससे टेक-ऑफ करना चाहूंगा। शब्द ब्लॉगिंग-व्यवस्था में ओवर वैल्यूड कमॉडिटी है। इसका करेक्शन ही नहीं, बबल-बर्स्ट होना चाहिये। लोग शब्दों से सार्थक ऊर्जा नहीं पा रहे। लोग उनसे गेम खेल रहे हैं। उद्देश्यहीन सॉलीटायर छाप गेम!

Friday, December 4, 2009

लेकॉनिक टिप्पणी का अभियोग

श्रीश पाठक “प्रखर” का अभियोग है कि मेरी टिप्पणी लेकॉनिक (laconic) होती हैं। पर मैं बहुधा यह सोचता रहता हूं कि काश अपने शब्द कम कर पाता! बहुत बार लगता है कि मौन शब्दों से ज्यादा सक्षम है और सार्थक भी। अगर आप अपने शब्द खोलें तो विचारों (और शब्दों) की गरीबी झांकने लगती है। उसे सीने के प्रयास में और शब्द प्रयोग करें तो पैबन्द बड़ा होता जाता है।

Wednesday, December 2, 2009

शराब पर सीरियस सोच

Mallya Point1 प्रवीण जिस शराब के गंगा की रेती में दबाये जाने की बात कर रहे हैं, वह शायद अंग्रेजी शराब है। यहां शिवकुटी के माल्या-प्वाइण्ट पर डालडा के पीपों में शराब बनती/रेत में गाड़ी जाती और फिर नाव से ले जाई जाती है। यह चित्र बोरी से ढके कुछ पीपों का है जो नाव के पार्क किये जाने की प्रतीक्षा में रखे गये हैं। ये नाव में लाद कर गंगा के बहाव के विपरीत दिशा में ले जाये जायेंगे।

प्रवीण इस समय बेंगलुरू में पदस्थ हैं और वह विजय माल्या का शहर है।

विजय माल्या की नगरी में पहुँचने के बाद श्री ज्ञानदत्त जी के गंगा-मय प्रवाह में ’माल्या प्वाइण्ट’ [1] के संदर्भ में लिखी एक पोस्ट प्रवाहित कर रहा हूँ। ’माल्या प्वाइण्ट’ मुझे भी गंगा किनारे मिला था।

सन १९८९ में, मुझे हरिद्वार के रेतीले तटों पर स्वच्छन्द टहलते हुये रेत के अन्दर दबी हुयी पूरी कि पूरी असली मधुशाला (अमिताभ बच्चन की नयी वाली नहीं) दिखी थी। हरिद्वार में उस समय शराब पर पाबन्दी थी।

आज से बीस वर्ष पूर्व भी गंगा निर्लिप्त/निस्पृह भाव से बही जा रही थी और आज भी वही हाल है।

अनावश्यक रुचि लेने पर एक स्थानीय मित्र ने बताया कि यह बहुत ही सुनियोजित व्यवसाय है और यह अधिक आकर्षक तब और हो जाता है जब वहाँ पर पाबन्दी लगी हो। इसे माफिया व कानून का मिश्रित प्रश्रय प्राप्त है अतएव तुम भी निर्लिप्त भाव से टहलो और गंगा की पीड़ा को समझने का प्रयास करो।

Monday, November 30, 2009

तारेक और मिचेल सलाही

salahi हम ठहरे घोंघा! सेलिब्रिटी बन न पाये तो किसी सेलिब्रिटी से मिलने का मन ही नहीं होता। किसी समारोह में जाने का मन नहीं होता। कितने लोग होंगे जो फलानी चोपड़ा या  ढ़िकानी सावन्त के साथ फोटो खिंचने में खजाना नौछावर कर दें। हम को वह समझ में नहीं आता!

क्या बतायें; सेलियुग (सेलिब्रिटी-युग, कलियुग का लेटेस्ट संस्करण) आ गया है।

Sunday, November 29, 2009

अर्जुन प्रसाद पटेल

Kheti6 कछार में सप्ताहान्त तनाव दूर करने निरुद्देश्य घूमते मुझे दिखा कि मेरे तट की ओर गंगाजी काफी कटान कर रही हैं, पर दूर कई द्वीप उग आये हैं जिनपर लोग खेती कर रहे हैं। उन द्वीपों पर टहलते हुये जाया नहीं जा सकता। लिहाजा खेती करते लोगों को देखना इस साल नहीं हो पा रहा जो पिछली साल मैं कर पाया था।

देखें – अरविन्द का खेत। 

Friday, November 27, 2009

मां के साथ छूट

स दिन हीरालाल ने मेरे सामने स्ट्रिप्टीज की। कपड़े उतार एक लंगोट भर में दन्न से गंगाजी में डुबकी लगाई – जय गंगे गोदावरी! 

Liberty with Gangesगोदावरी? मुझे यकीन है कि हीरालाल ने गोदावरी न देखी होगी। पर हिन्दू साइके में गंगा-गोदावरी-कावेरी-नर्मदा गहरे में हैं। यह निरक्षर गंगाजी से पढ़े लिखों की तरह छद्म नहीं, तह से स्नेह करता है। खेती में यूरिया का प्रयोग कर वह पर्यावरण का नुकसान जरूर करेगा – पर अनजाने में। अगर उसे पता चल जाये कि गंगाजी इससे मर जायेंगी, तो शायद वह नहीं करेगा।

Wednesday, November 25, 2009

गति और स्थिरता

clock गति में भय है । कई लोग बहुत ही असहज हो जाते हैं यदि जीवन में घटनायें तेजी से घटने लगती हैं। हम लोग शायद यह नहीं समझ पाते कि हम कहाँ पहुँचेंगे। अज्ञात का भय ही हमें असहज कर देता है। हमें लगता है कि इतना तेज चलने से हम कहीं गिर न पड़ें। व्यवधानों का भय हमें गति में आने से रोकता रहता है। प्रकृति के सानिध्य में रहने वालों को गति सदैव भयावह लगती है क्योंकि प्रकृति में गति आने का अर्थ है कुछ न कुछ विनाश।

Sunday, November 22, 2009

एक साहबी आत्मा (?) के प्रलाप

DSC00291 मानसिक हलचल एक ब्राउन साहबी आत्मा का प्रलाप है। जिसे आधारभूत वास्तविकतायें ज्ञात नहीं। जिसकी इच्छायें बटन दबाते पूर्ण होती हैं। जिसे अगले दिन, महीने, साल, दशक या शेष जीवन की फिक्र करने की जरूरत नहीं।

इस आकलन पर मैं आहत होता हूं। क्या ऐसा है?

Friday, November 20, 2009

अरहर की दाल और नीलगाय

मुझे पता चला कि उत्तरप्रदेश सरकार ने केन्द्र से नीलगाय को निर्बाध रूप से शिकार कर समाप्त करने की छूट देने के लिये अनुरोध किया है। यह खबर अपने आप में बहुत पकी नहीं है पर मुझे यह जरूर लगता है कि सरकार दलहन की फसल की कमी के लिये नीलगाय को सूली पर टांगने जरूर जा रही है। इसमें तथाकथित अहिन्दूवादी सरकार का मामला नहीं है। मध्यप्रदेश सरकार, जो हिन्दूवादी दल की है और जो गाय के नाम पर प्रचण्ड राजनीति कर सकती है, नीलगाय को मारने के लिये पहले ही तैयार है! बेचारी नीलगाय; उसका कोई पक्षधर नहीं!

Sunday, November 15, 2009

फोन का झुमका

aerobics पिछले कई दिनों से स्पॉण्डिलाइटिस के दर्द से परेशान हूं। इसका एक कारण फोन का गलत पोस्चर में प्रयोग भी है। मुझे लम्बे समय तक फोन पर काम करना होता है। फोन के इन-बिल्ट स्पीकर का प्रयोग कर हैण्ड्स-फ्री तरीके से काम करना सर्वोत्तम है, पर वह ठीक से काम करता नहीं। दूसरी ओर वाले को आवाज साफ सुनाई नहीं देती। लिहाजा, मैने अपने कम्यूनिकेशन प्रखण्ड के कर्मियों से कहा कि फोन में कोई हेड फोन जैसा अटैचमेण्ट दे दें जो मेरे हाथ फ्री रखे और हाथ फ्री रखने की रखने की प्रक्रिया में फोन के हैंण्ड सेट को सिर और (एक ओर झुका कर) कंधे के बीच दबाना न पड़े।

Saturday, November 14, 2009

प्लास्टिक डिस्पोजल

एक महत्वपूर्ण टिप्पणी प्रिय सत्येन्द जी की है -
जैसा कि आपके लेख से विदित हुआ कि प्लास्टिक को एक गड्डे में डाला गया है एवं उस पर रेत दल दी गयी है , यह पूर्ण समाधान नही है!
प्लास्टिक भविष्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. उम्मीद करता हूँ आपने प्लास्टिक और अन्य हानिकारक पदार्थो का, उचित विचार के साथ पूर्ण समाधान किया है!

Tuesday, November 10, 2009

समसाद मियां - अथ सीक्वलोख्यान

हीरालाल नामक चरित्र, जो गंगा के किनारे स्ट्रेटेजिक लोकेशन बना नारियल पकड़ रहे थे, को पढ़ कर श्री सतीश पंचम ने अपने गांव के समसाद मियां का आख्यान ई-मेला है। और हीरालाल के सीक्वल (Sequel) समसाद मियां बहुत ही पठनीय चरित्र हैं। श्री सतीश पंचम की कलम उस चरित से बहुत जस्टिस करती लगती है। आप उन्ही का लिखा आख्यान पढ़ें (और ऐसे सशक्त लेखन के लिये उनके ब्लॉग पर नियमित जायें):

Sunday, November 8, 2009

गंगा सफाई – प्रचारतन्त्र की जरूरत

DSC01908 (Small) पिछली बार की तरह इस रविवार को भी बीस-बाइस लोग जुटे शिवकुटी घाट के सफाई कार्यक्रम में। इस बार अधिक व्यवस्थित कार्यक्रम हुआ। एक गढ्ढे में प्लास्टिक और अन्य कचरा डाल कर रेत से ढंका गया – आग लगाने की जरूरत उचित नहीं समझी गई। मिट्टी की मूर्तियां और पॉलीथीन की पन्नियां पुन: श्रद्धालु लोग उतने ही जोश में घाट पर फैंक गये थे। वह सब बीना और ठिकाने लगाया गया।

Saturday, November 7, 2009

थकोहम्

मुझे अन्देशा था कि कोई न कोई कहेगा कि गंगा विषयक पोस्ट लिखना एकांगी हो गया है। मेरी पत्नीजी तो बहुत पहले कह चुकी थीं। पर कालान्तर में उन्हे शायद ठीक लगने लगा। अभी घोस्ट बस्टर जी ने कहा -

लेकिन थोड़े झिझकते हुए कहना चाहूंगा कि मामला थोड़ा प्रेडिक्टेबल होता जा रहा है. ब्लॉग पोस्ट्स में विविधता और सरप्राइज़ एलीमेंट की कुछ कमी महसूस कर रहा हूं।

Friday, November 6, 2009

हीरालाल की नारियल साधना

Heealal1 सिरपर छोटा सा जूड़ा बांधे निषाद घाट पर सामान्यत बैठे वह व्यक्ति कुछ भगत टाइप लगते थे। पिछले सोमवार उन्हें गंगा की कटान पर नीचे जरा सी जगह बना खड़े पाया। जहां वे खड़े थे, वह बड़ी स्ट्रेटेजिक लोकेशन लगती थी। वहां गंगा के बहाव को एक कोना मिलता था। गंगा की तेज धारा वहां से आगे तट को छोड़ती थी और तट के पास पानी गोल चक्कर सा खाता थम सा जाता था। गंगा के वेग ब्रेकर जैसा।

Wednesday, November 4, 2009

उत्सुकता व उत्साह

kautoohal
नतू पांड़े की उत्सुकता, शायद अन्नप्राशन के पहले खीर का विश्लेषण करती हुई!

उत्सुकता एक कीड़ा है, यदि काटता है तभी बुखार चढ़ता है। कभी कभी इस बुखार से पीड़ित व्यक्ति प्रश्न पूँछ कर अपनी अज्ञानता को प्रदर्शित करने में संकोच नहीं करते हैं। उपहास की दवाई से यह बुखार उतर भी जाता है। यदि आप परिस्थितियों के लिये नये हैं तो बुखार तेजी से चढ़ता है और बहुत देर तक चढ़ा रहता है। यदि आप समझते हैं कि आप पुरोधा हैं तो आपका मन आपकी रक्षा करता है और आपको समझा बुझाकर इस बुखार से बचा लेता है।

Monday, November 2, 2009

गंगा घाट की सफाई

GC15 एक व्यक्तिगत संकल्प  का इतना सुखद और जोशीला रिस्पॉंस मिलेगा, मुझे कल्पना नहीं थी।

शनिवार रात तक मैं सोच रहा था कि मेरी पत्नी, मैं, मेरा लड़का और भृत्यगण (भरतलाल और ऋषिकुमार) जायेंगे गंगा तट पर और एक घण्टे में जितना सम्भव होगा घाट की सफाई करेंगे। मैने अनुमान भी लगा लिया था कि घाट लगभग २५० मीटर लम्बा और ६० मीटर आधार का एक तिकोना टुकड़ा है। उसमें लगभग चार-पांच क्विण्टल कचरा - ज्यादातर प्लास्टर ऑफ पेरिस की पेण्ट लगी मूर्तियां और प्लास्टिक/पॉलीथीन/कांच; होगा। लेकिन मैने जितना अनुमान किया था उससे ज्यादा निकला सफाई का काम।

Sunday, November 1, 2009

अघोरी

sanichara alaav अलाव तापता जवाहिरलाल, लोग और सबसे बायें खड़े पण्डाजी

जवाहिरलाल को दो गर्म कपड़े दिये गये। एक जैकेट और दूसरा स्वेटर।

ये देने के लिये हम इंतजार कर रहे थे। पैर के कांच लगने की तकलीफ से जवाहिरलाल लंगड़ा कर चल रहा था। दूर वैतरणी नाले के पास आता दिखा। उसे अपने नियत स्थान पर आने में देर हुई। वह सूखी पत्तियां और बेलें ले कर आया – अलाव बनाने को। उसने ईंधन जमीन पर पटका तो मेरी पत्नीजी ने उसे गर्म कपड़े देते समय स्माल टॉक की – "यह जैकेट का कलर आपकी लुंगी से मैच करता है"।

जवाहिरलाल ऐसे मुस्कराया गर्म कपड़े लेते समय, मानो आन्द्रे अगासी बिम्बलडन की शील्ड ग्रहण कर रहा हो। हमें आशा बंधी कि अब वह सर्दी में नंगे बदन नहीं घूमा करेगा।

Friday, October 30, 2009

देव दीपावली @

DEvdeepaavali मेरी गली में कल रात लोगों ने दिये जला रखे थे। ध्यान गया कि एकादशी है - देव दीपावली। देवता जग गये हैं। अब शादी-शुभ कर्म प्रारम्भ  होंगे। आज वाराणसी में होता तो घाटों पर भव्य जगमहाहट देखता। यहां तो घाट पर गंगाजी अकेले चुप चाप बह रही थीं। मैं और मेरी पत्नीजी भर थे जो एकादशी के चांद और टॉर्च की रोशनी में रेत की चांदी की परत और जलराशि का झिलमिलाना निहार रहे थे।

Wednesday, October 28, 2009

हाँकोगे तो हाँफोगे

DSC01793 (Small) विवाह के तुरन्त बाद ही मुझे एक विशेष सलाह दी गयी:

’हाँकोगे तो हाँफोगे’

गूढ़ मन्त्र समझ में आने में समय लगता है| हर बार विचार करने में एक नया आयाम सामने आता है। कुछ मन्त्र तो सिद्ध करने में जीवन निकल जाते हैं।

Tuesday, October 27, 2009

सोंइस होने की गवाही

Dolphin_22 निषादघाट पर वे चार बैठे थे। मैने पहचाना कि उनमें से आखिरी छोर पर अवधेश हैं। अवधेश से पूछा – डाल्फिन देखी है? सोंइस

उत्तर मिला – नाहीं, आज नाहीं देखानि (नहीं आज नहीं दिखी)।

लेकिन दिखती है?

हां कालि रही (हां, कल थी)।

Sunday, October 25, 2009

जवाहिरलाल बीमार है

Sanichara Sickजवाहिरलाल गंगदरबारी (बतर्ज रागदरबारी) चरित्र है। कछार में उन्मुक्त घूमता। सवेरे वहीं निपटान कर वैतरणी नाले के अनिर्मल जल से हस्तप्रक्षालन करता, उसके बाद एक मुखारी तोड़ पण्डाजी के बगल में देर तक मुंह में कूंचता और बीच बीच में बीड़ी सुलगा कर इण्टरवल लेता वह अपने तरह का अनूठा इन्सान है।

कुत्तों और बकरियों का प्रिय पात्र है वह। आदमियों से ज्यादा उनसे सम्प्रेषण करता है। कुत्तों के तो नाम भी हैं – नेपुरा, तिलंगी, कजरी। आप जवाहिरलाल से पूर्वपरिचित हैं। तीन पोस्टें हैं जवाहिरलाल पर -

Saturday, October 24, 2009

शिवकुटी घाट पर छठ

आज ब्लॉगरी के सेमीनार से लौटा तो पत्नीजी गंगा किनारे ले गयीं छठ का मनाया जाना देखने। और क्या मनमोहक दृष्य थे, यद्यपि पूजा समाप्त हो गयी थी और लोग लौटने लगे थे।

चित्र देखिये:

Friday, October 23, 2009

अवधेश और चिरंजीलाल

Avadhesh मैं उनकी देशज भाषा समझ रहा था, पर उनका हास्य मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था। पास के केवट थे वे। सवेरे के निपटान के बाद गंगा किनारे बैठे सुरती दबा रहे थे होठ के नीचे। निषादघाट पर एक किनारे बंधी नाव के पास बैठे थे। यह नाव माल्या प्वाइण्ट से देशी शराब ट्रांसपोर्ट का भी काम करती है। 

वे उन्मुक्त भाव से हंस रहे थे और मैं अपनी ठुड्डी सहला रहा था – आखिर इसमें हंसने की बात क्या है? बड़ा कॉंस्टीपेटेड समझदान है हमारा – लोगों के सरल हास्य तक नहीं पंहुंच पाता। मैं उनसे बात करने का प्रयास करता हूं – यह नाव आपकी है? पहले वे चुप हो जाते हैं फिर एक जवाब देता है – नहीं, पर हमारे पास भी है, अभी झूरे (सूखे) में है। जब सब्जी होगी तो उस पार से लाने के काम आयेगी।

Wednesday, October 21, 2009

सपाटा और सन्नाटा

Flat ज्ञाता कहते हैं कि विश्व सपाट हो गया है। न केवल सपाट हो गया है अपितु सिकुड़ भी गया है। सूचना और विचारों का आदान प्रदान सरलतम स्थिति में पहुँच गया है। अब सबके पास वह सब कुछ उपलब्ध है जिससे वह कुछ भी बन सकता है। जहाँ हमारी सोच को विविधता दी नयी दिशाओं मे बढ़ने के लिये वहीं सभी को समान अवसर दिया अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का। अब निश्चय यह नहीं करना है कि क्या करें अपितु यह है कि क्या न करें। यह सोचकर बहुत से दुनिया के मेले में पहुँचने लगते हैं।

Tuesday, October 20, 2009

चप्पला पहिर क चलबे?

Chappala1 एक लड़की और दो लड़के (किशोरावस्था का आइडिया मत फुटाइये), छोटे बच्चे; दिवाली की लोगों की पूजा से बचे दिये, केले और प्रसाद बीन रहे थे। तीनो ने प्लास्टिक की पन्नियों में संतोषजनक मात्रा में जमा कर ली थी सामग्री। घाट से लौटने की बारी थी।

Sunday, October 18, 2009

उत्क्रमित प्रव्रजन

मेरा वाहन चालक यहां से एक-सवा घण्टे की दूरी से सवेरे अपने गांव से आता है। देर रात को वापस लौटता है। लगता है अगर काम उसको जम जायेगा तो यहीं इलाहाबाद में डेरा जमायेगा। वह प्रथम पीढ़ी का प्रव्रजक होगा। इस शहर में और अन्य शहरों में भी पिछले पचीस तीस साल में गांवों से आये लोगों की तादाद तेजी से बढ़ी है। यद्यपि भारत अभी भी गांवों का देश है, पर जल्दी ही आधी से ज्यादा आबादी शहरी हो जायेगी।

Friday, October 16, 2009

शिक्षा व्यवस्था – ज्ञानदत्त पाण्डेय

एक बात जो सबके जेहन में बैठी है कि फॉर्मल शिक्षा व्यवस्था आदमी की सफलता की रीढ़ है। इस बात को प्रोब करने की जरूरत है।

मैं रिच डैड पूअर डैड पढ़ता हूं और वहां धनवान (पढ़ें सफल) बनने की शिक्षा बड़े अनौपचारिक तरीके से रिच डैड देते पाये जाते हैं। मैं मास्टर महाशय के रामकृष्ण परमहंस के संस्मरण पढ़ता हूं। रामकृष्ण निरक्षर हैं। वे जोड़ के बाद घटाना न सीख पाये – आमी विजोग कोरबे ना! और मास्टर महाशय यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक होते हुये भी रामकृष्ण परमहंस के सामने नतमस्तक हैं।

Wednesday, October 14, 2009

शिक्षा व्यवस्था

iit-delhi कुछ वर्ष पहले नालन्दा के खण्डहर देखे थे, मन में पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता के भाव जगे। तक्षशिला आक्रमणकारियों के घात न सह पाया और मात्र स्मृतियों में है। गुरुकुल केवल “कांगड़ी चाय” के विज्ञापन से जीवित है। आईआईटी, आईआईएम और ऐम्स जैसे संस्थान आज भी हमें उत्कृष्टता व शीर्षत्व का अभिमान व आभास देते हैं। शेष सब शून्य है।

Tuesday, October 13, 2009

रेत, वैतरणी नाला और बन्दर पांड़े

Monkey कभी कभी गठी हुई पोस्ट नहीं निकलती सवेरे की गंगा किनारे की सैर में। या फिर सन के रेशे होते हैं पर आपका मन नहीं होता उसमें से रस्सी बुनने का। पर सन के रेशों की क्वालिटी बहुत बढ़िया होती है और आप यूं ही फैंक नही सकते उन रेशों को।

सो बनती है गड्डमड्ड पोस्ट – जैसे कि यह!

Sunday, October 11, 2009

स्त्रियों के गंगा स्नान का महीना - कार्तिक

Women at Ganges कार्तिक में सवेरे चार-पांच बजे से स्त्रियां घाट पर स्नान प्रारम्भ कर देती हैं। इस बार इस ओर गंगाजी की कटान है और वेग भी तेज है। नहाने में दिक्कत अवश्य आती है। पर वह दिक्कत उन्हें रोकती हो – यह नहीं लगता।

मैं तो सवेरे पौने छ बजे गंगा तट पर जाता हूं। बहुत सी स्त्रियां लौटती दीखती हैं और कई तो स्नान के बाद पण्डाजी के पास संकल्प करती पाई जाती हैं। बहुत सी शंकर जी के मन्दिर में पूजा-अर्चना में दीखती हैं।

Saturday, October 10, 2009

पतझड़

कब होता है पतझड़?
ऋतुयें हैं – ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त वसन्त। पतझड़ क्या है – ऑटम (Autumn) शरद भी है और हेमन्त भी। दोनो में पत्ते झड़ते हैं।

Wednesday, October 7, 2009

कहीं धूप तो कहीं छाँव

work
praveen
यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है।
मैने एक बार अपने एक मित्र से मिलने का समय माँगा तो उन्होने बड़ी गूढ़ बात कह दी। ’यहाँ तो हमेशा व्यस्त रहा जा सकता है और हमेशा खाली।’ मैं सहसा चिन्तन में उतरा गया। ऐसी बात या तो बहुत बड़े मैनेजमेन्ट गुरू कह सकते हैं या किसी सरकारी विभाग में कार्यरत कर्मचारी।
आप यदि अपने कार्य क्षेत्र में देखें तो व्यक्तित्वों के ४ आयाम दिखायी पड़ेंगे।

Monday, October 5, 2009

हिन्दू धर्म के रहस्यों की खोज

Dawn Ganges कल जो लिखा – “लिबरेशनम् देहि माम!” तो मन में यही था कि लोग इन सभी कमियों के बावजूद हिन्दू धर्म को एक महान धर्म बतायेंगे। यह नहीं मालुम था कि श्री सतीश सक्सेना भी होंगे जो हिन्दुत्व को कोसने को हाथो हाथ लेंगे। और मैं अचानक चहकते हुये थम गया।

«« गंगा किनारे सवेरा।

सोचना लाजमी था – इस देश में एक आस्तिक विरासत, ब्राह्मणिक भूत काल का अनजाना गौरव, भाषा और लोगों से गहन तौर पर न सही, तथ्यात्मक खोजपरख की दृष्टि से पर्याप्त परिचय के बावजूद कितना समझता हूं हिन्दू धर्म को। शायद बहुत कम।

Sunday, October 4, 2009

लिबरेशनम् देहि माम!

अद्भुत है हिन्दू धर्म! शिवरात्रि के रतजगे में चूहे को शिव जी के ऊपर चढ़े प्रसाद को कुतरते देख मूलशंकर मूर्तिपूजा विरोधी हो कर स्वामी दयानन्द बन जाते हैं। सत्यार्थप्रकाश के समुल्लासों में मूर्ति पूजकों की बखिया ही नहीं उधेड़ते, वरन गमछा-कुरता-धोती तार तार कर देते हैं। पर मूर्ति पूजक हैं कि अभी तक गोईंग स्ट्रॉग!

Friday, October 2, 2009

पकल्ले बे, नरियर!


Coconut पांच बच्चे थे। लोग नवरात्र की पूजा सामग्री गंगा में प्रवाहित करने आ रहे थे। और ये पांचों उस सामग्री में से गंगा में हिल कर नारियल लपकने को उद्धत। शाम के समय भी धुंधलके में थे और सवेरे पौने छ बजे देखा तब भी। सवेरे उनका थैला नारियल से आधा भर चुका था। निश्चय ही भोर फूटते से ही कार्यरत थे वे।

गरीब, चपल और प्रसन्न बच्चे।

Wednesday, September 30, 2009

सिविल सेवा परीक्षा


इस वर्ष की सिविल सेवा परीक्षा के प्रथम 100 चयनित अभ्यर्थियों में केवल एक के विषय गणित और भौतिकी हैं। मुझे यह तब पता लगा जब मैंने एक परिचित अभ्यर्थी से उसके विषयों के बारे में पूछा। आश्चर्य की बात यह थी कि वह एक इन्जीनियर हैं और विज्ञान के विषय न लेकर बिल्कुल ही नये विषय लेकर तैयारी कर रहे हैं।

Tuesday, September 29, 2009

ब्लॉगिंग और फीड एग्रेगेटर


मुझे लगता है कि फीड एग्रेगेटर के बारे में जो पोस्टों में व्यग्रता व्यक्त की जा रही है, उसका बेहतर डिस्कशन ट्विटर पर हो सकता है। एक सौ चालीस अक्षरों की सीमा में।

Monday, September 28, 2009

ट्रेन परिचालन का नियंत्रण


एक मित्र श्री सुभाष यादव जी ने प्रश्न किया है कि ट्रेन नियंत्रक एक स्थान से इतनी सारी रेलगाड़ियों का नियंत्रण कैसे कर लेता है। पिछली रेल जानकारी विषयक पोस्ट के बाद मैं पाता हूं कि कुछ सामान्य रेल विषयक प्रश्न ब्लॉग पर लिये जा सकते हैं।

Train Control ओके, उदाहरण के लिये मानें कि कानपुर से टूण्डला के मध्य रेल की दोहरी लाइन पर ट्रेन परिचालन की बात है। यह बहुत सघन यातायात का खण्ड है। इसमें लगभग १२० गाड़ियां नित्य आती और जाती हैं। कुल २४० ट्रेनों में आधी सवारी गाड़ियां होती हैं और शेष माल गाड़ियां। इस खण्ड के नियंत्रक के पास हर समय २०-२५ गाड़ियां नियंत्रण के लिये होती हैं। हर घण्टे वह आजू-बाजू के खण्डों से लगभग दस गाड़ियां लेता और उतनी ही देता है। इस खण्ड के पैंतीस चालीस स्टेशन मास्टर उसे फोन पर गाड़ियों के आवागमन की स्थिति बताते रहते हैं।

Friday, September 25, 2009

गंगातट की वर्णव्यवस्था


Dawn at Ganaga5 इस घाट पर सवर्ण जाते हैं। सवर्णघाट? कोटेश्वर महादेव मन्दिर से सीढ़ियां उतर कर सीध में है यह घाट। रेत के शिवलिंग यहीं बनते हैं। इसी के किनारे पण्डा अगोरते हैं जजमानों को। संस्कृत पाठशाला के छात्र – जूनियर और सीनियर साधक यहीं अपनी चोटी बांध, हाथ में कुशा ले, मन्त्रोच्चार के साथ स्नानानुष्ठान करते हैं। यहीं एक महिला आसनी जमा किसी पुस्तक से पाठ करती है नित्य। फूल, अगरबत्ती और पूजन सामग्री यहीं दीखते हैं।

Wednesday, September 23, 2009

कितना बोझ उठाये हैं हम सब!



... पर जिनके पास विकल्प हैं और फिर भी जो जीवन को कूड़ाघर बनाये हुये हैं, उनसे यह विनती की जा सकती है कि जीवन का सरलीकरण कर उसका स्तर सुधारें।
हमारे जीवन का बिखराव हमारी ऊर्जा का बिखराव होता है। मुझे सच में यह देखकर आश्चर्य होता है कि लोग अपने जीवन को इतना फैला लेते हैं कि उसे सम्हालना कठिन हो जाता है। जीने के लिये कितना चाहिये और हम कितना इकठ्ठा कर लेते हैं इसका आभास नहीं रहता है हमें। आने वाली सात पुश्तों के लिये 20 शहरों में मकान! बैंकों में आपका पैसा पड़ा रहा आपकी बाट जोहता रहता है और मृत्यु के बाद आपके पुत्रों के बीच झगड़े का कारण बनता है। आप जीवन जी रहे हैं कि भविष्य लिख रहे हैं?

शरीर जितना स्थूल होता है उसकी गति भी उतनी ही कम हो जाती है। शरीर हल्का होगा तो न केवल गति बढ़ेगी अपितु ऊर्जा बढ़ेगी। यही जीवन के साथ होता है। जीवन सादा रखना बहुत ही आवश्यक व कठिन कार्य है।

Monday, September 21, 2009

नौ दिन का अनुष्ठान


Navaratr3 उन महिला को तीन दिन से शाम के समय देख रहा हूं, गंगा तट पर दीपक जला पूजा करते। कल ध्यान से सुना। कोई श्लोक-मन्त्र जाप नहीं कर रही थीं। अपनी देशज भाषा में हाथ जोड़ गंगा माई – देवी माई की गुहार कर रही थीं। काफी देर चली पूजा। उनके हटने पर मैं और एक कुकुर दोनो पूजा स्थल की ओर बढ़े। मैं फोटो लेने और कुकुर पूजा स्थल पर चढ़ाये बताशे लेने। कुकुर को एक लात मार अलग करना पड़ा अन्यथा पूजा स्थल का दृष्य वह बिगाड़ देता।

तीन दिये थे। फूलों के तीन अण्डाकार दीर्घवृत्तों में। अगरबत्ती जल रही थी। श्रद्धा की गंध व्यप्त थी। मैं कौतूहल भरा फोटो ले रहा था पर कुछ श्रद्धा – त्वचा के कुछ अंदर तक – तो मेरे शरीर में भी प्रवेश कर गयी थी। … या देवी सर्व भूतेषु …

Sunday, September 20, 2009

फ़र्जी काम (Fake Work)


bksmall मेरे मित्र और मेरे पश्चिम मध्य रेलवे के काउण्टरपार्ट श्री सैय्यद निशात अली ने मुझे फेक वर्क (Fake Work) नामक पुस्तक के बारे में बताया है।

हम सब बहुत व्यस्त हैं। रोज पहाड़ धकेल रहे हैं। पर अन्त में क्या पाते हैं? निशात जी ने जो बताया, वह अहसास हमें जमाने से है। पर उसकी किताब में फ़र्जी काम की चर्चा और उसकी जगह असली काम करने की स्ट्रेटेजी की बात है; यह पढ़ने का मन हो रहा है।

आप तो फेक वर्क की साइट देखें। उसमें एक कथा दी गयी है फ़र्जी काम को समझाने को -

Saturday, September 19, 2009

श्राद्धपक्ष का अन्तिम दिन


Shraddh1 सवेरे का सूरज बहुत साफ और लालिमायुक्त था। एक कालजयी कविता के मानिन्द। किनारे पर श्राद्धपक्ष के अन्तिम दिन की गहमा गहमी। एक व्यक्ति नंगे बदन जमीन पर; सामने एक पत्तल पर ढेर से आटे के पिण्ड, कुशा और अन्य सामग्री ले कर बैठा; पिण्डदान कर रहा था पण्डाजी के निर्देशन में। थोड़ी दूर नाई एक आदमी का मुण्डन कर रहा था।

पण्डाजी के आसपास भी बहुत से लोग थे। सब किसी न किसी प्रकार श्राद्धपक्ष की अनिवार्यतायें पूरा करने को आतुर। सब के ऊपर हिन्दू धर्म का दबाव था। मैं यह अनुमान लगाने का यत्न कर रहा था कि इनमें से कितने, अगर समाज के रीति-रिवाजों को न पालन करने की छूट पाते तो भी, यह कर्मकाण्ड करते। मुझे लगा कि अधिकांशत: करते। यह सब इस जगह के व्यक्ति की प्रवृत्ति में है।

Friday, September 18, 2009

कछार पर कब्जा


भाद्रपद बीत गया। कुआर के शुरू में बारिश झमाझम हो रही है। अषाढ़-सावन-भादौं की कमी को पूरा कर रहे हैं बादल। पर गंगामाई कभी उतरती हैं, कभी चढ़ती हैं। कभी टापू दीखने लगते हैं, कभी जलमग्न हो जाते हैं।

दिवाली के बाद कछार में सब्जी की खेती करने वाले तैयारी करने लगे हैं। पहले कदम के रूप में, कछार पर कब्जा करने की कवायद प्रारम्भ हो गयी है।

Wednesday, September 16, 2009

मृत्यु, पुनर्जन्म और असीमितता


जब परीक्षित को लगा कि सात दिनों में उसकी मृत्यु निश्चित है तो उन्होने वह किया जो उन्हें सर्वोत्तम लगा।

मुझे कुछ दिन पहले स्टीव जॉब (Apple Company) का एक व्याख्यान सुनने को मिला तो उनके मुख से भी वही बात सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ। उनके शब्दों में -

Monday, September 14, 2009

बन्दर पांडे


Monkey बन्दर पांडे भटक कर आ गये हैं। इकल्ले। भोजन छीन कर खाते हैं – सो बच्चों को बनाते हैं सॉफ्ट टार्गेट। पड़ोस के शुक्ला जी के किरायेदार के लड़के और लड़की को छीना-झपटी में काट चुके हैं। बिचारे किरायेदार जी इस चक्कर में ड्यूटी पर न जा सके।

हनुमानजी के आईकॉन हैं बन्दर पांडे – इसलिये कोई मार डालने का पाप नहीं ले सकता। हमारे घर को उन्होने अपने दफ्तर का एनेक्सी बना लिया है। लिहाजा एक छड़ी और एक लोहे की रॉड ढूंढ़ निकाली गयी है उन्हे डराने को। देखें कब तक रहते हैं यहां!

Sunday, September 13, 2009

गरिमामय वृद्धावस्था


Old Woman3 झुकी कमर सजदे में नहीं, उम्र से। और उम्र भी ऐसी परिपक्व कि समय के नियमों को चुनौती देती है। यहीं पास में किसी गली में रहती है वृद्धा। बिला नागा सवेरे जाती है गंगा तट पर। धोती में एक डोलू (स्टील का बेलनाकार पानी/दूध लाने का डिब्बा) बंधा होता है। एक हाथ में स्नान-पूजा की डोलची और दूसरे में यदाकदा एक लाठी। उनकी उम्र में हम शायद ग्राउण्डेड हो जायें। पर वे बहुत सक्रिय हैं।

Friday, September 11, 2009

रेलगाड़ियों का नम्बर तय करने की प्रणाली


उस दिन बीबीसी के अपूर्व कृष्ण जी सवारी रेलगाड़ियों के चार अंक के नम्बर देने की प्रणाली के विषय में जानना चाहते थे।
Kasara रेलवे पर आधिकारिक रूप से बोलना नहीं चाहता था। मुझे मालुम है कि ऑन द रिकार्ड बोलने का चस्का जबरदस्त होता है। माइक या पब्लिश बटन आपके सामने हो तो आप अपने को विशेषज्ञ मानने लगते हैं। यह विशेषज्ञता का आभामण्डल अपने पर ओढ़ना नहीं चाहता। अन्यथा रेल विषयक जानकारी बहुत ठेली जा सकती है। आप एक जानकारी दें तो उसके सप्लीमेण्ट्री प्रश्न आपको सदैव सजग रहने को बाध्य करते हैं कि कितना बोलना चाहिये!

Wednesday, September 9, 2009

गाय


मुझे लगभग हर रेलवे स्टेशन पर गाय दिखीं। वडोदरा, भोपाल, सिहोर, बीना व झाँसी में गऊ माँ के दर्शन करने से मेरी यात्रा सुखद रही। मनुष्यों और गायों के बीच कहीं पर भी अस्तित्व सम्बन्धी कोई भी झगड़ा देखने को नहीं मिला। समरसता व सामन्जस्य हर जगह परिलक्षित थे।

Tuesday, September 8, 2009

संस्कृत के छात्र


Sanskrit Students पास के सिसोदिया हाउस की जमीन कब्जियाने के चक्कर में थे लोग। सो उसे बचाने को उन्होने एक संस्कृत विद्यालय खोल दिया है वहां। बारह-चौदह साल के बालक वहां धोती कुरता में रहते हैं। सवेरे सामुहिक सस्वर मन्त्र पाठ करते उनकी आवाज आती है। गंगा किनारे से सुनाई देती है।

Sunday, September 6, 2009

टिप्पनिवेस्टमेण्ट


samir lal सवेरे सवेरे पोस्ट पर पहली टिप्पणी का इन्तजार है। कहां चले गये ये समीरलाल  “समीर”? कल बता दिया था कि फलानी पोस्ट है, पर फिर भी टिपेरने में कोताही! टापमटाप चिठेरे हो लिये हैं, तब्बै नखरे बढ़ गये हैं!


तब तक शलभ से तितली बनने की प्रक्रिया रत एक नवोदित ब्लॉगर की टिप्पणी आती है। ज्यादा ही कॉन्स्टीपेटेड। “अच्छा लिखा, बहुत अच्छी जानकारी।” अच्छा तो खैर हम लिखते ही हैं। पर अच्छी जानकारी? बकरी भेंड़ी नेनुआ ऊंट में कौन जानकारी जी?! जानकारिऐ हमारे पास होती तो अनुनाद सिंह जी के बारंबार उकसाने पर हिन्दी विकीपेडिया पर न ठेलते?

Friday, September 4, 2009

टिटिहरी


टिटिहरी या कुररी नित्य की मिलने वाली पक्षी है। मुझे मालुम है कि गंगा तट पर वह मेरा आना पसन्द नहीं करती। रेत में अण्डे देती है। जब औरों के बनाये रास्ते से इतर चलने का प्रयास करता हूं - और कोई भी खब्ती मनुष्य करता है - तब टिटिहरी को लगता है कि उसके अण्डे ही चुराने आ रहा हूं।

Wednesday, September 2, 2009

देसी शराब


boat upside down उस शाम सीधे घाट पर जाने की बजाय हम तिरछे दूर तक चले गये। किनारे पर एक नाव रेत में औंधी पड़ी थी। मैने उसका फोटो लिया। अचानक शराब की तेज गंध आई। समझ में आ गया कि उस नाव के नीचे रखी है देसी शराब। लगा कि वहां हमारे लिये कुछ खास नहीं है। वापस आने लगे। तभी किनारे अपना जवाहिरलाल (उर्फ मंगल उर्फ सनिचरा) दिखा। उसी लुंगी में और उतना ही शैगी।

Monday, August 31, 2009

नाव


Ganga4 July 09 मछली पकड़ने वाले रहे होंगे। एक नाव पर बैठा था। दूसरा जमीन पर चलता नायलोन की डोरी से नाव खींच रहा था। बहुत महीन सी डोरी से बंधी नाव गंगा की धारा के विपरीत चलती चली आ रही थी। मैं अपनी चेतना के मूल में सम्मोहित महसूस कर रहा था।

एक महीन सी डोर! कभी कभी तो यूं लगे, मानो है नहीं। वह नाव को नेह्वीगेट कर रही थी। हममें भी नाव है जो न जाने कौन सी नायलोन की डोरी से बंधी बढ़ती जा रही है।

Saturday, August 29, 2009

जलवायु परिवर्तन - कहां कितना?


टिम फ्लेनेरी की पुस्तक - "द वेदर मेकर्स" अच्छी किताब है पर्यावरण में हो रहे बदलावों को समझने जानने के लिये। तीन सौ पेजों की इस किताब का हिन्दी में अनुवाद या विवरण उपलब्ध है या नहीं, मैं नहीं जानता।

Wednesday, August 26, 2009

गौरी विसर्जन और पर्यावरण


Gauri Ganesh1गौरी विसर्जन के नाम पर फैकी गईं प्लास्टिक की थैलियां
हरतालिका तीज के बाद गौरी-विसर्जन वैसी पर्यावरणीय समस्या नहीं उत्पन्न करता जैसी गणेश जी की प्लास्टर ऑफ पेरिस और कृत्रिम रंगों से युक्त बड़े आकार की प्रतिमाओं के विसर्जन से होता है। (संदर्भ – श्री चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी की टिप्पणी।) 

गौरी-गणेश की प्रतिमा छोटी और मिट्टी-रेत की होती है। कोई रंग भी उसपर नहीं लगाया होता। लिहाजा उसके गंगाजी में विसर्जित करने पर अनुचित कुछ नहीं है। अनुचित होता है उसके साथ प्लास्टिक की पन्नियों को फैंकने से।

Tuesday, August 25, 2009

फुटपाथ और पैदल चलना


Footpath_thumb फुटपाथ की संरचना ही नहीं है सड़क के डिजाइन में!

पिछले कुछ दिनों से पढ़ रहा हूं कि शहरों में आबादी के घनत्व का अपना एक लाभ है। हाल ही में पढ़ा कि अटलाण्टा और बार्सीलोना लगभग बराबर की आबादी के शहर हैं और दोनो ही ओलम्पिक आयोजन कर चुके हैं। पर बार्सीलोना में लोग अपार्टमेण्ट में रहते हैं और अटलाण्टा में अपने अलग अलग मकानों में। लिहाजा, प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन अटलाण्टा के अपेक्षा बार्सीलोना में मात्र दसवां हिस्सा है।

Monday, August 24, 2009

चौबीस घण्टे में चढ़ीं गंगाजी


चौबीस घण्टे में जलराशि बहुत बढ़ी गंगाजी में। आज हरतालिका तीज के बाद गौरी विसर्जन को बहुत सी स्त्रियां जा-आ रही थीं घाट पर। कल के दिन निर्जला व्रत करने वाली महिलाओं पर आज गंगामाई का वात्सल्य स्पष्ट दिखा। वे और समीप आ गयीं। रेत में कम चलना पड़ा महिलाओं को।

कल गंगा जी का पानी शांत मन्थर था। आज वेग ज्यादा है। कल बहती जलकुम्भी नहीं थी। आज पूरा विस्तार जलकुम्भी से भरा है। कहीं से बड़ी मात्रा में जलकुम्भी तोड़ बहाये लिये जा रही हैं गंगा माई। और इस पार से उसपार जलकुम्भी ही दिख रही है।

आप कल (बायें) और आज के चित्र देखें – तुलना करने को।

Ganges 23 aug Ganges 24 aug1

और यह है जल कुम्भी का बहाव (वीडियो छ सेकेण्ड का है) -

Ganges 24aug2

(स्थान - शिवकुटी घाट, इलाहाबाद)