|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Thursday, May 31, 2007
लिंक से लिंक बनाते चलो
जब मैं यह लिखता हूं कि लिंक लाईक ए मैड तो मैं यह अन्डरलाईन करना चाहता हूँ कि ब्लोगरी एकांत में लिखा जाने वाला लेखन नहीं हैं। इसलिए जो वह लिखते हैं जिसे केवल आइन्स्टीन पढ़ सकता हैं तो वह गफलत में रहते हैं। ब्लॉग लेखन एक-एक कड़ी की तरह बढ़ता है - जैसे एक व्यक्ति कहानी का एक पैरा सोचे और दूसरा अपनी कल्पना से आगे बढ़ाये, तीसरा और आगे... ब्लोगारी ओर्गेनिक केमिस्ट्री की तरह हैं - कार्बन-हाइड्रोजन बॉण्ड लिंक से लिंक बनाते विशालकाय अणु बन जाते हैं। अंतत: जो पदार्थ सामने आता हैं उसकी लिंक बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ करते समय कल्पना भी नहीं की गयी होती। अब देखिए न - काकेश अब तक लिंक का उल्लेख कर सफ़ाई दे रहे थे की वे नारी नहीं नर हैं और शादी शुदा हैं। कल बहुत संभव हैं की वे रसायन शास्त्र के गुण-दोष की चर्चा करने लगें। परसों अगर कोई और मैड लिंकर किसी और विज्ञान/शास्त्र को जोड़ बैठा तो बात किसी और तरफ मुड़ जायेगी।
काकेश लिंक मिल रहा हैं न!
गुज्जर आन्दोलन,रुकी ट्रेनें और तेल पिराई की गन्ध
परसों रात में मेरा केन्द्रीय-कंट्रोल मुझे उठाता रहा. साहब, फलाने स्टेशन पर गुज्जरों की भीड़ तोड फोड कर रही है. साहब, फलने सैक्शन में उन्होने लेवल क्रासिंग गेट तोड दिये हैं. साहब, फलानी ग़ाड़ी अटकी हुयी है – आगे भी दंगा है और पीछे के स्टेशन पर भी तोड़ फोड़ है.... मैं हूं उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में पर समस्यायें हैं राजस्थान के बान्दीकुई-भरतपुर-अलवर-गंगापुर सिटी-बयाना के आस-पास की। यहाँ से गुजरने वाली ट्रेनों का कुछ भाग में परिचालन मेरे क्षेत्र में आता है. राजस्थान में गुज्जर अन्दोलन ट्रेन रनिंग को चौपट किये है. रेल यात्रियों की सुरक्षा और उन्हें यथा सम्भव गंतव्य तक ले जाना दायित्व है जिससे मेरा केन्द्रीय-कंट्रोल और मैं जूझ रहे हैं.
पिछली शाम होते-होते तो और भी भयानक हो गयी स्थिति. कोटा-मथुरा रेल खण्ड पर अनेक स्टेशनों पर तोड़-फोड़. अनेक जगहों पर पटरी से छेड़-छाड़. दो घण्टे बैठ कर लगभग 3 दर्जन गाड़ियों के मार्ग परिवर्तन/केंसिलेशन और अनेक खण्डों पर रात में कोई यातायात न चलाने के निर्णय लिये गये. अपेक्षा थी कि आज रात सोने को मिल जायेगा. जब उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रों से गाड़ियां चलायेंगे ही नहीं तो व्यवधान क्या होगा?
पर नींद चौपट करने को क्या उपद्रव ही होना जरूरी है? रात के पौने तीन बजे फिर नींद खुल गयी. पड़ोस में झोपड़ीनुमा मकान में कच्ची घानी का तेल पिराई का प्लांट है. उस भाई ने आज रात में ही तेल पिराई शुरू कर दी है. हवा का रुख ऐसा है कि नाक में तेल पिराई की गन्ध नें नींद खोल दी है.
जिसका प्लांट है उसे मैं जानता नहीं. पुराने तेल के चीकट कनस्तरों और हाथ ठेलों के पास खड़े उसे देखा जरूर है. गन्दी सी नाभिदर्शना बनियान और धारीदार कच्छा पहने. मुंह में नीम की दतुअन. कोई सम्पन्न व्यक्ति नहीं लगता. नींद खुलने पर उसपर खीझ हो रही है. मेरे पास और कुछ करने को नहीं है. कम्प्यूटर खोल यह लिख रहा हूं. गुज्जर आन्दोलन और तेल पिराई वाला गड्ड-मड्ड हो रहे हैं विचारों में. हमारे राज नेताओं ने इस तेल पिरई वाले को भी आरक्षण की मलाई दे दी होती तो वह कच्ची घानी का प्लाण्ट घनी आबादी के बीच बने अपने मकान में तो नहीं लगाता. कमसे कम आज की रात तो मैं अपनी नींद का बैकलाग पूरा कर पाता.
आरक्षण की मलाई लेफ्ट-राइट-सेण्टर सब ओर बांट देनी चाहिये. लोग बाबूगिरी/चपरासी/अफसरी की लाइन में लगें और रात में नींद तो भंग न करें.
Wednesday, May 30, 2007
अच्छा लिखोगे तभी तो लोग पढ़ेंगे
ब्लॉगरी में अच्छी हिन्दी आये इसको लेकर मंथन चल रहा हे. अज़दक जी लिख चुके हैं उसपर दो पोस्ट. उसपर अनामदास जी टिप्पणी कर चुके हैं. इधर देखा तो नीलिमा जी भी लिख चुकी हैं. शास्त्री जे सी फिलिप जी सारथी निकालते हैं. उनका सारथी ब्लॉग नहीं, ब्लॉग का इन्द्रधनुष है. वे भी हिन्दी की गलतियों से आहत हैं. और लोग भी होंगे जो लिख रहे होंगे.
अच्छी हिन्दी के बारे में दो-तीन आयाम हैं. एक है - उसमें वर्तनी की गलतियां न हों, ग्रामर सही हो और वाक्य अर्थ रखते हों. दूसरा है – वह अश्लील न हो; और अश्लील ही नहीं वरन ‘काशी का अस्सी’ या ‘रागदरबारी’ छाप तरंग वाली हिन्दी के #@ं%ं&$/*&ं वाले शब्द युक्त न हो. तीसरा है - वह स्टेण्डर्ड की हो; पढ़ने में (फूल की नही) एयर फ्रेशनर की ताजगी का अहसास मिले.
अपना सोचना है कि इस पचड़े में ही न पड़ा जाये कि हिन्दी अच्छी हो या बुरी. उसमें निराला/पंत/अज्ञेय हों या भारतेन्दु/प्रेमचन्द/दिनकर या फिर मस्तराम या सेक्स-क्या - यह विचार मंथन व्यर्थ है. जो पठनीय होगा, सो दीर्घ काल तक चलेगा. शेष कुछ समय तक इतरायेगा और अंतत: रिसाइकल बिन में घुस जायेगा.
अच्छी और बुरी हिन्दी के चक्कर में उस ब्लॉगर के उत्साह को क्यों मारा जाये जो मेहनत कर चमकौआ ब्लॉग बनाता है. चार लाइन लिख कर मंत्र-मुग्ध निहारता है. अपनी मित्रमण्डली से चर्चा करता है. पत्नी/प्रेमिका/मंगेतर को बार बार खोल कर दिखाता है. 10-20 लोगों को ई-मेल करता है कि वे ब्लॉग देखें. बन्धु, वह उत्साह बड़ा सनसनी पैदा करने वाला होता है. कम्प्यूटर टेक्नॉलॉजी इतने सारे लोगों में इतना क्रियेटिव उत्साह जगाये – यह अच्छी/बुरी हिन्दी के फेर में भरभण्ड नहीं होना चाहिये.
बन्धु, वह सुनेगा तो केवल अपनी हिटास (ब्लॉग पर मिलने वाली हिट्स की अदम्य इच्छा) की डिमाण्ड को. भविष्य में अगर वह पायेगा कि तकनीक के प्रयोग, प्रोमोशन के हथकण्डे और सेनशेसनल विषय के बावजूद लोग उसे नहीं पढ़ रहे हैं तो वह अपने आप सही हिन्दी के लेखन की तरफ मुड़ेगा. नहीं करेगा तो अपनी दुकान बन्द कर देगा.
लोग अच्छी हिन्दी की सलाह जारी रखें. वह भी यज्ञ में आहुति है. पर बहुत आशा न रखें. अंतत: लोगों द्वारा पढ़े जाने की चाह ही अच्छी हिन्दी का
Tuesday, May 29, 2007
चित भी मेरी और पट भी
चिड़िया के निन्दा करने से भी राजा तंग हो गया. जरा सी कुलही. उसपर इतना सुनना पड़ रहा था. राजा नें कुलही लौटा दी.
अब चिड़िया गाने लगी – “रजवा ड़ेरान मोर कुलही दिहेस. (राजा ड़र गया. उसने मेरी टोपी लौटा दी.) ”
यानी चित भी चिड़िया की और पट भी. यही हाल हमारे जन मानस का है. निंदा और व्यंग हमारी जीवन शैली है. हमारे अखबार और मीडिया के लोग इसे बखूबी जानते हैं. राजा की झूठी सच्ची निन्दा में बड़ा मन लगता है. वह बिकता जो है.
राजा माने सरकार. राजा माने पूंजीपति. राजा माने वह जिसने प्रभुता प्राप्त कर ली है. इसलिये मेधा पटकर/अरुन्धती राय/वर्वर राव/गदर का मात्र महिमा मण्डन होता है. ये लोग चिड़िया का रोल अदा करते हैं. अमेरिका/सोनिया गान्धी/टाटा/बिड़ला/नरेन्द मोदी/मायावती/राहुल/प्रियंका/बुद्धदेव भट्टाचार्य/..../..... ये सब निशाने पर होते हैं. ये मेहनत करें तो गलत. ये गलतियां करे तो बहुत ही अच्छा!
अब देखें – बीएसएनएल ने जनवरी,2007 से ब्रॉडबैंड सेवा सस्ती कर दी. पट से रियेक्शन आया – पहले कितना लूट रहे थे ये लोग! फिर बीएसएनएल ब्रॉडबैंड के लिये लाइन लग गयी. कल मैने हिन्दी के अखबार में पढ़ा – “मार्च से आवेदन पैंडिंग हैं. यह प्राइवेट संचार कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिये किया जा रहा है”. अब अगर यह प्राइवेट कम्पनियों को फायदे के लिये किया जा रहा है तो जनवरी में प्राइवेट कम्पनियों की नसबन्दी का प्रयास उसी बीएसएनएल ने क्यों किया?
यह सिनिसिज्म अखबार/मीडिया का नहीं है. वे तो वह परोसते हैं, जो बिकता है. यह सिनिसिज्म समाज का है. समाज में हम-आप आते हैं.
Monday, May 28, 2007
भगवान जाधव कोळी जी की याद
जळगांव में प्राइवेट नर्सिंग होम के बाहर, सन 2000 के प्रारम्भ में, मेरे साथी भीड़ लगाये रहते थे. मेरा लड़का सिर की चोटों और बदन पर कई स्थान पर जलने के कारण कोमा में इंटेंसिव केयर में भरती था. मैं व मेरी पत्नी हर क्षण आशंका ग्रस्त रहते थे कि अब कोई कर्मी या डाक्टर बाहर आ कर हमें कहेगा कि खेल खत्म हो गया. पैसे की चिन्ता अलग थी – हर दिन 10-20 हजार रुपये खर्च हो रहे थे. यद्यपि अंतत: रेलवे वह वहन करती पर तात्कालिक इंतजाम तो करना ही था एक अनजान जगह पर.
मै और मेरे पत्नी बैठने को खाली बेंच तलाशते थे. पर एक आदमी और उसकी पत्नी जमीन पर बैठे मिलते थे. उनका लड़का भी भर्ती था – कुयें में गिर कर सिर में चोट लगा बैठा था. शरीर में हड्डियां भी टूटी थीं. पर जिन्दगी और मौत के खतरे के बाहर था.
एक दिन वह व्यक्ति मुझे अकेले में लेकर गया. अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में मुझसे बोला – साहब मैं देख रहा हूं आपकी परेशानी. मै कुछ कर सकता हूं तो बतायें. फिर संकोच में बोला – अपने लड़के के लिये मैने पैसे का इंतजाम किया था. पर उनकी जरूरत नही है. आप परेशानी में हो. ये 20,000 रुपये रख लो.
कुछ मेरे अन्दर कौन्ध गया. ऊपर से नीचे तक मैने निहारा – पतला दुबला, सफेद पजामा कुरते में इंसान. लांगदार मराठी तरीके से साड़ी पहने उसकी औरत (जो बाद में पता चला हिन्दी नहीं समझती थीं). ये अति साधारण लगते लोग और इतना विराट औदार्य! मेरा अभिजात्य मुखौटा अचानक भहरा कर गिर पड़ा. लम्बे समय से रोका रुदन फूट पड़ा. मैं सोचने लगा – कृष्ण, इस कष्ट के अवसर पर हम तुम्हें पुकार रहे थे. तुमने अपनी उपस्थिति बताई भी तो किस वेष में. उस क्षण मुझे लगा कि कृष्ण साथ हैं और मेरा लड़का बच जायेगा.
भगवान जाधव कोळी मेरे लड़के को देखने बराबर आते रहे. पैसे मैने नहीं लिये. उनसे मिला मानवता की पराकाष्ठा का सम्बल ही बहुत बड़ा था . वे मेरे लड़के को देखने कालांतर में रतलाम भी आये. एक समय जब सब कुछ अन्धेरा था, उन्होने भगवान की अनुभूति कराई मुझे.
Sunday, May 27, 2007
मैं सारथी हूं
तुम्हें याद न होगा पार्थ
कि तुम पार्थ हो
मैं जन्म-जन्मांतरों में
तुम्हारे रथ की डोर
अपने हाथ में रख
दिलाता रहा हूं तुम्हें विजय
तुम्हारे विषाद-योग ग्रस्त होने पर
ललकारता रहा हूं
कहता रहा हूं तुम्हें दुर्बल-नपुंसक
बनाता रहा हूं तुम्हें निमित्त
देता रहा हूं आश्वासन
तुम्हें समीप होने का
तुम्हें प्रिय होने का
तुम्हें अंतत: विजयी होने का
अनेक प्रकार से
अनेक रूपों में
अनेक युगों में
तुम्हारी उंगली पकड़े रखी है
लाता रहा हूं मैं तुम्हारा रथ
अच्छाई और बुराई की सेनाओं के बीच
भीष्म के शंखनाद का उत्तर देने को
उत्प्रेरित करता रहा हूं मैं
बार-बार बनाता रहा हूं तुम्हें स्थितप्रज्ञ
और यह होता रहेगा
आने वाले जन्म-जन्मांतरों में भी
तुम्हें याद न होगा पार्थ
हां, यह कि तुम पार्थ हो
हां, यह भी, कि मैं सारथी हूं.
Saturday, May 26, 2007
अलवा-पलवा लेखन - ब्रेन इंजरी - मां सरस्वती का विधान
मित्रों, यह अलवा-पलवा लेखन मेरे काम आ गया ब्रेन इंजरी रिसोर्स सेंटर से कंटेण्ट प्रयोग की इजाजत लेने में.
मैने मार्च के अंत में ‘अच्छा मित्रों राम-राम’ कर ली थी. फिर लगा कि उसमें कंट्राडिक्शन है. मैं अगर हिन्दी में ब्रेन इंजरी पर वेब साइट की बात करता हूं; और हिन्दी में लिखने से मना करता हूं तो उसमें ईमानदारी नहीं है. इसलिये मैं टॉम एण्ड जैरी के टॉम की तरह अपनी पूंछ टुर्र से नीचे करते हुये फिर लिखने लगा था – रोज 200-250 शब्द का अलवा-पलवा लेखन!
जब ब्रेन इंजरी वाले मिलर जी ने मेरे हिन्दी वेब स्पेस के क्रिडेंशियल पूछे, तो अपने अलवा-पलवा लेखन से मैं अपने आप को हिंदी ब्लॉगर सबित कर पाया. अगर ‘अच्छा मित्रों राम-राम’ पर अड़ा रहता तो मिलर जी को क्या दिखाता?
इस लिये जब सुकुल जी लिखते हैं - जेहि पर जाकर सत्य सनेहू, मिलहि सो तेहि नहिं कछु सन्देहू। तब लगता है कि मां सरस्वती अपने प्रकार से शृजन कराती हैं – शांत, एक ध्येय के साथ और जो लगता ही नहीं कि होने जा रहा है. सब अपने विधान से कराती हैं. आगे भी शायद ऐसे ही होगा – उन्हीं के प्रकार से. मां काली के पदाघात सा नहीं होगा. पदाघात तो लग चुका है.
समीर जी कहते हैं - पुकारा तो नहीं गया मगर इतने सुंदर प्रयास में कुछ योगदान कर पाऊँ तो मेरा सौभाग्य....
यह जरूरी है स्पष्ट करना कि मैने पिछ्ली पोस्ट में नाम वह लिये थे जिनसे इस विषय में पहले किसी प्रकार की बात चीत हो चुकी थी.
यज्ञ में सभी का सहयोग मांगना और लेना अनिवार्य है.... और लगभग सभी यज्ञार्थी आ चुके हैं. जो नहीं ,वे भी रास्ते में ही होंगे.
और अरुण जी। वे तो मेरी तरह भुक्त भोगी निकले।
यज्ञ के अध्वर्यु जीतेंद्र जी के निर्देशन की प्रतीक्षा हैं अब। उन्हें कल मैंने ईमेल किया हैं। आज देखते हैं अध्वर्यु क्या टीम बनाते हैं और क्या टास्क तय करते हैं। रेलवे में अपने तरीके से काम करते कभी इन्फर्मल टीम का सदस्य बन कर काम नहीं किया। यहाँ तो निर्देश देने और कम्प्लायेंस लेने का प्रशासनिक माहौल होता हैं। उससे हट कर काम का आनंद मुझे मिलाने जा रहा हैं - भले ही जिंदगी में देर से ही सही!
Friday, May 25, 2007
ब्रेन-इंजरी पर वेब साइट – आइये मित्रों !
श्री कॉंस्टेंस मिलर, एम.डी., ब्रेन इंजरी रिसोर्स सेंटर का ई मेल:
Dear Gyandutt;
Thank you for contacting Brain Injury Resource Center concerning your translation of material from our web and posting it on a blog in India. As you stated you will translate the material in "Hindi only for the web site I propose to build for the benefit of Hindi population predominantly in India? I shall quote your source wherever I use it and will not claim any right on the material or translation."
I am agreeable to your proposal, as stated, concerning the use of said information.
Please credit Brain Injury Resource Center, http://www.headinjury.com/, as the source of this material
Again, thank you for contacting Brain Injury Resource Center, I
trust that you have been helped by the information provided. 206-621-8558
Sincerely,
Constance Miller , MA
Brain Injury Resource Center
PO Box 84151
Seattle WA 98124-5451
brain@headinjury.com
अब गेंद हम सब के पाले में है। इस विषय से जुड़ाव करते सभी मित्रगण; अगर हम ब्रेन इंजरी रिसोर्स सेंटर की वब साइट का पूअर क्लोन भी हिन्दी में बना पाये तो वह हिन्दी जगत की महती सेवा होगी. और हम सब के हिन्दी उत्साह को देख कर तो नहीं लगता कि हम पूअर क्लोन ही बना पायेंगें.
ऊंट पर बोझ लादने की तकनीक
यही तकनीक बेहतर प्रबन्धन के जाल के साथ, आदमी के साथ भी प्रयोग में लायी जाती है.
राम प्रसाद फनफनाता हुआ इस प्रकार मेरे पास आया जैसे राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ हो – विशुद्ध क्रंतिकारी अन्दाज में. बोला - साहब यह नहीं चल सकता. आदमी हैं और आप जानवर की तरह काम लादे जा रहे हैं. बाकी लोग मजे कर रहे है और आप हमें ही रगेदे जा रहे हैं.
राम प्रसाद को एक गिलास ठण्डा पानी ऑफर किया गया. पूरी सहानुभूति के साथ यह माना गया कि उसपर काम का बोझ ज्यादा है. उसकी सहमति से उसके एक दो काम कम कर दिये. राम प्रसाद प्रसन्न हो चला गया. बाद में राम प्रसाद पर जिन एडीशनल कार्यों को लादा गया – जिनका लादा जाना राम प्रसाद ने नोटिस ही नहीं लिया – वे काम राम प्रसाद प्रसन्न वदन करता था. साथ में यह भाव भी कि साहब नें उसे सुना, उसकी बात मानी. वह साहब के क्लोज है.
Thursday, May 24, 2007
बच्चे चाहियें? विषुवत रेखा के समीप जायें
आपका देश विषुवत रेखा से जितना दूर है – चाहे उत्तर में या दक्षिण में; आपके बच्चे उतने ही कम होंगे.
क्या कारण है? द इकॉनमिस्ट का पेज यहाँ से डाउनलोड करें। न भी करें तो चलेगा.
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और खबर के बाद मैं हिन्दी ब्लॉगरी की दुकान खोलता हूं. हिट-काउण्टर शास्त्र के अनुसार जब तक न्यूज कण्टेण्ट के साथ कल्पना न जुड़े, हिन्दी की ब्लॉग पोस्ट चल नहीं सकती. सुकुल जी के अखबार और समीर जी के घोड़ों की जेल से यह प्रमाणित हो गया है।
उनकी टक्कर की काल्पनिकता मुझ में नहीं है; पर क्या करें; पापी हिटास (हिट्स पाने की चाह) के लिये कुछ भी करना पड़ेगा...
यह खबर पता चलते ही जेट एयरवेज और किंगफिशर एयरलाइंस नें इक्वाडोर, कोलम्बिया, साओ टोम एण्ड प्रिंस (कहां है जी?), गैबन, कांगो, उगांडा, कीनिया, सोमालिया और किरीबाती के लिये पैकेज टूर तैयार कर लिये हैं. इन पैकेजों में निसंतान दम्पतियों के लिये ल्यूकरेटिव प्रोपोजल्स होंगे।
डी.एल.एफ. ने नोयडा/ गुड़गांव की बजाय इन देशों मे होटल बनाने के लिये शैरेटन के साथ डील कर जमीन एक्वायर करने की पहल कर दी है. इसके चलते डी.एल.एफ. ने भारत में आई.पी.ओ. से शेयर बेचने का मामला फिलहाल पेण्ड कर दिया है. अब शायद कम्पनी सीधे नैसडेक पर लिस्ट हो.
लालू प्रसाद जी ने आई.आई.एम. को एक प्रॉजेक्ट कर पता लगाने को कहा हैं कि पंजाब से तमिलनाडु जोड़ने वाली गाड़ियों में जाने वाले यात्रियों से आने वाले यात्री 0.45% ज्यादा क्यों हैं (हैं क्या?) – यह पता लगाया जाये. इसमें ऐसा तो नहीं है कि लोग उत्तर से दक्षिण सपत्नीक बच्चे की चाह में जाते हों और वहां से बच्चे के साथ लौटते हों. ऐसी दशा में बच्चो के साथ लौटने वालों को स्पेशल कंसेशन अगले रेल बजट मे एनाउंस किया जा सकता है. यह फर्टिलिटी-टूरिज्म को बढ़ाव देने की दिशा में एक कदम होगा. भारतीय रेल फॉरेन टूरिस्ट के लिये टूरिज्म कर्पोरेशन के साथ अगले साल नयी दिल्ली से साउथ के लिये फर्टिलिटी-ऑन-व्हील जैसी प्रीमियम ट्रेन भी प्लान कर सकती है.