हिंदी ब्लॉगरीमें मन लगाने के लिए पारिवारिक माहौल बहुत हैं। इसी के वशीभूत काकेश जी हिट काउण्टर की परवाह न कर जुड़े हैं. ऐसा कुछ तुलसी बाबा के साथ रहा होगा जब उन्होने मानस लिखना प्रारम्भ किया होगा.
लेकिन वही फ्रिक्वेंसी बैंड काफी नहीं हैं आप की सम्प्रेषण की जरूरतों के लिए।
मेरी पिछली पोस्ट पर लोगों को हिंदी ब्लॉगरी के पक्ष में लिखने का मौका मिला। वह हिंदी ब्लॉगरी का सशक्त पक्ष हैं। पर वैविध्य की कमी तो हैं ही।
एक तो हिंदू - मुसलमान+सेक्युलर/स्यूडो सेक्युलर का झगडा भारी हैं। इसी बेकार से मुद्दे पर बडी जूतमपैजार हो रही है. और कुछ ज्यादा ही खिंच गयी हैं। यह शायद भारतीय चरित्र का अंग हैं। यह अवगुण छोटा और नजर- अंदाज किये जाने योग्य हैं। जो असली कमी हैं, वह हैं विशेषज्ञों का आभाव।
मुझे ब्रेन इन्जरी पर वेब साईट बनने में सहायता के बहुत प्रस्ताव मिले। पर सभी लोग या तो इनफॉर्मेशन तकनीक से जुडे थे या फिर मेरे जैसे जनरल फील्ड के थे। अपने फील्ड के धाकड़ डाक्टर या वकील नहीं थे जिनकी सहायता वेब साईट के मैटर को परिपुष्ट कर सकती। अंग्रेजी में मैंने सर्च किया तो अनेक लोग मिले जो न केवल इन विषयों में माहिर थे वरन बडे पैशन से लिख रहे थे - पैसा कमाने को नहीं; अपने आनंद के लिए। अब यह कमी तो मानी ही जायेगी हिंदी ब्लॉगरी में। विषयों में माहिर लोगों को यह दिक्कत तो होगी कि उनका सारा ज्ञान/उस विषय में सोच अंग्रेजी में होती है और लिखना हिन्दी में है!
पत्रकार ढेरों हैं हिंदी ब्लॉगरी में। पर अधिकतर तो हिंदू - मुसलमान+सेक्युलर/स्यूडो सेक्युलर खेमों में समय नष्ट कर रहे हैं। ब्लॉगरी में न्यूज कंटेंट ढूंढने का यत्न ये लोग नहीं करते। मिसाल के लिए मैंने शिव मंदिर पर बसपा के झंडे का फोटो व लेख लिखा। मुझे लगता था की इसमें चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन हैं। यह लगा की ढेरों पत्रकार हैं ब्लागरी में - कोई तो यह मीडिया में ले जाएगा। पर कुछ नहीं हुआ। अपने पत्रकार भी तो सहिष्णु हैं। वह जब तक नरेंद्र मोदी या सुदर्शन पर कंटिया न फंसता हो - अपनी जगह से हिलते नहीं। केवल आत्म-मुग्ध ललित निबन्ध लिखते रहते हैं और इसी में प्रसन्न होते रहते हैं कि उनका सुलेख आम ब्लॉगर के लेख से ज्यादा चमकदार/वर्तनी की गलतियों से रहित/बढिया चित्रों से युक्त/अभिजात्य है!
ऐसे ही कुछ मुद्दे हैं जो खुजली करते हैं। बाकी तो मस्त हैं हिंदी ब्लॉगरी!
"अपने पत्रकार भी तो सहिष्णु हैं। वह जब तक नरेंद्र मोदी या सुदर्शन पर कंटिया न फंसता हो - अपनी जगह से हिलते नहीं। केवल आत्म-मुग्ध ललित निबन्ध लिखते रहते हैं और इसी में प्रसन्न होते रहते हैं कि उनका सुलेख आम ब्लॉगर के लेख से ज्यादा चमकदार/वर्तनी की गलतियों से रहित/बढिया चित्रों से युक्त/अभिजात्य है!"
ReplyDeleteइसे ही कहते है दद्दा खरी खरी!
ऊफ, आपने तो आज अपनी कोर्ट में मुकदमा चलाकर सारे पत्रकारिता से जुड़े ब्लागरों को दोषी ठहरा दिया. बस सजा सुनाना बाकी रह गया.
ReplyDeleteजरा उनसे जानिए जो घेरे के अंदर हैं.
दुनिया के करोड़ो-अरबों लोग मानते हैं कि अखबार या टीवी से जुड़े हर आदमी के पास शक्ति व अधिकार होते हैं. ऐसा कतई नहीं हे. अधिकांश लोग सिर्फ ऊपर से मिल रहे आदेशों को आगे बढ़ा रहे होते हैं. आदेश कहीं से चला होता है और उन तक पहुचते-पहुचते अवश्यंभावी की शक्ल अख्तियार कर लेता है.
मीडिया ब्लाग जगत की तरह निस्वार्थ नहीं है. वहां हर चीज का मोल तोल होता है. कुछ का विचार के स्तर पर तो कुछ का लाभ-हानि के स्तर पर.
हां यह बात जायज है कि ब्लॉग से मिले जनहित के मुद्दों को मीडिया में उठाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
विशेष जी आप आहत हुये, मुझे खेद है. मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी. मैं आप का कहा समझता हूं. आपने कहा - धन्यवाद.
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