Tuesday, May 1, 2007

क्रोध पर नियंत्रण कैसे करें?


मेरे घर और दफ्तर – दोनो जगहों पर विस्फोटक क्रोध की स्थितियां बनने में देर नहीं लगतीं। दुर्वासा से मेरा गोत्र प्रारम्भ तो नहीं हुआ, पर दुर्वासा की असीम कृपा अवश्य है मुझ पर. मैं सच कहता हूं, भगवान किसी पर भी दुर्वासीय कृपा कभी न करें.


क्रोध पर नियंत्रण व्यक्ति के विकास का महत्वपूर्ण चरण होना चाहिये. यह कहना सरल है; करना दुरुह. मैं क्रोध की समस्या से सतत जूझता रहता हूं. अभी कुछ दिन पहले क्रोध की एक विस्फोटक स्थिति ने मुझे दो दिन तक किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया था. तब मुझको स्वामी बुधानन्द के वेदांत केसरी में छ्पे लेख स्मरण हो आये जो कभी मैने पढ़े थे. जो लेखन ज्यादा अपील करता है, उसे मैं पावरप्वाइण्ट पर समेटने का यत्न करता हूं। इससे उसके मूल बिन्दु याद रखने में सहूलियत होती है. ये लेख भी मेरे पास उस रूप में थे.

मैने उनका पुनरावलोकन किया. उनका प्रारम्भ अत्यंत उच्च आदर्श से होता है – यह बताने के लिये कि क्रोधहीनता सम्भव है. पर बाद में जो टिप्स हैं वे हम जैसे मॉर्टल्स के लिये भी बड़े काम के हैं.

कुछ टिप्स आपके समक्ष रखता हूं:

राग और द्वेष क्रोध के मूल हैं.
जब तक हममें सत्व उन्मीलित (सब्लाइम) दशा में है, हम क्रोध पर विजय नहीं पा सकते.
  • अगर आप क्रोध पर विजय पाना चाहते हैं तो दूसरों में क्रोध न उपजायें. 
  • अगर कोई अपने पड़ोसी के घर में आग लगाता है तो वह अपने घर को जलने से नहीं बचा सकता.
  • जो लोग कट्टर विचार रखते हों, उनसे विवादास्पद विषयों पर चर्चा से बचें.
  • अपने में जीवंत हास्य को बनाये रखें और जीवन के विनोद पक्ष को हमेशा देखने का प्रयास करें.
  • याद रखें; जैसे आग के लिये पेट्रोल है, वैसे क्रोध के लिये क्रोध है. जैसे आग के लिये पानी है, वैसे क्रोध के लिये विनम्रता है.
  • बुद्ध कहते हैं: अगर तुम अपना दर्प अलग नहीं कर सकते तो तुम अपना क्रोध नहीं छोड़ सकते.
  • धैर्य से क्रोध को सहन करें. विनम्रता से क्रोध पर विजय प्राप्त करें.
  • क्रोध का सीमित और यदा-कदा प्रयोग का यत्न छोड़ दें.
  • जैसे कि सीमित कौमार्य का कोई अर्थ नहीं है, वैसे ही तर्कसंगत क्रोध का कोई अस्तित्व नहीं है.
  • क्रोध में कोई कदम उठाने में देरी करें. चेहरे पर क्रोध छलकाने से बचें. क्रोध छ्लक आया हो तो कटु शब्द बोलने से बचें. कटु बोल गये हों तो हाथ उठाने से बचें. पर अगर आप हाथ उठा चुके हों तो बिना समय गंवाये आंसू पोंछें और पूरी ईमानदारी और विनम्रता से क्षमा याचना करें.
  • क्रोध न रोक पाने के लिये अपने आप पर बहुत कड़ाई से पेश न आयें. अपने आप को पूरी निष्ठा और सौम्यता से संभालें.
  • अहंकार, अपने को सही मानने की वृत्ति, और स्वार्थ को निकाल बाहर फैंकें.
  • अपने में व अपने आसपास सतर्कता का भाव रखें. बुराई को अपने अन्दर से बाहर या बाहर से अन्दर न जाने दें.
उक्त विचार स्वामी बुधानन्द के धारावाहिक लेख से रेण्डम चयन किये गये हैं. सूत्रबद्ध पठन के लिये निम्न पीपीएस फाइल के आइकॉन पर क्लिक कर डाउनलोड करें, जिसे मैंने हिंदी में रूपांतरित कर दिया है। चूंकि उसमें बिन्दु दिए गए हैं, आपको धाराप्रवाह पढ़ने में दिक्कत हो सकती है.
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ऊपर जिस छोटी पुस्तक का चित्र है, वह स्वामी बुधानंद की अंग्रेजी में लिखी "How to Build Character" के हिंदी अनुवाद का है। यह अद्वैत आश्रम, कोलकाता ने छापी है। मूल्य रुपये ८ मात्र। क्रोध पर लेख इस पुस्तक में नहीं है। किसी को छोटी सी गिफ्ट देने के लिए यह बहुत अच्छी पुस्तक है।

22 comments:

  1. वाह! बहुत अच्छी बातें लिखी है।
    दरअसल क्रोध ही मूल समस्या है, व्यक्ति क्रोध मे सही निर्णय नही ले सकता। ऐसा नही है कि मेरे को क्रोध नही आता, इन्सान हूँ, गलतियों का पुतला हूँ। अलबता, क्रोध से बचने की कोशिश जरुर करता हूँ।

    ये पुस्तक डाउनलोड करके पढूंगा। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. बहुत बढ़िया जानकारी, बहुत धन्यवाद प्रेषित करने के लिये.

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  3. वाह हिन्दी में यह फाइल उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद!

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  4. "जो लोग कट्टर विचार रखते हों, उनसे विवादास्पद विषयों पर चर्चा से बचें"
    ध्यान रखूंगा

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  5. क्रोध में कोई कदम उठाने में देरी करें. चेहरे पर क्रोध छलकाने से बचें. क्रोध छ्लक आया हो तो कटु शब्द बोलने से बचें. कटु बोल गये हों तो हाथ उठाने से बचें. पर अगर आप हाथ उठा चुके हों तो बिना समय गंवाये आंसू पोंछें और पूरी ईमानदारी और विनम्रता से क्षमा याचना करें
    यह व्यवहार मात्र पढने या सुनने से नहीं क्रियान्वित हो सकता, यह एक कठिन तप के फलस्वरूप प्राप्त वरदान है, मेरी कामना है कि इस संसार का प्रत्येक प्राणी इस वरदान को सिद्ध करेI

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  6. आपकी बात अच्‍छी लगी उससे भी ज्‍यादा अच्‍छी किताब।
    वैसे अब मैने गुस्‍सा होना तो छोड़ दिया है पर यह नही कहूँगा कि किताब मेरे लिये उपयोगी नही है। जल्‍द पढ़ने की कोशिस करूँगा।

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  7. वाह-२ ज्ञानदत्त जी, बहुत-२ धन्यवाद। मेरे जैसों के लिए बहुत उपयोगी जिनको क्रोध बहुत आता है। :(

    वैसे आपने ब्लॉग के साइडबार में फ्रेड फ्लिंटस्टोन बहुत सही लगाया है। :)

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  8. बहुत उपयोगी लेख है .पर मेरे लिए कितना उपयोगी होगा यह देखना है . क्रोध है कि अंगीठी पर चढ़े दूध के उफ़ान की तरह आता है, 'मोमेन्ट्री मैडनेस' -- तात्कालिक पागलपन -- की तरह और चला जाता है.पर तब तक बहुत नुकसान हो चुका होता है .

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  9. क्रोध नियंत्रण पर विस्तृत जानकारी देने के लिए शुक्रिया ।

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  10. जानकारी के किए धन्यवाद । किन्तु मुझे लगता है कि कभी भी क्रोध न करना भी शायद सही नहीं होगा । मेरे विचार से अधिक सही होगा कि गुस्से की अभिव्यक्ति कैसे की जाए यह सीखा जाए । किसी भी भावना को जब लम्बे समय तक दबाया जाता है तो जब वह जब बाहर निकलती है तो ज्वालामुखी बन कर निकती है । यदि भाप को बीच बीच में निकाला न जाए तो अधिक दबाव से कुकर फट सकता है, वैसी ही स्थिति मनुष्य की भी हो सकती है ।
    घुघूती बासूती

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  11. किसी भी भावना को जब लम्बे समय तक दबाया जाता है तो जब वह जब बाहर निकलती है तो ज्वालामुखी बन कर निकती है ।

    घुघूती बासूती जी, स्वामी बुधानन्द दमन की बात नहीं कह रहे. वे सत्व के विकास, अभ्यास, संयम, धैर्य, विनम्रता आदि अनेक सद्गुणों की बात कर रहे हैं.

    दमन निश्चय ही गलत है. वह नहीं होना चाहिये. हम इतने शक्तिशाली होते कि ज्वालामुखी पर पत्थर रख बैठ सकते तो बात ही क्या थी!

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  12. बहुत अच्‍छे अच्‍छे एपाय िहैं क्रोध के नियंत्रण के लिए ... अच्‍छा आलेख।

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  13. क्या केने क्या केने।

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  14. अरे ये पोस्ट हमसे पहले कैसे मिस हो गयी:) बहुत ही उपयोगी टिप्स हैं

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  15. ये प्रेसेंटेशन तो संग्रहणीय है. धन्यवाद !

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  16. किसी भी भावना को जब लम्बे समय तक दबाया जाता है तो जब वह जब बाहर निकलती है तो ज्वालामुखी बन कर निकती है ।

    घुघूती बासूती जी, स्वामी बुधानन्द दमन की बात नहीं कह रहे. वे सत्व के विकास, अभ्यास, संयम, धैर्य, विनम्रता आदि अनेक सद्गुणों की बात कर रहे हैं.

    दमन निश्चय ही गलत है. वह नहीं होना चाहिये. हम इतने शक्तिशाली होते कि ज्वालामुखी पर पत्थर रख बैठ सकते तो बात ही क्या थी!

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  17. आपकी बात अच्‍छी लगी उससे भी ज्‍यादा अच्‍छी किताब।
    वैसे अब मैने गुस्‍सा होना तो छोड़ दिया है पर यह नही कहूँगा कि किताब मेरे लिये उपयोगी नही है। जल्‍द पढ़ने की कोशिस करूँगा।

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  18. क्रोध में कोई कदम उठाने में देरी करें. चेहरे पर क्रोध छलकाने से बचें. क्रोध छ्लक आया हो तो कटु शब्द बोलने से बचें. कटु बोल गये हों तो हाथ उठाने से बचें. पर अगर आप हाथ उठा चुके हों तो बिना समय गंवाये आंसू पोंछें और पूरी ईमानदारी और विनम्रता से क्षमा याचना करें
    यह व्यवहार मात्र पढने या सुनने से नहीं क्रियान्वित हो सकता, यह एक कठिन तप के फलस्वरूप प्राप्त वरदान है, मेरी कामना है कि इस संसार का प्रत्येक प्राणी इस वरदान को सिद्ध करेI

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  19. वाह! बहुत अच्छी बातें लिखी है।
    दरअसल क्रोध ही मूल समस्या है, व्यक्ति क्रोध मे सही निर्णय नही ले सकता। ऐसा नही है कि मेरे को क्रोध नही आता, इन्सान हूँ, गलतियों का पुतला हूँ। अलबता, क्रोध से बचने की कोशिश जरुर करता हूँ।

    ये पुस्तक डाउनलोड करके पढूंगा। बहुत बहुत धन्यवाद।

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  20. Bahut Acchhi bat likhi hai...agar sambhav ho to mujhe swami budhnand books ka address send kare...taki jarurat hone par mai bhi wo books manag saku..dhanyawad

    Manoj Gupta, Email address: guptamanojmkg.gupta08@gmail.com (Mob. 09826619944)

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  21. aap mujhe pustke prapt karne ka address send kare...dhanyawad

    mera email address: guptamanojmkg.gupta08@gmail.com (mera mob. 09826619944)

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    Replies
    1. यह पुस्तक रामकृष्ण मिशन, अद्वैत आश्रम की पब्लिश की गयी है। पतली सी पुस्तिका है। आठ दस रुपये की।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय