Sunday, May 27, 2007

मैं सारथी हूं











तुम्हें याद न होगा पार्थ
कि तुम पार्थ हो
मैं जन्म-जन्मांतरों में
तुम्हारे रथ की डोर
अपने हाथ में रख
दिलाता रहा हूं तुम्हें विजय
तुम्हारे विषाद-योग ग्रस्त होने पर
ललकारता रहा हूं
कहता रहा हूं तुम्हें दुर्बल-नपुंसक
बनाता रहा हूं तुम्हें निमित्त
देता रहा हूं आश्वासन
तुम्हें समीप होने का
तुम्हें प्रिय होने का
तुम्हें अंतत: विजयी होने का
अनेक प्रकार से
अनेक रूपों में
अनेक युगों में
तुम्हारी उंगली पकड़े रखी है
लाता रहा हूं मैं तुम्हारा रथ
अच्छाई और बुराई की सेनाओं के बीच
भीष्म के शंखनाद का उत्तर देने को
उत्प्रेरित करता रहा हूं मैं
बार-बार बनाता रहा हूं तुम्हें स्थितप्रज्ञ
और यह होता रहेगा
आने वाले जन्म-जन्मांतरों में भी
तुम्हें याद न होगा पार्थ
हां, यह कि तुम पार्थ हो
हां, यह भी, कि मैं सारथी हूं.

8 comments:

  1. याद आ गया, आप ही सार्थी हैं... :)

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  2. जो, जो तुमने कहा है,किया होगा। लेकिन अब तुम्हें ऑन पेपेर प्रूव करना होगा,
    वोटर आई कार्ड,
    राशन कार्ड,
    ड्राइविंग लाइसेंस,
    पे-स्लिप,
    बैंक पास बुक,
    पैन कार्ड,
    लोन बुक,
    पुलिस थाने में दर्ज रिकार्ड,
    इन्श्योरेन्स पॉलिसी,
    शेयर मार्केट में पंजीकरण कार्ड,
    हवाला,
    घोटाला,
    स्कैण्डल,
    सैण्डल,
    कहीं तुम्हारा नाम है,
    नहीं है ना,
    फिर.....?
    500 का नोट है...?
    क्या कहा: किताबें हैं। नही चलेगीं, 500 का नोट है तो निकालो नही तो दफा हो जाओ।

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  3. इस पार्थ का भी मार्ग दर्शन करे ,समीर भाइ भले पहले आये हो

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  4. मुझे पार्थ कहा है ओ मैं आपको सारथी मान ही लेता हूँ। :)

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  5. मैने यह पंक्तियां लगभग अभिमंत्रित दशा में लिखी थीं. मैं कवि नहीं हूं. इन पंक्तियों को लिखने में मुझे अधिक समय भी नहीं लगा. मुझे मात्र लगा कि कृष्ण मुझसे बोल रहे हों - और वह बोलना बहता गया लेखन में.

    कहने वाले कृष्ण हैं और सुनने वाला मैं (पार्थ भी हूं या नहीं पता नहीं) - वह भी विचित्र दशा में. इसलिये उक्त टिप्पणियां उस भाव में नहीं हैं. शायद कृष्ण की यह पंक्तियां ब्लॉग पर नहीं आनी चाहियें थीं. आउट ऑफ सिंक हैं मेरे सामान्य लेखन से. मैं टिप्पणियों को गलत नहीं कह रहा. पर भविष्य के पढ़ने वालों से सन्दर्भ स्पष्ट कर रहा हूं - कि सारथी कौन है. और पार्थ तो वह है जो कृष्ण को समझ ले!

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  6. सरल एवं मर्मस्पर्शी व्याख्यान, काव्य रूप में!

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  7. एक अलग पर अच्छी रचना !
    घुघूती बासूती

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  8. एक अलग पर अच्छी रचना !
    घुघूती बासूती

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय