यही तकनीक बेहतर प्रबन्धन के जाल के साथ, आदमी के साथ भी प्रयोग में लायी जाती है.
राम प्रसाद फनफनाता हुआ इस प्रकार मेरे पास आया जैसे राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ हो – विशुद्ध क्रंतिकारी अन्दाज में. बोला - साहब यह नहीं चल सकता. आदमी हैं और आप जानवर की तरह काम लादे जा रहे हैं. बाकी लोग मजे कर रहे है और आप हमें ही रगेदे जा रहे हैं.
राम प्रसाद को एक गिलास ठण्डा पानी ऑफर किया गया. पूरी सहानुभूति के साथ यह माना गया कि उसपर काम का बोझ ज्यादा है. उसकी सहमति से उसके एक दो काम कम कर दिये. राम प्रसाद प्रसन्न हो चला गया. बाद में राम प्रसाद पर जिन एडीशनल कार्यों को लादा गया – जिनका लादा जाना राम प्रसाद ने नोटिस ही नहीं लिया – वे काम राम प्रसाद प्रसन्न वदन करता था. साथ में यह भाव भी कि साहब नें उसे सुना, उसकी बात मानी. वह साहब के क्लोज है.
आप तो अनंत ज्ञानी हैं, और हम नतमस्तक.
ReplyDelete:)
अच्छे ज्ञान की प्राप्ति हुई जी....
ReplyDeleteचिदम्बरम साहब भी हमें ऊंट ही समझकर टैक्स का बोझा लादे जा रहे हैं.
ReplyDeleteकहीं आपने ही तो चिदम्बरम साहब को लादना नहीं सिखाया?
धन्य हो दद्दा आप तो!
ReplyDeleteमानव श्रम का कैसे भावनात्मक दोहन किया जाए इसका बढ़िया तरीका है यह!
काफ़ी करीबी अध्ययन किया है........ इतना परिश्रम.......... धन्य हैं..... एक गरीब जीव को ज़बान दे दी.
ReplyDeleteक्या बात है, नहीं पता था आप प्रबन्धन गुरू भी है. धन्य है आपका ज्ञान. प्रणाम स्वीकारें.
ReplyDeleteसत्य वचन! आप हमारे सीखे ज्ञान को शब्द दे दिये!
ReplyDeleteआपका अध्यन बहुत गहरा है। एक नयी सीख आज आपके लेख से मिल गई।बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteयह सीख हमने भी ले ली है।
ReplyDeleteधन्य हैं आप आप निरंतर ज्ञान की बीड़ी (बकौल यूनुस जी)पिला रहे हैं। बहुत काम की टिप दी।
ReplyDeleteवाह ज्ञान जी क्या तुलना की है मजदूर और ऊंट की, मान गये
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