Wednesday, May 23, 2007

बॉस, जरा ऑथर और पब्लिशर का नाम बताना?

नौटियाल जी (विश्व के सारे नौटियाल क्षमा करें; यह छ्द्म नाम से वास्तविक चरित्र पर पोस्ट है और वास्तविक सज्जन नौटियाल नही हैं) पिछली रात ऑफीसर्स क्लब में दारू के काउण्टर पर ही जमे थे. वैसे वे सामान्यत: क्लब में वहीं पाये जाते थे. अगले दिन मण्डल रेल प्रबन्धक ने उन्हे काम में अपडेट न रहने पर भरी सभा में खूब धोया. बेचारे को थोड़ा हैंगओवर बचा था. सूरत दयनीय सी थी.

नौटियाल जी अगर आपके साथ यात्रा पर हों तो उनका भोजन/चाय आपके जिम्मे होता था. और तो और सैलून में उनकी अटैची भी नहीं होती थी. पैण्ट की पीछे की जेब में अपना टूथ ब्रश ले कर चलते थे. पैंट-कमीज और अधोवस्त्र जो पहने होते थे वही वे शाश्वत पहने रह सकते थे. टूथ-पेस्ट और साबुन देना आपके जिम्मे होता था. दाढ़ी उनकी ज्यादा बढ़ती नहीं थी।

प्रोमोशनल अनुरोध : कृपया शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग भी देखने का कष्ट करें। हम इसे रोचक जुगल बंदी बनाने का यत्न करेंगे।

ब्रेन इतना शार्प था कि थोड़ा कुछ मालुम हो तो विशुद्ध गोली और मासूमियत से अपना काम चला लेते थे. पर उसदिन हैन्गओवर के चलते डीरेल हो गये.

मैं उन्हे अपने कमरे में ले आया. चाय का आदेश दिया. चूंकि वे उस समय अर्जुन-विषाद योग से ग्रस्त लग रहे थे, मैने भग्वद्गीता पर प्रवचन प्रारम्भ कर दिया. स्थितप्रज्ञ दर्शन पर मैं धाराप्रवाह अंग्रेजी में बोलने लगा. नौटियाल जी उपयुक्त प्रकार से सिर हिला रहे थे. मैं और जोश में बोलने लगा. मेरा प्रवचन 15-20 मिनट चला होगा. इस बीच मैने और इम्प्रेस करने को अपने ब्रीफ केस से गीताप्रेस वाली भग्वद्गीता की प्रति निकाल कर 3-4 श्लोक भी कोट कर दिये.

एक सफल वक्ता की तरह मैने सोचा कि आज मैने एक विषाद युक्त जीव का भला किया है. नौटियाल जी जाने लगे तो बोले बॉस, ये किताब बड़ी अच्छी मालुम पड़ती है. जरा इसका ऑथर और पब्लिशर बताना. मेरे डैड किताबें पढ़ते हैं. उन्हे बताऊंगा.

मेरे समाज-सुधारक/वक्ता/मोटीवेशनल लीडरपने की अचानक कैसे फूंक निकल गयी; मुझे आभास तक नहीं हुआ. मुझमें इतनी ताकत नहीं बची थी कि कहता – “वैशम्पायन व्यास ने लिखी है. कृष्ण नाम के व्यक्ति के सरमंस हैं इसमें. और पब्लिशर्स तो हजारों हैं.”

मेरा मुंह अवाक खुला का खुला था. नौटियाल जी मेरे कमरे से जा चुके थे.

16 comments:

  1. मेरा मुंह अवाक खुला का खुला था. नौटियाल जी मेरे कमरे से जा चुके थे.

    ---अब बंद कर लो, वो जा चुके हैं. :)

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  2. हाहाहा ! ऐसा भी हो सकता है ?
    घुघूती बासूती

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  3. बॉस, ये किताब बड़ी अच्छी मालुम पड़ती है. जरा इसका ऑथर और पब्लिशर मुझे भी बताना.

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  4. गीता..ये कौन सी वाली है...जरा हमें भी बताईयो... आप क्यों नौटियाल जी के पीछे पड़ गये जी ..ये तो हमें भी नहीं मालूम था...

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  5. हा हा हा!
    बढ़िया किस्सा बताए दद्दा, पन इत्ती देर मा तो खुले मुंह में मक्खी एक चक्कर लगा के बाहर भी आ गई होगी ना!

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  6. बहुत बढ़िया । पढ़कर मजा आ गया। आज के ज़माने मे ऐसे लोग मिलना मुश्किल नही है।

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  7. ह्म्म! ये लेख नौटियाल जी को फारवर्ड किया जा रहा है, और हाँ इस बार वो बिना टूथब्रश के आएंगे, आप इनको खरीदकर दें ना दें, वो आपका इस्तेमाल कर लेंगे, बाकी आप जानो।

    नोट: मुँह अब बन्द कर लीजिए, हमने चिमटी हटा ली है।

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  8. मुझे हिंदी के दो मुहावरे याद आए :

    १. अंधे के आगे रोए अपने दीदे खोए
    २. भैंस के आगे बीन बजाना

    और एक दोहा :

    करि फ़ुलेल के आचमन मीठो कहत सराहि।
    रे गंधी मति अंध तू इतर दिखावत काहि ॥

    श्रद्धेय नौटियाल साहब का कोई दोष नहीं है . पूरा दोष पांडेय जी का .

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  9. हमे भी ऑथर और पब्लिशर नाम बताना.किताब अच्छी होगी।

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  10. उस विषादयुक्त जीव ने आपके भी ज्ञान चक्षु खोल दिए।

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  11. कभी कभी ऐसे वाक्‍ये काफी अच्‍छे ढ़ग से आते है गुदगुदा कर चले जाते है। यह तो यह बात हुई कि बनने चले थे पडि़त कोई करके चला गया खडि़त :)

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  12. "और पब्लिशर्स तो हजारों हैं."
    बॉस किताब तो काम की मालूम होती है, एकाध पब्लिशर का नाम हमें भी बताना। :)

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  13. ज्ञान गुरू आप उनसे पूछियेगा कि आपके फेवरेट ऑथर और पब्लिशर कौन हैं । वैसे आपको एक बात बताऊं, एक बार एक अहिंदी भाषी महोदय रेडियो स्‍टेशन के चीफ बन कर आये, मीटिंग में कार्यक्रमों का रोज़नामचा पढ़ा जा रहा था, जिक्र आया सुमित्रा नंदन पंत के काव्‍य पाठ का । चीफ इस नाम से वाकिफ नहीं थे, तुरंत पूछ बैठे—हू इज दिस पंत ।
    हू इज दिस ------------
    इस रिक्‍त स्‍थान पर आप किसी भी नामचीन साहित्‍यकार का नाम भर लीजिये, ऐसे लोग हर जगह मिल जायेंगे आपको
    जो पूछेंगे हू इज दिस एस के पंत
    या हू इस दिस एस टी निराला

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  14. ये वैशम्पायन व्यास लगते तो कोई इण्डीयन ओथर ही है. अंग्रेजी में लिखते है? नाम सुना तो नहीं. क्या अरूंधति से बड़े लेखक है?
    कृपया ज्ञानवर्धन करें. जनरल नॉलेज पूवर है अपना.

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  15. ज्ञान गुरू आप उनसे पूछियेगा कि आपके फेवरेट ऑथर और पब्लिशर कौन हैं । वैसे आपको एक बात बताऊं, एक बार एक अहिंदी भाषी महोदय रेडियो स्‍टेशन के चीफ बन कर आये, मीटिंग में कार्यक्रमों का रोज़नामचा पढ़ा जा रहा था, जिक्र आया सुमित्रा नंदन पंत के काव्‍य पाठ का । चीफ इस नाम से वाकिफ नहीं थे, तुरंत पूछ बैठे—हू इज दिस पंत ।
    हू इज दिस ------------
    इस रिक्‍त स्‍थान पर आप किसी भी नामचीन साहित्‍यकार का नाम भर लीजिये, ऐसे लोग हर जगह मिल जायेंगे आपको
    जो पूछेंगे हू इज दिस एस के पंत
    या हू इस दिस एस टी निराला

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  16. कभी कभी ऐसे वाक्‍ये काफी अच्‍छे ढ़ग से आते है गुदगुदा कर चले जाते है। यह तो यह बात हुई कि बनने चले थे पडि़त कोई करके चला गया खडि़त :)

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय