यह अवश्य है कि मेरे मन में अगर इरोटिका का भाव होता (जो नहीं है) और मैं चित्रकार होता (जो बिल्कुल नहीं है), तब अगर मैं खजुराहो या अन्य मन्दिरों की तर्ज पर कोई चित्र बनाता तो उस पर बवाल नहीं होता. अगर मेरी श्रद्धा प्रतिष्ठित है, तो मुझे विश्वास है कि हिन्दू धर्म में “काम” के लिये स्पेस है. हिन्दू धर्म में इरोटिका को नैसर्गिक भावना के रूप में लिया जाता है. भगवान कृष्ण के जीवन में ही इसके अनेक उदाहरण हैं. उनकी रास लीलाओं और राधा के प्रति अद्भुत प्रेम के बावजूद ( या उसके समग्र) वे हमारे आराध्य पूर्ण-पुरुषोत्तम हैं.
फिर हुसैन क्यों फंसे हैं?
रसखान अगर कवि के साथ-साथ चित्रकार होते और उन्होंने अगर कुछ न्यूड चित्र बनाये होते तो हम उसे सहिष्णुता से लेते. शायद एक कदम आगे बढ़कर उन्हें हिन्दुत्व में शरीक भी कर लेते. हुसैन फंसे इसलिये हैं कि उनमें हिन्दू धर्म के प्रति आदर भाव नहीं है. वे मात्र विवादित चित्र बना कर अपनी दुकान चलाना चाहते हैं. यह घोर कर्म है और अत्यंत निन्दनीय है.
हुसैन चित्र बना कर वह काम कर रहे हैं जो बर्बर आक्रंताओं नें हिन्दू मूर्तियों का भंजन कर किया था. वे हिन्दू आस्था पर चोट कर रहे हैं. ऐसा ही काम तालिबानियों ने बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं के भंजन से किया था.
विचारों का रखना, लेखन, चित्र बनाना, मूर्तियां बनाना या तोड़ना – यह सब भावों की अभिव्यक्ति के माध्यम हैं. महत्वपूर्ण है भाव. हुसैन के क्या भाव हैं हिन्दू श्रद्धा पर? अगर वे ऐसे चित्र बनाते हैं तो इस प्रश्न का उत्तर जानने का अधिकार समाज को बनता है. और यह उत्तर उनके पूरे व्यवहार से परिलक्षित होगा, केवल बयान भर से नहीं.
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जो कानूनी प्रक्रिया चल रही है, उससे हुसैन कतराये क्यों फिर रहे हैं? उन्हें कोर्ट ने सम्मन भेजे हैं जिनकी उन्होने सतत अवज्ञा की. तभी कुर्की प्रकरण हुआ. उन्हें अदालत में उपस्थित होना चाहिये. फिर वे वहां जो कहें, उसे सुना जाये.
सौ प्रतिशत सही फरमाया आपने.
ReplyDeleteसौ प्रतिशत सही फरमाया आपने.
ReplyDeleteज्ञानदत्त पाण्डेय जी,कह तो आप ठीक रहे है लेकिन यहाँ तो अपने लोग भी इस से बाज नही आ रहे उनका क्या करे। जैसा- वसुंधरा को देवी के रूप मे और भाजपा के कर्ण धारों को ब्रह्मा ,विष्णु, महेश के रूप मे दर्शाना।
ReplyDeleteपरमजीत भाई, यह काम बहुत ही फूहड़ था. फिर किसी ने उसे उच्चकक्षा की कला भी नहीं कहा. हुसैन के मामले में इसे न घुसेड़े.
ReplyDeleteहुसैन जैसा व्यक्ति इस तरह के घटिया काम करके अपनी दुकान चलाना चाहता है। यदि उसके मन में ईमानदारी होती तो पहली बार ऐसा करने पर लोगों की प्रतिक्रिया देखकर पुनः ऐसा न करता।
ReplyDeleteआपने एकदम सही फरमाया:
"हुसैन चित्र बना कर वह काम कर रहे हैं जो बर्बर आक्रंताओं नें हिन्दू मूर्तियों का भंजन कर किया था. वे हिन्दू आस्था पर चोट कर रहे हैं. ऐसा ही काम तालिबानियों ने बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं के भंजन से किया था."
कुछ समय पहले मुहम्मद साहब का कार्टून छपने पर सबने इतना बवाल मचाया (नेताओं ने भी) जबकि इस घटना का भारत से कोई-लेना देना न था। देवताओं के नग्न चित्र बनाना तो उससे कई गुना निंदनीय काम है लेकिन किसी नेता, राजनीतिक पार्टी और समाज के कथित पैरोकारों ने इसका विरोध नहीं किया।
भाई साहब आप से गुजारिश है कि आप अपना लेख जरा रवी रतलामी जी औए उनके दोस्तो को भी पढवाये वैसे मुझे यकीन है कि "वो न समझे है न समझेगे या रब"अब तू ही आकर समझापाये तो अलग बात होगी
ReplyDeleteअच्छा लिखा है।
ReplyDeleteतब तो हर दूसरा आदमी फतवे जारी कर रहा था| अब क्या उनकी नानी मर गयी| और ये नेता अब क्यू इनकी बोलती बन्द है|
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