ब्लॉगरी में अच्छी हिन्दी आये इसको लेकर मंथन चल रहा हे. अज़दक जी लिख चुके हैं उसपर दो पोस्ट. उसपर अनामदास जी टिप्पणी कर चुके हैं. इधर देखा तो नीलिमा जी भी लिख चुकी हैं. शास्त्री जे सी फिलिप जी सारथी निकालते हैं. उनका सारथी ब्लॉग नहीं, ब्लॉग का इन्द्रधनुष है. वे भी हिन्दी की गलतियों से आहत हैं. और लोग भी होंगे जो लिख रहे होंगे.
अच्छी हिन्दी के बारे में दो-तीन आयाम हैं. एक है - उसमें वर्तनी की गलतियां न हों, ग्रामर सही हो और वाक्य अर्थ रखते हों. दूसरा है – वह अश्लील न हो; और अश्लील ही नहीं वरन ‘काशी का अस्सी’ या ‘रागदरबारी’ छाप तरंग वाली हिन्दी के #@ं%ं&$/*&ं वाले शब्द युक्त न हो. तीसरा है - वह स्टेण्डर्ड की हो; पढ़ने में (फूल की नही) एयर फ्रेशनर की ताजगी का अहसास मिले.
अपना सोचना है कि इस पचड़े में ही न पड़ा जाये कि हिन्दी अच्छी हो या बुरी. उसमें निराला/पंत/अज्ञेय हों या भारतेन्दु/प्रेमचन्द/दिनकर या फिर मस्तराम या सेक्स-क्या - यह विचार मंथन व्यर्थ है. जो पठनीय होगा, सो दीर्घ काल तक चलेगा. शेष कुछ समय तक इतरायेगा और अंतत: रिसाइकल बिन में घुस जायेगा.
अच्छी और बुरी हिन्दी के चक्कर में उस ब्लॉगर के उत्साह को क्यों मारा जाये जो मेहनत कर चमकौआ ब्लॉग बनाता है. चार लाइन लिख कर मंत्र-मुग्ध निहारता है. अपनी मित्रमण्डली से चर्चा करता है. पत्नी/प्रेमिका/मंगेतर को बार बार खोल कर दिखाता है. 10-20 लोगों को ई-मेल करता है कि वे ब्लॉग देखें. बन्धु, वह उत्साह बड़ा सनसनी पैदा करने वाला होता है. कम्प्यूटर टेक्नॉलॉजी इतने सारे लोगों में इतना क्रियेटिव उत्साह जगाये – यह अच्छी/बुरी हिन्दी के फेर में भरभण्ड नहीं होना चाहिये.
बन्धु, वह सुनेगा तो केवल अपनी हिटास (ब्लॉग पर मिलने वाली हिट्स की अदम्य इच्छा) की डिमाण्ड को. भविष्य में अगर वह पायेगा कि तकनीक के प्रयोग, प्रोमोशन के हथकण्डे और सेनशेसनल विषय के बावजूद लोग उसे नहीं पढ़ रहे हैं तो वह अपने आप सही हिन्दी के लेखन की तरफ मुड़ेगा. नहीं करेगा तो अपनी दुकान बन्द कर देगा.
लोग अच्छी हिन्दी की सलाह जारी रखें. वह भी यज्ञ में आहुति है. पर बहुत आशा न रखें. अंतत: लोगों द्वारा पढ़े जाने की चाह ही अच्छी हिन्दी का
खरी बात की आपकी.
ReplyDelete" बन्धु, वह सुनेगा तो केवल अपनी हिटास (ब्लॉग पर मिलने वाली हिट्स की अदम्य इच्छा) की डिमाण्ड को. भविष्य में अगर वह पायेगा कि तकनीक के प्रयोग, प्रोमोशन के हथकण्डे और सेनशेसनल विषय के बावजूद लोग उसे नहीं पढ़ रहे हैं तो वह अपने आप सही हिन्दी के लेखन की तरफ मुड़ेगा. नहीं करेगा तो अपनी दुकान बन्द कर देगा."
ReplyDeleteभईया हम तो अपनी दुकान बन्द नहीं करने वाले..हिट्स की अदम्य इच्छा (हिटास) और टिपियासा से ग्रस्त होकर भी मस्त और लिखने में व्यस्त रहने वाले हम आप से हिन्दी लिखना भले ही सीख जायेंगे पर दुकान तो अनंत काल तक चलती रहेगी...:-)
"शृजन" या "सृजन" ...ये अच्छी हिन्दी है जी...
ReplyDeleteबंधु काकेश अब हिट की हीट के लिये तो हमे चिन्ता नही,हा हिन्दी सुधारने की कोशिश मे है,क्या है कुछ लिखे पढे जमाना बीत गया था अब दुबारा से ककहरा शुरु किया है वक्त तो लगेगा पर उम्मीद है की थोडी बहुत सुधर जायेगी,अब बूढा तोता ज्यादा तो नही सीख सकता ना
ReplyDelete" बूढा तोता ज्यादा तो नही सीख सकता ना "
ReplyDeleteपर युवा कौवा तो सीख ही सकता है ना....
काकेश उवाच: भईया हम तो अपनी दुकान बन्द नहीं करने वाले.
ReplyDeleteमैने कब कहा कि आप बन्द करें. आपकी दुकान तरक्की करे. नुक्कड़ के स्टोर से बढ़कर वाल-मार्ट बने, यही कामना है. शृजन की गलती सुधार रहा हूं.
सूरदास, तुलसीदास... आदि जिन हिन्दी के महाकाव्यकारों की रचनाएँ हिन्दी एम.ए. तक के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती है, क्या उनमें एक भी वाक्य व्याकरण अनुकूल या वर्तनी अनुसार शुद्ध है? किन्तु भाव, अर्थ, प्रभाव... अत्यन्त सारगर्भित हैं। अतः सभी रचनाकारों को सिर्फ प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अभी तक हिन्दी का एक भी सही स्पेलचेकर प्रोग्राम तक विकसित नहीं हो पाया है। फिर शुद्धता की आशा क्यों? हिन्दी की यूनिकोड कूट भी अभी तक शुद्ध नहीं हैं, त्रुटिपूर्ण हैं, देवनागरी अक्षरों का क्रम-निर्धारण अभी तक भ्रष्ट है, डैटाबेस अभी तक सहीरीति सम्भव नहीं हो पाते हैं। फिर ऐसी आशा क्यों?
ReplyDeleteउदाहरण के लिए रेल की बात ले लें। (क्योंकि आप रेलवे से हैं) रेलवे आरक्षण हेतु पर्चियाँ भले ही द्विभाषी/त्रिभाषी मुद्रित करके उपलब्ध कराई गई हैं, भले ही यात्री आरक्षण हेतु पर्ची हिन्दी या बंगला, या ओड़िआ या.. अन्य किसी भी भारतीय भाषा में भर कर दे, आरक्षण-क्लर्क कम्प्यूटर में प्रविष्टि तो सिर्फ अंग्रेजी में ही करता है (या कर सकता है, क्योंकि डैटाबेस सर्वर में हिन्दी/इण्डिक इनपुट की ही कोई व्यवस्था नहीं होती), न ही स्टेशनों के नाम कोड हिन्दी में हो पाए हैं (शायद हो भी नहीं सकते)। हाँ आरक्षण चार्ट में नाम जरूर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में मुद्रित कर उपलब्ध कराए जाते हैं। किन्तु वह भी अंग्रेजी से Ntrans नामक सॉफ्टवेयर द्वारा लिप्यन्तरित करवाकर मुद्रित किए जाते हैं। हिन्दी में प्रदर्शित अधिकांश नामों की वर्तनी में कितनी गलतियाँ रह जाती हैं??? अभी तक लाखों नामों के द्विभाषी डैटाबेस विकसित हो चुके हैं, फिर भी गलत नाम क्यों??
हिन्दी की इन तकनीकी समस्याओं का समाधान किए बिना शुद्ध हिन्दी की बात करने को क्या कहेंगे? पहले हिन्दी तो ठीक कर लें? जरा यहाँ भी देखें ...
अंतत: लोगों द्वारा पढ़े जाने की चाह ही अच्छी हिन्दी का सृजन करायेगी।सत्य वचन!
ReplyDeleteअरे, हमें लगा कि हम सुबह ही टिप्पणी कर गये हैं, वो तो अच्छा हुआ फिर चेक कर लिया. सही है, अच्छी हिन्दी को तो आना ही है!!
ReplyDeleteविद्वान कुछ भी क्यों न कह्ते रहें . शुद्ध-अशुद्ध की चिंता किए बिना चिठेरे यूं ही आभासी 'कागद कारे'
ReplyDeleteकरते रहेंगे .
हिटास (हिट्स की अदम्य इच्छा) इतना बड़ा प्रेरक और अनुप्रेरक है की इसकी तुलना सिर्फ़ कामेच्छा से ही की जा सकती है .
इसलिए निश्चिंत रहें विद्वानों की सलाह को दरकिनार करते हुए चिठेरे यूं ही शुद्धतावादियों की छाती छरते रहेंगे .
हिटास और इसके जैसे बहुत से नए शब्द हैं जिनसे हिंदी के शब्द भण्डार को समृद्ध करने के लिए तमाम हिंदीप्रेमी आपके ऋणी रहेंगे .