Friday, February 4, 2011

अमवसा स्नान, कोहरा और पारुल जायसवाल

DSC03119अमवसा[1] का स्नान था दो फरवरी को। माघ-मेला क्षेत्र (संगम, प्रयाग) में तो शाही स्नान का दिन था। बहुत भीड़ रही होगी। मैं तो गंगाजी देखने अपने घर के पास शिवकुटी घाट पर ही गया। सवेरे छ बज गये थे जब घर से निकला; पर नदी किनारे कोहरा बहुत था। रेत में चलते हुये कभी कभी तो लग रहा था कि अगर आंख पर पट्टी बांध कर कोई एक चकरघिन्नी घुमा दे तो आंख खोलने पर नदी किस दिशा में है और मन्दिर/सीढ़ियां किस तरफ, यह अन्दाज ही न लगे। नया आदमी तो रास्ता ही भुला जाये!

वैसे रास्ते की अच्छी रही – पचपन साल की सीनियॉरिटी हो गयी, पर अभी तक मालुम नहीं कि जाना कहां है और रास्ता कहां है। यह जानने-भुलाने की बात तो छलावा है। किसी एमेच्योर दार्शनिक का शब्दों से खेलना भर!

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[1] अमवसा का स्नान - माघ महीने में संगम पर कल्पवास करते श्रद्धालु आमावस्या के सवेरे मुख्य स्नान करते हैं। स्थानीय भाषा में इसे अमवसा का स्नान कहा जाता है। संगम पर अमवसा का मेला लगता है। बहुत भीड़ जुटती है!

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अमवसा स्नान, कोहरा और पारुल जायसवाल


Wednesday, February 2, 2011

सरपत की ओर


सिरसा के उत्तर में गंगा में मजे से पानी है। इलाहाबाद में यमुना मिलती हैं गंगा में। उसके बाद पनासा/सिरसा के पास टौंस। टौंस का पाट बहुत चौड़ा नहीं है, पर उसमें पानी उतना है जितना संगम में मिलने से पहले गंगा में है। अत: जब सिरसा के पहले टौंस का पानी गंगा में मिलता है तो लगता है कि मरीज गंगा में पर्याप्त बल्ड ट्रांसफ्यूजन कर दिया गया हो। गंगा माई जीवंत हो उठती हैं।

पॉण्टून का पुल है गंगाजी पर सिरसा से सैदाबाद की तरफ गंगापार जाने के लिये। चौपहिया गाड़ी के लिये पच्चीस रुपये लगते हैं। रसीद भी काटता है मांगने पर। न मांगो तो पैसा उसकी जेब में चला जाता है। एक दो लाल तिकोनी धर्म ध्वजाये हैं। आसपास के किसी मन्दिर से कुछ श्लोक सुनाई पड़ रहे थे। गंगाजी की भव्यता और श्लोक - सब मिलकर भक्ति भाव जगा रहे थे मन में।

तारकेश्वर बब्बा ने बता दिया था कि गाड़ी धीरे धीरे चले और लोहे के पटिय़ों से नीचे न खिसके। वर्ना रेत में फंस जाने पर चक्का वहीं घुर्र-घुर्र करने लगेगा और गाड़ी रेत से निकालना मुश्किल होगा। ड्राइवर साहब को यह हिदायत सहेज दी गयी थी। धीरे चलने का एक और नफा था कि गंगाजी की छटा आखों को पीने का पर्याप्त समय मिल रहा था।

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सरपत की ओर