हिन्दू मन्दिरों में बहुत पिचिर पिचिर होती है। ढ़ेर सारे फूल-मालायें सड़ती हैं। उसपर जल, अक्षत, रोली, सिन्दूर, काजल, कड़ुआ तेल और जानबूझ कर बनाये गये संकरे रास्ते - जिससे पण्डा-पुजारी अपनी वैल्यू बना-बेंच सकें। कमोबेश सब मन्दिरों में है यह। अमूमन जितना बड़ा मन्दिर उतना ज्यादा गन्द!
इलाहाबाद में सिविल लाइंस/बस अड्डे के पास हनुमत निकेतन का मन्दिर इस मामले में बहुत साफ सुथरा है। इसको बनाने में पण्डित रामलोचन ब्रह्मचारी जी ने कुछ वैसा ही किया था, जैसे महामना मदन मोहन मालवीय जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बनाने के लिये किया था। अपनी साइकल पर गली कस्बे छाने थे उन्होने। लोगों ने कहा कि वे बड़ा दान दे कर बनवा देते हैं मन्दिर। पर रामलोचन जी को वह गवारा नहीं था। लोगों से एक दो रुपये चंदे के इकठ्ठे किये। इलाहाबाद के सन सत्तर के आसपास के लोगों को याद होगा अपना चन्दा देना।