मैं पिछले महीने में प्रधान जी से कई बार बात करने का यत्न कर चुका। हर बार पता चलता है कि पोखरा (तालाब) खुदा रहे हैं। लगता है नरेगा की स्कीम उनका बहुत समय ले ले रही है। सरकार बहुत खर्च कर रही है। पैसा कहीं से आ रहा होगा।
|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Friday, April 30, 2010
Wednesday, April 28, 2010
महानता के मानक - मैं और आप
पिछली तीन पोस्टों में सबकी टिप्पणियों पर सज्ञान प्रतिटिप्पणियाँ देकर आज जब विचारों को विश्राम दिया और दर्पण में अपना व्यक्तित्व निहारा तो कुछ धुँधले काले धब्बे, जो पहले नहीं दिखते थे, दिखायी पड़ने लगे।
कुछ दिन हुये एक चर्चित अंग्रेजी फिल्म देखी थी, "मैट्रिक्स"।

Monday, April 26, 2010
महानता से छूटा तो गंगा को भागा
महानता से पगहा तुड़ा गंगा तट पर भागा। देखा कि तट के पास वाली मुख्य धारा में पानी और कम हो गया है। अब तो एक कुक्कुर भी आधा तैरता और आधा पैदल चलता पार कर टापू पर पंहुच गया। पानी कम होने के साथ किनारे छोडती गंगा माई की गंदगी और झलकने लगी।
Saturday, April 24, 2010
महानता के मानक-3 / क्यों गिरते हैं महान

Thursday, April 22, 2010
महानता के मानक-2
ये 6 विशेषतायें न केवल आपको आकर्षित करती हैं वरन देश, समाज, सभ्यतायें और आधुनिक कम्पनियाँ भी इनके घेरे में हैं। यही घेरा मेरी चिन्तन प्रक्रिया को एक सप्ताह से लपेटे हुये हैं।सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग।

Tuesday, April 20, 2010
महानता के मानक
सादर, प्रवीण|
तीन प्रश्न हैं। कौन महान हैं, क्यों महान हैं और कैसे महान बने? पूर्ण उत्तर तो मुझे भी नहीं मिले हैं पर विचारों की गुत्थियाँ आप के सम्मुख सरका रहा हूँ।

Sunday, April 18, 2010
दहेज
वक्र टिप्पणियों का बहुधा मैं बुरा नहीं मानता। शायद मैं भी करता रहता हूं। पर विवेक सिंह की यह पिछली पोस्ट पर वक्र टिप्पणी चुभ गई:
"मेरी पत्नीजी के खेत का गेंहूं है।"
क्या ! आप अभी तक दहेज लिए जा रहे है ?

नवान्न
वैशाखी बीत गई। नवान्न का इन्तजार है। नया गेहूं। बताते हैं अरहर अच्छी नहीं हुई। एक बेरियां की छीमी पुष्ट नहीं हुई कि फिर फूल आ गये। यूपोरियन अरहर तो चौपट, पता नहीं विदर्भ का क्या हाल है?

Friday, April 16, 2010
बदलाव
ब्लॉगिंग सामाजिकता संवर्धन का औजार है। दूसरों के साथ जुड़ने का अन्तिम लक्ष्य मूल्यों पर आर्धारित नेतृत्व विकास है।
क्या होता है यह? संजीत त्रिपाठी मुझसे बारबार पूछते रहे हैं कि ब्लॉगिंग ने मुझमें क्या बदलाव किये। और मैं यह सोच पाया हूं कि एक बेहद अंतर्मुखी नौकरशाह से कुछ ओपनिंग अप हुई है।
हम एक दो-आयामी स्थिति की कल्पना करें। उसमें y-axis आत्मविकास की है और x-axis सामाजिकता की है। आत्मविकास और सामाजिकता के विभिन्न संयोगों से हम व्यक्तियों को मोटे तौर चार प्रकार के समूहों में बांट सकते हैं। यह चित्र में स्पष्ट होगा -

Wednesday, April 14, 2010
लैपटॉप का लीप-फार्वर्ड
कहीं बहुत पहले सुना था,
बाप मरा अँधियारे में, बेटा पॉवर हाउस ।
आज जब हमारे लैपटॉप महोदय कायाकल्प करा के लौटे और हमारी लैप पर आकर विराजित हुये तो यही उद्गार मुँह से निकल पड़े। अब इनकी वाइटल स्टेटिस्टिक्स इस प्रकार हैं।

Tuesday, April 13, 2010
नाऊ - II
भैरो प्रसाद का सैलून कार्ड-बोर्ड फेक्टरी (अब बन्द) की दीवार के सहारे फुटपाठ पर है। शाम के समय मैने देखा तो वह फुटपाथ पर झाड़ू से कटे बाल बटोर रहे थे। एक कुर्सी, शीशा, बाल बनाने के औजार, एक बेंच और एक स्टूल है उनकी दुकान में। छत के नाम पर बल्लियों के सहारे तानी गई एक चादर।
बताया कि एक हेयर कटिंग का १० रुपया [१] लेते हैं। मैने पूछा कि कितनी आमदनी हो जाती है, तो हां हूं में कुछ नॉन कमिटल कहा भैरो प्रसाद ने। पर बॉडी लेंग्वेज कह रही थी कि असंतुष्ट या निराश नहीं हैं वे।
Sunday, April 11, 2010
नाऊ
पिलानी में जब मैं पढ़ता था को कनॉट (शिवगंगा शॉपिंग सेण्टर को हम कनॉट कहते थे) में एक सैलून था। वहां बाल काटने वाला एक अधेड़ व्यक्ति था – रुकमानन्द। उसकी दुकान की दीवार पर शीशे में मढ़ा एक कागज था -
रुकमानन्द एक कुशल नाऊ है। मैं जब भी पिलानी आता हूं, यही मेरे बाल बनाता है।
- राजेन्द्र प्रसाद
Saturday, April 10, 2010
कॉज बेस्ड ब्लॉगिंग (Cause Based Blogging)
हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात हो रही है। यह एक नोबल कॉज (noble cause) है। लोग टपकाये जा रहे हैं पोस्ट। वे सोचते हैं कि अगर वे न टपकायें पोस्ट तो दंगा हो जाये। देश भरभरा कर गिर जाये। लोग बाग भी पूरे/ठोस/मौन/मुखर समर्थन में टिपेरे जा रहे हैं – गंगा-जमुनी संस्कृति (क्या है?) लहलहायमान है। इसी में शिवकुमार मिश्र भी फसल काट ले रहे हैं।
उधर सुरेश चिपलूणकर की उदग्र हिन्दुत्व वादी पोस्टों पर भी लोग समर्थन में बिछ रहे हैं। केसरिया रंग चटक है। शुद्ध हरे रंग वाली पोस्टें पढ़ी नहीं; सो उनके बारे में कॉण्ट से!
Wednesday, April 7, 2010
भीष्म उठ निर्णय सुनाओ
भीष्म का अभिशाप यह था कि उन्होने जिस कलह से कुल को बचाने के लिये अपने सुखों की बलि देते हुये भीष्म प्रतिज्ञा ली, उसी कुल के संहार महाभारत के प्रथम सेनानायक बने। जिस कुल की कलह कम करने के लिये अपना मुँह नहीं खोले, उसी कुल का पूर्ण विनाश युद्धक्षेत्र में लेटे हुये देखे। इस विषय पर अध्याय लिखे जा सकते हैं कि भीष्म का कितना दोष था। मन पर मानता नहीं है कि कोई बुजुर्ग जो श्रेष्ठ था, वह उस समय भी मौन क्यों साधे रहा जब सबके नेत्र उनकी ओर टिके थे। भविष्य के किस कोने से यह घटना बिना उत्तर दिये निकल जाने दी जायेगी?

Sunday, April 4, 2010
परस्पर संवादात्मक ब्लॉगिंग – असफल प्रयोग!
मेरे बारे में अनूप शुक्ल का पुराना कथन है कि मैं मात्र विषय प्रवर्तन करता हूं, लोग टिप्पणी से उसकी कीमत बढ़ाते हैं। यह कीमत बढ़ाना का खेला मैने बज़ पर देखा। एक सज्जन ने कहा कि यह सामुहिक चैटिंग सा लग रहा है। परस्पर संवाद। पोस्ट नेपथ्य में चली जाती है, लोगों का योगदान विषय उभारता है। ब्लॉग पर यह उभारने वाला टूल चाहिये।
परस्पर संवादात्मक ब्लॉगिंग
मेरे बारे में अनूप शुक्ल का पुराना कथन है कि मैं मात्र विषय प्रवर्तन करता हूं, लोग टिप्पणी से उसकी कीमत बढ़ाते हैं। यह कीमत बढ़ाना का खेला मैने बज़ पर देखा। एक सज्जन ने कहा कि यह सामुहिक चैटिंग सा लग रहा है। परस्पर संवाद। पोस्ट नेपथ्य में चली जाती है, लोगों का योगदान विषय उभारता है। ब्लॉग पर यह उभारने वाला टूल चाहिये।
Saturday, April 3, 2010
अभिव्यक्ति का स्फोट
सांझ घिर आई है। पीपल पर तरह तरह की चिड़ियां अपनी अपनी आवाज में बोल रही हैं। जहां बैठती हैं तो कुछ समय बाद वह जगह पसन्द न आने पर फुदक कर इधर उधर बैठती हैं। कुछ एक पेड़ से उड़ कर दूसरे पर बैठने चली जाती हैं।
क्या बोल रहीं हैं वे?! जो न समझ पाये वह (मेरे जैसा) तो इसे अभिव्यक्ति का (वि)स्फोट ही कहेगा। बहुत कुछ इण्टरनेट जैसा। ब्लॉग – फीड रीडर – फेसबुक – ट्विटर – बज़ – साधू – महन्त – ठेलक – हेन – तेन! रात होने पर पक्षी शान्त हो जाते हैं। पर यहां तो चलती रहती है अभिव्यक्ति।
Friday, April 2, 2010
हें हें हें, यह हिन्दी सेवा में है!
गूगल बज़ पर ब्लॉग पोस्टें बड़ी सरलता से जा रही हैं। लोग वहीं धो-पोंछ ले रहे हैं। पर जो गूगल बज़ से प्रारम्भ होता है, वह ब्लॉग में आने का रीवर्स माइग्रेशन अगर चल निकले तो मजा आये।
मैने एक हिन्दी सेवात्मक बज़ लिखा था। जो पर्याप्त बज़ा। उसपर प्राइमरी के मास्टर जी ने पुन: बज़ाया। वह सब नीचे पुन: गेर रहा हूं ताकि सनद रहे ब्लॉग पर।
इसमें चर्चा में आया है कि अनूप सुकुल और संजीत त्रिपाठी के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन का मामला भी बनता है। अब उन्हे भुगतना है, वे भुगतें! हम तो ठेल कर चले। बहुत काम बचा पड़ा है! :-)
हां, इस पोस्ट पर टिप्पणी बन्द नहीं है।