मैं पर्यटन पर नैनीताल नहीं आया। अगर आया होता तो यहां की भीड़ और शानेपंजाब/शेरेपंजाब होटल की रोशनी, झील में तैरती बतख नुमा नावें, कचरा और कुछ न कुछ खरीदने/खाने की संस्कृति को देख पर्यटन का मायने खो बैठता।
|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Sunday, October 31, 2010
पर्यटन क्या है?
Saturday, October 30, 2010
रामपुर
आज सवेरे आठ बजे रामपुर था, मेरी काठगोदाम तक की यात्रा में। चटकदार सफेद यूनीफार्म में एक दुबले सज्जन ने अभिवादन किया। श्री एस के पाण्डे। स्टेशन मैनेजर। बताया कि वे जौनपुर के हैं पर अवधी का पुट नहीं था भाषा में। बहुत समय से हैं वे रामपुर में।
रामपुर मुस्लिम रियासत थी। शहर की ढाई लाख की आबादी में साठ चालीस का अनुपात है मुस्लिम हिंदू का। मोहम्मद आजम खान हिंयां राजनीति करते हैं। राजनीति या नौटंकनीति? एक बार तो वे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पसर गये थे – इस बात पर कि उनके बाप दादा के जमाने का फर्श तोड़ कर टाइल्स क्यों लगवाई जा रही हैं।
Sunday, October 24, 2010
लल्लू
हमें बताया कि लोहे का गेट बनता है आलू कोल्ड स्टोरेज के पास। वहां घूम आये। मिट्टी का चाक चलाते कुम्हार थे वहां, पर गेट बनाने वाले नहीं। घर आ कर घर का रिनोवेशन करने वाले मिस्तरी-इन-चार्ज भगत जी को कहा तो बोले – ऊंही त बा, पतन्जली के लग्गे (वहीं तो है, पतंजलि स्कूल के पास में)!
यानी भगत जी ने हमें गलत पता दिया था। पतंजलि स्कूल कोल्ड स्टोरेज के विपरीत दिशा में है।
Friday, October 22, 2010
भाग ६ - कैलीफिर्निया में श्री विश्वनाथ
यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की अमरीकी/कैलीफोर्निया प्रवास पर छठी अतिथि पोस्ट है।
इस बार बातें कम करेंगे और केवल चित्रों के माध्यम से आप से संप्रेषण करेंगे।
शॉपिंग:
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एक जमाना था, जब हम विदेश से चीजें खरीदकर लाने में गर्व महसूस करते थे। अब भूल जाइए इस बात को। कुछ चीज़ों को छोडकर, हम भारतीयों के लिए वहाँ से कुछ खरीदना मूर्खता ही लगता है।
सब कुछ यहाँ भारत में उपलब्ध है और बहुत ही कम दामों में।
कई सारी चीज़ें तो भारत, चीन, बंगला देश से वहाँ भेजी जाती हैं जहाँ तीन या चार गुना दामों पर बिकती हैं।
Sunday, October 17, 2010
अपने आप से झूठ
पता नहीं यह यहां स्वीकार या अस्वीकार करने से फर्क पड़ता है मैं झूठ भी बोलता हूं। झूठ बोलना मानव स्वभाव का बहुत स्वाभाविक अंग है। यह इससे भी सही लगता है कि सदाचार की पुस्तकों और पत्रिकाओं में बहुत कुछ बल इस बात पर होता है कि सच बोला जाये। पर मूल बात यह है कि आदमी अपने आप से कितना झूठ बोलता है।
Wednesday, October 13, 2010
बेंगाला का नहीं, कैलीफोर्निया का फैण्टम
हमने पढ़ा है कि फैण्टम नामक मशहूर कामिक्स का चरित्र बेंगाला नामक अफ्रीकी देश (नक्शे पर नहीं मिलेगा, यह मिथकीय देश है) का है। पर हमारे गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी को एक अन्य फैण्टम के दर्शन उनके कैलीफोर्निया प्रवास में हुये। मैने उनसे नहीं पूछा कि उन्हे डायना पॉमर भी दिखी या नहीं। आप पूछने के लिये स्वतंत्र हैं!
आप उनकी इस अतिथि पोस्ट में उनके संस्मरणों की पांचवीं किश्त पढ़ें:
अब कुछ निजी अनुभवों के बारे में जानकारी दे दूँ।
सोचा इस बार कम लिखूँगा और चित्रों को बोलने दूँगा।
Monday, October 11, 2010
दो चौकियां
अस्थि-पंजर ढ़ीले हैं उन चौकियों के। बीच बीच के लकड़ी के पट्टे गायब हैं। उन्हे छोटे लकड़ी के टुकड़ों से जहां तहां पैबन्दित कर दिया गया है। समय की मार और उम्र की झुर्रियां केवल मानव शरीर पर नहीं होतीं। गंगा किनारे पड़ी चौकी पर भी पड़ती हैं।
Sunday, October 10, 2010
व्यक्तित्वनिष्ठ आचारसंहिता छद्म है
आपको भाषाई छद्म देखने हैं तो सब से आसान जगह है - आप ब्लॉगर्स के प्रोफाइल देखें। एक से बढ़ कर एक गोलमोल लेखन। उनकी बजाय अज़दक को समझना आसान है।
हम बेनामी हों या न हों, जो हम दिखना चाहते हैं और जो हैं, दो अलग अलग चीजें हैं। इनका अंतर जितना कम होता जायेगा। जितनी ट्रांसपेरेंसी बढ़ती जायेगी, उतनी कम होगी जरूरत आचार संहिता की। इस की प्रक्रिया में हम जो हैं की ओर नहीं जायेंगे। सामान्यत, सयास, हम जो हैं, उसे जो दिखना चाहते हैं के समीप ले जायेंगे।
Sunday, October 3, 2010
भाग ४ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ
कारों की विविधता, गति, शक्ति और अन्दर की जगह और सुविधाएं देखकर मैं तो दंग रह गया।
शायद ही कोई है जिसके पास अपनी खुद की कार न हो।
औसत मध्यवर्गीय परिवार के तो एक नहीं बल्कि दो कारें थी। एक मियाँ के लिए, एक बीवी के लिए।
यह श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ की उनकी कैलीफोर्निया यात्रा के दौरान हुये ऑब्जर्वेशन्स पर आर्धारित चौथी अतिथि पोस्ट है।
गैराज तो इतने बडे कि कम से काम दो कारें अगल बगल इसमें आसानी से खड़ी की जा सकती हैं।
गैराज के अन्दर जगह इतनी कि भारत में तो इतनी जगह में एक पूरा घर बन सकता था।