हमने पढ़ा है कि फैण्टम नामक मशहूर कामिक्स का चरित्र बेंगाला नामक अफ्रीकी देश (नक्शे पर नहीं मिलेगा, यह मिथकीय देश है) का है। पर हमारे गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी को एक अन्य फैण्टम के दर्शन उनके कैलीफोर्निया प्रवास में हुये। मैने उनसे नहीं पूछा कि उन्हे डायना पॉमर भी दिखी या नहीं। आप पूछने के लिये स्वतंत्र हैं!
आप उनकी इस अतिथि पोस्ट में उनके संस्मरणों की पांचवीं किश्त पढ़ें:
अब कुछ निजी अनुभवों के बारे में जानकारी दे दूँ।
सोचा इस बार कम लिखूँगा और चित्रों को बोलने दूँगा।
केप्शन : यह है पडोस की एक बहुत ही सुन्दर बिल्ली जिससे मैंने बार बार दोस्ती करने की कोशिश की पर इस घमण्डी बिल्ली ने हर बार मेरा दोस्ती का हाथ ठुकरा दिया। कोई बात नहीं। कम से कम एक दिन तसवीर लेने की अनुमति दे दी उसने।
केप्शन: अगर पहली बार सफलता न मिले तो क्या, फिर यत्न करें! (If at first you don't succeed, try again.)
कुछ दिन बाद मैंने दूसरी बिल्ली से संपर्क करने की कोशिश की। इस बार सफ़ल हुआ।
यह काली बिल्ली (जिसका नाम था फेण्टम - Phantom) रोज एक ही समय हमारे घर के पीछे के बगीचे में आती थी और मुझसे दोस्ती करने के लिए राजी हुई।
केप्शन: हम इससे खेलने लगे थे। एक पुराना टेनिस का गेंद मिल गया जो बहुत काम आया।
केप्शन: एक दिन बिन बुलाए, वह घर के अन्दर घुस गई। पत्नी को बिल्ली से कोई लगाव नहीं है। उसने बिल्ली को रोकने की कोशिश की। पर बिल्ली (बिल्ले) ने कह दिया, मैं आपसे मिलने नहीं आया। हम तो विश्वनाथजी के मेहमान हैं। :-)
केप्शन : बस पूरे आत्मविश्वास के साथ हमारे ड्राइंग रूम के सोफ़े की नीचे लेट गई।
पत्नी ने मुझे आवाज देकर आदेश दिया, तुम्हारे इस दोस्त को बाहर ले जाओ।
केप्शन : हम कहाँ मानते पत्नी की बात? बस उठा लिया उसे और गोदी में रखकर पुचकारने लगे।
नाम था उसका वेताल (फेण्टम – Phantom)। कैसे पता चला? उसके गले में पट्टी बाँधी हुई थी और उसमें उसका नाम, मालिक का पता और फ़ोन नम्बर भी लिखा था। बडे गर्व के साथ इस चित्र को बेटी को दिखाना चाहा। उसने चेतावनी दी:
खबरदार जो उसे कुछ खिलाया। यदि बिल्ली किसी कारण बीमार हो जाती है या उसे चोट आती है तो पडोसी हम पर मुकदमा दायर कर देंगे! यह भारत नहीं है, अमरीका है!
क्या हुआ यदि अमरीकी लोग मुझसे दोस्ती करने में हिचकते थे? कम से कम वहाँ की बिल्लियाँ ऐसी नहीं हैं। ऐसा क्यों कह रहा हूँ? मेरे कुछ कटु अनुभवों के बारे में भी आपको बता दूँ।
पिछले दस साल से मेरा नाम, करीब ४ हज़ार अमरीकी लोगों को पता है। यह इसलिए के मैं कुछ professional yahoo groups का बहुत ही सक्रिय सदस्य रहा हूँ। और यह सभी लोग मेरे नाम, निवास-स्थान, आयु, पेशा और विचारों से परिचित हैं। इन में से करीब १०० से भी ज्यादा लोग मेरे अच्छे मित्र भी कहे जा सकते हैं क्योंकि हमारे बीच काफ़ी प्राइवेट पत्र व्यवहार हुआ है।
यह लोग भारत के बारे में, हमारी संस्कृति, इतिहास, भारत - पाकिस्तान के बीच हो रही घटनाओं के बारे में जानकारी के लिए मुझे ईमेल करते थे और उत्तर देते देते मैंने इन लोगों से अच्छी दोस्ती कर ली थी। वे लोग भी हमसे अमरीका में हो रही घटनाओं के बारे में हमारी निष्पक्ष राय जानना चाहते थे। यह लोग मेरी अंग्रेजी से काफ़ी प्रभावित होते थे। इनमें से तीन ऐसे भी हैं जो किसी कारण भारत आए थे और बेंगळूरु में कोई काम न होते हुए भी केवल मुझसे मिलने के लिए एक दिन बेंगळूरु आए थे। मैंने उनको बाराती जैसा ट्रीटमेन्ट दिया था जिसकी उन्हें अपेक्षा नहीं थी।
कैलिफ़ोर्निया पहुँचने से पहले हमने इन इंटरनेट के दोस्तों से कहा था कि हम पहली बार अमेरिका आ रहे हैं। सोचा था इनसे अवसर मिलने पर मुलाकात होगी या कम से कम टेलिफ़ोन पर बात होगी और हमने इनसे पता और टेलिफ़ोन नम्बर माँगा ।
पर मुझे निराश होना पडा। सौ से भी ज्यादा लोगों में से केवल १० लोगों ने अपना टेलिफ़ोन नम्बर और पता बताया। इन सब से मेरी टेलिफ़ोन पर बात हुई । केवल एक मित्र घर से निकल कर, १०० से ज्यादा मील गाडी चलाकर मुझसे मिलने आया था। दो घंटे तक हम बात करते रहे। यह मित्र है केविन (Kevin), जिसके साथ मैंने यह चित्र खिंचवाया।
एक खास मित्र के बारे में आपको बताना चाहता हूँ। यह एक महिला थी जो करीब मेरी ही उम्र की थी। इनके साथ मेरा पत्र व्यवहार सबसे ज्यादा था। सोचा था, चाहे अन्य लोगों से न सही, पर इस महिला से अवश्य मिलूँगा। पर जब पता माँगा तो पता नहीं क्यों इस महिला ने मुझसे बचने की कोशिश की! बहाने भी अजीब निकले। कहने लगी की मेरा उसके यहाँ आना ठीक नहीं होगा। उसका घर इस योग्य नहीं है, और उसकी हाउसकीपिंग (housekeeping) इतनी घटिया है कि उसे किसी को घर बुलाते शर्म आती है। उसने यह भी कहा के उसके दो कुत्ते भी हैं जो मेहमानों को काटते हैँ।
समझने वालों को बस इशारा काफ़ी है। हम वहाँ नहीं गए। टेलोफ़ोन पर बात करके सन्तुष्ट हो गए।
भारत में भी मेरे ब्लॉग जगत के कई सारे इंटर्नेट मित्र हैं।
अवश्य, अवसर मिलने पर किसी दिन इन मित्रों से साक्षात भेंट करना चाहता हूँ और कुछ लोगों से भेंट हो चुकी है। सपने में भी सोच नहीं सकता के मेरे भारतीय मित्र मुझसे ऐसा व्यवहार करेंगे जो अमरीकी दोस्तों ने किया।
आज इतना ही। सोचा था यह अन्तिम किस्त होगी। विष्णु बैरागी जी और स्मार्ट इन्डियनजी तो मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं। यदि कुछ और दोस्त भी चाहते हैं तो इसे कुछ दिन और जारी रखूँगा। अपने अनुभवों को आप लोगों पर थोंपना नहीं चाहता। ज्ञानजी की कृपा है हम पर। पाँच किस्तें बर्दाश्त की है। फ़िलहाल मेरा अपना ब्लॉग आरंभ करने का कोई इरादा नहीं है। आखिर कब तक उनकी उदारता का फ़ायदा उठाता रहूँ?
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
और मैने विश्वनाथ जी से कहा है कि यह ब्लॉग उनका अपना ही मानें। हां, पोस्ट का दिन शेड्यूल करने के मामले में आजकल मैं कुछ आलस्य दिखाता हूं। आशा है वे अन्यथा न लेते होंगे। बाकी, वे जितना मन आये लिखें। जब लिखने-पढ़ने वाले राजी हैं, तो हम कौन होते हैं फच्चर फंसाने वाले! :)
हाँ, बतौर ब्लॉगर यह जरूर चाहूंगा कि विश्वनाथ जी अपना एक ब्लॉग बनायें!
विश्वनाथजी,
ReplyDeleteआपके नजरिये से आपके अनुभवों को सुनना बहुत रोचक लग रहा है। जब ज्ञानजी राजी हैं तो आप अपने इस सफ़र को जारी रखिये, पाठकों को भी अच्छा लगेगा।
आपके अनुभव सुनकर बढ़िया लग रहा है .....जब तक मन करे लिखिए ....हम पढने का पूरा मन बनाए हुए हैं !
ReplyDeleteबतौर ब्लॉगर हमारी भी वही राय है कि आप अपना निजी ब्लॉग बनाएं |
.................. ........बकिया तो जब ज्ञान जी राजी तो का करेगा काजी?
किसी दिन इन मित्रों से साक्षात भेंट करना चाहता हूँ और कुछ लोगों से भेंट हो चुकी है। सपने में भी सोच नहीं सकता के मेरे भारतीय मित्र मुझसे ऐसा व्यवहार करेंगे जो अमरीकी दोस्तों ने किया।
..निश्चिन्त रहें आप !!! स्वागतम स्वागतम !!
अनुभव रोचक हैं. वैसे बहाने सच्चे(विरोधाभास?) भी हो सकते हैं. पिछले वर्षों की आर्थिक उठापटक ने काफ़ी जीवन पूरी तरह बदल डाले हैं. वैसे भी मैत्री की परिकल्पना देश-काल के अनुसार काफी अलग होती है।
ReplyDeleteदो-एक सम्भावनाएं:
बेघर का वोट नहीं
एक शाम बेटी के नाम
@ स्मार्ट इण्डियन - आपकी दोनो पोस्ट्स देखीं, निश्चय ही, मन्दी एक सम्भावना लगती है। गहन सम्भावना।
ReplyDeleteयद्यपि मैं सरकारी क्षेत्र में हूं, और भारत में हूं, पर मन्दी के चलते मैं भी एकबारगी खोल में दुबक गया था!
please keep on writting ur guest blog ...I am keeping my tune on for your all forthcoming posts !!!
ReplyDeleteअनुभवों को सुनना बहुत रोचक लग रहा है।
ReplyDeleteपॉंचवीं किश्त पाकर (पहले देखकर और बाद में पढ कर) अच्छा लगा। तसल्ली हुई। अपनी पोस्ट में आपने मेरा नामोल्लेख किया इसलिए आप दुनिया में सबसे अच्छे आदमी हैं। इसी तरह 'अच्छे आदमी' बने रहिएगा।
ReplyDeleteआपके संस्मरणों में भाषा का आतंक बिलकुल नहीं है - जैसा देखा, जैसा लगा, वैसा लिख दिया। भाषा के नाम पर अपनी ओर से कोई घालमेल नहीं कर रहे हैं आप। इसीलिए, आपके अध्ययन (आब्जरवेशन) और आपके अनुभव ही आपकी पोस्टों के नायक हैं, आप नहीं। यही इन संस्मरणों की विशेषता है और आकर्षण भी। कृपया अपने संस्मरण, जितने अधिक आपके लिए सम्भव हों, निरन्तर प्रदान करते रहिएगा।
मैं आपका पाठक हूँ, मित्र नहीं। किन्तु बैरी भी नहीं। भारत में अबैरी-अमित्रों से मिलने का मन हो तो रतलाम (मध्य प्रदेश, पश्चिम रेल्वे) आने के बारे में विचार कीजिएगा। मेरी हाउसकीपिंग भी बहुत अच्छी नहीं है, सो एडजस्टमेण्ट आपको ही करने पडेंगे।
रतलाम का रेल-रास्ता, ज्ञानजी आपको बता देंगे। वे यहॉं अफसरी कर चुके हैं।
आदरणीय विश्वनाथ जी के साथ 2 घंटे बैठने का सौभाग्य है और पता ही नहीं चला कि समय कब फुर्र से उड़ गया, एक ठण्डी हवा के झोंके जैसा।
ReplyDeleteयह अमेरिकियों का दुर्भाग्य है(केविन जी को छोड़कर) जो विश्वनाथ जी के सत्संग का लाभ न उठा सके। फैन्टम देखिये कितनी प्रसन्न है।
तक़रीबन पन्द्रह बरस पहले एक बिल्ले के साथ मेरा हुआ अनुभव मेरे लिए बड़ा भयावह साबित हुआ, बिल्ले के कारण नहीं, मेरे अपने भीतर भय के चलते (अभय को बहुत भय हैं); बिल्ला तो मुझसे दोस्ती करना चाह रहा था, मैं ही नहीं समझ सका।
ReplyDeleteइस साल मेरे भाई ने एक अनाथ बिल्ली को गोद ले लिया, और जब उनके घर पर मैंने कुछ दिन गुज़ारे तो उस बिल्ली के साथ बड़ा प्रेम और दोस्ताना हो गया। अभी भी उसकी याद आती है।
विश्वनाथ जी के बिल्ली को गोद लिए हुए तस्वीर बहुत प्यारी है।
विश्वनाथ जी, रोचक प्रस्तुति है, जारी रखिए।
ReplyDeleteकुत्ते की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी रहती है, बिल्ली चाहे तो सीधी कर लेती है, लेकिन बिल्ली पूंछ ऐंठती है और कुत्ता पूंछ हिलाता है.
ReplyDeleteविष्णु बैरागीजी,
ReplyDeleteमैने केवल आपका नाम लिया तो मैं दुनिया में सबसे अच्छा आदमी बन गया?
हम से अच्छे आदमी तो आप हैं भाई।
आप ने ही मुझे सबसे पहले प्रोत्साहित क्या।
यह सुनकर खुशी हुई के मेरी भाषा में "आतंक" नही है।
अजी, मैं इस लायक ही कहाँ कि किसी पढने वाले को अपनी भाषा से आतंकित कर सकूं।
मेरा हिन्दी का ज्ञान तो बहुत ही सीमित है।
सीधी सादी बोलचाल की भाषा ही जानता हूँ और उसी में लिखता हूँ, क्योंकी औपचारिक रूप से मैंने हिन्दी में न BA और न MA किया है। बस केवल स्कूल में थोडी सी हिन्दी सीखी थी क्योंकी इस अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में हिन्दी एक अनिवार्य विषय था।
उलटा, कुछ पहुंचे हुए ब्लॉग्गर मित्रों के पोस्ट पढकर मैं खुद आतंकित होता हूँ।
हाल ही में ज्ञानजी की दी हुई कडी मिलने पर एक ब्लॉग्गर महोदय के यहाँ गया था।
पढते पढते पसीना छूटने लगा। भाषा और विचार इतने ऊंचे और अमूर्त कि एक वाक्य भी समझ नहीं सका।
हिन्दी का ज्ञानी होने का भ्रम से मुक्त हो गया।
continuued ...
इस ब्लोग ने मेरी अहं को इतनी चोट पहुँचायी कि अब एक कोने में बैठकर, अपने घावों को चाट रहा हूँ। अब हिम्मत ही नहीं है वहाँ फ़िर लौटने की।
ReplyDeleteनिश्चिन्त रहिए। हिन्दी भाषा में मैं केवल म्याँऊ करने वाले बिल्ली हूँ, एक गुर्राता हुआ शेर नहीं और किसी को आतंकित करने की क्षमता मुझमें है ही नहीं।
रतलाम आकर आपसे मिलने का निमंत्रण के लिए धन्यवाद। कई बार रतलाम स्टेशन पर रुका हूँ, ट्रेन से दिल्ली जाते समय।
रतलाम स्टेशन की चाय और नाश्ता ही अब तक मेरे नसीब में लिखा था। पता नहीं कभी रतलाम स्टेशन के बाहर आने का मौका मिलेगा या नहीं पर यदि वहाँ आना हुआ तो अवश्य आप को बता दूँगा और मिलने की कोशिश करूंगा। आपका "हाउसकीपिन्ग" चाहे कैसा भी हो, हमें विश्वास है कि आप का "दिल कीपिंग" श्रेष्ठ होगा। हमें तो आपके दिल में जगह चाहिए, "हाउस" में नहीं! और यदि आप कुत्ते भी पाल रखे हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं
उनसे भी दोस्ती कर लेंगे। आप जैसे इनसान के कुत्ते भी किसी को काट नहीं सकते।
आपकी इस विशेष और प्रेम से भरी टिप्पणी का यह विशेष उत्तर देना चाहता था
अन्य मित्रों की टिप्पणीयों का भी दो या तीन दिन बाद उत्तर भेजूंगा।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
वेताल कहीं का हो, रहता भारत के जंगलों में था. कोहिमा में. :)
ReplyDeleteआपके संस्मरण बहुत ही रोचक हैं..और अंदाज-ए-बयाँ एकदम सहज.... कृपया जारी रखें, लिखना ..एक बिल्ली के साथ मुलाकात को भी इतने सुन्दर ढंग से लिखा है...अभी तो यादों के खजाने में बहुत कुछ होगा.....और हाँ तस्वीरें भी बहुत अच्छी हैं.
ReplyDelete`यदि कुछ और दोस्त भी चाहते हैं तो इसे कुछ दिन और जारी रखूँगा'
ReplyDeleteविश्वनाथ जी, लगे रहिए, कोई बिल्ली रास्ता नहीं काटेगी :) रोचक तथ्य के लिए आभार॥
विश्वनाथ जी के लेख से हम सब को इन गोरो के बारे जरुर सोचना चाहिये, यह बुरे नही लेकिन एक दुरी रख कर ही दोस्ती करते हे, हम भारतियो की तरह से नही कि गोरा देखा ओर झट से चिपट गये,इन के आगे पलके बिछा दी,इस लिये हमे भी इन से दोस्ती वेसी ही रखनी चाहिये, ओर इन्हे ज्यादा भाव नही देना चाहिये, बाकी दुसरे कि बिल्ली या कुते को आप कुछ खिला कर तो देखे..... हम भारतियो जेसा जिगरा दुनिया मै अभी किसी ओर का नही.
ReplyDeleteविश्वनाथ जी की बाते बहुत अच्छी लगी शुरु से पढ रहा हुं, इन्होने बेवाकी से सब लिखा, आशा करता हू आगे भी युही लिखेगे, ग्याण जी आप का ओर विश्वनाथ जी का धन्यवाद
विश्वनाथ जी,
ReplyDeleteआप एक सफल नेटीज़ेन हैं, आपका प्रेम ब्लॉग लेखकों पर भरपूर है. ऐसे ही आप अपने प्रवास के बारे में लिखते रहें, मुझे और यहाँ कई लोगों को काफी अच्छा लग रहा है..
केविन ज़रूर पिछले जन्म में भारत निवासी रहे होंगे. सौ मील से चलकर आना सिर्फ प्रेम के बूते ही हुआ है..इंदौर आने का निमंत्रण आपको मिल चुका है, इससे पहले एक निमंत्रण मैं भी दे चुका हूँ, उम्मीद है उसपर कुछ विचार करेंगे. अभी डेढ़ महीने पहले एक ब्लॉगर के शहर सिर्फ इसलिए पहुँच गया क्योंकि उनकी लिखी कहानियाँ बहुत भाती हैं. कोई काम ना होने के बावजूद उस शहर जाकर जो अनुभव हुआ उसका चित्रण शब्दों में नहीं हो सकता. ऑटो से उतरते ही उन्होंने कहा - अरे आपने कहा होता मैं लेने आ जाता.. मुझे लगा आपके रिश्तेदार आपको यहाँ ड्रोप करेंगे. मुलाक़ात के बाद, उन्होंने मेरे लाख मना करने के बावजूद मुझे अपने रिश्तेदार के यहाँ तक छोड़ा.
यह आत्मीय रिश्ते हैं, ...
आभार
मनोज
यह चित्रमय कथा अच्छी लगी ।
ReplyDeleteGYAN DUTTJI
ReplyDeleteSADAR NAMAN
AAPKA AMERIKA MEIN SWAGAT KARNE KE SAATH SAATH PAHLE
PRAVEENJEE KO DHANYAWAAD, JINKEE 'TIPPANI' KEE BADAULAT
MAIN AAPKE BLOG TAK PAHUNCHA. SAHAJ ATIMYTA AUR HASYA KEE
RASHMIYON SE NEHLA GAYEE AAPKEE ROCHAK POSTING.
AB ITNEE TAREEF KAR LEE HAI TO AAPSE BAAT KARNE KEE CHAH BHEE PRAKAT KAR LOON.
AGAR NEW YORK PADHARNA HO, TO DARSHAN BHEE HO PAAYENGE.
SHUBHKAMNAON SAHIT
ASHOK VYAS
Punditvyas@gmail.com
PS- NEW YORK STHIT TV CHANNEL ITV KE SAHITYIK KARYAKRIM MEIN "HINDI BLOGGERS" PAR EK YA SERIES OF PROGRAMS BANANE KA VICHAAR HAI, IS SAMABANDH MEIN APNE VICHARON/SUJHAVON/MARG NIRDESHAN SE LAABHANVIT KAREN
@ अशोक व्यास - धन्यवाद अशोक व्यास जी, यह पोस्ट श्री गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी की अतिथि पोस्ट है। मैं उन तक आपके विचार भेज रहा हूं।
ReplyDeleteपोस्ट बहुत अच्छी लगी,विशेषकर बिल्लियों के कारण!यदि कोई व्यक्ति कुत्ते बिल्लियों को प्यार करता हो तो वह भला ही होगा। यदि कुत्ते बिल्लियाँ भी उसे पसन्द करें( बिल्ली के मामले में यदि वह व्यक्ति को झेलने को तैयार हो) तो व्यक्ति बहुत सही होगा। सो आप उत्तीर्ण हुए। बधाई। यह टेस्ट प्राय: अचूक होता है।
ReplyDeleteअमेरिका में ही नहीं, भारत में भी हम जैसे कुत्ते बिल्ली प्रेमी कभी सहन नहीं करेंगे कि कोई अजनबी हमारे परिवार के इस चौपाया सदस्य को कुछ खिलाए। उनके आहार के प्रति बहुत से लोग बहुत सजग होते हैं और कुत्ते बिल्ली विहीनों को बहुत सी भ्रान्तियाँ होती हैं, जैसे बिल्ली को दूध पिलाना चाहिए। बिल्ली पूर्णतया माँसाहारी होती है व शैशव के बाद दूध उसके लिए उपयुक्त नहीं होता।
कृपया उसे कुछ खिलाइएगा नहीं।
फ़ोटो के लिए आभार। मेरे ब्लौग में भी बहुधा व इस समय भी बिल्ली का फ़ोटो लगा हुआ है।
घुघूती बासूती
विदेशियों के साथ लम्बा पत्र-व्यवहार (snail-mail) का मेरा अच्छा अनुभव है पर वे अधिक निकटता बर्दाश्त नहीं करते. उन्हें यह भी लगता है कि एशियन और अफ्रीकी मूल के लोग उनसे किसी बहाने पैसा ऐंठ सकते हैं.
ReplyDeleteमैंने अपने घर में कोरियन और फ़्रांसिसी मित्रों की मेजबानी की है और उनके हिसाब से घर को बनाने में बहुत मेहनत चाहिए. बाथरूम से लेकर डायनिंग टेबल तक को उनके उपयोग के लिए सैट करना पड़ता है.
अमेरिकन्स के साथ लम्बे समय तक निबाह करना मुश्किल है. मेरे कुछ मित्रों ने बिना किसी कारण के मुझसे संपर्क त्याग दिया और बाद में इंटरनेट पर मिलने पर भी बेरुखी दिखाई. जब निस्वार्थ की मित्र्रता को नहीं निभा सकते तो घर-गृहस्थी में उनकी स्थिति का अनुमान स्वतः लगता है.
यह किश्त रोचक है. किश्त की समाप्ति के बाद भी चाहूँगा कि विश्वनाथ जी को भरपूर पढने का अवसर मिलता रहे.
@Neeraj Rohilla, प्रवीण त्रिवेदी, राम त्यागी, अभय तिवारी, मनोज कुमार, ajit gupta, Rahul Singh, rashmi ravija, cmpershad, राज भाटिय़ा, शरद कोकास
ReplyDeleteआप सब को मेरे संस्मरण पढने के लिए, टिप्पणी भेजने के लिए और मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।
अब और लिखने में मुझे संकोच नहीं होनी चाहिए। पहले डर था के कहीं लोग बोर तो नहीं हो रहे हैं?
क्या ज्ञानजी पर भोज तो नहीं बन रहा हूँ?
आखिर अमरीका जाना आजकल आम बात है। हरेक का वहाँ कोई दोस्त या रिश्तेदार होगा और मेरी बातें नई तो नहीं हैं। अब ज्ञानजी से भी अनुमति मिल गई और इस श्रृंखला को जारी रखूंगा कुछ दिनों के लिए।
@स्मार्ट इंडियन
शायद आप ठीक कह रहे हैं।
आपके दोनों लेख मैंने पढी। मार्मिक थी।
यदि दिन अच्छे होते तो शायद और भी लोग सामने आते और मुझसे मिलने की कोशिश करते।
@विष्णु बैरागी
आपकी टिप्पणी पर मैं पहले ही प्रतिटिप्प्णी कर चुका हूँ
एक बार फ़िर धन्यवाद
शुभकामनाएं
जी विश्वानथ
@प्रवीण पाण्डेय
ReplyDeleteमुझे भी वे दो घंटे याद है जब मैं आपके के यहाँ आया था।
समय केवल आपके लिए नहीं पर मेरे लिए भी बहुत जलदी निकल गया था।
अवश्य बार बार मिलते रहेंगे, यही आशा है। और आपको हमारी रेवा गाडी में सैर कराने की इच्छा भी है।
अगली बार पत्नि को भी साथ ले आऊंगा। वह आपकी पत्नि से मिलना चाहती है कंपोस्ट के बारे में अधिक जानने के लिए।
आप रेलवे स्टेशन के पास शहर के ठीक बीच में रहते हैं पर हम तो शहर के दक्षिण सीमा के पास रहते हैं
मैं मानता हूँ के हमें आपके यहाँ आने के अवसर अधिक मिलते है और आपको यहाँ इतनी दूर आने का और कोई कारण नहीं होगा सिवाय हमसे मिलने।
तो यदि आप कभी किसी शनिवार/रविवार को हमारे यहाँ सपरिवार आते हैं तो हमें बहुत खुशी होगी।
तब तक ब्लॉग जगत में मिलते रहेंगे।
@संजय बेंगाणी
टिप्प्णी के लिए धन्यवाद।
आपसे यहाँ इतने दिनों के बाद फ़िर भेंट हो रही है।
नुक्कड फ़ोरम की याद हमें सताती है।
पंकज को भी मेरा नमस्कार।
क्या नुक्कड कभी revive होगा? यदि हुआ तो हमें कृपया सचेत करें।
यदा कदा तरकश ब्लॉग साइट पर आता हूँ और आगे भी आता रहूंगा।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
@राज भाटिय़ा, Manoj Khatri , निशांत मिश्र
ReplyDeleteआप से सहम्त हूँ। यह अमरीकी लोगों से हम दोस्ती एक सीमा तक ही ले जा सकते हैं
हमें यह बात अब ही समझ में आई।
यदि इन अमरीकि दोस्तों के पुराने पत्र पढकर सुनाऊंगा तो आप को भी उनका यह असली रुख से आश्चर्य होगा।
हमें यह अपेक्षा नहीं थी। स्मार्ट इंडियन जी के विचार से भी सहमत हूँ।
शायद मन्दी और उसके कारण आर्थिक परेशानी भी वजह हो सकती हैं
पर Kevin ने compensate किया था।
दो घंटे बात हुई थी। उससे मेरा दस साल से पत्र व्यवहार चल रहा था।
मिलने के एक स्पताह बाद मैं अपने परिवार के साथ, उसके फ़ैक्टरी पर गया था जो किसी पर्यटक स्थल जाते समय रास्ते में पडता था।
व्यस्त होते हुए भी उसने एक घंटा निकाल कर मुझे अपनी फ़ैक्टरी की सैर करायी।
कुछ और मित्र भी थे जिनसे टेलिफ़ोन पर बात हुई थी पर उनके निमंत्रण की सच्चई/इमानदारी पर मेरा विश्वास उठ गया था।
उसे मैं केवल एक औपचारिकता माना। उनके यहाँ जाकर दोस्ती परखने की हिम्मत नहीं हुई।
बहाने बनाकर अपने आप को बचा लिया। गौर तलब है कि वे भी अधिक आग्रह नहीं करते थे।
यहाँ भारत में तो लोग जोर देंगे, आग्रह करेंगे और नहीं आने पर बुरा भी मान जाएंगे।
अवश्य हम लोग दिल से उनसे ज्यादा धनी हैं और हमारे रिश्ते अधिक मज़बूत होते हैं।
इन दोस्तों से अब भी ई मेल सम्पर्क जारी है।
कुछ लोग खेद प्रकट कर रहे हैं कि हम इस बार मिल नहीं सके पर इसे तो मैं केवल खोखली औपचारिकता मानता हँ।
आगे सतर्क रहूँगा।
@ mired mirage
ReplyDeleteआपका साईट पर जाकर आपकी बिल्लियों से मिला!
बहुत प्यारी हैं।
कई लोगों को केवल कुत्तों से प्यार होता है, बिल्लियों से नहीं
हमें दोनों अच्छे लगते हैं।
किसी दिन इन दोनों के चरित्र पर एक लेख लिखना चाहता हूँ।
San Francisco चिडियाघर भी गया था और वहाँ एक गोलमटोल रोएँदार भेड की पीठ सहलाने का मौका भी मिला था।
अगली किस्तों में चित्र प्रकाशित करूँगा।
ब्लॉग पढने के लिए और टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
जी विश्वनाथ
@Ashok Vyas
ReplyDeleteज्ञानजीने आपकी टिप्पणी मुझे भेजी।
मेरे इस लेख को पढने के लिए और टिप्पणी करने के लिए ध्न्यवाद। आशा है कि आपका उल्लेख मेरे इस लेख से ही है।
यदि नहीं तो क्षमा चाहता हूँ।
हम तो केवल ज्ञानजी के मेहमान हैं।
आप उनके लिखे हुए पोस्टिंग भी पढिए।
आशा करता हूँ उनके मानसिक हलचल आपको रोचक लगेंगे।
मेरा अपना कोई ठिकाना नहीं है और ज्ञानजी का ब्लॉग मेरे लिए एक अड्डा बन गया है जहाँ मेरी कई रोचक हस्तियों से मुलाकात हुई है।
आप से मिलकर भी मुझे खुशी हुई।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
बेहद रोचक संस्मरण. आप निरन्तरता बनाये रखें...
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