आज सवेरे आठ बजे रामपुर था, मेरी काठगोदाम तक की यात्रा में। चटकदार सफेद यूनीफार्म में एक दुबले सज्जन ने अभिवादन किया। श्री एस के पाण्डे। स्टेशन मैनेजर। बताया कि वे जौनपुर के हैं पर अवधी का पुट नहीं था भाषा में। बहुत समय से हैं वे रामपुर में।
रामपुर मुस्लिम रियासत थी। शहर की ढाई लाख की आबादी में साठ चालीस का अनुपात है मुस्लिम हिंदू का। मोहम्मद आजम खान हिंयां राजनीति करते हैं। राजनीति या नौटंकनीति? एक बार तो वे स्टेशन के प्लेटफार्म पर पसर गये थे – इस बात पर कि उनके बाप दादा के जमाने का फर्श तोड़ कर टाइल्स क्यों लगवाई जा रही हैं।
स्टेशन की इमारत अच्छी है। बाहर एक बड़ा पाकड़ का पेड़ दिखा। मानो पीपल को अपना कद कम करने को विवश कर दिया गया हो। या उसे उसकी माई ने हाइट बढ़ाने के कैप्स्यूल न खिलाये हों! प्लेटफार्म पर भी पाकड़ थे। उनके चौतरे पर लोग बैठ सकते थे छाया में।
मेरे इंसपेक्टर महोदय ने कहा कि साहब एक ही चीज प्रसिद्ध है रामपुर की – रामपुरी चाकू। गाड़ी बीस मिनट रुकती है। खरीद लायें क्या? मैने कोई उत्सुकता नहीं जताई।
स्टेशन के पास घनी आबादी है। श्री पाण्डे बताते हैं कि ज्यादा पुरानी नहीं है। कुछ दशकों में बसी है।
मैने पूछा – रामपुर का राम से कुछ लेना देना है? पाण्डेजी बोले – कुछ समय से लोग बोलने लगे हैं कि पास में कोसी नदी बहती हैं; वहां राम जी आये थे। नहीं तो यह जगह शायद रमपुरा गांव थी।
भगवान राम चन्द्र पहले लोक संस्कृति में थे, पर अब उनको बहुत लोग अपने अपने एरिया में बुलाने लगे हैं! :-)
हल्द्वानी में ट्रेन हॉल्ट के दौरान पोस्ट की गयी यह।
रामपुरिये से हिन्दू तटस्थता को दर्शाती पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकारी, मोहम्मद आजम खान हिंयां जी को उसी मे दफ़न कर देते तो अच्छा था
ReplyDeleteरामपुर में थे, फिर हल्द्वानी, पता चलता तो मैं भी चला आता, दर्शन करने...
ReplyDeleteहमारे पारंपरिक चिकित्सक कहते हैं कि जब भी पाकर का वृक्ष दिखे तो बिना देर उससे लिपट जाना चाहिए| नंगे बदन हो तो ज्यादा अच्छा है| यह बहुत से शारीरिक विकारों को दूर करता है|
ReplyDeleteइसमे जब फल लगते है तो बड़ी संख्या में पक्षी आते हैं| उस समय शायद यात्री इसके नीचे न बैठते हों, कपडे खराब होने के डर से| वैसे पक्षियों को बुलाने का काम पाकर का ही है ताकि वे दूर-दूर तक फैलते रहें|
कुछ वर्षों पहले एयरपोर्ट के पास लगाए जाने वाले वृक्षों पर प्रेजेंटेशन के दौरान एक कंपनी अधिकारी ने गलती से पाकर लगाने की बात कह दी| उसे उसी समय रोक दिया गया|
ये रामपुर रामपुरिया के लिए ख्यात है या जयप्रदा के लिए ????????? :)
ReplyDeleteहल्द्वानी के बारे में भी बताएँ. काफी मनोरम स्थल है ..
ReplyDeleteराजनीति या नौटंकनीति....अधिकतर आप इनलोगों पर नहीं लिखते हो ...इस बार नीति बदलाव ..?
ReplyDeleteचक्कू खरीद लेते ब्लाग जगत के लिए काम आता ...
:-)
रामपुर एक मुस्लिम रियासत थी फिर भी नाम जस का तस रखे रहे.!
ReplyDeleteमेरे जीवन की सबसे पुराणी यादें रामपुर की ही हैं. आज भी यदि उत्तर भारत में ब्राह्मणों के घर में मुसलमान रसोइयों को बेफिक्री से खाना पकाते देखना हो तो रामपुर से बेहतर जगह नहीं मिलेगी शायद. रामपुरी चाकू तो मशहूर हैं ही - तरह तरह की सुन्दर और अनूठी शक्लों में - बटन वाले बारह-इंची काफी प्रयोग में आते थे.
ReplyDeleteरामपुर के बारे में और अधिक लिखते तो ज्ञानवर्द्धन होता। हम ता जयाप्रदा और नकवी के नाम से ही रामपुर को जानते हैं।
ReplyDeleteसाथ चालीस के अनुपात की आबादी है फिर भी नाम रामपुर ही रह गया,बदला नहीं गया ???? आश्चर्य...
ReplyDeleteशायद चाकू राम से ज्यादा मशहूर हो गया है और लोग नहीं चाहते की उनके बिकरी बट्टा में कोई खलल पड़े इसलिए रामपुर, रामपुर ही रह गया....नहीं तो जो राजनेता बाप दादा के ज़माने के टाइल्स बदलने पर अनशन पर बैठ गए,यह कैसे गंवारा कर गए..
रामपुर तो पहले से ही प्रसिद्ध है। न केवल रामपुरी चाकू के लिए।
ReplyDeleteबचपन में आकाशवाणी के रेडियो कार्यक्रमों में रामपुर का नाम बार बार सुनते थे।
झूमरी तलैया और राजनान्द्गाँव के साथ रामपुर का भी नाम था,जहाँ से सबसे अधिक फ़िल्मी गानों के श्रोता अपनी फ़र्माईशें भेजते थे।
और फ़िर वह फ़िल्म भी याद कीजिए "रामपुर का लक्षमण" (रणधीर कपूर और रेखा) जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा खलनायक थे।
सुनकर खुशी हुई की रामपुर जैसी जगह से आप इसे पोस्ट कर सके।
शुभकामनाएं
ओह आप तो बरेली से ही निकल कर गये है लौट्ते पर दर्शन दें . आज मैं भी नैनीताल से अपनी बेटी को लेकर लौटा हूं.
ReplyDeleteरामपुर मे आपके मतलब की रज़ा लाइब्रेरी है जो विश्व साहित्य को सज़ो कर रख रही है . हो सके तो अव्लोकन अवश्य करे .
राम पुर, बरेली, हल्द्वानी, मुरादाबाद - यहां से गुजरूंगा पर रुक न पाऊंगा। अधिक स्थान रात में निकल जायेंगे। और चलती गाड़ी में रुकना नहीं होता! :-(
ReplyDeleteपर यह बहुत सुकून की बात है - और सदा देखता रहा हूं, कि पोस्ट में जो लिखता हूं, उससे कहीं अधिक एन-रिच करने वाली सामग्री टिप्पणियों में आती है।
मैं भाग्यशाली हूं, निश्चय ही।
पुरानी चीजों से चिपकने की प्रवृत्ति राजनीति स्वार्थों के लिये लोग उठाते रहते हैं। पता नहीं पुरानी सिद्धान्तगत राजनीति से क्यों तलाक ले बैठे हैं अब सब।
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