Sunday, October 10, 2010

व्यक्तित्वनिष्ठ आचारसंहिता छद्म है

आपको भाषाई छद्म देखने हैं तो सब से आसान जगह है - आप ब्लॉगर्स के प्रोफाइल देखें। एक से बढ़ कर एक गोलमोल लेखन। उनकी बजाय अज़दक को समझना आसान है।

हम बेनामी हों या न हों, जो हम दिखना चाहते हैं और जो हैं, दो अलग अलग चीजें हैं। इनका अंतर जितना कम होता जायेगा। जितनी ट्रांसपेरेंसी बढ़ती जायेगी, उतनी कम होगी जरूरत आचार संहिता की। इस की प्रक्रिया में हम जो हैं की ओर नहीं जायेंगे। सामान्यत, सयास, हम जो हैं, उसे जो दिखना चाहते हैं के समीप ले जायेंगे।

दूसरे, अगर हमारा धैय ब्लॉगरी के माध्यम से अपना नाम चमकाने की बजाय अपने गुणों का विकास है। अगर हम क्विक फिक्स कर यहां ट्वन्टी-ट्वन्टी वाला गेम खेलने नहीं आये हैं, अगर हम चरित्रनिष्ठ हैं, तो व्यक्तित्वनिष्ठ आचारसंहिता की क्या जरूरत है?

खैर, यह बड़ी बात है। अन्यथा, आचारसंहिता बनाने की बात चलती रहेगी, और उसका विरोध दो प्रकार के लोग करते रहेंगे – एक वे जो पर्याप्त आत्मसंयमी हैं, अपनी पोस्ट और टिप्पणियों के पब्लिश होने के निहितार्थ जानते हैं और अपने को सतत सुधारने में रत हैं; और दूसरे वे जो उच्छृंखल हैं, मात्र हीही-फीफी में विश्वास करते हैं। यहां मात्र और मात्र अपने उद्दीपन और दूसरों के मखौल में अपनी वाहावाही समझते हैं। [1]

आप कहां हैं जी?

FotoSketcher - bhains    

FotoSketcher - Gyan916W

(हम तो यहीं हैं, बहुत समय से भैंसों के तबेले और गंगा तट के समीप!)


[1] शायद तीसरी तरह के लोग भी हों, जो किसी (आचारसंहिता बनाने वालों) की चौधराहट नहीं स्वीकारते। 

36 comments:

  1. चचा ग़ालिब को जानते है आप .....उन्होंने कहा था .....

    हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन
    दिल के बहलाने को ये ख्याल अच्छा है ....

    ReplyDelete
  2. द्वेत और अद्वेत के सदृश

    ReplyDelete
  3. `आप कहां हैं जी'

    मात्र हीही-फीफी में :)

    ReplyDelete
  4. सबकुछ अगर ट्रांस्परेंट होगा तो शायद आचार संहिता की ज़रूरत ना पड़े, पर यह आचार संहिता बनाएगा कौन, क्या कोई सरकारी एजेंसी या फिर कोई संगठन. जहाँ तक मैं समझता हूँ ब्लोगिंग अभी अपने बाल्य काल मैं हैं और अभी बहुत कुछ शेष है.

    मनोज खत्री

    ReplyDelete
  5. आचारसंहिता = code of conduct

    very simple to make but needs guts and patience to get it implemented on the public platform
    people have to be told time and again that they are wrong and time again the one who tells is crucified truth does prevail in the end and also the strength to get the truth enforced

    ReplyDelete
  6. हम इस दुनियादारी के चक्कर में नहीं पड़ते, अपनी कहने आये हैं, जो लिख देते हैं. दूसरों के लेख पढ़ते हैं, कोशिश करते हैं कि टिप्पणी अवश्य दें. बाकी किसी चीज में विश्वास नहीं. इसके बाद तो फिर यही है कि जाकी रही भावना जैसी...

    ReplyDelete
  7. दैर-ओ-हरम में मिलता गर चैन क्यों जाते मयखाने लोग,
    जो भी आये हैं समझाने कितने हैं बेगाने लोग ।

    कम लिखा ज्यादा समझना :)

    ReplyDelete
  8. ब्लॉग्गिंग में आचार संहिता की बात करना बेकार है. ना ऐसा हो सकता है और ना कोई ज़रूरत है ऐसा करने की.
    हाँ, आपने पूछा कि कहाँ हैं आप, तो मैं तो ब्लॉग्गिंग के माध्यम से खुद को समझने की कोशिश कर रही हूँ.
    एक ब्लॉग के माध्यम से खुद से जुड़ी चीज़ों और लोगों को समझने की कोशिश... क्योंकि बहुत सी बातें उस समय समझ में नहीं आतीं और बाद में पता चलता है कि माता-पिता या किसी अन्य प्रियजन ने ऐसा क्यों कहा था या किया था.
    दूसरे ब्लॉग से कुछ सिद्धांतों की चीरफाड़ और समाज के प्रति अपने सरोकारों को अभिव्यक्त करने की कोशिश.
    और तीसरे ब्लॉग से औरत होने की अनुभूतियों को बाँटने की कोशिश.

    ReplyDelete
  9. हम तो अपने आपको तीसरी जगह पाते है -जो किसी (आचारसंहिता बनाने वालों) की चौधराहट नहीं स्वीकारते।

    ReplyDelete
  10. हम मस्त राम हे जी, यह आचारसंहिता का तो पता नही लेकिन हमे सब अपने ही लगते हे,भेंस वाले तबेले वाले, रेहडी वाले, इन से रोनक लगी रहती हे, हमारे यहां सिर्फ़ आचारसंहिता ही हे , इसी लिये चारो ओर विरान लगता हे, सडके सुनसान...

    ReplyDelete
  11. जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ ..............
    कहाँ है ..........
    कहाँ है.........

    ReplyDelete
  12. आचारसंहिता की बात करते ही लगता है कि कोई कलम को बेड़ी पहना रहा है। कसाव बढ़ता जायेगा और कब अभिव्यक्ति का गला घुट जायेगा, पता ही नहीं चलेगा। स्वप्रेरित आचारसंहिता बनी रहे।

    ReplyDelete
  13. अपने इर्द-गिर्द, बस्‍ती में घूमते हुए न जाने कितने वांछित-अवांछित मिलते हैं, यह तो (वेब)दुनिया है, और इसमें न जाने कितने नमूने हैं. नियम बनना-टूटना-सुधरना तो चलता ही रहता है यहां, लेकिन यह चर्चा रोचक तो है ही.

    ReplyDelete
  14. ब्लॉग प्रोफाइल में तो अक्सर थर्ड पार्टी प्रोजेक्शन देखता हूं, मानों यह खुद ब्लॉगर ने नहीं किसी तीसरे ने लिखा है जैसे कि -


    - बित्ते सिंह 'छटांक'-

    आपने हिंदी साहित्य से एम ए किया है आज कल संपादक हैं, कई पुरस्कारों से आप सम्मानित हैं, कुतुबमीनार पुरस्कार आप ही को मिला है, बावन बिगहा की रस्साकशी के लेखक, रूसी पुरस्कार झेंझेलिन (1995) आप ही को मिला है :)


    इस तरह की आप आप वाली लेखन शैली मैंने किताबों के फ्लैप पर देखा है लेकिन उसमें और ब्लॉगरीय प्रोफाइल में मैं तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाता। हो सकता है ये मेरी समझ का फेर हो।

    कई जगह लिखा देखा है कि अपने आप को समझने के लिए ब्लॉगजगत में आया हूं ...पता चला वही बंदा टिप्पणी दर टिप्पणी खुद को समझने की बजाय दूसरों को समझाए चले जा रहा है :)

    कई जगह अखबारी बंदे अपने ब्लॉग में जो कुछ लिखते हैं उससे पता चलता है कि जो कुछ वह अखबार की क्यारियों में नहीं लिख पाते उसे अपने ब्लॉग के बावन बिसवे में लिख मारते हैं और प्रोफाइल में तु्र्रा यह कि हम तो उस विचारधारा के हैं कि - आवाज दबनी नहीं चाहिए ( भले ही लेखनी फुस्सात्मक ही क्यों न हो :)

    ReplyDelete
  15. मैं यहॉं हूँ -

    बुरा जो देखन मैं चला, मुझसे बुरा न कोय।

    जो दिल खोजा आपना, बुरा न मिलिया कोय।।

    हम क्‍या किसी को सुधारेंगे। हमारा नियन्‍त्रण को केवल खुद तक ही सीमित है।

    ReplyDelete
  16. आचारसंहिता !
    हम्म्म...इंटरनेट से पोर्न भी ख़त्म हो जाएगा...

    ReplyDelete
  17. आचारसंहिता ........ अचार बनाने का शास्त्र है क्या

    ReplyDelete
  18. ये आप ने क्या पूछ लिया?
    हर कोई साक्षात्कार के फेर में पड़ गया है।
    कोई भी खुद को आइने में देख सकता है, या फिर कोई चश्मा चढ़ा कर भी खुद को निहार सकता है। लेकिन वह भी आधी हकीकत ही होगी। हाँ दूसरा कोई भी बता सकता है कि वह कहाँ है। कम से कम मुझे तो कोई मुगालता नहीं है कि मैं खुद को ठीक से जानता हूँ। जो लोग मुझ पर और मेरी करतूतों पर निगाह रखते हैं, मैं तो उन पर भरोसा करता हूँ। वे ही बता सकते हैं कि मैं कहाँ खड़ा हूँ। शायद यह विज्ञान का नियम है कि खुद अपनी स्थिति को कोई भी निर्धारित नहीं कर सकता। उस की स्थिति को उस के अलावा तमाम वस्तुएँ (Obejects) निर्धारित करती हैं।

    ReplyDelete
  19. अच्छा मुद्दा उठाया है जी।

    आप कहां हैं जी?
    हमारे बहाने से कौन सी दुनिया तेज़ घूमने लगेगी? चार दिन की चान्दनी...

    शायद तीसरी तरह के लोग भी हों, जो किसी (आचारसंहिता बनाने वालों) की चौधराहट नहीं स्वीकारते।
    दुनिया तो चलनी ही चाहिये

    - बित्ते सिंह 'छटांक'-

    आपने हिंदी साहित्य से एम ए किया है आज कल संपादक हैं, कई पुरस्कारों से आप सम्मानित हैं, कुतुबमीनार पुरस्कार आप ही को मिला है, बावन बिगहा की रस्साकशी के लेखक, रूसी पुरस्कार झेंझेलिन (1995) आप ही को मिला है :)

    ;)

    ReplyDelete
  20. किसी ने इन्वेंट किया ब्लॉग... जो मर्जी आये लिखो... फुल फ्रीडम ऑफ स्पीच काइंड ऑफ. इसकी सफलता का सूत्र यही. करोडो लोग सैकड़ों भाषाओँ में ब्लॉग लिख रहे हैं, ये चार दिन से (हिंदी) ब्लॉग लिखने लगे तो इन्हें दिक्कत आ गयी और आचार संहिता चाहिए ! और मैं ना मानूं तो ? मुझे क्या ब्लागस्पाट से बेदखल करवा देंगे. ब्लॉग्गिंग में आचार संहिता की बात मूर्खों की बात नहीं लगती ?

    ReplyDelete
  21. ज्ञानजी,

    अज़दकजी के यहाँ जाकर उनके हाल ही के तीन पोस्टें पढने की कोशिश की।
    कुछ भी समझ नहीं सका। एक शब्द भी नहीं।

    हम शिकायत नहीं कर रहे हैं
    कमी तो शायद मुझमें है।

    आचार संहिता? यह क्या हैं बला? क्या आवश्कता है इसकी?
    कौन तय करेगा के ब्लॉग में क्या उचित है और क्या नहीं?
    ब्लॉग कोई सिनेमा या अखबार तो नहीं है जो सब को दिखाई देता है।
    यह केवल उन लोगों को दिखता है जो अपनी मर्जी से पढने आते हैं।
    कोई ब्लॉग मजबूर होकर तो नहीं पढता। जो अच्छे लिखेंगे वे सफ़ल होंगे।
    यदि ब्लॉग पसन्द न हो तो पढो मत। बात खत्म।

    जहाँ तक प्रोफ़ाईल का सवाल है हम केवल उनके ब्लॉग पढते हैं जो खुलकर अपना परिचय देते हैं। ये बेनामी और अपने आप को ढूँढने वालों का ब्लॉग को दूर से हमारा सलाम।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
  22. सभी रंगों का अपना अपना मह्त्व है जी...तभी तो दुनिया इतनी सुन्दर दिखती है। राम के बिना रावण कृष्ण के बिना कंस अधूरे से नही लगेगें।;)

    ReplyDelete
  23. आपका कहना तो बिल्कुल सही है सर---लेकिन ये ट्रांसपरेंसी आये कैसे?

    ReplyDelete
  24. ब्लॉगिंग की आचार संहिता: मैदान पर पुल तानने जैसा ही तो है. बेवजह पुल तान दिया. जिसे पुल पर से जाना है, वो जाये वरना मैदान से तो जा ही रहे थे. दृष्य जरुर पुल की ऊँचाई से मनोरम दिख सकता है.

    ReplyDelete
  25. भैंसें ही दिखे बरधे नहीं ?:) आचार संहितायें केवल किसी विधा या व्यक्ति को शीर्ष पर पहुँचने के सोपान को लक्षित होती हैं ....मतलब डूज और डोंट्स ..केवल निषेधात्मक ही नहीं

    ReplyDelete
  26. यह संगोष्ठी हिंदी ब्लॉगर्स के लिए आचार संहिता बनाने की कोशिश कतई नहीं थी। जिन्हें ऐसा लग रहा है उनसे हमे कोई सहानुभूति नहीं है।

    यहाँ तो यही निष्कर्ष निकला कि इस माध्यम में मिली स्वतंत्रता अद्वितीय है जिसे सेलीब्रेट करना चाहिए। अपना नियम खुद बनाकर उसका मनमर्जी पालन करना है। कोई बाहरी एजेन्सी या संस्था आपको रेगुलेट नहीं कर सकती और न ही ऐसा वांछित है। सेल्फ़रेगुलेशन की बात ही सबने की।

    जहाँ कहीं भी मानव समाज की रचना होती है उसके कुछ कायदे कानून अलिखित रूप में स्वतः बन जाते हैं। उनकी पहचान भी आसानी से की जा सकती है। क्या करना उचित है और क्या करना अनुचित है इसकी व्यक्तिगत सूची सबके मानस पटल पर अपने आप उभर आती है। इसमें जो कॉमन बातें हैं वही एक अघोषित आचार संहिता उस समाज की बन जाती है। ब्लॉग का समाज भी एक मानव समाज है। यहाँ भी ‘करणीय’ और ‘अकरणीय’ की सूची सबके मन में है। उनमें कुछ बातें कॉमन हैं और इस गोष्ठी में उन कॉमन बातों की पहचान करने की कोशिश की गयी।

    किसी के ऊपर इसे थोपने की बात सोचना भी मूर्खता है।

    ReplyDelete
  27. @ सिद्धार्थ - "इसमें जो कॉमन बातें हैं वही एक अघोषित आचार संहिता उस समाज की बन जाती है।" मैं भी इसी कोण से बनाने की बात कर रहा था। अन्यथा, यह तो हर एक को मालुम है कि कलैक्टरगंज झाड़ने पर कौन क्या कर लेगा!

    ReplyDelete
  28. सिद्धार्थ जी ने बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है,
    सम्मेलन में भी आम सहमति (99%) यही थी कि ब्लॉगिंग में आचार संहिता जबरिया लागू नहीं करवाई जा सकती, यह सरकारों के लिये ही सम्भव नहीं हुआ तो कोई समिति-वमिति क्या उखाड़ लेगी…
    परन्तु इस पर अवश्य सहमति बनी कि "अदृश्य आचार संहिता" (जो पहले से लागू ही है) उसका अधिकाधिक उपयोग किया जाये ताकि धीरे-धीरे यह संहिता न रहकर "परम्परा" बन जाये…

    ReplyDelete
  29. गूढ़ चर्चा हो रही है, लेकिन अगर कोई आचार संहिता किसी ने बनाई तो ये बतायें कि हमारे जैसे लोग जो कभी-कभार आकर पोस्ट पढ़ लिया करते हैं उन्हें खबर क्या होगी कि ऐसी कोई आचार संहिता भी है। और उस प्रस्तावित आचार संहिता को लागू करवायेंगे कैसे? संसद में कानून बनवाकर, जो कानून बने हैं वे तो लागू हो पाते नहीं।

    ReplyDelete
  30. @धीरु सिंह,
    अचार और खिचड़ी बनाने के शास्त्र का नाम ब्लॉगिंग है। आचार संहिता अचार बनाने के नियम-कायदों को कहते हैं कि अचार कैसे बनायें, कैसे न बनायें।

    ReplyDelete
  31. dadaji kahte the ......

    5 vishya hai jo manav ko karna chahiye.

    5 vishya hai jo manav ko nahi karna
    chahiye.

    agar aap is 10 vishyon ko sahi se palan karte ho to aap me itni samajh jaroor hogi .... jis se aap ko bakki sabhi vishon samjhne me
    koi sansya nahi rahega.....

    hum doosron ko badlne ke liye jitne
    sanklpit hote hai agar khud ke liye
    ho to ..... kya kisi ko kuch kahne
    ki jaroorat hogi.....

    bakiya aachar sanhita ki jarrorat
    oon byaktiyon/samoohon ko jyada hogi jo kahin na kahin iske pristposhak honge.....

    ye sarbvidit hai jo jaisa hai.....
    o ysa byakti/samooh dhoondhta hai..

    agar kuch pratisat galat hain to..
    cyber law hai na .... aur biswas
    maniye hum jitna hi apne aaukat me
    jayenge....ootna hi oos anewala kanoon(cyber law) me clause/sub clause ke number badhte jayenge....

    kuch jiyad agar likh gaya to prabudh jan maf karenge.

    sabhi ko pranam.

    ReplyDelete
  32. सर हमने भी आज एक पोस्ट इसी पर लिख कर धर दी है ..बाद में ध्यान आया कि ..गंगा पटना और बनारस दुनु जगह से न निकलती है ..सो निकल गई ..देखिएगा ..बातवा कुछ हमूं लिखे हैं

    ReplyDelete
  33. "कंप्यूटर किटर-पिटर करके पेट पालने वालों में से हूँ.. अभी चेन्नई में कार्यरत." यह मैंने लिख रखा है.. कुछ सुधार कि गुंजाइश है क्या? सोचा सलाह ले लूँ.. :)

    ReplyDelete
  34. ब्लोगिंग अभी अपने बाल्य काल मैं हैं और अभी बहुत कुछ शेष है.

    ReplyDelete
  35. ओह. जबलपुर यात्रा पर रहने के कारण यह पोस्ट छूट गयी थी.
    पोस्ट पर नहीं, सिर्फ चित्रों पर कमेन्ट दूंगा. लगता है जैसे चित्रों को वाटर कलर इफेक्ट दिया है. कहीं-कहीं स्मजिंग जैसा कुछ लग रहा है. मैं सही हूँ क्या जी?

    ReplyDelete
  36. @ Nishant Mishra - हां, वाटर और पेण्ट कलर का इफेक्ट देने के लिये फोटोस्केचर नामक फ्रीवेयर का प्रयोग है।

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय