दो महीने पहले (नवम्बर २९ की पोस्ट) मिला था अर्जुन प्रसाद पटेल से। वे गंगा के कछार में खेती कर रहे थे। एक महीने बाद (दिसम्बर २५ की पोस्ट) फिर गया उनकी मड़ई पर तो वे नहीं थे। उनकी लड़की वहां थी। और तब मुझे लगा था कि सर्दी कम पड़ने से सब्जी बढ़िया नहीं हो रही। लिहाजा, मेरे कयास के अनुसार वे शायद उत्साही न बचे हों सब्जी उगाने में।
|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Sunday, January 31, 2010
पालक
Saturday, January 30, 2010
रीडर्स डाइजेस्ट के बहाने बातचीत
कई दशकों पुराने रीडर्स डाइजेस्ट के अंक पड़े हैं मेरे पास। अभी भी बहुत आकर्षण है इस पत्रिका का। कुछ दिन पहले इसका नया कलेक्टर्स एडीशन आया था। पचहत्तर रुपये का। उसे खरीदने को पैसे निकालते कोई कष्ट नहीं हुआ। यह पत्रिका सन १९२२ के फरवरी महीने (८८ साल पहले) से निकल रही है।
Thursday, January 28, 2010
Wednesday, January 27, 2010
मैम भक्त मेमने और मैं
प्रवीण पाण्डेय को अपने बैंगळुरु स्थानान्तरण पर कुछ नये कार्य संभालने पड़े। बच्चों को पढ़ाना एक कार्य था। देखें, उन्होने कैसे किया। यह उनकी अतिथि पोस्ट है। मुझे अपना भी याद है – जब अपने बच्चे को मैने विज्ञान पढ़ाया तो बच्चे का कमेण्ट था – यह समझ में तो बेहतर आया; पर इसे ऐसे पढ़ाया नहीं जाता। मुझे भी लगा कि मैं पूर्णकालिक पढ़ा नहीं सकता था और जैसे पढ़ा रहा था, वैसे शायद कोर्स पूरा भी न होता समय पर! :-( |
नयी जगह में स्थानान्तरण होने से स्थानपरक कुछ कार्य छूट जाते हैं और कुछ नये कार्य न चाहते हुये भी आपकी झोली में आ गिरते हैं। बालक और बिटिया का बीच सत्र में नये स्कूल में प्रवेश दिलाने से उन पर पढ़ाई का विशेष बोझ आ पड़ा है । इसका दोषी मुझे माना गया क्योंकि स्थानान्तरण मेरा हुआ था (यद्यपि मैनें विवाह के पले बता दिया था कि स्थानान्तरण मेरी नौकरी का अंग है, दोष नहीं)। पर वैवाहिक जीवन में बहस की विचित्र सीमायें हैं, हारने पर कम और जीतने पर हानि की अधिक संभावनायें हैं। अतः अपना ही दोष मानते हुये और सबको हुयी असुविधाओं की अतिरिक्त नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये मैनें बालक को सारे विषय पढ़ाने का निर्णय स्वीकार कर लिया।
Monday, January 25, 2010
पगली
उसे गंगा किनारे देखा है। उम्र बहुत ज्यादा नहीं लगती – पच्चीस से ज्यादा न होगी। बाल काले हैं। दिमाग सरका हुआ है – पगली। एक जैकेट, अन्दर स्वेटर, नीचे सलवार-घाघरा नुमा कुछ वस्त्र पहने है। गंगा किनारे बीनती है कागज, घास फूस, लकड़ी। तट के पास एक इन्दारा (कुआं) है। उसकी जगत (चबूतरे) पर बैठकर एक माचिस निकाल जलाने का यत्न करती है। आठ दस तीलियां बरबाद होती हैं। बोलती है – माचिस पोला। हाव-भाव और बोलने के एक्सेण्ट से दक्षिण भारतीय लगती है।
एक छुट्टी के दिन कोहरा मध्य बारह बजे छटा। मैं यूं ही गंगा तट पर चला गया। इंदारे की जगत पर वह बैठी थी। आस पास चार पांच लोग बैठे, खड़े थे। उन्हे वह लय में गाना सा सुना रही थी। अपना शरीर और हाथ यूं लहरा रही थी मानो किसी पुराने युग की फिल्मी नायिका किसी सीन को फिल्मा रही हो। सुनने वाले दाद भी दे रहे थे!
Saturday, January 23, 2010
हरी ऊर्जा क्रान्ति, भारत और चीन
बाजू में मैने मेकेंजी क्वाटर्ली (McKinsey Quarterly) की लेखों की विजेट लगा रखी है। पता नहीं आप में से कितने उसे देख कर उसके लेखों को पढ़ते हैं। मैं बहुधा उसके लेखों को हार्ड कापी में निकाल कर फुर्सत से पढ़ता हूं। इसमें भारत और चीन विषयक लेख भी होते हैं।
Thursday, January 21, 2010
कोहरा
पिछले कई दिनों से मेरी सोच कोहरे पर केन्द्रित है। उत्तर-मध्य रेलवे पर कई रीयर-एण्ड टक्क्तरें हुईं सवारी गाड़ियों की। इस बात पर प्रश्न चिन्ह लगने लगे कि हमारे कोहरे के दौरान ट्रेन संचालन के नियम पुख्ता हैं या नहीं? नियम आज के नहीं हैं – दशकों पुराने हैं और कई कोहरे के मौसम पार करा चुके हैं। फिर भी उनका पुनर्मूल्यांकन जरूरी हो जाता है, और हुआ भी।
Friday, January 15, 2010
ब्लॉगिंग की सीमायें
कहां रुके एक ब्लॉगर? मैं सोचता हूं, सो मैं पोस्ट बनाता हूं। सोच हमेशा ही पवित्र होती तो मैं ऋषि बन गया होता। सोचने में बहुत कूछ फिल्थ होता है। उच्छिष्ट! उसे कहने का भी मन नहीं होता, पोस्ट करने की बात दूर रही। जिस सोच के सम्प्रेषण का मन करे, वह बात पोस्ट बनाने की - ब्लॉगिंग की एक सीमा बनती है। सही साट।
Wednesday, January 13, 2010
मालगाड़ी के इंजन पर ज्ञानदत्त
यह कोई नई बात नहीं है। रेलवे इंजन पर चढ़ते उतरते तीसरे दशक का उत्तरार्ध है। पर रेलवे के बाहर इंजन पर फुटप्लेट निरीक्षण (footplate inspection) को अभिव्यक्त करने का शायद यह पहला मौका है।
मुझे अस्सी के दशक के पूर्वार्ध में रतलाम के आस-पास भाप के इंजन पर अवन्तिका एक्स्प्रेस का फुटप्लेट निरीक्षण अच्छी तरह याद है। उसके कुछ ही समय बाद भाप के इंजन फेज-आउट हो गये। उनके बाद आये डीजल और बिजली के इंजनों में वह पुरानेपन की याद नहीं होती।
Sunday, January 10, 2010
पाठक बनाम अनियत प्रेक्षक (irregualar gazer/browser)
भाई साहब, माफ करें, आप जो कहते हैं ब्लॉग में, अपनी समझ नहीं आता। या तो आपकी हिन्दी क्लिष्ट है, या फिर हमारी समझदानी छोटी। – यह मेरे रेलवे के मित्र श्री मधुसूदन राव का फोन पर कथन है; मेरी कुछ ब्लॉग पोस्टों से जद्दोजहद करने के बाद। अदूनी (कुरनूल, रायलसीमा) से आने वाले राव को आजकल मेरे ब्लॉग की बजाय तेलंगाना बनाम सम्यक-आंध्र की खबरों में ज्यादा दिलचस्पी होगी।
राव मेरा बैचमेट है, लिहाजा लठ्ठमार तरीके से बोल गया। अन्यथा, कोई ब्लॉगर होता तो लेकॉनिक कमेण्ट दे कर सरक गया होता।
Saturday, January 9, 2010
देर आये, दुरुस्त आये?!
यह जो हो रहा है, केवल मीडिया के दबाव से संभव हुआ है। और बहुत कम अवसर हैं जिनमें मीडिया का प्रशस्ति गायन का मन होता है।
Friday, January 8, 2010
साहस की ब्लॉगिंग
Wednesday, January 6, 2010
“थ्री इडियट्स” या “वी इडियट्स”
कल यह फिल्म देखी और ज्ञान चक्षु एक बार पुनः खुले। यह बात अलग है कि उत्साह अधिक दिनों तक टिक नहीं पाता है और संभावनायें दैनिक दुविधाओं के पीछे पीछे मुँह छिपाये फिरती हैं। पर यही क्या कम है कि ज्ञान चक्षु अभी भी खुलने को तैयार रहते हैं।
Sunday, January 3, 2010
हिन्दी सेवा का प्रवचन
अगर हिन्दी ब्लॉगरी इस छुद्रता का पर्याय है तो भगवान बचाये।
Friday, January 1, 2010
भावी प्रधानमंत्री का स्टिंगॉपरेशन
मेरे जैसे तहलकाई के पास कोई चारा न बचा सिवाय स्टिंग ऑपरेशन (हिन्दी में क्या कहेंगे – डंक-संचालन या दंश-अभियान/दंशाभियान?) के। बाथ रूम में जब नत्तू पांड़े को नहलाया जा रहा था तो उनका खिड़की से वीडियो उतार लिया!