Monday, November 30, 2009

तारेक और मिचेल सलाही

salahi हम ठहरे घोंघा! सेलिब्रिटी बन न पाये तो किसी सेलिब्रिटी से मिलने का मन ही नहीं होता। किसी समारोह में जाने का मन नहीं होता। कितने लोग होंगे जो फलानी चोपड़ा या  ढ़िकानी सावन्त के साथ फोटो खिंचने में खजाना नौछावर कर दें। हम को वह समझ में नहीं आता!

क्या बतायें; सेलियुग (सेलिब्रिटी-युग, कलियुग का लेटेस्ट संस्करण) आ गया है।

Sunday, November 29, 2009

अर्जुन प्रसाद पटेल

Kheti6 कछार में सप्ताहान्त तनाव दूर करने निरुद्देश्य घूमते मुझे दिखा कि मेरे तट की ओर गंगाजी काफी कटान कर रही हैं, पर दूर कई द्वीप उग आये हैं जिनपर लोग खेती कर रहे हैं। उन द्वीपों पर टहलते हुये जाया नहीं जा सकता। लिहाजा खेती करते लोगों को देखना इस साल नहीं हो पा रहा जो पिछली साल मैं कर पाया था।

देखें – अरविन्द का खेत। 

Friday, November 27, 2009

मां के साथ छूट

स दिन हीरालाल ने मेरे सामने स्ट्रिप्टीज की। कपड़े उतार एक लंगोट भर में दन्न से गंगाजी में डुबकी लगाई – जय गंगे गोदावरी! 

Liberty with Gangesगोदावरी? मुझे यकीन है कि हीरालाल ने गोदावरी न देखी होगी। पर हिन्दू साइके में गंगा-गोदावरी-कावेरी-नर्मदा गहरे में हैं। यह निरक्षर गंगाजी से पढ़े लिखों की तरह छद्म नहीं, तह से स्नेह करता है। खेती में यूरिया का प्रयोग कर वह पर्यावरण का नुकसान जरूर करेगा – पर अनजाने में। अगर उसे पता चल जाये कि गंगाजी इससे मर जायेंगी, तो शायद वह नहीं करेगा।

Wednesday, November 25, 2009

गति और स्थिरता

clock गति में भय है । कई लोग बहुत ही असहज हो जाते हैं यदि जीवन में घटनायें तेजी से घटने लगती हैं। हम लोग शायद यह नहीं समझ पाते कि हम कहाँ पहुँचेंगे। अज्ञात का भय ही हमें असहज कर देता है। हमें लगता है कि इतना तेज चलने से हम कहीं गिर न पड़ें। व्यवधानों का भय हमें गति में आने से रोकता रहता है। प्रकृति के सानिध्य में रहने वालों को गति सदैव भयावह लगती है क्योंकि प्रकृति में गति आने का अर्थ है कुछ न कुछ विनाश।

Sunday, November 22, 2009

एक साहबी आत्मा (?) के प्रलाप

DSC00291 मानसिक हलचल एक ब्राउन साहबी आत्मा का प्रलाप है। जिसे आधारभूत वास्तविकतायें ज्ञात नहीं। जिसकी इच्छायें बटन दबाते पूर्ण होती हैं। जिसे अगले दिन, महीने, साल, दशक या शेष जीवन की फिक्र करने की जरूरत नहीं।

इस आकलन पर मैं आहत होता हूं। क्या ऐसा है?

Friday, November 20, 2009

अरहर की दाल और नीलगाय

मुझे पता चला कि उत्तरप्रदेश सरकार ने केन्द्र से नीलगाय को निर्बाध रूप से शिकार कर समाप्त करने की छूट देने के लिये अनुरोध किया है। यह खबर अपने आप में बहुत पकी नहीं है पर मुझे यह जरूर लगता है कि सरकार दलहन की फसल की कमी के लिये नीलगाय को सूली पर टांगने जरूर जा रही है। इसमें तथाकथित अहिन्दूवादी सरकार का मामला नहीं है। मध्यप्रदेश सरकार, जो हिन्दूवादी दल की है और जो गाय के नाम पर प्रचण्ड राजनीति कर सकती है, नीलगाय को मारने के लिये पहले ही तैयार है! बेचारी नीलगाय; उसका कोई पक्षधर नहीं!

Sunday, November 15, 2009

फोन का झुमका

aerobics पिछले कई दिनों से स्पॉण्डिलाइटिस के दर्द से परेशान हूं। इसका एक कारण फोन का गलत पोस्चर में प्रयोग भी है। मुझे लम्बे समय तक फोन पर काम करना होता है। फोन के इन-बिल्ट स्पीकर का प्रयोग कर हैण्ड्स-फ्री तरीके से काम करना सर्वोत्तम है, पर वह ठीक से काम करता नहीं। दूसरी ओर वाले को आवाज साफ सुनाई नहीं देती। लिहाजा, मैने अपने कम्यूनिकेशन प्रखण्ड के कर्मियों से कहा कि फोन में कोई हेड फोन जैसा अटैचमेण्ट दे दें जो मेरे हाथ फ्री रखे और हाथ फ्री रखने की रखने की प्रक्रिया में फोन के हैंण्ड सेट को सिर और (एक ओर झुका कर) कंधे के बीच दबाना न पड़े।

Saturday, November 14, 2009

प्लास्टिक डिस्पोजल

एक महत्वपूर्ण टिप्पणी प्रिय सत्येन्द जी की है -
जैसा कि आपके लेख से विदित हुआ कि प्लास्टिक को एक गड्डे में डाला गया है एवं उस पर रेत दल दी गयी है , यह पूर्ण समाधान नही है!
प्लास्टिक भविष्य के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. उम्मीद करता हूँ आपने प्लास्टिक और अन्य हानिकारक पदार्थो का, उचित विचार के साथ पूर्ण समाधान किया है!

Tuesday, November 10, 2009

समसाद मियां - अथ सीक्वलोख्यान

हीरालाल नामक चरित्र, जो गंगा के किनारे स्ट्रेटेजिक लोकेशन बना नारियल पकड़ रहे थे, को पढ़ कर श्री सतीश पंचम ने अपने गांव के समसाद मियां का आख्यान ई-मेला है। और हीरालाल के सीक्वल (Sequel) समसाद मियां बहुत ही पठनीय चरित्र हैं। श्री सतीश पंचम की कलम उस चरित से बहुत जस्टिस करती लगती है। आप उन्ही का लिखा आख्यान पढ़ें (और ऐसे सशक्त लेखन के लिये उनके ब्लॉग पर नियमित जायें):

Sunday, November 8, 2009

गंगा सफाई – प्रचारतन्त्र की जरूरत

DSC01908 (Small) पिछली बार की तरह इस रविवार को भी बीस-बाइस लोग जुटे शिवकुटी घाट के सफाई कार्यक्रम में। इस बार अधिक व्यवस्थित कार्यक्रम हुआ। एक गढ्ढे में प्लास्टिक और अन्य कचरा डाल कर रेत से ढंका गया – आग लगाने की जरूरत उचित नहीं समझी गई। मिट्टी की मूर्तियां और पॉलीथीन की पन्नियां पुन: श्रद्धालु लोग उतने ही जोश में घाट पर फैंक गये थे। वह सब बीना और ठिकाने लगाया गया।

Saturday, November 7, 2009

थकोहम्

मुझे अन्देशा था कि कोई न कोई कहेगा कि गंगा विषयक पोस्ट लिखना एकांगी हो गया है। मेरी पत्नीजी तो बहुत पहले कह चुकी थीं। पर कालान्तर में उन्हे शायद ठीक लगने लगा। अभी घोस्ट बस्टर जी ने कहा -

लेकिन थोड़े झिझकते हुए कहना चाहूंगा कि मामला थोड़ा प्रेडिक्टेबल होता जा रहा है. ब्लॉग पोस्ट्स में विविधता और सरप्राइज़ एलीमेंट की कुछ कमी महसूस कर रहा हूं।

Friday, November 6, 2009

हीरालाल की नारियल साधना

Heealal1 सिरपर छोटा सा जूड़ा बांधे निषाद घाट पर सामान्यत बैठे वह व्यक्ति कुछ भगत टाइप लगते थे। पिछले सोमवार उन्हें गंगा की कटान पर नीचे जरा सी जगह बना खड़े पाया। जहां वे खड़े थे, वह बड़ी स्ट्रेटेजिक लोकेशन लगती थी। वहां गंगा के बहाव को एक कोना मिलता था। गंगा की तेज धारा वहां से आगे तट को छोड़ती थी और तट के पास पानी गोल चक्कर सा खाता थम सा जाता था। गंगा के वेग ब्रेकर जैसा।

Wednesday, November 4, 2009

उत्सुकता व उत्साह

kautoohal
नतू पांड़े की उत्सुकता, शायद अन्नप्राशन के पहले खीर का विश्लेषण करती हुई!

उत्सुकता एक कीड़ा है, यदि काटता है तभी बुखार चढ़ता है। कभी कभी इस बुखार से पीड़ित व्यक्ति प्रश्न पूँछ कर अपनी अज्ञानता को प्रदर्शित करने में संकोच नहीं करते हैं। उपहास की दवाई से यह बुखार उतर भी जाता है। यदि आप परिस्थितियों के लिये नये हैं तो बुखार तेजी से चढ़ता है और बहुत देर तक चढ़ा रहता है। यदि आप समझते हैं कि आप पुरोधा हैं तो आपका मन आपकी रक्षा करता है और आपको समझा बुझाकर इस बुखार से बचा लेता है।

Monday, November 2, 2009

गंगा घाट की सफाई

GC15 एक व्यक्तिगत संकल्प  का इतना सुखद और जोशीला रिस्पॉंस मिलेगा, मुझे कल्पना नहीं थी।

शनिवार रात तक मैं सोच रहा था कि मेरी पत्नी, मैं, मेरा लड़का और भृत्यगण (भरतलाल और ऋषिकुमार) जायेंगे गंगा तट पर और एक घण्टे में जितना सम्भव होगा घाट की सफाई करेंगे। मैने अनुमान भी लगा लिया था कि घाट लगभग २५० मीटर लम्बा और ६० मीटर आधार का एक तिकोना टुकड़ा है। उसमें लगभग चार-पांच क्विण्टल कचरा - ज्यादातर प्लास्टर ऑफ पेरिस की पेण्ट लगी मूर्तियां और प्लास्टिक/पॉलीथीन/कांच; होगा। लेकिन मैने जितना अनुमान किया था उससे ज्यादा निकला सफाई का काम।

Sunday, November 1, 2009

अघोरी

sanichara alaav अलाव तापता जवाहिरलाल, लोग और सबसे बायें खड़े पण्डाजी

जवाहिरलाल को दो गर्म कपड़े दिये गये। एक जैकेट और दूसरा स्वेटर।

ये देने के लिये हम इंतजार कर रहे थे। पैर के कांच लगने की तकलीफ से जवाहिरलाल लंगड़ा कर चल रहा था। दूर वैतरणी नाले के पास आता दिखा। उसे अपने नियत स्थान पर आने में देर हुई। वह सूखी पत्तियां और बेलें ले कर आया – अलाव बनाने को। उसने ईंधन जमीन पर पटका तो मेरी पत्नीजी ने उसे गर्म कपड़े देते समय स्माल टॉक की – "यह जैकेट का कलर आपकी लुंगी से मैच करता है"।

जवाहिरलाल ऐसे मुस्कराया गर्म कपड़े लेते समय, मानो आन्द्रे अगासी बिम्बलडन की शील्ड ग्रहण कर रहा हो। हमें आशा बंधी कि अब वह सर्दी में नंगे बदन नहीं घूमा करेगा।