हम चाहें या न चाहें, सीमाओं के साथ जीना होता है।
घाट की सीढियों पर अवैध निर्माण
गंगा किनारे घूमने जाते हैं। बड़े सूक्ष्म तरीके से लोग गंगा के साथ छेड़ छाड़ करते हैं। अच्छा नहीं लगता पर फिर भी परिवर्तन देखते चले जाने का मन होता है।
अचानक हम देखते हैं कि कोई घाट पर सीधे अतिक्रमण कर रहा है। एक व्यक्ति अपने घर से पाइप बिछा घर का मैला पानी घाट की सीढ़ियों पर फैलाने का इन्तजाम करा रहा है। घाट की सीढियों के एक हिस्से को वह व्यक्तिगत कोर्टयार्ड के रूप में हड़पने का निर्माण भी कर रहा है! यह वह बहुत तेजी से करता है, जिससे कोई कुछ कहने-करने योग्य ही न रहे - फेट एकम्प्ली - fait accompli!
वह आदमी सवेरे मिलता नहीं। अवैध निर्माण कराने के बाद यहां रहने आयेगा।
मैं अन्दर ही अन्दर उबलता हूं। पर मेरी पत्नीजी तो वहां मन्दिर पर आश्रित रहने वालों को खरी-खोटी सुनाती हैं। वे लोग चुपचाप सुनते हैं। निश्चय ही वे मन्दिर और घाट को अपने स्वार्थ लिये दोहन करने वाले लोग हैं। उस अतिक्रमण करने वाले की बिरादरी के। ऐसे लोगों के कारण भारत में अधिकांश मन्दिरों-घाटों का यही हाल है। इसी कारण से वे गटरहाउस लगने लगते हैं।