समीर लाल अपने टिपेरने की कला पर बेहतर फॉलोइंग रखते हैं। उनकी टिप्पणियां जबरदस्त होती हैं। पर उनकी पोस्टों का कण्टेण्ट बहुत बढ़िया नहीं है। कभी कभी तो चुकायमान सा लगता है। उनकी हिन्दी सेवा की झण्डाबरदारी यूं लगती है जैसे अपने को व्यक्ति नहीं, संस्था मानते हों!
अनूप शुक्ल की पोस्टें दमदार होती थीं, होती हैं और होती रहेंगी (सम्भावना)। चिठ्ठा-चर्चा के माध्यम से मुरीद भी बना रखे हैं ढेरों। पर उनकी हाल की झगड़े बाजी जमती नहीं। दम्भ और अभिमान तत्व झलकता है। मौज लेने की कोई लक्ष्मण रेखा तय नहीं कर पाये पण्डित।
दोनो में ब्लॉगरी की जबरदस्त सम्भावनायें हैं और कुछ कमजोरियां तो मैने ऊपर ठेल ही दी हैं।
कौन बेहतर ब्लॉगर है – शुक्ल कि लाल?!
खैर – शिवकुटी मन्दिर पर लोगों ने झण्डे चढ़ाये हैं वैशाख मलमास (अधिक-मास) में। आप वह चित्र देखें -