Friday, May 21, 2010

3जी की 67,000 करोड़ की नीलामी

Gyan623-001 मेरे दोनो अखबार – बिजनेस स्टेण्डर्ड और इण्डियन एक्स्प्रेस बड़ी हेडलाइन दे रहे हैं कि सरकार को 3जी की नीलामी में छप्परफाड (उनके शब्द – Windfall और Bonanza) कमाई हुई है।

तीन दशक पहले – जब मैं जूनियर अफसर था तो १५० लोगों के दफ्तर में पांच-सात फोन थे। उनमें से एक में एसटीडी थी। घर में फोन नहीं था। पीसीओ बूथ भी नहीं थे। अब मेरे घर में लैण्डलाइन और मोबाइल मिला कर सात-आठ फोन हैं। सभी लोकल और दूर-कॉल में सक्षम। हाल ही में रेलवे ने एक अतिरिक्त सिमकार्ड दिया है। इसके अलावा हमारे भृत्य के पास अलग से दो मोबाइल हैं।

संचार तकनीक में कितना जबरदस्त परिवर्तन है इन दशकों में! कितनी बेहतर हो गयी हैं कम्यूनिकेशन सुविधायें। 

Gyan622-001 और एक स्पेक्ट्रम की संचार सेवा की नीलामी से ६७,००० करोड़ की कमाई! कितनी क्षमता है सर्विस सेक्टर की अन-वाइण्डिंग में। (वैसे यह भी लगता है कि जोश जोश में नीलामी में घणे पैसे दे दिये हैं कम्पनियों ने और ऐसा न हो कि मामला फिसड्डी हो जाये सेवा प्रदान करने में! नॉलेज ह्वार्टन का यह लेख पढ़ें।)

पर मैं बिजली की दशा देखता हूं। गीगाहर्ट्ज से पचास हर्ट्ज (संचार की फ्रीक्वेंसी से विद्युत की फ्रीक्वेंसी पर आने) में इतना परिवर्तन है कि जहां देखो वहां किल्लत। लूट और कंटिया फंसाऊ चोरी! यह शायद इस लिये कि कोई प्रतिस्पर्धा नहीं। आपके पास यह विकल्प नहीं है कि राज्य बिजली बोर्ड अगर ठीक से बिजली नहीं दे रहा तो टाटा या भारती या अ.ब.स. से बिजली ले पायें। लिहाजा आप सड़ल्ली सेवा पाने को अभिशप्त हैं। मैने पढ़ा नहीं है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट एक मुक्त स्पर्धा की दशा का विजन रखता है या नहीं। पर अगर विद्युत सेवा में भी सरकार को कमाई करनी है और सेवायें बेहतर करनी हैं तो संचार क्षेत्र जैसा कुछ होना होगा।

आप कह सकते हैं कि वैसा रेल के बारे में भी होना चाहिये। शायद वह कहना सही हो – यद्यपि मेरा आकलन है कि रेल सेवा, बिजली की सेवा से कहीं बेहतर दशा में है फिलहाल! 


यह पोस्ट कच्चे विचारों का सीधे पोस्ट में रूपान्तरण का परिणाम है। निश्चय ही उसमें हिन्दी के वाक्यों में अंग्रेजी के शब्द ज्यादा ही छिटके हैं। यदा कदा ऐसा होता है।

कदी कदी हिन्दी दी सेवा नहीं भी होन्दी! smile_regular  


चर्चायन – मसि-कागद के नाम से डा. चन्द्रकुमार जैन का ब्लॉग था/है, जिसमें साल भर से नई पोस्ट नहीं है। उसी नाम से नया ब्लॉग श्री दीपक “मशाल” जी का है। बहुत बढ़िया। अधिकतर लघु कथायें हैं। बहुत अच्छी। आप देखें। दीपक जी लिखते बहुत बढ़िया हैं, पर अपने चित्रों से भी आत्म-मुग्ध नजर आते हैं। हम भी होते अगर हमारा थोबड़ा उतना हैण्डसम होता! :-) ।  

35 comments:

  1. आर्थिकी विषयों पर आपकी पोस्ट जानकारी और विचार बिंदु देती रहती है -हिन्दी की सेवा सहज होनी चाहिए -सेवा करने के अहसानी भाव से नहीं !

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  2. टेलीफोन और रेल दोनों बिकाऊ आइटम हैं। बिजली अभी चोरी में कबाड़ने का। पहले इसे बिकाऊ तो बनाया जाए। उस क्षेत्र में तकनीकी विकास की जबर्दस्त आवश्यकता है। वैसे भी स्रोत संकट सब से अधिक ऊर्जा क्षेत्र में ही है।

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  3. बिजली के क्षैत्र में और रेल में दोनों में अपार संभावनाएँ हैं, जनता को सुविधा चाहिये, सुविधा के लिये जनता पैसे खर्चने से पीछे नहीं है, साथ ही इन दोनों उद्योगों में जबरदस्त तकनीकी बदलाव की जरुरत है। शायद निजीकरण इसका एक अच्छा विकल्प हो, और हम तो निजीकरण का समर्थन करते हैं, कम से कम विकास तो जल्दी होगा।

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  4. विद्युत परियोजनाओं का निजीकरण राजनैतिक चुहलबाजी और भ्रष्टाचार के चलते ढुलमुल हो गया वरना योजनायें क्रान्तिकारी थीं.

    आपको एनरॉन तो याद ही होगा और वैसी ही जाने कितनी योजनायें....शायद एक बार फिर आँधी आये क्यूँकि पिछली योजना तो अब निचुड़ चुकी है और कोई रस न बचा, इसलिए उम्मीद है कि नये रस की तलाश में कुछ नई क्रान्ति आये और भूले से फलिभूत हो जाये.

    उसी का इन्तजार है. जब तक बेसिक इन्फ्रास्टर्कचर के स्तम्भ ठीक न होंगे, याने, परिवहन, सड़क, पानी, बिजली, संचार (और सुरक्षा)- अकेले संचार क्रांति क्या करेगी. डिसबेलेन्सिंग हमेशा पछाड़ ही देती है.

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  5. सड़ल्ली विद्युत सेवा दिल्ली में जोरका का झटका देने वाली है अभी अभी अख़बार में पढ़ा कि ये सड़ल्ली सेवा ४० % महंगी होने जा रही है |

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  6. वैसे ये पैसा भी इस लिए आ गया की कुछ इमानदार लोगों की इस बोली पर पैनी नजर थी और अगर ऐसा नहीं रहा होता तो इसमें से 75% पैसे का बन्दर बाँट हो जाता / इसके बाद इतना तो कह सकते हैं की जिन्दा इंसानियत और ईमानदारी को हार्दिक सलाम / विचारणीय प्रस्तुती / हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  7. अभी देखते जाईये, एक दशक बाद संचार में भी बिजली जैसी कटौती होगी । दिन में 5 घंटे की घोषित कटौती । तब बैक अप के लिये कबूतर इत्यादि रखने पड़ेंगे ।
    दीपक जी की लघु कथायें बहुत ही सुन्दर लगीं । सारी पढ़ डालीं । अच्छा लिखने के लिये बधाई ।

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  8. इलेक्ट्रीसिटी ऐक्ट में विजन भर है। मैं प्रधानम्ंत्री बनूँ तो पहला हस्ताक्षर रेलवे के विनिवेश पर करूँगा। (दिल को बहलाने को .... ) पूरा इसलिए नहीं लिख रहा कि किसी ब्लॉगर विद्वान ने ये लिखा है - ग़ालिब का यह शेर बहुत लोग ग़लत जानते हैं।
    कोई अर्थशास्त्री तो नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि सरकार को कमाई कम हुई है। बहुत सम्भावनाएँ हैं इस क्षेत्र में - यहाँ तक कि ऑफिस जाना बन्द करा कर घर से काम करा ले।

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  9. पहले ये देखा जाऐ की बोली लगाई किन लोगो ने है, उम्‍मीद से ज्‍यादा देने वाले ये लोग वसूलेगे भी ज्‍यादा से ज्‍यादा......
    सतीश कुमार चौहान भिलाई

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  10. @सतीश कुमार चौहान - मेरे विचार से Law of abundance काम करेगा। ग्राहक भी नफे में रहेगा, सरकार भी और ऑपरेटर भी - ट्रेफिक वाल्यूम से कमायेंगे वे। (दर में कम्पीटीशन के मारे चूस नहीं पायेंगे! :) )

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  11. Sir,
    delhi me to bijili sayad private hato me hai waha bhi wahi problem hai. asal me iska utpadan sansadhano se hota hai agar satelite se hota to kab ka ye bhi bik gaya hota.

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  12. जनता को सुविधा चाहिये। शायद निजीकरण इसका एक अच्छा विकल्प हो। पर क्या ये समाधान हैं?

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  13. बहुत बढ़िया लिखा है... बिजली से काफी बेहतर है रेल... लेकिन दो सौ प्रतिशत सुधार की आवश्यकता... कर्मचारियों की खाली पड़ी पोस्टें भरी जायें और निकम्मों को बाहर का रास्ता दिखाया जाये.. काम करने वालों को प्रोत्साहित किया जाये..

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  14. हमारे शहर के अनुभव इसके उलट हैं बिजली विभाग रेलवे से निश्चित तौर पर बेहतर काम कर रहा है... खासकर मैट्रो का परिचालन देखने के बाद तो रेलवे की सड़ल्‍ली सेवा और भी दिखती है लोग रेलवे में अब मरने के लिए दुर्घटना का इंतजार भी नहंी करते बेचारे प्‍लेटफार्म पर भगदड़ में ही सिधार जाते हैं दूसरी ओर निजीकरण वाली बिजली सेवा की तुलना में एनडीएमसी इलाके की सरकारी बिजली न केवल सस्‍ती है वरन सेवा भी बेहतर है।
    कुल मिलाकर मामला नीयत का है।

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  15. सरकार को ६७००० करोड़ रूपये मिलने का मतलब है टू-जी में हुए घोटाले से जो घाटा हुआ था वह कवर हो गया. ब्रेक-एवेन पर पहुँच गई सरकार. बिजली संकट जल्द ही कुलांचे मारेगा. इन्फ्रा-स्ट्रक्चर वाले सभी मंत्रालयों की हालत सबसे ज्यादा खराब है. एक मंत्री रोज २० किलोमीटर सड़क बनवा रहा था. एक और हर साल पाँच हज़ार मेगावाट बिजली पैदा करने वाला था. ये सब कहाँ है कोई खबर ही नहीं है.

    खाने की चीजों के दाम बढ़ते जा रहे हैं और सरकार द्वारा खरीदा गया गेंहू धूप, बरसात और सर्दी में बिना कम्बल ओढ़े कठिन परीक्षा दे रहा है. जब खाने के बारे में सरकार को चिंता नहीं है तो बिजली की कौन बिसात?

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  16. मैं तो रेल्वे के निजीकरण का पक्षधर रहा हूँ तो ज्यादा कहने को कुछ नहीं. सरकार का काम कमाना नहीं, व्यवस्था बनाए रखना है. हमारे यहाँ व्यवस्था तो है नहीं, सरकार दूध बेचने से लेकर रेल चलाने तक का काम करती है.

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  17. अजी भारत तो भगवान के भरोसे चल रहा है, वो चाहे कोई सा ्भी महकमा हो... यहां जो भी सकीम दिमाग से बनेगी फ़ेल ही होगी, जो जुगाड से बने गी पास होगी

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  18. शुरु मे जब रेल और बिजली दोनो निजी हाथो मे थे कामयाब थे . बिज़ली हमारे शहर मे मार्टिन एन्ड वर्न्ट कं. के हाथ मे थी उनका अपना कोयले का बिज़ली बनाने का सय्न्त्र था मज़ाल थी की बिज़ली चली जाये . उस समय तांबे के तार लगे थे . फ़िर वह कम्पनी एक लाला ने खरीद ली तब तार एल्मोनियम के हो गये फ़िर सरकारीकरण हो गया तार लोहे के हो गये . अब तो पलास्तिक कए तारो का इन्तज़ार है कोई फ़र्क नही पडेगा क्योकि लाइट आती ही नही .
    और रेल की बात उस समय ट्रेन से टाइम मिला लिया करते थे .आज .............सुरक्षा संरक्षा और समय पालन ....एक मज़ाक लगता है

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  19. मसिजीवी जी से सहमत हूँ.."कुल मिलाकर मामला नीयत का !"
    हमारे अनुभव कहते हैं ..हमारी बिजली से बहुत बेहतर है रेल !
    बिजली छः घंटे रहती है चौबीस में ! छः महीने से हालत है यह ! रोष में बिल जमा करने नहीं गया ! छः महीने बीत गये तो नीयत और एक साथ अधिक राशि जमा करने के खौफ से जमा कर आया !

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  20. @ Himanshu > बिजली छः घंटे रहती है चौबीस में !

    अच्छा? इण्टरनेट मैनेजमेण्ट कैसे होता है? Must be tight rope dancing!

    और शायद यह भी पता नहीं रहता होगा कि किस छ घण्टे रहेगी!

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  21. दिक्कत ये है कि बिजली पैदा करने के लिये बहुत संसाधन चाहिये जो कि संचार के मामले से अलग है वरना यहाँ भी ऐसी सुविधा हो जाती।

    बाकी भारत में सार्वजनिक सेवाओं का जो हाल है उस हिसाब से रेलवे को मैं काफी बेहतर मानता हूँ।

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  22. ज़र्रानवाज़ी के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया सर.. जिस दिन मेरा लेखन आपके लेखन की तुलना में १२-१५(taking your articles as standard 20) भी हो गया तो आपसे आपसे आशीर्वाद लूंगा जरूर.. वैसे इस बार भारत गया था तो ३ दिन इलाहाबाद में रुका था.. पर उस समय तक पता नहीं था कि आप वहीँ पर हैं.. :(

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  23. बहुत ही बढ़िया जानकारी...पर दोनों ही सेवाओं में जबरदस्त सुधार की जरूरत है..

    दीपक मशाल तो बड़े कम और सरल शब्दों में ज़िन्दगी का सच बयाँ कर जाते हैं...तस्वीरें तो माशाल्लाह उनकी बहुत ही ख़ूबसूरत है...बस हमारे ब्लॉगजगत में दीदी और आंटियों की ही भरमार है...बेचारे का bad luck

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  24. संचार क्रांति के पुरोधा थे राजीव गांधी और सैम पित्रोदा. विद्युत में बंदरबांट लगी है . राज्य भी बिना केंद्र की अनुमति के बिजली नहीं पैदा कर सकता .
    काम बढ़ रहा है विद्युत के क्षेत्र में लेकिन रुकावटें भी पैदा की जा रही हैं . यह बात तो तय है की आना वाला समय गैर परमपरागत ऊर्जा का ही हो सकता है .
    3G में BSNL इंतजार कर रहा है अपनी सेवा प्रारंभ करने का , कहीं निजी क्षेत्र को नुकसान न हो जाए यह देखते हुए .जैसा भाई चारा उसने 2G में निभाया था .
    रेल के बारे में केवल इतना की इसका नाम भारतीय रेल की बजाय बिहार बंगाल रेल्वे रख देना चाहिए ,वहाँ के नेताओं की पहली पसंद रेल मंत्रालय .

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  25. उत्तम प्रदेश का ख्वाब दिखाने वाले मुलायम जी ने कुछ साल पहले दादरी प्रोजेक्ट शुरु किया था और सबसे वादा था कि उस सन्यत्र से वो उत्तर प्रदेश मे बिजली क्रान्ति लाने वाले थे.. जब उनकी सरकार गयी तब खबर हुयी कि वो पूरी परियोजना सिर्फ़ पेपर पर थी..

    मै विद्युत सेवा को प्राईवेट सेक्टर को दिये जाने का समर्थन करूगा लेकिन ऎसी सेवाये भी कई वेन्डर्स को बांटी जानी चाहिये..

    वैसे बाम्बे मे विद्युत सेवा प्राईवेट सेक्टर के ही हाथ मे है.. कई सुविधाये रहती है जैसे ओनलाईन पेमेन्ट इत्यादि.. लेकिन एकदम समस्या मुक्त ये भी नही है... बोरीवली क्षेत्र Reliance के पास आता है... अनिल अम्बानी की कम्पनी कस्टमर केयर के नाम पर तो वैसे भी गयी गुज़री है.. अभी कुछ महीनो पहले ही लोगो ने कुछ राजनीतिक पार्टियो के साथ इनके ओफ़िस मे तोड्फ़ोड की थी क्यूकि इनके बिल हमेशा आसमान छूते थे.. और तब उन्होने बात मानी कि बिल जेनेरेशन मे कुछ गडबड हुयी है.. ये सब दिक्कते भी रहेगी.. कुल मिलाकर प्रोसेस फ़ुलप्रूफ़ होनी चाहिये..

    रही रेलवे प्राईवेटाईजेशन की बात, आप शायद रेलवे प्राईवेटाईजेशन को इकोनोमिक नजरिये से देख रहे है.. ठीक है मुनाफ़ा हो रहा है लेकिन जिस गति से हम संख्या मे बढते जा रहे है.. सुविधाये उतनी ही रफ़्तार से कम होती जा रही है.. हमे वो भी देखना होगा.. न जाने कितने शहरो मे अभी भी बडी लाईन नही है.. कोलिजन डिटेक्शन जैसी चीजे बनानी पडेगी.. महानगरो मे मेट्रोस अब बस फ़टने के कगार पर है.. इसमे भी नये प्रयोग करने होगे... और सरकार से नये प्रयोगो को उम्मीदे तो कम ही है...

    BTW Lets hope for the best.. Amen..

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  26. पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा सभी आवशक आवश्यकताएँ हैं. इन पर सर्वदयीय सहमति से एक नीति बनायीं जानी चाहिए. सरकार के बनने या बिगड़ने का प्रभाव इन पर नहीं पड़ना चाहिए. जो जन हित में सर्वोत्तम हो उस नीति का (विशेषज्ञों की मदद से) चुनाव कर, कठोरता से पालन कराना चाहिए...इन मुद्दों पर कभी राजनीति नहीं होनी चाहिए.

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  27. इस छप्पर के फटने के साथ ही आंखें भी फटी रह गई जब G2 की याद आई...

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  28. आपके पास यह विकल्प नहीं है कि राज्य बिजली बोर्ड अगर ठीक से बिजली नहीं दे रहा तो टाटा या भारती या अ.ब.स. से बिजली ले पायें...

    संचार सेवा के लिए भी तो बिजली की ही आवश्यकता होती है ...

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  29. निजी दूर संचार कम्‍पनियों ने तो यह धारणा भी भंग कर दी कि प्रतियोगिता से ग्राहक लाभान्वित होता है। यहॉं तो सब मिल कर लूट रही हैं।

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  30. रेल सेवा, बिजली की सेवा से कहीं बेहतर दशा में है फिलहाल!.... फ़िलहाल तो अंडमान में रेल सेवा का अस्तित्व ही नहीं है, बिजली जरुर है.


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    'शब्द-शिखर' पर ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!

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  31. विद्युत का निजीकरण हो जाये तो सचमुच सारी समस्यायें हल हो जायें. ज्ञान जी, तीन दशक पहले की बात तो मुझे भी याद है, लेकिन उस वक्त एसटीडी सेवा कहां होती थी? मुझे याद है, फोन करना हो तो पोस्ट ऑफ़िस या किसी फोन धारक के घर जाना पड़ता था, और वहां से ट्रंक कॉल बुक की जाती थी, बाद में दूरसंचार वाले ही लाइन मिल जाने की सूचना देकर बात करवाते थे.

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  32. ट्रेन कम से कम देर सबेर पहुंचा तो देती है और बिजली तो इतनी कम कि
    मोबाइल भी चार्ज नहीं हो पाता कभी - कभी .. अक्सर पढ़ाई के समय गुल रहती
    है लाईट ! .. गाँव में मोटर वाले निराश रहते हैं और इंजन वालों से खेत सिंचवाते
    हैं .. रेलवे बेहतर !

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  33. @8326608788024950670.0
    निजीकरण लाभप्रद है जब कम्पनियां/स्पर्धा स्तरीय हो और लोकल माफिया की दखलन्दाजी न हो! :)

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  34. आपने 50 हर्त्ज की आज की सड़ेली बिजली सेवा के बारे में बात कर हमारी दुखती रग को जैसे दबा दिया.
    जब हमने विद्युत मंडल की नौकरी चुनी थी, तब यह सर्वोत्तम प्रबंधित और हाईली पेड सर्विस थी. इसके सरप्लस फंड का इस्तेमाल कई दफा राज्य सरकारों ने भी किया था, और अब हालात ये हैं कि पिछले महीने इसके पास हम जैसे पेंशनरों को पेंशन देने के लिए भी इसके पास पैसे नहीं थे.
    नब्बे के दशक के वोटों के गणित, मुफ़्त बिजली, बिल माफी, कंटिया फँसाऊ राजनीति के साथ भ्रष्ट अफ़सरशाही, अ-दूरदर्शी नीति और राजनीति की घनघोर घुसपैठ ने विद्युतमंडल को पंचर ही नहीं, पूरी तरह से बर्स्ट कर दिया.
    रहा सवाल संचार कंपनियों का तो यह तो आपको भी पता है कि एक मर्तबा इन्फ्रास्ट्रक्चर डाल लेने के बाद उनका इनपुट में कोई खर्चा नहीं है, बस फायदा उठाते जाओ. बिजली बनाने बेचने की निजी कंपनियों को इजाजत तो अब है, मगर इनपुट 'तेल-कोयला-पानी' कहाँ है?
    सार यह कि बिजली की स्थिति तो भारत में, सदा-सर्वदा किल्लत युक्त ही बनी रहनी है!

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय