बापी ओडीसा जाने के बाद क्या कर रहा है? मैं सतीश पंचम जी से फॉलो-अप का अनुरोध करता हूं।
बापी वाली पोस्ट एक महत्वपूर्ण पोस्ट है हिन्दी ब्लॉगिंग की – भाषा और विषय वस्तु में नया प्रयोग। यह बिना फॉलो-अप के नहीं जाना चाहिये। अगर आपने सतीश जी की उक्त पोस्ट नहीं पढ़ी है तो कृपया पढ़ें। बापी मुम्बई की जिन्दगी की करमघसेटी को किन तर्कों के साथ तिलांजलि देता है, और किस भाषा में, वह पढ़ने की चीज है।
रिवर्स माइग्रेशन एक स्वप्न की वस्तु नहीं है। अर्थव्यवस्था में अच्छी वृद्धि दर के साथ समृद्धि छोटे शहरों/गांवों/कस्बों में पसीजनी चाहिये। अन्यथा असमान विकास अपने को झेल नहीं पायेगा।
जला हुआ खलिहान देखकर
नेता का दालान देखकर
मुस्काता शैतान देखकर
घिघियाता इंसान देखकर
कहीं नहीं ईमान देखकर
बोझ हुआ मेहमान देखकर
गांव गया था गांव से भागा।
--- श्री कैलाश गौतम की कविता का अंश।
बापी का रिवर्स माइग्रेशन सफल होना चाहिये। इसके अलावा और बापी होंगे। उनके बारे में भी ब्लॉगों पर आना चाहिये। अगर हिन्दी ब्लॉगर मात्र एलीट (पढ़ें खाया-पिया-अघाया) जीव नहीं है और वह सही मायने में अपने परिवेश को अवलोकन करने वाला है, तो उसे सामान्य पोस्टों से अलग ये चरित्र सामने लाने चाहियें।
कैलाश गौतम जी की कविता – गांव गया था गांव से भागा बहुत डैमेज करती है रिवर्स माइग्रेशन की सोच को। छुद्रता की सड़ांध शहर-गांव सभी को समान भंजित करती है। आप जितना बढ़िया विद्रुप लेखन शिवपालगंज पर कर सकते हैं उतना ही मालाबार हिल्स पर भी। पर आप गांव को सिरे से खारिज कर सकते हैं? शायद नहीं। मैं शायद इस लिये जोड़ रहा हूं कि कुछ सत्यापन मुझे अभी करना है।
बापी पर फॉलो-अप और बापीयॉटिक पोस्टों की दरकार है।
देख, सोचने का क्या है कि पिछला मेना (महिना) से मैं सोच रहा था कि मैं इदर बांबे में किसके लिये इतना सुबे से शाम तक मरवा रहा हूँ…….साला अकेला के लिये तो अपना ओड़ीसा में बी उतना ही कमा के रेह सकता हूँ। फिर काएको दूसरे के लव* को तेल बील लगाते बैठने का।
--- सतीश पंचम की पोस्ट से।
जब मैं ब्लॉग ब्लॉगस्पॉट पर ही चला रहा हूं तो चर्चा के लिये उपयुक्त टिप्पणी यंत्र के हेतु डिस्कस (DisQus) का प्रयोग जानबूझ कर पुन: शुरू कर रहा हूं। असुविधा के लिये खेद है। और यह आशा भी है कि आप अपने ट्विटर/फेसबुक/डिस्कस अकाउण्ट से या बतौर अतिथि टिप्पणी अवश्य करेंगे।