मेरे मस्तिष्क में दायीं ओर सूजन होने के कारण बायें हाथ में शैथिल्य है। उसके चलते इस ब्लॉग पर गतिविधि २५ मई से नहीं हो पा रही, यद्यपि मन की हलचल यथावत है। अत: सम्भवत: १५-२० जून तक गतिविधि नहीं कर पाऊंगा। मुझे खेद है।
ब्लॉग लिखे जा रहे हैं, पढ़े नहीं जा रहे। पठनीय भी पढ़े नहीं जा रहे। जोर टिप्पणियों पर है। जिनके लिये पोस्ट ब्राउज करना भर पर्याप्त है, पढ़ने की जरूरत नहीं। कम से कम समय में अधिक से अधिक टिप्पणियां – यही ट्रेण्ड बन गया है।
यह चिठेरा भी जानता है और टिपेरा भी। पर चूंकि ब्लॉग सोशल नेटवर्किंग का बढ़िया रोल अदा कर रहे हैं, यह पक्ष मजे में नजर अन्दाज हो रहा है। चिठ्ठाचर्चा लोगों को कितना पढ़ने को उत्प्रेरित कर रहा है – यह भी देखा जाना चाहिये। चर्चाकार, मेहनत बहुत करते हैं पोस्टें पढ़ने में और लोगों को पढ़ने की ओर प्रेरित करने में। निश्चय ही। पर लोग उसमें से मात्र अपनी पोस्ट की चर्चा का द्वीप ढूंढ़ते हैं। वहां से अन्य के लिंक क्लिक कर ब्लॉग पर जाने का चलन बढ़ा नहीं हैं।
मुझे अपनी एक पुरानी पोस्ट पर आलोक पुराणिक की टिप्पणी याद आती है जो कल मैने अचानक फिर से देखी -
नयी पीढ़ी भौत अपने टाइम को लेकर कास्ट-इफेक्टिव है जी। काफी हाऊस में टाइम नहीं गलाती, सो वहां फेडआऊट सा सीन ही दिखता है। काफी हाऊस कल्चर फंडामेंटली बदल गया है, बहस-मुबाहसे के मसले और जरुरतें बदल गयी हैं। साहित्यिक चर्चाएं बदल गयी हैं।
आपने अच्छा लिखा,बुरा लिखा, ये मसला नहीं है। मसला ये है कि आप हमारे गिरोह में हैं या नहीं। अगर हैं, तो फिर आपको पढ़ने की क्या जरुरत है,आप बेस्ट हैं। और अगर हमारे गिरोह में नहीं हैं, तो फिर आपको पढ़ने की क्या जरुरत है?
सो, आइदर वे, पढ़ने की जरूरत नहीं है। साहित्य में यह हाल है। शोध प्रबन्ध में भी। और हिन्दी ब्लॉगरी में भी। आप गिरोह में हैं तो भी और नहीं हैं तो भी!
मिनी कथा - नुक्कड़ पर वह बदहवास सा दिखा। सांस फूली थी। पूछने पर थोड़ा थम कर बताया। “ये पतरकी गली में जो एटीएम है; वहां से नयी नकोर टिप्पणियों की गड्डी निकाल कर ला रहा था। सोचा था, हर एक ब्लॉग पर एक एक टिकाऊंगा। पतरकी गली सूनसान थी। इससे पहले कि जेब में सहेज पाता गड्डी, लाइट चली गई। और एक पतला सा आदमी छिनैती कर पूरी की पूरी गड्डी ले गया। पूरे हफ्ते का काम बन गया उसका!”
उनके पूरे कथन में मायूसी और तिक्तता भर गई थी। “क्या बताऊं, नया नया ब्लॉग खोला था। सजाने संवारने में यह गड्डी निवेश करता। पर जैसी कानून-व्यवस्था की दशा है, उसके देखते लगता है, ब्लॉग बन्द करना पड़ेगा।”
“पर आप पढ़ कर टिप्पणियां क्यों नहीं कर देते? उसमें खर्चा कुछ नहीं होगा।” – मैने कहा।
लगभग खा जाने की मुद्रा से उन्होने मुझे देखा। “देखो सर जी, ज्यादा अक्कल न हो तो बोला मत करो। पढ़ कर टिप्पणी करने का टाइम होता तो एटीएम से टिप्पणियों की गड्डी निकालने जाता मैं?”
शम्स के ब्लॉग के थ्रेडेड कमेण्ट व्यवस्था को ले कर फिर कुछ परिवर्तन किया है। इसका प्रयोग मैं प्रत्युत्तर देने में करूंगा। आप सामान्य तरह से टिप्पणी कर सकते हैं! इस जुगाड़ को खोजने का काम किया था श्री पंकज उपाध्याय ने।
आपने सत्य कहा. यहाँ सब लेखक हैँ, पाठक कोई नही. अपने किसी पोस्ट मेँ मैने कहा था,
ReplyDeleteआपका मंच है आपको रोका किसने ?
अपने पोखर को समन्दर कहिये..
अब गौर करने की बात यह है कि इस मानसिकता को बढावा देने वाले कौन से कारक है?
क्या बात है कि धर्मिक उन्माद और व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप वाले पोस्ट ही सर्वाधिक पढे गये की फेहरिस्त मेँ शुमार हैँ?
निश्चित तौर पर यह ब्लाग हमारे वर्तमान के समाज का ही अभिव्यक्ति मंच है और हमारा समाज यहाँ प्रतिबिम्बित ना हो , यह सम्भव नही. समाज का रूख स्पष्ट हो चुका है, नैतिक मुल्योँ के स्खलन के इस दौर मेँ मानवीय सरोकार और मुल्य हाशिए पर हैँ .
यह गम्भीर मामला है, और इस पर एक मतैक्यता
पर पहुंच कर समाधान रखना बडी चुनौती!
@Kanishka Kashyap
ReplyDeleteअपने पोखर को समन्दर कहिये..
लाज़वाब कहा है कश्यप जी। अपने पोखर को समन्दर कहना भी शायद गलत नहीं। लेकिन औरों के पोखरों-समन्दरों को पढ़ना-परखना, वह नहीं हो रहा!
ब्लॉग लिखे जा रहे हैं, पढ़े नहीं जा रहे। पठनीय भी पढ़े नहीं जा रहे। जोर टिप्पणियों पर है।
ReplyDeleteji haa bilkul thik kaha hai apne. aaj awashyakata hai padhna aur manan karna aawasyak hai. sahmati utni aawashyak nahi jitni samalochna. yah pratyek baudhik ki soch honi hi chahiye.
@Dr.J.P.Tiwari
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा तिवारी जी। आप तो बहुत सरल और बहुत सशक्त लिखते हैं!
टिप्पणियों वाली एटीएम ! मैं भी होकर आता हूं :)
ReplyDeleteलघु कथा आधुनिक -बोध से जीवंत हो उठी है ! बधाई ! बाकी तो टिप्पणी चिंतन तो ब्लॉग जगत की हरि कथा बनती गयी है !
ReplyDeleteपढने से क्या मिलेगा ? ज्ञान ? वह क्यूकर जरूरी हुआ ? टिप्पणी दान कम से कम टिप्पणी प्रतिदान -महादान तो कराएगा ब्लॉग जजमानों से ....टिप्पणी विनिमय संक्रांति है यह !
हम पढने के लिए थोड़े पैदा हुए है....
ReplyDeleteमुझे तो टिप्पणीयों के बारे में बातें करते हुए अक्सर नमक हलाल फिल्म का वह डॉयलॉग याद आता है जिसमें होटल मैनेजर रंजीत के साथ अमिताभ बच्चन का ढिंचाक, रापचीक वार्तालाप होता है।
ReplyDeleteएक ही सांस में अमिताभ बिना ब्रेक लगाए भकर भकर बकते जाते हैं......क्या कहते हैं वह उन्हें खुद भी नहीं पता लेकिन रंजीत से पूछते जरूर हैं कि मेरी इस अंगरेजी पर आप कुछ टिप्पणी करेंगे :)
वह भकर भकर बोलने वाला डॉयलॉग यह रहा -
Lo kallo baat. Are aisi angrezi ave hain ke I can leave angrez behind )
I can talk english, I can walk english, I can laugh english, because english is a funny language. Bhairo becomes barren and barren becomes Bhairo because their minds are very narrow.
In the year 1929 when India was playing Australia at the Melbourne stadium Vijay Hazare and Vijay Merchant were at the crease. Vijay Merchant told Vijay Hazare. look Vijay Hazare Sir , this is a very prestigious match and we must consider it very prestigiously. We must take this into consideration, the consideration that this is an important match and ultimately this consideration must end in a run.
In the year 1979 when Pakistan was playing against India at the Wankhede stadium Wasim Raja and Wasim Bari were at the crease and they took the same consideration. Wasim Raja told Wasim Bari, look Wasim Bari, we must consider this consideration and considering that this is an important match we must put this consideration into action and ultimately score a run. And both of them considered the consideration and ran and both of them got out.
ऐसे भयंकर अंगरेजी बोलने पर जब टिप्पणी मांगी जा सकती है तो फिर हिंदी बोलने, लिखने के बाद टिप्पणी मांगना कोई गलत तो नही :)
मेरे बैंकर ने मुझे एटीम कार्ड ही नहीं दिया है। पुराने टाइप का बैंक है। बुक सं..खोली जाती है, इंट्री की जाती है, पासबुक पर चढ़ाया जाता है। बहुत समय लगता है। कौन जाय बैंक! लिहाजा कम पढ़ते हैं और कम टिपियाते हैं।
ReplyDeleteसमय मुझे अपनी औकात में बनाए रखता है।
बैंक बैलेंस बढ़ाने की परवाह ही नहीं है। कुछ धन मेरे यहाँ भी अत्याधुनिक बैंकों के एटीएम से आता है, मुझे समझ ही नहीं आता कि उसका क्या करूँ?
लघु कथा अच्छी लगी ....!!
ReplyDelete@5583834664943060301.0
ReplyDeleteयह टिप्पणी देख तो पोस्ट डिलीट कर टिप्पणी रखने का मन हो रहा है!
हम तो एटीएम कार्ड से ही डरते हैं, आज तक लिया ही नहीं।
ReplyDeleteब्लॉग पढ़े नहीं जा रहे इस बात से मैं सहमत नहीं |
ReplyDeleteब्लॉग पढ़े जा रहे है , हाँ यह जरुर है कि ब्लॉग ब्लोगर्स द्वारा कम पढ़े जा रहे है जो ब्लॉग पोस्ट ब्लोगर्स द्वारा ज्यादा पढ़ी जाती है टिप्पणियाँ उसी पर ज्यादा आती है |
जो पाठक गूगल या दुसरे सर्च इंजन से ब्लॉग कंटेंट तलाश करता हुआ आता है वह अपनी रूचि का मसाला मिलने पर ब्लॉग को पढने का पूरा फायदा उठाता है |
मैंने ज्ञान दर्पण पर पिछली पोस्ट १५ मई को लिखी थी , यदि सिर्फ ब्लोगर ही मेरे पाठक होते तो शायद १६ मई से आजतक ज्ञान दर्पण पर एक भी पाठक नहीं आता क्योंकि ब्लोगर तो सिर्फ उसी दिन आते है जिस दिन पोस्ट ब्लोग्वानी व चिट्ठाजगत पर प्रकाशित होती है जबकि १६ मई से अब तक ज्ञान दर्पण पर १०८३ पाठक आ चुके है और उन्होंने २८०० पेज पढ़ें है पर टिप्पणी एक भी नहीं | इससे साफ़ जाहिर है ब्लॉग तो खूब पढ़े जा रहे है पर पाठक सिर्फ पढता है वह टिप्पणी वाली ओपचारिकता में नहीं पड़ता जबकि ब्लोगर कभी ब्लॉग पर आ भी गए तो वे सरसरी तौर पर पोस्ट पढ़कर टिप्पणी रूपी रस्म पूरी कर चलते बनते है ( मैं भी कई बार एसा ही करता हूँ )
ब्लॉग पर लिखे जाने वाले कंटेंट यदि पाठकों को ध्यान में रखकर लिखे जाये तो पाठक गूगल सर्च करते हुए जरुर आयेंगे | मैं तो ब्लोगर्स की बजाय पाठको को आकर्षित करने का टार्गेट लेकर लिखने की कोशिश करता हूँ |
@2378683806269224398.0
ReplyDeleteबेचारे बैंक - नहीं जानते कि गलत जगह भेज रहे हैं। आप उन्हे आगह तो कर दें! :)
मिनी कथा ने बहुत कहा !
ReplyDeleteटिप्पणियाँ देखने आता रहूँगा इस पोस्ट की !
टिप्पणियों वाला ATM? पतला सा आदमीं?
ReplyDeleteभगवान का शुक्र है आपने शारीरिक लक्षणों का वर्णन करने में कंजूसी की नहीं तो एक और हंगामा हो जाता.
पठन तो आवश्यक है, ये तो लिखने के लिए भी एक चारे का काम करता है, जितना ज्यादा पठन उतने ही अच्छे लेखक आप हो सकते है.
ReplyDeleteटिपण्णी पाना और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने से पानी के बुलबले तो बन सकते है पर नदी का प्रवाह नहीं. हाँ टिपण्णी में चर्चा हो और फीडबैक हो तो टिपण्णी मेरे लिए शिरोधार्य है.
@1997154491119708892.0
ReplyDeleteतकनीकी समस्या है। स्थूलकाय छिनैती कर भाग नहीं सकता! :)
विचारणीय प्रस्तुती जिसपर हम सभी को सार्थकता से सोचना जरूर चाहिए /
ReplyDeleteचलिए ई सब तो ठीक है .....सीधा सा सवाल हमारा भी !
ReplyDelete"आप हमारे गिरोह में हैं कि नहीं " ?
@टिप्पणी की व्यवस्था तो बहुत बढ़िया लग रही है |
आई लाइक इट !
हकीकत से आँखें मिलाती आपकी रचना के लिए कुछ दोहे भेज रहा हूँ-
ReplyDeleteटिप्पणी पाने के लिए टिप्पणी करना सीख।
बिन माँगे कुछ न मिले मिले माँगकर भीख।।
पोस्ट जहाँ रचना हुई किया शुरू यह खेल।
जहाँ तहाँ हर पोस्ट पर कुछ तो टिप्पणी ठेल।।
कहता रचनाकार क्या, क्या इसके आयाम।
"नाईस", "उम्दा" कुछ लिखें चल जाता है काम।।
आरकुट और मेल से माँगें सबकी राय।
कुछ टिप्पणी मिल जायेंगे करते रहें उपाय।।
टिप्पणी ऐसी कुछ मिले मन का टूटे धीर।
रोते रचनाकार वो होते जो गम्भीर।।
संख्या टिप्पणी की बढ़े, बढ़ जायेगा मान।
भले कथ्य विपरीत हों इस पर किसका ध्यान।।
गलती भी दिख जाय तो देना नहीं सलाह।
उलझेंगे कुछ इस तरह रोके सृजन प्रवाह।।
सृजन-कर्म है साधना भाव हृदय के खास।
व्यथित सुमन यह देखकर जब होता उपहास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ek tippani meri bhi darj ki jaye...dhanyawaad
ReplyDeleteये क्या कहा?, ब्लॉग भी पढने कि चीज़ है,
ReplyDelete'तगड़ा' कोई मिले तो ये लड़ने की चीज़ है,
'टिप्याने' की तमीज़ भी सब को भला कहाँ?
ओलो की तरह गिरके पिघलने की चीज़* है! [*टिप्पणी]
-mansoorali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
@5095721736102894369.0
ReplyDeleteआपके गिरोह में भी आ जाते हैं। आप हमें बेस्ट मानते हैं न?! :)
@5451816541407308109.0
ReplyDeleteवाह! यह तो एटीम की कतई नहीं है। :)
@Mansoor Ali
ReplyDeleteबहुत खूब कहा हाशमी जी - ओलो की तरह गिरके पिघलने की चीज़* है!
@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
ReplyDeleteयकीनन !
शम्स और पंकज बधाई के पात्र हैं । अभी देखते रहिये, गूगल वेव को भी थ्रेडेड टिप्पणियों के समर्थन में उतारने का मन बना रहे हैं पंकज जी ।
ReplyDeleteजब लोग, विशेषकर महिलायें, बहुत दिनों बात एकत्र होते हैं, सबके पास बताने के लिये कुछ न कुछ रहता है । उस समय कोई किसी की नहीं सुनता है, सब अपनी ही बताते हैं । इसी अवस्था से अभी तक गुज़र रहा है ब्लॉग जगत ।
सरल और ग्राह्य लिखने के लिये बहुत श्रम करना होता है, किसी की पोस्ट पढ़ समुचित टिप्पणी करने में और भी । टिप्पणियों की संख्या अगर आपको रोमांचित कर रही है तो आप टिप्पणियों की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देंगे ।
मैं टिप्पणियों को साहित्य सृजन मानता हूँ अतः अच्छी पोस्ट पर आधा घंटा बैठ कर टिप्पणी लिख सकने को भी व्यर्थ नहीं समझता । अभी तक की गयी सारी टिप्पणियाँ सुरक्षित रखी हैं और उनको कभी पढ़ता हूँ तो कई पुस्तक लिखने के भाव फुदकने लगते हैं ।
अतः अच्छा लिखा जाये और वैसी ही टिप्पणी भी ।
आप गिरोह में हैं तो भी और नहीं हैं तो भी!
ReplyDelete"असामाजिक/गिरोहविहीन/एकला चलो रे" वाले तत्वों का क्या होगा इब?
समुद्र मंथन है यह ......बिष भी निकलेगा तो अमृत भी ....
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
विषय जबरदस्त है और इस पर चिंतन करना चाहिये ?
ReplyDeleteपाठक तो आ रहा है पर ब्लॉगर तो एक दूसरे को पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, ठीक है भई अब पाठक नहीं आ रहे हैं और कुछ लिखा है तो किसी न किसी को तो पढ़ाना ही पड़ेगा ना।
परंतु अगर कंटेंटे अच्छा है तो सर्च इंजिन से लोग ढूँढ कर आ रहे हैं, और अगर किसी विशेष विषय पर ज्यादा लिखा जाये तो सर्च इंजिन में सबसे पहला लिंक होता है, तो पाठक तो अवश्य आ रहा है, पर हम ब्लॉगरों को भी लोगों को प्रोत्साहित करना होगा ब्लॉग पढ़ने के लिये।
सदाबहार टिप्पणियाँ ब्लॉगरों द्वारा की जाती हैं, इस पर मैंने एक पोस्ट भी लगाई थी जो कि आप ही के बज्ज की कॉपी पेस्ट थी हिन्दी ब्लॉगजगत की सदाबहार टिप्पणियां बतायें और कुछ यहाँ पायें।
टिप्पणियों का कार्य होता है विषय के सभी पक्षों की जानकारी देना। कई बार तो पोस्ट से भी ज्ञानवर्धक टिप्पणियाँ होती हैं, जो कि पोस्ट को गौण बना देतीं हैं।
आपके द्वारा टिप्पणी बक्से का प्रयोग बहुत अच्छा लगा, अब हमारे ब्लॉग पर तो इतनी टिप्पणी आती नहीं कि हमें जबाब देना पढ़े पर आप के लिये यह बिल्कुल उपयुक्त प्रतीत होता है। और प्रिव्यू करने पर सभी कमेंट्स की नीचे अपना कमेंट देखना एक अच्छा अनुभव रहा।
सचमुच
ReplyDeleteसरल और ग्राह्य लिखने के लिये बहुत श्रम करना होता है, किसी की पोस्ट पढ़ समुचित टिप्पणी करने में और भी । टिप्पणियों की संख्या अगर आपको रोमांचित कर रही है तो आप टिप्पणियों की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देंगे ।
मैं टिप्पणियों को साहित्य सृजन मानता हूँ अतः अच्छी पोस्ट पर आधा घंटा बैठ कर टिप्पणी लिख सकने को भी व्यर्थ नहीं समझता । अतः अच्छा लिखा जाये और वैसी ही टिप्पणी भी ।
.......मैं प्रवीण पन्देय जी की उक्त टिप्पणी से १००%सहमत हूं। लेकिन यह सार्थक तब होगा जब इसे ब्लागर और टिप्पणीकर्ता भी समझें और इस्पर गम्भीरता से मनन करें।
@6727328506810704733.0
ReplyDelete>कई बार तो पोस्ट से भी ज्ञानवर्धक टिप्पणियाँ होती हैं, जो कि पोस्ट को गौण बना देतीं हैं।
यही तो मजा है। वे वैल्यू देती हैं पोस्ट को। जैसे यह टिप्पणी!
@6086801671801152695.0
ReplyDeleteगिरोह हीन पर पोस्ट कण्टेण्ट ठीक रखने का भी दबाव रहता है और कनेक्टेड बने रहने का भी! :(
@8154452523047045644.0
ReplyDelete@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
मन कि बात मन में नहीं रखनी चाहिए.. :)
@ । चिठ्ठाचर्चा लोगों को कितना पढ़ने को उत्प्रेरित कर रहा है – यह भी देखा जाना चाहिये। चर्चाकार, मेहनत बहुत करते हैं पोस्टें पढ़ने में और लोगों को पढ़ने की ओर प्रेरित करने में। निश्चय ही। पर लोग उसमें से मात्र अपनी पोस्ट की चर्चा का द्वीप ढूंढ़ते हैं। वहां से अन्य के लिंक क्लिक कर ब्लॉग पर जाने का चलन बढ़ा नहीं हैं।
ReplyDeleteसर आपने दिल छुने वाली बात कही। मेरे दो-तीन महीने के इस क्षेत्र के अनुभव तो यही बताते हैं जो आपने लिखा है। जब अनूप जी ने इस मंच में शामिल होने का न्योता दिया था तब लगा था एक भोज खाने जैसा आनंद मिलेगा ... पर यह तो पूरे भोज के लिए रसोई बनाने का काम निकला जिसमें सारी रसद और इंधन का भी जुगाड़ आपको ही करना है। पर जब पूरी सामग्री तैया हो जाए तो कोई खाने ही न आए और अगर आ भी जाए तो अपने पसंद का निवाला लिया और अच्छा है कहकर चल दिया।
१९७० के दशक का पढ़ा एक शे’र याद आ गया
हसरतों का जलते-बुझते हो गया हलवा मगर
है बहुत अच्छा वो बोले और चख कर रख दिया!
@6784603180898291521.0
ReplyDelete@मनोज कुमार - यह दशा शायद पहले कम गम्भीर थी। बढ़ते चिठ्ठों के साथ काम जितना बढ़ा होगा, चर्चक का आत्मसंतोष उतना कम हुआ होगा। खैर सही सही तो आप लोग बता सकते हैं।
फिर कई अन्य चर्चा-मंच भी हैं। उनकी क्या दशा है। बहुत समय से उन्हे देखा नहीं! :-(
पिछले कुछ समय से हमने तो अपना ब्लॉग विहेवियर बदलने की कोशिश की है, लिखते बहुत कम हैं, टिपपणी भी कम करते हैं इसलिए टिप्पणियों की बार्टर व्यवस्था से कोई लेना देना रह नहीं गया... हॉं जब संभव हो पढ़ते हैं जितना संभव हो।
ReplyDeleteपहले भी कहा है कि इस हिन्दी ब्लॉग अर्थव्यवस्था में में टिप्पणी ओवरवैल्यूड कामोडिटी है कभी कभी तो लगता है कि बाकायदा फेक करेंसी है।
हसरतों का जलते-भुनते हो गया हलवा मगर
ReplyDeleteहै बहुत अच्छा वो बोले और चख कर रख दिया!
(बुझते नहीं भुनते है)
आप भी धन्य हैं सर जी,यह भी कोई चर्चा में लाने वाली बात है.यह तो सबको पता है..
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट.
ब्लॉग नहीं पढ़े जा रहे ऐसा मुझे नहीं लगता हां फीसद आधार पर बात करें तो अलग हो सकता है।
ReplyDeleteब्लॉग पढ़े जा रहे हैं, यकीनन।
अपने ब्लॉग का पूरा ऑपरेशन करें, पाएंगे कि नए पाठक गूगल सर्च के माध्यम से पहुंच रहे हैं, नई पुरानी पोस्ट पर। मैं अपने ब्लॉग की ही बात करूं तो पाता हूं कि सबसे ज्यादा पाठक छत्तीसगढ़ और यहां की कला-संस्कृति पर लिखी पोस्टों पर आते हैं।
यहां तक कि छत्तीसगढ़ी में लिखी गई लोककथाओं पर भी। लाख टके की बात यह कि जब हम जैसों की पोस्ट पढ़ी जाती है तो रवि रतलामी जी या आप जैसे लिखने वालों की तो पढ़ी ही जानी है।
सर्च का एक उदाहरण देता हूं जैसे आप अक्सर लिखते समय शब्दों का अंग्रेजी मतलब स्पेलिंग के साथ भी लिखते हैं। यही तो सबसे बड़ा कारक है
गूगल सर्च में समाहित होकर पाठक लाने का। मान लीजिए कोई व्यक्ति किसी अंग्रेजी शब्द या उसके स्पेलिंग की तलाश कर रहा है और उसके सर्च में आपके ब्लॉग का लिंक भी आ गया। तो एक पाठक आया।
रही बात टिप्पणियों की तो कई बार टिप्पणियों का वजन पोस्ट से ज्यादा होता है इसमें कोई दो राय नहीं है। अहो रुपम ध्वनि वाली टिप्पणियों की बात ही न की जाए।
सतीश पंचम जी ने तो वाकई धांसू बात धांसू उदाहरण के साथ कही।
एक बात और, ब्लॉगजगत से बाहर का पाठक आता है चुपचाप पढ़ता है और लौट जाता है। यह क्रम चलता रहता है। वह टिप्पणी शायद ही करता है। एक बार उसने टिप्पणी की, आपने उसे जवाब दिया। अगर यह क्रम शुरु हो गया तो वह भी अपना ब्लॉग बनाने की सोचने लगता है।
इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि ब्लॉग शोसल नेटवर्किंग का रोल बढ़िया अदा कर रहे हैं।
अपन पढ़ते ज्यादा है टिपियाते कम हैं। ;)
अरे हां, ये आलोक पुराणिक जी कहां पाए जाते हैं आजकल? ;)
ReplyDeleteउनका डॉट कॉम तो सर्वर ही नई बताता, वो तो ऐसे न थे कि उनका सर्वर ही गायब हो जाए, जो दूसरों का सर्वर( छात्रों की कॉपियां) गायब कर सकते थे उनका सर्वर कैसे गायब है भला?
उन्हें लौटाया जाए, खींचखांच कर ही सही।
ए टी एम से टिपण्णी लाने की खूब कल्पना की. ए टी एम वाली टिप्पणियां बहुतायत से दिखाई देती हैं. मैं भी यदा कडा प्रयोग कर लिया करता हूं.
ReplyDelete@6893624320480150192.0 @मसिजीवी
ReplyDeleteब्लॉग बिहेवियर मेँ जबरदस्त बदलावा की जरूरत महसूस करता हूँ मैँ भी!
कमाल करते हैं आप!
ReplyDeleteएक खांटी ब्लॉगर, अपनी खुद की हर ब्लॉग पोस्ट लिखने से पहले दर्जन बार मन में पढ़ता है, लिखते-2 दसियों बार कंप्यूटर स्क्रीन पर पढ़ता है और छापने के बाद सैकड़ों बार इंटरनेट पर पढ़ता है...
और आप पूछते हैं ब्लॉग पढ़ने की चीज है? कमाल है!
कनिष्क जी, निराश होने की जरूरत नहीं है। मानवीय सरोकार और मूल्य हाशिये पर जरूर हैं, खत्म नहीं हुये हैं। अभी भी बहुत कुछ बचा है। मानवीयता और मनुष्यता और सब कुछ। यह तकनीक के विकास का युग है। जब भी तक्नीक का विकास होगा संवेदना सूखेगी। जब तकनीकी होगी तो मानव संसाधन बन जाता है। शिक्षा और संस्क्रिति के केन्द्र में, अपने आप से, अपने परिवेश से जूझता हुआ मनुष्य एक उत्पाद की तरह होता है, जो उपभोक्त्ता और बाजार से चालित होता है और मानवीय सरोकारों से दूर होता जाता है।
ReplyDeleteकिसी भी समाज में परिवर्तन का वाहक साहित्य होता है। साहित्य लोगों को जाग्रत करता है, समाज की मानसिकता तैयार करता है, समाज को गति देता है,संघर्ष के लिये प्रेरित करता है,और समस्याओं में फंसे व्यक्ति को दिशा देता है। इस्लिये बन्धु! साहित्य की लौ को जगाये रखिये। क्योंकि साहित्य जीवन का सहचर होता है जो व्यक्ति के जीवन में रंग, रस, आनन्द व उत्साह का संचार करता है। और जीवन? जीवन एक उद्दाम प्रवाह है। जीवन एक पर्व है। पर्व यानी पोर या गांठ। पोर विकास का चिन्ह है। जैसे बांस एक एक पोर छोड्ता जाता है और आगे बढ्ता जाता है, ऎसे ही हमें भी आगे बढ्ना है। इस विषय को हमारे माननीय और विद्वान ब्लागरगण आगे बढा सकते हैं, हम तो सिर्फ और सिर्फ पाठक हैं।
ब्लॉगजगत ऐसे ही चलता है जी और शायद ऐसे ही चलता रहेगा। बाकी आप ये बतायें कि ये टिप्पणियों वाला एटीऍम कहाँ पर है? :)
ReplyDeleteहम आपके गिरोह में हैं ही, ध्यान रखियेगा हाँ।
आपकी बात से आंशिक रूप से सहमत. पर असहमति का अंश ज्यादा है. ऐसा नहीं है कि अच्छे लेखन को लोग नहीं पढते. व्यक्तिगत अनुभव से बताऊँ तो अच्छी पोस्ट्स की टिप्पणियां भी पढ़ने का मोह नहीं छोड़ा जाता; जबकि वो कभी कभी पोस्ट से दसियों गुना होती हैं (आपकी पोस्ट्स भी इनमें शामिल हैं).
ReplyDeleteहाँ इस बात से सहमत हूँ कि कभी-कभी लेखन शैली सशक्त और रुचिकर न होने पर लोग बस सरसरी तौर पर पढकर/देखकर टिप्पणी कर देते हैं. मेरे ख़याल से इसमें कुछ गलत भी नहीं है. अगर आपकी पोस्ट्स पर 'गुड', 'बहुत अच्छे' टाइप टिप्पणियाँ आ रहे हैं तो इसका मतलब आपको लेखन में सुधार लाने की जरुरत है. हाँ सिर्फ शीर्षक देखकर बेतुकी टिप्पणी करना सही नहीं कहा जा सकता.
नोट: ऊपर लिखी बातें उन लोगों के लिए हैं जो गुटनिरपेक्ष है. गुट वालों पर आपकी बात से १०० % सहमति. ;)
@5285442561225676393.0
ReplyDelete@सतीश चंद्र सत्यार्थी
यह तो बहुत अच्छी टिप्पणी है सत्यर्थी जी। कोई असहमति नहीं!
पूरी पोस्ट पढ़कर टिप्पणी करने का खामियाजा यह है कि मुझे चालीस मिनट लग गये इस एक ब्लॉग पर आये हुए। पोस्ट आलेख पढने के बाद उसपर आयी हुई टिप्पणियों और आपकी थ्रेडेड प्रतिक्रियाएं पढ़कर यहाँ टिप्पणी बक्से तक पहुँचा हूँ। इतनी देर में तो दसियों दुकानों में विन्डो शॉपिंग कर चुका होता।
ReplyDeleteलेकिन क्या करूँ, यह कला अभी सीख नहीं पाया हूँ? देखता जरूर हूँ।
.
ReplyDelete.
.
ब्लॉग लेखन, पाठक, पठनीयता, टिप्पणियाँ, पढ़ने को उत्प्रेरण, सोशल नेटवर्किंग, गुटबाजी, टीपों का एटीएम आदि आदि......
काहे इतना चिंतियाते हैं... मस्त रहिये... हाँ पोस्ट ठेलना जारी रहे !..... ;)
@6457093526604915926.0
ReplyDeleteनिश्चय ही, शरीफ लोगों का गिरोह! :)
हमारा काम तो एटीएम भरने का है..इसलिए नो कमेन्ट.
ReplyDeleteमैं भी अपने अल्पकालिक अनुभवों से कुछ ऐसे ही निष्कर्षों पर
ReplyDeleteपहुंचा हूँ .. गुणात्मक मान को बुरी तरह दबा चुका है टीपों का
संख्यात्मक मान !
पर अपनी गति से चलते जाना ही बेहतर होगा !
लघु-कथा चौचक है | आभार !
हाय हाय! अब मेरा क्या होगा ... मैंने न तो कोई गिरोह ज्वाइन किया है, ना ही मेरा टिप्पणियों का कोई बैंक खाता है ...
ReplyDeleteमै भी एक गिरोह का गुरगा हूं यह स्वीकार करता हूं.लेकिन टिप्पणी लोलुप नही .
ReplyDeleteसबसे पहले तो आप को धन्यवाद देना होगा कि टिप्पणी देने की पुरानी व्यवस्था वापस बहाल कर दी।
ReplyDeleteअब आप की बात पर…
गुटबाजी हमारी प्राकृतिक प्रवत्ति है, वर्कप्लेस में भी ऐसा ही होते देखा है, आप के वर्क प्लेस पर भी होती होगी।
हालांकि आप की बात में सच्चाई है पर मेरा अनुभव कहता है कि ये पूरी सच्चाई नहीं हो सकती। मासीवी जी की तरह मेरा भी अपनी पोस्ट लिखना, दूसरों की पोस्टें पढ़ना और टिपियाना बहुत कम है लेकिन फ़िर भी मैं ने देखा है कि जब भी भूले भटके कोई पोस्ट लिखती हूँ कई ऐसे लोगों कि टिप्पणियाँ पाती हूं जिनके ब्लोग पर शायद मैं कभी नहीं गयी और उन में से कई नाम भी मेरे लिए नये होते हैं। इसका मतलब ये है कि या तो लोग ऐसे लोगों को भी पढ़ते हैं जो उनके गुट में नहीं है या फ़िर मैं सभी गुटों में हूँ…:)कुछ ऐसे भी हैं जो पहले मेरे ब्लोग पर पधार कर मेरी इज्जत अफ़जाई करते थे लेकिन बाद में उन्हें शायद लगने लगा कि मेरा लिखा इतना रोचक नहीं कि उस पर समय नष्ट किया जाए। ये उनकी सोच है, हम अब भी उनकी पोस्ट्स पढ़ते है और अपनी अक्ल के अनुसार लगे तो टिपियाते भी हैं। ये नहीं देखते कि ये मेरे गुट का है कि नहीं।
मिनी कथा अच्छी है, देख कर अच्छा लगा कि आप अब व्यंग पर भी हाथ आजमा रहे हैं
आलोक जी के लेखन का मैं तभी से दीवाना हूँ जब जागरण पत्र में उनका आलेख प्रपंचतन्त्र पढ़ता था.. उनकी टिप्पणी बिलकुल सटीक है पुनः लोगों को दिखाने का शुक्रिया और ये मिनी कथा भी एक आइना ही है सभी ब्लोगर जनों के लिए.. आभार.
ReplyDelete@9013489420175652822.0
ReplyDelete>Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
आप बेहतर दशा में हैं, अगर आपमें इण्डीवीजुआलिटी का माद्दा है। अन्यथा डगर कठिन है पनघटा की! :)
@4400449142325827360.0
ReplyDelete>dhiru singh {धीरू सिंह} - आप जो हैं, बढिया हैं! :)
@5391287446829535091.0
ReplyDelete>anitakumar मनुष्य सामाजिक प्राणी है। लिहाजा ग्रुप बनना स्वाभाविक है। पर ग्रुपों में वैमनस्यता का स्तर वह नहीं होना चाहिये जो है! :)
पाण्डेयजी,
ReplyDeleteहमारे जैसे अपवाद शायद आपकी बात सही साबित करते हैं (exception prove the rule).
जी हाँ हम सिर्फ पाठक हैं, न ब्लॉगर, न टिप्पड़ी करता ( अगर आप इस टिप्पड़ी को और पिछले साल की एक और टिप्पड़ी को न गिने तो )
सिर्फ इसीलिये टिप्पड़ी कर रहा हूँ कि हमारे जैसे पाठक भी एक्सिस्ट करते और मुझे यकीन है की मेरे जैसे और भी होंगे
लिखते रहिये, हम पढ़ते रहेंगे -जब तक अच्छा लगता रहेगा और होली दिवाली टिप्पड़ी भी कर देंगे
रा. बा.
पोस्ट तो उम्दा है ही.............टिप्पणियां पढ़ कर आनन्द आ गया
ReplyDelete@6423893590987733319.0
ReplyDelete> Rajesh Bajpai - धन्यवाद वाजपेयी जी!
ऐसा भी नहीं है कि सीरियस पाठक हैं ही नहीं।
ReplyDeleteइस विषय पर मेरी प्रविष्ठि देखें
http://mathurakalauny.blogspot.com/2009/11/blog-post.html
कनिष्क कश्यप जी के शब्द से शब्द मिलाना चाहूंगी मैं तो...
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने. कहानी भी दिल को छू गई. सचमुच एटीएम आज की जरूरत है.
ReplyDeleteशेष पोस्ट पढ़ने के बाद लिखेंगे :)
जब से समझा है "बहुत खूब" का मतलब मैंने,
ReplyDeleteलिखना कम करके बहुत, खूब पढ़ा करता हूँ!
mansoorali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
"मनुष्य सामाजिक प्राणी है। लिहाजा ग्रुप बनना स्वाभाविक है। पर ग्रुपों में वैमनस्यता का स्तर वह नहीं होना चाहिये जो है! " यह बिल्कुल सही है..
ReplyDeleteलेकिन पढ़कर टिप्पणयाये तो क्या टिप्पणयाये, असल मजा तो तब है जब बिना पढ़े टिप्पणी की जाये, अगर आपको कभी ऐसे टिप्पणी देना हो तो मुझसे सम्पर्क करें ई-मेल के जरिये, आपको मुफ्त में एक सौ एक तरीके बताऊंगा बिना पढ़े टिप्पणी करने के...
@3685808273151750042.0
ReplyDelete@ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey - अगर मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है यह ब्लॉग में बनाए गए ग्रुप पर निर्भर करता है तो मैं मनुष्य नहीं हूँ.. वैसे भी पापाजी मुझे गधा कहते हैं.. :(
त्रिपाठी जी की पोस्ट से आपकी अस्पताल-यात्रा के बारे में पता लगा. अपना ध्यान रखिये और पूरा आराम भी करिए. शुभकामनाएं!
ReplyDeleteटिप्पणियों के मामले में यह नियम हमेशा काम करता है:किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
ReplyDeleteअच्छा, बहुत अच्छा कहना हमेशा निरापद है। नेटवर्किंग का मामला मुझे अप-डाउन ट्रेनों की तरह लगता है। अप ट्रेनें भेजना बंद कर दें, देखिये डाउन ट्रेनें स्थगित हो जायेंगी।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी की बात से सहमत |
ReplyDeleteमिनी कथा अच्छी लगी |
आप पूर्णतया स्वस्थ होकर पुनह अपने कार्यों में नियमित रहे .शुभकामनाये \
पुत्र
ReplyDeleteतबीयत ठीक करो
मानसिक हलचल सुस्त रहना ठीक नही है
पापा जी
एक हफ़्ते से अधिक हो रहें हैं,आपकी बीमारी को। आपका ब्लोग भी सूना है इस बीच, कितना दुखद है यह सब। सोचता हूं, यह सब अच्छे लोगों के साथ ही क्यों होता है? यह बीमारियां, एक्सीडेंट आदि बुरे लोगों के साथ क्यों नही होते। कितनी जल्दी आयेगा वह दिन जब आप स्वस्थ होकर फिर से ब्लोगिंग की दुनिया में आयेंगे। तब तक हम सूनी आखों से आपका इन्तजार करेंगे और रोज ही ईश्वर से आपके जल्दी से ठीक हो जाने की प्रार्थना करेंगे।
ReplyDeleteYe tippaniyon ka hee to kamal hai jo aapko likhane kee prerana deta hai aur kuch kuch tippniyan to wakaee post ka wajan bahut badha deti hain. muze to achcha lagta hai tippni pana aur karna. main naye blogs bhee padhti hoon kum padhti hoon ye such hai. Dada kahate the ki agar doosaron ko jyada padho to unki style ka asar aap par padta hee hai.
ReplyDelete@574410930512628469.0
ReplyDelete>@पापा जी
आप स्वस्थ हों, बने रहें - यह कामना!
जल्दी से स्वस्थ हों यही कामना है...
ReplyDelete@4650102713081312693.0
ReplyDeleteधन्यवाद आशा जोगलेकर जी। फिलहाल अस्वस्थता वश अधिक नहीं लिख पा रहा।
@3050784999303234840.0
ReplyDeleteधन्यवाद जी।
अब आप स्वस्थ हैं, ईश्वर को धन्यवाद। जल्दी ही अपनी नियमित जीवनचर्या शुरु करें, ईश्वर से यही प्रार्थना और।
ReplyDeleteअब आप स्वस्थ हैं, ईश्वर को धन्यवाद। जल्दी ही अपनी नियमित जीवनचर्या शुरु करें, ईश्वर से यही प्रार्थना और।
ReplyDeleteये सब छोड़ो काका अपना हाल बताओ । हम उन में से हैं जो बीमार को बार बार याद दिलाते रहते हैं कि अभी आप बीमार हैं । स्वास्थ्यलाभ की इतनी भी क्या जल्दी है । इसी बहाने थोड़े दिन आराम तो हो जायेगा । और हां मैं तो पक्का आपके गुट में हूं ।
ReplyDeleteआपकी कमी महसूस हो रही है।आप जल्दी स्वस्थ हों।
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