नत्तू पांड़े आजकल ननिहाल आये हुये हैं। अब डेढ़ साल के हुये हैं तो कारकुन्नी भी उसी स्तर के हैं। कुछ ज्यादा ही। उनकी नानी मगन भी हैं और परेशान भी रहती हैं। अजब कॉम्बिनेशन है उनकी खुशी और उनकी व्यग्रता का।
नाना; पण्डित ज्ञानदत्त पाण्डेय उन्हे प्रधानमन्त्री बनाना चाहते हैं और वे हैं कि अपनी ठुमुकि चलत वाले फेज़ की गतिविधियां करने में ही व्यस्त हैं। कोई गम्भीरता नहीं दिखा रहे आगे की जिम्मेदारियों के प्रति!उनको भोजन करना एक प्रॉजेक्ट होता है। एक छोटी सी थाली, जिसमें कटोरी एम्बेडेड है; में उनका खाना निकलता है और उसके साथ होने लगते हैं उनके नखरे – न खाने की मुद्रायें दिखाने वाले। तब घर के सारे लोग उन्हे भोजन कराने में जुट जाते हैं। कोई ताली बजाता है। कोई मुन्नी बदनाम सुनाने लगता है तो कोई जो भी श्लोक याद है, उसका पाठ करने लगता है। यह सिर्फ इस लिये कि नत्तू पांडे का ध्यान बंटे और उनके मुंह में एक कौर और डाल दिया जाये।
मोटी-मांऊ नाट्य तीन अंकों का है। पहले चरण में घर की डोर-बेल कोई बजाता है और नत्तू को बताया जाता है कि मोटी मांऊ आ गई है। जोर से चिल्ला कर कहा जाता है – नहीं आना मोटी-मांऊ, राजा बेटा खा रहा है खाना। एक दो कौर धकेले जाते हैं नत्तू के मुंह के अन्दर। अगले चरण में मोटी-मांऊ के रूप में कोई डाइनिंग रूम का दरवाजा पीटता है। फिर जोर से चिल्ला कर कहा जाता है – नहीं आना मोटी-मांऊ, राजा बेटा खा रहा है खाना। इससे एक दो कौर और धकेले जाते हैं। तीसरे चरण में मोटी मांऊ फोन करती है। स्पीकर फोन में गड़गड़ाती आवाज में बोलती है – मैं मोटी-मांऊ बोल रही हूं। राजा बेटा खाना खा रहा है कि मैं आऊं? फिर जोर से चिल्ला कर कहा जाता है – नहीं आना, नहीं आना मोटी-मांऊ, राजा बेटा खा रहा है खाना।
नतू पांड़े का भय बढ़ जाता है। और कम हो जाता है भोजन का कौर स्वीकारने का अवरोधन!इन तीन अंकों के नाटक मंचन से नत्तू को भोजन करा दिया जाता है। किसी जमाने में बब्बन का अदरक के पंजे हिट नाटक था; आजकल तो मोटी-मांऊ की टक्कर का कोई नाटक नही!
पता नहीं, कब तक रहेगा मोटी-मांऊ के आतंक का तिलस्म। कब तक करेंगे नत्तू इसके साये में भोजन!
हाथी राजा बहुत भले
सूंड़ हिलाते कहां चले
कान हिलाते कहां चले
मेरे घर आ जाओ ना
हलुवा-पूड़ी़ खाओ ना!
(मेरी बिटिया की नर्सरी राइम। अब उसके बेटे विवस्वान (नत्तू) पाण्डेय के काम आयेगी।)
(आपने इसे हास्य वर्ग में रखा है, इसके बावजूद)नाना; पण्डित ज्ञानदत्त पाण्डेय के उन्हे प्रधानमन्त्री बनाने की चाहना के लिए जरूरी होगा कि नत्तू पांडे जी कभी भूख भी जानें और खाने की जिद करें.
ReplyDeleteज्ञानजी,
ReplyDeleteक्या बेहतरीन पोस्ट है, नत्तू पांडे की कारस्तानियों पर और भी लिखिये। मांऊ बिल्ली, मोटी मांऊ, झोले वाला बाबा और भी पता नहीं क्या क्या जतन लगाये जाते हैं छोटे बच्चों के साथ :) नत्तू पांडे से भी पूछें कि परधानमन्तरी बनेंगे कि रितिक..शुकुल के सुपुत्र का कहना था कि रितिक से मिलने के लिये वो कुछ भी कर सकता है :)
यहाँ अमरीका के मां बाप बच्चों से बडे परेशान रहते हैं, न ढंग से धमका सकते हैं और न धौल जमा सकते हैं :)
आज घर पर फ़ोन किया तो उत्सव का माहौल था। मामा, मामी, उनकी बेटी, बेटा-बहू और दो छोटे बच्चे घर पर आये हुये थे। सबसे बात हो ही रही थी कि कहीं कुछ हुया और मोबाईल मेज पर धरकर सब फ़िर से व्यस्त हो गये ये सोचकर कि किसी और ने फ़ोन काट दिया होगा। हम फ़ोन थामे १५ मिनट तक मेज के इर्द गिर्द होने वाले उत्सवीय माहौल की चर्चा को फ़ोन से दबी आवाज से सुनते रहे, फ़िर आखिर १५ मिनट बाद दूसरे मोबाईल पर काल करके कहना पडा कि हमें सब खबर है कि हमारे पीठ पीछे क्या क्या बाते हो रही थीं :)
Gyan bhai sahab, " Humare Raja bete ko itta darao mat
ReplyDeleteNattu bete, khana kha liya karo Sau. Rita bhabhi ji
apni Nani ji ko tang nahee karnaa achcha ?
aur Nursery Geet bahut sunder ......
Bade dino baad aayee hoon -- asha hai aap log maze mei ho aur 2011 Shubh, Mangal may ho !!
भारत क भविष्य सुरक्षित लग रहा है क्योकि उसके बाशिन्दे अपने बच्चो को नेता बनाने की सोच रहे है . अभी तो नेता का व्यव्साय बडी हेय द्रष्टि से देखा जाता है जब्कि वही देश चलाता है .
ReplyDeleteनत्तु पान्डेय जिन्दाबाद
@ धीरू सिंह - आप अंग्रेजी में राजेश वाधवा का द डील मेकर पढ़ें (रूपा एन्ड को, १९५/-)। इसमें एक ईमानदार पुलिस वाले को माफिया वाले मार देते हैं। घर गरीबी के किनारे है। पर उसका बच्चा कहता है कि अगर यह गन्द मिटाना है तो वह प्रधानमन्त्री बनेगा। सन २०२३ में वह प्रधानमन्त्री होता है।
ReplyDeleteवाह मजा आया ! अपुन के घर में भी तो रोज ऐसयिच होता है ,डेजी को मेरा नाम लेकर डराया जाता है की खा लो नहीं तो मोटा बन्दर आकार खा जायेगा! एयर मैं जैसे ही आगे बढ़ता हूँ वह गुर्राते हुए खाना खाने में लग जाती है .....
ReplyDeleteसर!
ReplyDeleteसच-सच बताना .. इसे लिखते वक़्त आपके अंदर का ‘मां’ -- ‘दादी’ .. ‘नानी’ तत्व सक्रिय था ना। क्या सूक्ष्म विश्लेषण है।
सच कब तक पता नहीं, कब तक रहेगा मोटी-मांऊ के आतंक का तिलस्म। कब तक करेंगे नत्तू इसके साये में भोजन!
पर सर जी यही हमारी परम्परा है। हमारे बच्चे भी विभिन्न ‘कौर’ में कौआ, मैंना, सुग्गा आदि को खा जाते थे, नहीं तो उन्हें कहा जा था, ‘भकुआ’ आ गया, खा लो जल्दी से।
पर सर जी, चाहे भारत में सर्वकालीन हिट रहा हो, कोई बच्चा गब्बर से नहीं डरता, डरता वो किसी भकुए या मोटी-मांऊ से ही है।
तो पण्डित ज्ञानदत्त पाण्डेय के घर आनंदम है।
ReplyDeleteबच्चों को खाना खिलाने के लिये तकरीबन हर घर में इसी प्रकार किसी न किसी नाटक का आगाज होता है... धन्यवाद..
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट!
ReplyDeleteनत्तू जी की जय!
यह तो हमारे यहाँ भी होता है पर मोटी माऊं की जगह आतंकवादी आता है|
ReplyDeleteऔर मेरी बेटी की पसंदीदा नर्सरी राइम
हाथी दादा बहुत बड़े
सूंड हिला कर कहाँ चले
मेरे घर आ जाओ न
हलुवा पूड़ी खाओ न
आओं बैठो कुर्सी पर
कुर्सी बोली चर चर चर
टन टन बोला टेलीफ़ोन(हालांकि मोबाईल के ज़माने में उसे टेलीफोन समझाने में काफी समय लग गया)
टन टन बोला टेलीफोन
हेल्लो बोल रहा है कौन
ये तो मम्मा की आवाज़
मम्मा जाना आज बाजार
लड्डू लाना एक हज़ार
हम खायेंगे हम खायेंगे
बच्चों को खाना खिलाना.. आदि ऐसे ही नाचता था.... पर मजा आता है...
ReplyDeleteकित्ती क्यूट पोस्ट है. नत्तू पांडे की कारस्तानियाँ तो पहले भी पढ़ी हैं, पर ये वाली पढ़कर आनन्द आ गया. इस भावी प्रधानमंत्री की एकाध नयी फोटो लगाइए ना.
ReplyDeleteमेरे दीदी के बेटे को भी इसी तरह नाटक-नौटंकी करके खाना खिलाया जाता था. आजकल के बच्चे कुछ ज्यादा ही डिमांडिंग और मूडी हो गए हैं. हमलोग तो भोजन देखते ही उस पर टूट पड़ते थे :-) . आजकल के बच्चे बड़े चालाक हैं, उनको मालूम होता है कि कहाँ भाव मारने चाहिए अपनी इम्पोर्टेंस बढ़ाने के लिए :-)
मेरे भैया के बेटे के लिए तो अभी मात्र इतना ही काफी है कि खाना खा लो नहीं तो छोटे पापा खा लेंगे.. :)
ReplyDeleteहमारा बेटा जब छोटा था तो उसे खाना तभी खिलाया जा सकता था जब टी0वी0 पर विज्ञापन आ रहे हों...हमने समझदारी दिखाते हुए आधे घंटे के विज्ञापन ही रिकार्ड कर लिए और रोज़-रोज़ वही टेप लगा कर ख़ुशी-ख़ुशी खाना खिलाने लगे. पर कुछ ही दिन बाद भांडा फूट गया जब विज्ञापनों का क्रम वह predict करने लग गया -'VCR से ऐड दिखा रहे हो?'. उसने VCR की ओर उंगली कर आंखें तरेर पूछा था....
ReplyDeleteये बेचारी मोटी-मांऊ भी न जाने कब तक खाना खिलाएगी :-)
मजा आया नत्तू प्रसंग सुनकर...
ReplyDeleteहर घर में बच्चों के लिए ऐसा एक कृत्रिम डरावना चरित्र क्रियेट कर दिया जाता है..
कैसी विडम्बना है कि अभी बच्चा डर के नाम पर खा लेगा पर जब मन के किसी कोने में बैठा यह डर जीवन के किसी पड़ाव पर हावी होगा तो यही लोग उसे भूलने को कहेंगे| सोचिये बच्चे की मन:स्थिति को| कोई हम-आप से कहे कि यह बेकार सा खाना खा लो नहीं तो नौकरी छीन ली जायेगी तो कैसी होगी हमारी स्थिति?? हम तो विद्रोह कर देंगे पर बच्चा यह नहीं कर सकता| बेचारा|
ReplyDeleteकिसी भी उम्र में डर पाचन तंत्र को प्रभावित करता है|
हम ऐसे देश में रहते हैं जो विविधताओं से भरा है| नाना प्रकार के भोजन विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं| फिर क्यों एक ही तरह का भोजन बच्चो को देकर उनसे जबरदस्ती की जाए???
एक तरफ प्रधानमंत्री बनाने का स्वप्न संजोये हैं और दूसरी तरफ अभी से डर बिठा रहे हैं|
नत्तू के माँ-बापू को ये टिप्पणी पढ़वायें और जिम्मेदार पालक की भूमिका निभाने को कहे|
वाह जी मै सोचता था कि यह नाटक मेरे ही घर मे हुआ होगा जब बच्चे छोटे थे, लेकिन अब पता चला कि यह तो सभी भारतियो के घरो मे होता हे, लेकिन यह गोरो के बच्चे भी सयाने हे, मां ने दे दिया ओर यह नमुने चुपचाप खा लेते हे, कोई बिल्ली नही कोई गव्वर नही,ओर नही खाया तो दोवारा कोई इन्हे पुछता नही, बस दो घंटे इंतजार करो.. नत्तू खाले बेटा नही तो नानू की मोटी काली बिल्ली माऊ माऊ आ जायेगी:-)
ReplyDeleteमै भी अवधियाजी की बातो से सहमत हूँ | बच्चो को डरपोक बनाना अच्छी बात नहीं है |
ReplyDeleteहर घर में हैं ऐसे नत्तू पाण्डे।
ReplyDeleteअवधिया जी से मैं भी सहमत हूँ।
ReplyDeleteजे डरवाना ठीक नहीं है।
नए नवेले डिश बनाये जायँ और आजमाये जायँ।
अरे!
ReplyDeleteयह मोटी माउँ तो मेरे कैलिफ़ोर्निया मित्र फ़ैन्टम बिल्ली जैसी ही है!
यदि सचमुच नत्तू को मोटी माउँ दिखाना हो तो वह तसवीर दिखा दीजिए।
अजीब स्थिति है । इस उम्र में हम बच्चों को खाने के लिए जोर देते हैं
एक ऐसा उम्र भी आएगा जब हम असे उलटा सीधा न खाने पर जोर देंगे!
तब तो कोई मोटी माउँ हमारा साथ नहीं देगा।
Cute post. Enjoy your grandfatherly experiences.
I am still waiting to experience and share my own.
Regards
G Vishwanath
@ पंकज अवधिया, नरेश सिंह राठौर, गिरिजेश राव -
ReplyDeleteआपसे सिद्धान्तत: असहमति का कोई कारण नहीं समझता मैं। यह विचार आगे और सोचने को बाध्य करेगा। धन्यवाद।
फिलहाल तो नत्तू पांडे बार बार कम्प्यूटर के पास आ कर कह रहे हैं (अपनी भाषा में) कि कम्प्यूटर खोल कर मैं मोटी मांऊ दिखाऊं! :)
पता नहीं, जिसे हम भय इण्टरप्रेट करते हैं, उसमें कौतूहल तत्व प्रमुख होता हो!
कभी कभी गब्बर सिंग का नाम काली बिल्ली से अधिक कारगर हो सकता है... आज़मा कर देखिए:)
ReplyDeleteहैरी पॉटर और कार्टून फिल्मों के इस समय में नाना-नानी की कहानियॉं लौअती देख कर अच्छा लग रहा है।
ReplyDeleteभज आनन्दमृ, भज आनन्दमृ।
हमारी सवा दो साल की बिटिया को डराने के लिए भी एक मोटी-काली माऊं का किरदार... या कह लें की हौव्वा खड़ा किया गया है. लेकिन उसने उलटे अब हमें ही काली-माऊं के कमरे में बंद करने की धमकी देना सीख लिया है.
ReplyDeleteबाकी नर्सरी राइम तो यही थोड़े-बहुत हेर-फेर से यहाँ भी बोली जाती है.
नन्हे बच्चों के साथ बड़े मजे हैं. देखें आगे क्या होता है:)
हमारे घर ‘झोला और लाठी वाले’ का प्रयोग होता रहा है केशू पंडित के लिए। लेकिन एक दिन बोल पड़े कि अब लाठी वाले को बुलाओ तभी खाऊँगा...। कैसा होता है, जरा देखूँ तो।
ReplyDeleteअब मैं खाने के लाभ समझाकर खिलाने की कोशिश करता हूँ, ताज़ा और बढ़िया खाना बुद्धि बढ़ाता है। बुद्धि से बाकी सभी अच्छी चीजें बढ़ायी जा सकती हैं।
पोस्ट पढकर भी (विषय की नज़ाकत को देखते हुए) टिप्पणी लिखने का कोई इरादा नहीं था। अब इरादा बदल गया है। सोच रहा हूँ कि बच्चों का खाना खा लेना ज़्यादा ज़रूरी या कि डर जाना। यदि इन दोनों में मुझे एक चुनना हो तो शायद पोषण के कर्तव्य को ही चुनूंगा।
ReplyDeleteमैं एक ऐसे बच्चे को जानता हूँ जो मिलते जुलते नाटक के दौरान खाना उदरस्थ करने के बाद दरवाज़ा पीटकर कहता था कि बाबा (मोटी माऊँ) आ गया है, घर के सब लोगों को खाना पडेगा वरना उनको पकडकर ले जायेगा।
अभी पढा, केशू पंडित का किस्सा भी रोचक है!
ReplyDeleteयदि काल्पनिकता और भय भोजन करा दें तो मोटी माऊँ की त्रिपदी अवतार धन्य है। बच्चों को पढ़ाने के लिये कोई माऊँ ढूढ़ी जाये, आपके लिये भी आगे काम आयेगी।
ReplyDeleteक्यूट पोस्ट है. बाकी हम ना पड़ रहे भय और कौतुहल के चक्कर में :)
ReplyDeleteबच्चे जो न करवाऍं।
ReplyDeleteमेरे भी बच्चे अभी छोटे हैं, इसलिए रोज ही ऐसे खेल देखने पडते हैं।
---------
अपना सुनहरा भविष्यफल अवश्य पढ़ें।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
नत्तू जी बहुत दिन बाद आये इस बार नानी के घर पर
ReplyDeleteअच्छा लगा, उन्हें देखकर
भावी प्रधानमन्त्री जी के बचपन में मोटी मांऊ से भयाक्रांत होकर खाना खाना उन्हें आम प्रजा जैसा सरल होने का द्योतक है।
प्रणाम स्वीकार करें
dekhiye dadda ee natthu pandey aapko
ReplyDeleteees umir me bahut chakayega.........
bejta hoon 'budha baba' ko dekh lega
natthu ko......
pranam.
नत्तू पांडे डेढ़ साल के हो गए !
ReplyDeleteदेखीये समय भी कितनी तेज़ी से भागता है.
...
बच्चों की भूख उनकी आँखों में होती है ऐसा कहा जाता है..इसलिए खाने की प्रेसेंटेशन पर ध्यान दिजीये ...बर्तनों पर भी ...रंग बिरंगी..तश्तरी गिलास कार्टून वाले ..ऐसा कुछ बदलीये ...तो देखीये कैसे खाना सही सही नहीं खायेंगे नत्तु जी..
...........
बाकि पोस्ट बड़ी प्यारी सी लगी.
कितना कुछ याद दिला दिया आपकी इस पोस्ट ने कि क्या कहूँ...
ReplyDeleteभविष्य की थाती है यह नाटिका...एक समय यही कहानियां सुख का कारण रहा करेंगी..
aadarniya sir
ReplyDeletemaja aa gaya aapka yah post padh kar. par yehi sach hai ki har ghar me bachchon ke saath yah natak khelna hi padta hai taaki kisi tarah to unki pet-puja ho jaaye.ye ek bahut hi badi samsya hoti hai ,har mata pita ke samne.lekin nattu pandey ji ki karastaniya padh kar to aanad aagaya.
bahut hi achhi.
poonam
अरे वाह, ये हुई न बात, फिर आपने नत्तू पांड़े जी से मुलाकात करवाई। उनसे ऐसी मुलाकात बार-बार करवाईए।
ReplyDeleteमस्त कारकुन्नियां हैं उनकी। उन्हें जब भी पढ़ता हूं, अपना तो नहीं लेकिन अपने भतीजों का बचपन जरुर याद आता है।
आप नत्तू जी को प्रधानमंत्री बनवाएं या न बनवाएं, ये देखना जरुर दिलचस्प रहेगा कि वे बड़े होते-होते आपको क्या क्या बना डालते हैं।
जारी रहें नत्तू जी की कारकुन्नी।
सिद्धार्थ शंकर जी के केशू पंडित भी मस्त रहें।
नत्तू पांडे की जय हो।
ReplyDeleteकल को जब नत्तू पांडे अपने साथ हुये झांसे का हिसाब मांगेगे तब की सोचिये क्या जबाब दिये जायेंगे।
आपकी पोस्टों से नत्तू पांडेय के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है .. कभी बोकारो आने पर मेरे यहां भी लेकर आइए अपने नत्तू पांडेय को !!
ReplyDeleteअरे वाह, ये हुई न बात, फिर आपने नत्तू पांड़े जी से मुलाकात करवाई। उनसे ऐसी मुलाकात बार-बार करवाईए।
ReplyDeleteमस्त कारकुन्नियां हैं उनकी। उन्हें जब भी पढ़ता हूं, अपना तो नहीं लेकिन अपने भतीजों का बचपन जरुर याद आता है।
आप नत्तू जी को प्रधानमंत्री बनवाएं या न बनवाएं, ये देखना जरुर दिलचस्प रहेगा कि वे बड़े होते-होते आपको क्या क्या बना डालते हैं।
जारी रहें नत्तू जी की कारकुन्नी।
सिद्धार्थ शंकर जी के केशू पंडित भी मस्त रहें।
हमारा बेटा जब छोटा था तो उसे खाना तभी खिलाया जा सकता था जब टी0वी0 पर विज्ञापन आ रहे हों...हमने समझदारी दिखाते हुए आधे घंटे के विज्ञापन ही रिकार्ड कर लिए और रोज़-रोज़ वही टेप लगा कर ख़ुशी-ख़ुशी खाना खिलाने लगे. पर कुछ ही दिन बाद भांडा फूट गया जब विज्ञापनों का क्रम वह predict करने लग गया -'VCR से ऐड दिखा रहे हो?'. उसने VCR की ओर उंगली कर आंखें तरेर पूछा था....
ReplyDeleteये बेचारी मोटी-मांऊ भी न जाने कब तक खाना खिलाएगी :-)
कित्ती क्यूट पोस्ट है. नत्तू पांडे की कारस्तानियाँ तो पहले भी पढ़ी हैं, पर ये वाली पढ़कर आनन्द आ गया. इस भावी प्रधानमंत्री की एकाध नयी फोटो लगाइए ना.
ReplyDeleteमेरे दीदी के बेटे को भी इसी तरह नाटक-नौटंकी करके खाना खिलाया जाता था. आजकल के बच्चे कुछ ज्यादा ही डिमांडिंग और मूडी हो गए हैं. हमलोग तो भोजन देखते ही उस पर टूट पड़ते थे :-) . आजकल के बच्चे बड़े चालाक हैं, उनको मालूम होता है कि कहाँ भाव मारने चाहिए अपनी इम्पोर्टेंस बढ़ाने के लिए :-)