मालुम है, लोग सक्षम हैं ट्रेवलॉग आर्धारित हिन्दी में ब्लॉगों के दसियों लिंक ठेल देने में। पर फिर भी विषयनिष्ठ ब्लॉगों की बात करूंगा तो ट्रेवलॉग आर्धारित ब्लॉग उसमें एक जरूर से तत्व होंगे।
बहुत कम यात्रा करता हूं मैं। फिलहाल डाक्टरी सलाह भी है कि न यात्रा करूं रेल की पटरी के इर्द-गिर्द। संकल्प लेने के बावजूद यहां से तीस किलोमीटर दूर करछना भी न जा पाया हूं। फिर भी साध है यात्रा करने और ट्रेवलॉग लिखने की।
ट्रेवलॉग मुझे वह इण्टेलेक्चुअल संतुष्टि देगा, जो आज तक न मिल सकी। और, शर्तिया, साहित्यकार मर्मज्ञ जी, जो कहते हैं कि मैं निरर्थक लिखता हूं, को भी कुछ काम की चीज मिल सकेगी - उनकी कविता के पासंग में/आस पास!
बहुत से ब्लॉग हैं यायावरी पर। और फोटो/वीडियो ने उनका काम आसान भी कर रखा है। पर काम आसान करने का अर्थ यह है कि पहले से और भी जानदार ट्रेवलॉग सामने आने चाहियें, बेहतर तकनीकी सपोर्ट से। हिन्दी में अन्य भाषाओं से ज्यादा अनूठे और अधिक विलक्षण ट्रेवलॉग सामने आने चाहियें। वेगड़जी की नर्मदा परिक्रमा की तरह!
अब तक जो कुछ अभिव्यक्त करने को मिला, वह अपने काम और अपने अध्ययन से मिला। कुछ मिला सवेरे की सैर के अनुभव (गंगा विषयक पोस्टें उसी से निकली हैं) से। अब वानप्रस्थ आश्रम करीब है। जो कुछ आगे अभिव्यक्त करने को होगा, वह अधिकांशत: घूमने से निकलेगा।
ऑफ्टरॉल नहीं चाहूंगा कि कोई निरर्थक डिक्लेयर करे! या कर सकते हैं? करें। हू केयर्स!
विधाता ने मुझे लेखक नहीं बनाया। यह उनका विधान होगा। पर यह अभिव्यक्ति का माध्यम मुझे दिया है - अधपकी/अनगढ़ अभिव्यक्ति का - ब्लॉगरी। उसमें वह गर्व नहीं है। पर एक अपना आयाम तो है। विधाता मुझे शायद इसी आयाम, इसी जुनून के साथ के साथ जिलाना चाहते हैं।
जाही बिधि राखे राम ताही बिधि रहिये।
अनुभव बाटना ब्लॉग का कर्तव्य होना चाहिये, लाभ लेना या हानि करा लेना पाठक का अधिकार है।
ReplyDeleteभाँग भाटिन के देश वाला संस्मरण यात्रावृत्त पढ़ा है पढ़ा है आप ने?
ReplyDeleteनिरर्थक सा ही है और आठ भागों में, माने लम्बा है। फिर भी हिम्मत कर अंतिम का लिंक भेज रहा हूँ, उसमें पहले वाले भागों के लिंक हैं:
http://girijeshrao.blogspot.com/2010/06/blog-post_30.html
लग सा रहा है कि आप ने शृंखला देखी होगी जरूर। यह टिप्पणी छापने के लिए नहीं है।
मुझे लगता है कि मर्मज्ञ बंधू इन आपकी उस पोस्ट पर एक जनरल स्टेटमेंट दिया था. बाकी उनके मन की वे जानें.
ReplyDeleteउन्मुक्त जी भी बढ़िया ट्रेवेलौग लिखते हैं पर कुछ कम लिखते हैं. उनकी पोस्टों में एक सपाटबयानी है. उन्हें जो अच्छा या बुरा लगता है वे उसे बहुत कम शब्दों में बिना किसी तत्वचिंतन के पोस्ट कर देते हैं.
अधपकी/अनगढ़ अभिव्यक्ति - ब्लॉगरी पर आप न करें गर्व! हमें तो इसमें भी रस आता है.
आपने बेगड़ जी का जिक्र किया है, इसके साथ देवकुमार मिश्र जी की पुस्तक 'सोन के पानी का रंग' का नाम जोड़ना चाहूंगा. मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित नदी परिक्रमा पर यह ऐसी पुस्तक है, जिस पर हिन्दी को गर्व रहेगा. पानी पर, तालाबों पर अनुपम मिश्र के क्या कहने हैं, वैसी ही लाजवाब है 'सोन के ...'
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी ...शुक्रिया
ReplyDelete@ गिरिजेश राव - टिप्पणी सब के लिये काम की है। लिहाजा पब्लिश कर रहा हूं।
ReplyDeleteऑफकोर्स वैसी नहीं - बहुत अच्छी जानकारी ...शुक्रिया छाप! :)
@ हिन्दीजेन @ सतीश - ओह, आप मर्मज्ञ जी वाली बात की ज्यादा फिक्र न करें। यह पोस्ट वैसे भी बुदबुदाहट वाली पोस्ट है। एक उस व्यक्ति की पोस्ट जो आजकल ज्यादा कर नहीं पा रहा, पोस्ट भर ठेल दे रहा है (ब्लॉग तो तैरते रखने को)! :)
ReplyDeleteयात्रा वृत्तांत लिखने के लिए मैं बेसब्र रहता हूँ पर कड़वे अनुभव मुझे रोकते रहते हैं|
ReplyDeleteशुरुआती दिनों में जब भी जंगल गया और वनवासियों विशेषकर पारंपरिक चिकित्सकों से मिला लौटते ही यात्रा वृत्तांत लिखा| हिन्दी और अंग्रेज़ी में लिखे गए ये वृत्तांत जब लोगों की नजर में आये तो लोग पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने चल पड़े| आस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका से पर्यटक आने लगे| दोबारा जंगल गया तो लोगों ने खूब हड़काया| बोले, आप आइये, स्वागत है पर हमारे बारे में इतना न लिखिए कि दिन भर लोगों का जमावड़ा लगा रहे| कुछ पारंपरिक चिकित्सकों ने बताया कि उनके साथ जबरदस्ती की गयी| स्थानीय अधिकारियों ने विदेशी पर्यटकों के साथ मिलकर दबाव बनाया|
परिणाम यह हुआ कि पहले लेखों से लोगों के नाम गायब हुए और फिर स्थान| ऐसे लेख लिखने में आनन्द नहीं आता है पर स्थान और नाम वाले लेख मै लिखकर अपने डेटाबेस मे डालता रहता हूँ| शायद मेरे जाने के बाद यह पिटारा खुले और लोगों को सही आनंद मिल सके|
कल ही एक टूरिस्ट कंपनी की बस घर के सामने खडी कर दी गयी कि यहाँ पंकज अवधिया रहते हैं| मैं पजामा पहने कलिहारी की तस्वीर ले रहा था | एक विदेशी पर्यटक ने उतर कर मुझसे मुलाक़ात की और बिना देरी के पूछा कि नरहरपुर के पारंपरिक चिकित्सकों का पता चाहिए| नरहरपुर पर लिखे मेरे हजारों यात्रा वृतान्तो को उसने बड़े सहेज के रखा था| मेरे लिए असमंजस की स्थिति थी क्योंकि पारंपरिक चिकित्सकों ने पता देने से मना किया था|
आखिर कैसे भी उन्हें टरकाया गया|
1. बहुत गिनी जा चुकी टिप्पणियां। पोस्ट ठेलना, उसपर टिप्पणियां गिनना और हा हा हि ही हु हू हे है हो हौ की बारह खड़ी पढ़ना अधिक चल रहा हैं।
ReplyDelete2. कभी कभी निरर्थक पोस्ट पर ढेरों अच्छी प्रतिक्रियाएं देख कर आश्चर्य होता है !
3. जो आज तक न मिल सकी। और, शर्तिया, साहित्यकार मर्मज्ञ जी, जो कहते हैं कि मैं निरर्थक लिखता हूं, को भी कुछ काम की चीज मिल सकेगी - उनकी कविता के पासंग में/आस पास!
आज एक डेढ घंटे से १,२,३ को पढ रहा था। बड़े लोगों की बात सीधे लिखी होती नहीं, सो समझने के लिए कई बार पढना होता है।
जब मैं १ के आलोक में २ को देखता हूं तो मुझे नहीं लगता कि ज्ञान जी ने आपके खिलाफ़ कुछ लिखा है बल्कि १ के समर्थन में ही लिखा है।
और यदि २ के विरोध में ३ आपकी प्रतिक्रिया है तो हमें तो सोच समझ कर बड़े लोगों के ब्लॉग पर जाना होगा, खास कर वहां जाकर कुछ मुंह खोलने के लिए।
@ मनोज कुमार - आप मर्मज्ञ जी वाली बात की ज्यादा फिक्र न करें, जैसा मैं पहले टिप्पणी में कह चुका। समस्या है कि चूकि पोस्ट की उस बात पर टिप्पणियां आ चुकी हैं, उस वाक्य को पोस्ट से निकालना भी उचित न होगा।
ReplyDeleteआप ट्रेवलॉग पर लिखें न! आपने तो कई यात्रायें की होंगी। कई यात्रावृत्त पढ़े होंगे।
सर जी,
ReplyDeleteधन्यवाद।
मैं तो छोटी-मोटी यात्राएं करता हूं।
पर आजकल आप या तो हमारे ब्लॉग पर पधारते नहीं या आकर बताते नहीं। शायद आपके पैमाने के स्तर का नहीं होता होगा। अन्यथा गंगा सागर यात्रा के बाद जब आपकी, प्रेरणास्वरूप टिप्पणी मिली थी त न सिर्फ़ मैंने परिकल्पना और अन्य जगहों पर उसे खुले आम स्वीकारा था बल्कि इस विषय पर और भी पढना लिखना शुरु किया।
नए ब्लॉगर के लिए आप, अनूप जी या समीर जी की बातें कितने महत्व की होती हैं, कोई हमसे पूछे। आप लोगों से इस मंच से एक बार फ़िर निवेदन है कि नए ब्लॉगर्स को सप्ताह में कम से कम एक दिन प्रोत्साहन के लिए निकालिए, उनकी हौसला आफ़ज़ाई कीजिए, उनकी कमिया दुरुस्त करने के गुर बताइए। बहुत प्रेरणा मिलती हैं आपकी बातों से। ज्ञान चंद मर्मज्ञ भी नए ब्लॉगर ही हैं। हम नए ब्लॉगर्स सही है कि गिनते हैं टिप्पणियां, आप लोगों की, कितनी बार आए और क्या कहा, उसे भी ध्यान में रखते हैं। हमारे लिए वो बहुत मायने रखती हैं।
फ़ुटपाथ से लेकर मसुरी, मुज़फ़्फ़रपुर तक के अपने यात्रा-संस्मरण पोस्ट कर चुका हूं ... फ़ुरसत में।
कुछ दिनों पहले ‘निराला निकेतन’ की यात्रा की है, संस्मरण भी लगभग तैयार है, किसी शनिवार को वह पोस्ट करूंगा। शायद नव वर्षारंभ में। दावा है आपके पैमाने पर खड़ा उतरेगा। अगर यह एक साहित्यिक कृति के बराबर न हुआ तो उससे कम भी नहीं होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
ब्लॉग को तैरते रखने वाली टीप आपकी बहुत भाई.
ReplyDeleteकुछ भी रोचकता से लिखा हो..अच्छा ही लगता है...engrossing हो और एक flow हो बस....हमें तो बस वैसा ही ,अच्छा लगता है,पढना .विषय कोई भी हो..ये दोनों तत्व मेरे लिए जरूरी हैं.
ReplyDelete@ ऑफ्टरॉल नहीं चाहूंगा कि कोई निरर्थक डिक्लेयर करे! या कर सकते हैं? करें। हू केयर्स!
ReplyDelete--- अपनी तरफ से यही कामना होती है कि बेहतर लिखा जाय , पर यदि वह परिवेश में न बैठे तो 'स्वान्तः सुखाय' का तुलसी-पथ है ही ! ऐसे में यह मलाल भी नहीं रहेगा - 'हू केयर्स!'
और , कौन पेट से कलम ले कर पैदा होता है ? हम सतत परिष्कार से 'बेहतर-लेखन' की ओर बढ़ते जाते हैं , शायद यही प्रकृत-पथ भी है ! आभार !
कहा जाये तो ब्लागिंग आज के दौर कर "कल्पतरू" व्यक्ति इस कल्पतरू से अपनी अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है। किसी के लिये अभिव्यक्ति का माध्यम तो किसी के लिये संवाद स्थापित करने का तो और तो किसी के गाली-गलौज करने का बेहतरीन माध्यम है।
ReplyDeleteभाई ब्लागिंग तो ठहरा कल्पतरू तो हर ब्लागर अपने मन मुराद इससे पूरी कर रहा है। :)
मर्मज्ञ जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी...
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी आदरणीय ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर जरुर थी मगर उनके लिए नहीं !
मैंने तो बस उस बात की तरफ ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी जो मैंने ब्लॉग जगत में देखा !
आपने भी इस बात को अवश्य महसूस किया होगा !
चूंकि ज्ञानचन्द मर्मज्ञ जी का कहना है कि वह टिप्पणी ज्ञानदत्त जी के लिए नहीं थी इस टिप्पणी का औचित्य ख़त्म हो जाता है अतः हटा रहा हूँ ! मर्मज्ञ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
सादर
`वानप्रस्थ आश्रम करीब है।'
ReplyDeleteयह तो दिल दुखाने वाली बात हो गई। अभी दुल्हा बनी फोटू लगी है ना:)
यात्राव्र्त्तांत का इंतेज़ार रहेगा... जब सुबह की सैर ब्लाग में इतनी ताज़गी भर गई तो दिन भर की सैर के क्या कहने!!!
हू केयर्स!
ReplyDeleteसौ बात की एक बात...
व्यस्त रहना मस्त रहना
हज़ार बात की एक बात :)
@ सतीश सक्सेना - आप मर्मज्ञ जी वाली बात की ज्यादा फिक्र न करें, जैसा मैं पहले टिप्पणी में कह चुका।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
ऑफ्टरॉल यही चाहूंगा कि कोई सार्थक कोई निरर्थक डिक्लेयर करे! या इग्नोर भी कर सकते हैं? करे, हू केयर्स!
मैं लेखक तो नहीं ही हूँ, न बन पाऊँगा अब इस जीवन में, पर यह अभिव्यक्ति का माध्यम मुझे मिला है, एक खुले विश्व में - अधपकी/अनगढ़ /बेबाक/बेखौफ अभिव्यक्ति का - ब्लॉगरी, मुझे गर्व है इस पर, इस अभिव्यक्ति का एक नया/अनूठा आयाम तो है, मैं लकीर तो नहीं पीट रहा !
अब आगे मैं इसी आयाम, इसी जुनून के साथ जीना चाहता हूँ ।
आप तो साथ रहेंगे ही न सर जी... :)
...
हमारे पल्ले तो कुछ नही पडा जी, धन्यवाद
ReplyDeleteआप ट्रैवेलाग लिखें, अवश्य पढ़ेंगे.. राहुल जी और निर्मल वर्मा जी के कई बार पढ़े हैं.. इधर उन्मुक्त को भी पढ़ रहा हूं. आजकल अंग्रेजी के लेखक सिडनी शेल्डन (अब स्वर्गीय) को पढ़ रहा हूं. बहुत मजा आ रहा है... ब्लाग के साथ...
ReplyDeleteमैं यात्रा वृत्तांत लिखता हूं। इसलिये कि इसे लिखना आसान लगता है। जैसा अनुभव हुआ वह लिख डालो। यही नजरिया अन्य बातें लिखते समय रखता हूं। गम्भीर विषयों में लिखने में कुछ समय लगता है समझना भी पड़ता है।
ReplyDeleteनिशान्त जी, आपको मेरा लिखा यात्रा वृत्तांत पसन्द आता है इसके लिये धन्यवाद।
@ भारतीय नागरिक जी,
ReplyDeleteराहुल जी का नाम निर्मल वर्मा जी की तरह पूरा यानि राहुल सांकृत्यायन जी लिख कर मेरी खुशफहमी दूर कर दें, कृपया. मैंने लिख दिया कि आप सिर्फ पुष्टि कर काम पूरा कर सकते हैं.
संस्मरण हमेशा आकर्षित करते हैं अगर वे सहज भाव से लिखे गये हैं।
ReplyDeleteसतीशजी की टिप्पणी क्या थी बताओ हम पढ़ भी न पाये और उन्होंने मिटा दी। क्या हो रहा है इस दुनिया में? कहां जायेगा यह ब्लॉग जगत। :)
मैंने भी अप्रैल-२०१० में एक चार कड़ियों का यात्रा-वृत्त लिखा था। जिस स्थान की यात्रा की थी वही जून-२०१० में आकर सपरिवार बसना पड़ा। तबसे यात्रावृत्त लिखने से पहले सोचना पड़ता है :)
ReplyDelete