बिजनेस स्टेण्डर्ड में (टी एन नाइनन का) २७ नवम्बर’२०१० का सम्पादकीय:
बस कहें, क्षमा करें > … अगर ये दोनो (बीडी और वीएस) खुद यह मान लें कि उन्होंने सीमा लांघी हैं और इसके लिए माफी मांग लें और यह कहें कि आगे ऐसा नहीं होगा तो पूरा पत्रकार समुदाय राहत की सांस ले सकेगा और अपना सर थोड़ा ऊपर उठा सकेगा।
साथ ही युवा पत्रकार छात्रों की पीढ़ी और इस पेशे में अभी-अभी कदम रखने वाले पत्रकार जो दत्त और दूसरे पत्रकारों को अपना आदर्श मानते आए हैं उन्हें भी इस बात से राहत मिलेगी।
सांघवी और दत्त दोनों ही अपने पेशे के आदर्श हैं और ऐसे समय में जबकि ढेरों प्रकाशक मीडिया की साख नष्ट करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं तो इनसे इनके पेशे और सहकर्मियों को यही उम्मीद है।
वाह! आप एक महाकाण्ड की खबर जेब में धर कर साल भर से ज्यादा बैठे रहें। अन्तत आपसे नहीं, सीएजी से पता चले।
और गली कूचे के मनई से आप ह्विसिल ब्लोअर बनने की उम्मीद रखें। उसे नैतिकता और देश भक्ति का पाठ पढ़ायें। चाहे वो गरीब मरे गैंगेस्टर या एनकाउण्टर की गोली से। और आप, मीडियाशक्तिमान खबर न बताने पर (मैं यहां सूचना का दुरुपयोग नहीं लिख रहा; आखिर उसका कोई भ्रष्ट कोण है या नहीं, कह नहीं सकते) खुद क्षमायाचना मात्र से सटक लें।
जय हो!
सहमत हूँ, आपकी हताशा किसी भी भारतीय की भावनाओं को दर्शाती है।
ReplyDeleteयह एक नेक्सस है जो आज से नही बरसो से है . मीडिया को भी मनी की जरुरत है . १०रु.की लागत वाला अखवार २ रु. मे बेचा जाता है .लाखो रु. रोज़ खर्च कर चलने वाले न्यूज चैनल क्या सिर्फ़ विग्यापनो से चल पायेंगे .
ReplyDeleteवरिष्ट पत्र्कार ही संसद के सेन्ट्रल हाल में जा सकते है और वही पर भारत के नीति निर्धारको के साथ लाईजनिग करके अपना पेट पालते है .
अभी ना जाने कितने राडिया , तलवार , सिंह , खडेलवाल है जो कितने ही राजाओ को साधते है
बर्खा और वीर तो क्षमा भी माँगने के लिए तैयार नहीं।
ReplyDeleteमुझे लगता है कि यदि वे इस समाचार को सार्वजनिक करना भी चाहते थे, उन्हें रोका गया होगा। ऐसा सनसनी समाचार को छापना या छुपाना, इसका निर्णय करना इनके हाथों में नहीं होता।
@ G Vishwanath > ऐसा सनसनी समाचार को छापना या छुपाना, इसका निर्णय करना इनके हाथों में नहीं होता।
ReplyDeleteबेचारे बीबे बच्चे! कोई समाचार अपने नाम से न देना चाहे तो भी हजार तरीके हैं - यह तो अपना हिन्दी का चिरकुट ब्लॉगर भी जानता है! :)
मैं बर्खा और वीर के पक्ष में नहीं बोल रहा हूँ।
ReplyDeleteफ़िर भी इतना कहूँगा कि इस समाचार को वे अनाम बनके भी छाप नही सकते थे।
उनके मालिक जान जाएंगे कि बर्खा और वीर ही इसके पीछे होंगे।
बर्खा और वीर, अकेले तो नहीं थे। इस काम में मालिकों का सहयोग और प्रोत्साहन भी हुआ होगा। मालिक की अनुमति के बिना वे इसका खुलासा नहीं कर सकते थे। इस घटना में जिम्मेदारी केवल बर्खा और वीर की नहीं। मालिकों की भी जिम्मेदारी है।
घोटाले सरकारी लोग ही नहीं करते उन में बाहर के लोग भी शामिल होते हैं, पत्रकार भी।
ReplyDeleteइस लिंक को देखें
ReplyDeletehttp://prasunbajpai.itzmyblog.com/2010/11/2.html
देखिये पुण्यप्रसून जी भी अपने बिरादरान का नाम अपनी पोस्ट में डालने से कतरा रहे हैं>..
@ भारतीय नागरिक - यह बिरादरी बहुत समय बाद जबरदस्त कब्ज का शिकार हुई है!
ReplyDeleteमुझे लगता है वही करना सही होगा (जैसा लेख में सुझाव दिया गया है). मगर वह काफी नहीं है - BD और VS को खुद को रिडीम भी करना होगा - दुबारा.
ReplyDeleteअभी किसी और ने यह किया होता तो यही दो सूरमा रिन से उनकी धुलाई कर टीनोपॉल लगा दिये होते।
ReplyDeleteमुझे तो मीडिया के इन महारथियों से कोई शिकायत नहीं है. नई पीढ़ी को, प्रेरणा में अब ये गुण भी समाहित करने में कोई हिचक नहीं होगी...
ReplyDeleteशायद हमारी सोच में ही कहीं कोई गड़बड़ है या फिर हम समय के साथ गति नहीं बनाए रख पा रहे हैं.
कभी सोचता हूं कि क्या कोई चिरकुटिया, महात्मा गांधी को ये बता सकता था कि उन्हें जिन्ना से क्या और कैसे बात करनी है या कोई सुभाष चंद्र बोस को समझा सकता था कि उन्हें गांधी-नेहरू से सुलह कर लेनी चाहिए थी या कोई भगत सिंह को कहने की हिम्मत कर सकता था कि -"चाहो तो, गोरों से तुम्हारी सज़ा कम/माफ़ करने की बात करूं?"...
हम आज, ये सब deserve करते हैं (शायद).
खबरियों खबरदार.
ReplyDeleteलक्ष्मी जी का अवगाहन किसे नहीं प्रिय होता। इनके लिए थोड़ा बेशर्म होना पड़े तो पत्रकार बिरादरी को अलग छाँटने की क्या जरूरत है? अब इस मूल प्रवृत्ति को पेशा निरपेक्ष मान लेना चाहिए।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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बहुत जम के तबीयत से धोये हैं आप इन मिट्टी के शेरों को...
जब जनता के हक और देश के हित पर सरेआम डाका डाला जा रहा था तब हमारे यह वीर न गरजे न ही बरसे... अब कैसे अपने नाम और काम को डिफेंड कर पायेंगे ये लोग ?...
ब्लॉग की ताकत का भी पता चल रहा है इस मामले से... ब्लॉगरी न होती तो लाज छुाने के नाम पर सारा का सारा मामला आपस में ही पचा गयी होती पत्रकार बिरादरी... प्रिंट मीडिया में तो भनक तक न लगने दिये होते भाई लोग...
...
इस विचारपूर्ण पोस्ट के लिए आपको प्रणाम. :)
ReplyDeleteआज ऐसी नैतिकता कुछ ही लोगों में बची है की मानवीय स्वभाव के कमियों की वजह से अगर गलती हो भी गयी हो तो माफ़ी मांगते हुए दुबारा उस गलती को नहीं करने का प्रण लें.........आज तो बेशर्मों की जमात उच्च पदों पर पहुँच चुकी है जिसकी वजह से पूरा देश और समाज बेशर्म बनने को मजबूर है...........रतन टाटा जैसे लोग इस स्थिति के लिए पूरी तरह जिम्मेवार हैं.........ऐसे उद्योगपतियों ने पूरी व्यवस्था को भ्रष्ट बनाकर अपने आप को बड़ा उद्योगपति साबित करने का काम किया है......ईमानदारी और सामाजिक सरोकार तो इनके लिए सिर्फ दिखाने के दांत हैं .......पूरा देश और समाज इनकी बेईमानी के धंधे की वजह से खून के आंसू रो रहा है.....
ReplyDelete`खुद क्षमायाचना मात्र से सटक लें'
ReplyDeleteदेश का चौथा खम्भा जो हैं :)
जय हो
ReplyDeleteमीडिया इस मामले में भी धुलाई ही कर रही है। यह सब वर्षों से चल रहा है, लेकिन हिंदी मीडिया से मामला दूर रहने के चलते आम लोगों तक पहुंच नहीं थी। बेचारे हिंदी वाले समोसे खाकर या बहुत हुआ तो फ्लैट लेकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, उनकी लंबी पहुंच नहीं रहती। अब धुलाई शुरू हुई है....
ReplyDeleteKahan gaee abhiwyakti kee swatantrata. Jab media wale jinka kam hee hai janta ko har ghatna ke bare men soochit karna aur jankaree dena wahee srkar aur udyagpati dono se hath milaye aur janta ko andhere men rakhe. kya loktantr hai.
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