Saturday, November 20, 2010

हुबली का सौन्दर्य

मैने कहा कि मैं बिना किसी ध्येय के घूमना चाहता हूं। गंगा के कछार में। यह एक ओपन स्टेटमेण्ट था – पांच-छ रेल अधिकारियों के बीच। लोगों ने अपनी प्रवृति अनुसार कहा, पर बाद में इस अफसर ने मुझे अपना अभिमत बताया - "जब आपको दौड़ लगा कर जगहें छू कर और पैसे फैंक सूटकेस भर कर वापस नहीं आना है, तो हुबली से बेहतर क्या जगह हो सकती है"। बदामी-पट्टळखळ-अइहोळे की चालुक्य/विजयनगर जमाने की विरासत वहां पत्थर पत्थर में बिखरी हुई है।

वह अधिकारी – रश्मि बघेल, नये जमाने की लड़की (मेरे सामने तो लड़की ही है!) ऐसा कह सकती है, थोड़ा अजीब लगा और अच्छा भी।

रश्मि ने मुझे अपने खींचे चित्र दिये। तुन्गभद्रा के किनारे पट्टळखळ में है विरुपाक्ष शिव का मन्दिर। एक रात में बनाया गया – जैसा किंवदन्ती है। सातवीं शती में विजयनगर रियासत आठवीं शती के चालुक्य साम्राज्य का यह मन्दिर एक छोटी सी पहाड़ी के पास है।Picture1 (Small)

उस पहाड़ी से पत्थर तराश कर कारीगर रातोंरात लाते थे और जमा कर रेत से ढंक देते थे। वर्षों बाद जब संरचना पूर्ण हुई तो एक रात रेत का आवरण हटा दिया गया और अगले दिन लोगों ने देखा अभूतपूर्व विरुपाक्ष मन्दिर! क्या जबरदस्त ईवेण्ट-मैनेजमेण्ट रहा होगा सातवीं आठवीं शती का!

पता नहीं, यह लोक कथा कितनी सत्य है, पर लगती बहुत रोचक है। रश्मि बघेल ने बताया।


Rashmiरश्मि मेरे झांसी रेल मण्डल में मण्डल परिचालन प्रबन्धक हैं। मालगाड़ी चलाने का वैसा ही रुक्ष (और दक्ष) कार्य करती हैं, जैसा मैं मुख्यालय स्तर पर करता हूं। लेकिन एक प्रबन्धक के अतिरिक्त, जैसा मेरे पास अभिव्यक्ति को आतुर व्यक्तित्व है, वैसे ही रश्मि के पास भी सुसंस्कृत और अभिव्यक्ति की सम्भावनाओं से संतृप्त पर्सनालिटी है। पता नहीं, रश्मि या उनके प्राकृतिक सौंदर्य को तलाशते यायावरी पति नेट पर अपने कथ्य को उकेरेंगे या नहीं। कह नहीं सकता। मैं तो मात्र परिचयात्मक पोस्ट भर लिख सकता हूं।


और हां, एक और व्यक्तित्व पक्ष रश्मि का सशक्त है – हम तो अकादमिक रूप से भाषाई निरक्षर है; पर रश्मि के पास संस्कृत से स्नातकोत्तर उपाधि है। बहुत जबरदस्त सम्भावनायें है एक अच्छे ब्लॉगर बनने की!  

आप देखें हुबली के आस पास के रश्मि के भेजे चित्र और उनपर उनके कैप्शन:

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- भूतनाथ मन्दिर। बीजापुर, कर्णाटक में बदामी गुफाओं की पहाड़ी की तलहटी में स्थित। मणिरत्नम ने गुरु फिल्म के लिये ऐश्वर्य और अभिषेक की शादी यहीं फिल्माई थी। शान्त और शीतल स्थान – ध्यान लगाने के लिये।

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- इस इमारत को देख आपको किस आधुनिक स्थापत्य की याद होती है??? संसद भवन??? शायद लुटियन को अईहोळे के इस दुर्गा मन्दिर से कोई विचार मिला हो!

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- ऊटी – टूरिस्ट प्लेस है पर नीलगिरि का नैसर्गिक सौन्दर्य तो पास के जंगलों में ही है। यह मानव निर्मित पानी का ताल पार्सन घाटी के पास है। शुद्ध जल की यह झील बादलों के लिये मानो आइना हो!

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- और वही ताल रात में बदल जाता है कालिदास की कविता में।

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- ऊटी के पास पार्सन घाटी। धूप छांव और बादलों की आंखमिचौली!

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- नैनीताल तो प्रसिद्ध है अपनी (भीड़ भाड़ से भरी) झील के लिये। पर यह पार्सन घाटी के पास की झील तो अद्भुत है! 

कैसा लगा आपको रश्मि बघेल का हिन्दी ब्लॉगजगत में प्रकटन?!


33 comments:

  1. प्रभावशाली है रश्मि बघेल का हिन्दी ब्लॉगजगत में प्रकटन

    परिचयात्मक प्रकटन मूर्त रूप में प्रकटन में तब्दील हो तो बात बने ..
    चित्र बयाँ करते हैं दृष्टि की

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  2. बजरिये आप रश्मि बघेल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय हुआ, आभार !उनके चित्र सचमुच आकर्षक हैं !
    क्या उनका पदार्पण ब्लॉग जगत में हो चुका है ? बिना ढोल ताशे के ? आश्चर्य !

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  3. खूबसूरत तस्वीरें ...
    गरिमामय परिचय ...!

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  4. सुन्दर!
    रश्मि बघेल का स्वागत है हिन्दी ब्लाग जगत में।

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  5. अनेक मनोरम चित्रों की सहायता से आपने एक ऐसा चलचित्रात्मक प्रभाव उत्पन्न किया है जो पाठक को शुरु से अंत तक बांधे रखता है। इसे पढकर ऐसा लगा मानों इसकी रचयिता की अनुभूति, सोच, स्मृति और स्वप्न सब मिलकर काव्य का रूप धारण कर लिया हो। परिचयात्मक भाव और विचार कहीं ऊपर से चिपकाए नहीं लगते, इसलिए परिचय में कहीं झोल नहीं असीम संभावनाओं की झलक है! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं आप दोनों को!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

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  6. बढ़िया लगा... हुबली के चित्र सुन्दर हैं..

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  7. ......बस यही पूछने चला आया कि कब आ रही है रश्मि जी की पहली अतिथि पोस्ट ?

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  8. रश्मि बघेल का स्‍वागत है ब्‍लाग जगत में। साथ ही इतनी सुन्‍दर जगह से परिचय कराने के लिए भी।

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  9. सचमुच अपार संभावनायें हैं रश्मि जी में। एक और नये गरिमापूर्ण व्यक्तित्व से परिचय कराने के लिये आभारी हैं हम।

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  10. महाशय यदि आप भाषाई निरक्षर है तो हम लोगो की क्या बिसात !

    रश्मि जी से अनुरोध है कि ब्लाग शुरू करने के बारे मे विचार करें ... i can always do with one more new blog.

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  11. रश्मि जी को ब्लॉगर बना ही दो जी
    खूबसूरत तस्वीरें मिल जाया करेंगी हमें और जगहों के बारे में जानकारी भी

    प्रणाम

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  12. परिचय प्राप्त हुआ. आनंद आ गया. चित्र जबरदस्त हैं. प्रसंगवश पत्तदकल , विरूपाक्ष मंदिर आदि ८ वीं सदी के चालुक्यों का है. हम्पी विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी और उनका कालखंड १४ वीं सदी है

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  13. रश्मि जैसी प्रतिभाएँ अवश्य हिन्दी ब्लॉग को नया आयाम देंगी ।
    कई वर्ष पहले चेन्नई रेल स्टेशन पर एक उत्तर भारतीय लड़की मुझसे कुछ पूछने लगी, रिज़र्वेशन की लाइन में। मेरे पूछने पर उसने बताया की वह बिहार से इंजिन ड्राईवर का इंटरव्यू देने आई है ।

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  14. @ श्री पी.एन. सुब्रह्मण्य़न - धन्यवाद। मैने उपयुक्त परिवर्तन कर दिया है! पट्टळखळ का उच्चारण मेरे प्रोफेसर इसी तरह किया करते थे, लिहाजा उसे पत्तदकल से रिप्लेस नहीं किया है।
    एक बार पुन: धन्यवाद।

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  15. @ No Mist/ Niraj Prasad jee -
    आपने मेरी शुरुआती पोस्टें शायद नहीं देखीं। हिन्दी लेखन से, शब्दों से जद्दोजहद करती पोस्टें। उनमें बहुधा मुझे शब्द क्वाइन करने पड़ते थे - सही शब्द सूझते ही न थे। :(
    टिप्पणी के लिये धन्यवाद।

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  16. भूपेन्द्र सिंह जी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी -

    बहुत ही सुंदर चित्रों से सजी आपकी पोस्ट के लिए धन्यवाद,इतना सुन्दर प्रकृति दर्शन वो भी घर बैठे, लगा कितना कुछ अनदेखा रह जाता है जीवन में /
    सादर

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  17. वाह आपने तो दिल्ली में ही बैठे-ठाले हुबलीदर्शन करवा दिया. सुंदर चित्र साझा करने के लिए आभार.

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  18. `एक और व्यक्तित्व पक्ष रश्मि का सशक्त है – हम तो अकादमिक रूप से भाषाई निरक्षर है; पर रश्मि के पास संस्कृत से स्नातकोत्तर उपाधि है।'
    महिला सशक्तीकरण का युग है पाण्डेय जी :)

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  19. @ काजल कुमार - रश्मि के भेजे इन चित्रों में एक खास बात है - मनई या मनई की भीड़ नजर नहीं आती। कोई बबलू पिन्की सोनी मोनू या उनके मम्मी पापा नहीं हैं जो विरूपाक्ष मन्दिर की चुण्डी अपने हाथ में लेने का पोज बनाते फोटो खिंचाते दिखते हों।

    कालिदास की कविता है इन जगहों में, "मुन्नी बदनाम हुई" छाप चिंचियाहट नहीं! :)

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  20. रश्मि बघेल का ज्ञान, भाषा और सौन्दर्यपरकता निश्चय ही ब्लॉग जगत के लिये उपलब्धि होगी और साथ ही साथ परिचालन की रुक्षता को साहित्यिक लेप भी मिलेगा। मेरा परिचय है उनसे और मैं निश्चित हूँ कि उनमें स्वयं को हर स्तर पर सिद्ध करने की क्षमतायें विद्यमान हैं।

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  21. यद्यपि निर्धारण तनिक कठिन है कि आप हुबली दर्शन कराना चाह रहे हैं या ब्‍लाग विश्‍व में रश्मिजी के आगमन की पूर्व सूचना देना? तदपि दोनों ही सुखद हैं।

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  22. धन्यवाद ...एक नये प्रवीण पान्डे सरीखे ब्लागर को ब्लाग जगत मे लाने के लिये

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  23. रश्मि का स्वागत है भाई जी !

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  24. रश्मि जी से परिचय करवाने के लिये आभार. आपके बहुत से गुण रश्मि जी में दिखाई दे रहे हैं :)

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  25. मंगलकामनायें!

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  26. बढ़िया। सुंदर तस्वीरें।
    हुबली हो या रश्मि जी की ली हुईं अन्य तस्वीरों वाली जगहें सभी सुंदर।

    रश्मि जी को ब्लॉगजगत पर आना चाहिए।

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  27. Gyanjee,

    Sorry for being late.
    Welcome to Rashmi.
    Hope to see her enter the blog world in the near future. Please alert me when she does so.

    I have visited these places in the past.
    Unfortunately the tourism department is not too active in promoting these places and maintaining them well.

    Regards
    G Vishwanath

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  28. सुन्दर तसवीरें हैं ज्ञानजी. रश्मि बघेल में आपने ब्लोगिंग कि संभावनाएं देखीं हैं तो उन्हें प्रोत्साहित भी कीजिये कि वह लिखें. मैं भी किसी के प्रोत्साहन से ही लिखने लगा हूँ

    @विश्वनाथ जी
    टूरिस्ट डिपार्टमेंट जब तक इन जगहों को प्रमोट नहीं करता तब तक ही यह जगह इतनी सुन्दर रहेंगी वर्ना यहां बंटी लव्स बबली और कई फोन नम्बर लिखे हुए मिलेंगे.

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  29. बढि़या चित्र. दुर्गा मंदिर के शिखर को मंदिर वास्‍तु के विकास का महत्‍वपूर्ण चरण माना जाता है. एक रात वाली कहानी पूरे देश में है, कहीं इसे छमासी रात भी कहा जाता है. रेत से ढकना वस्‍तुतः ramp है, जो मंदिर के elevation के साथ बढ़ती जाती थी, ताकि उस पर पत्‍थरों को उपर चढ़ाया जा सके, इस तरह उंचाई लेते हुए पूरा मंदिर ढंक जाता था और अंत में कलश या स्‍तूपिका लगा देने के बाद प्राण-प्रतिष्‍ठा के लिए नियत तिथि के एक दिन पहले पूरी रात में साफ कर दिया जाता था. (यह थोड़ा पढ़ा, थोड़ा गुना, थोड़ा सुना और कुछ बचा तो हमने भी अपनी अकल लगाई है.)

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  30. नयनाभिराम चित्र खींचे हैं रश्मि जी ने...मेरी बधाई पहुंचा दें उनतक...ये जगह तो अपने पास बुलाती सी लग रही है...हुबली...ह्म्म्म...घूमने का कार्यक्रम बनाया जाए...आप आयेंगे क्या?


    नीरज

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  31. बढि़या चित्र. दुर्गा मंदिर के शिखर को मंदिर वास्‍तु के विकास का महत्‍वपूर्ण चरण माना जाता है. एक रात वाली कहानी पूरे देश में है, कहीं इसे छमासी रात भी कहा जाता है. रेत से ढकना वस्‍तुतः ramp है, जो मंदिर के elevation के साथ बढ़ती जाती थी, ताकि उस पर पत्‍थरों को उपर चढ़ाया जा सके, इस तरह उंचाई लेते हुए पूरा मंदिर ढंक जाता था और अंत में कलश या स्‍तूपिका लगा देने के बाद प्राण-प्रतिष्‍ठा के लिए नियत तिथि के एक दिन पहले पूरी रात में साफ कर दिया जाता था. (यह थोड़ा पढ़ा, थोड़ा गुना, थोड़ा सुना और कुछ बचा तो हमने भी अपनी अकल लगाई है.)

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  32. सुन्दर तसवीरें हैं ज्ञानजी. रश्मि बघेल में आपने ब्लोगिंग कि संभावनाएं देखीं हैं तो उन्हें प्रोत्साहित भी कीजिये कि वह लिखें. मैं भी किसी के प्रोत्साहन से ही लिखने लगा हूँ

    @विश्वनाथ जी
    टूरिस्ट डिपार्टमेंट जब तक इन जगहों को प्रमोट नहीं करता तब तक ही यह जगह इतनी सुन्दर रहेंगी वर्ना यहां बंटी लव्स बबली और कई फोन नम्बर लिखे हुए मिलेंगे.

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  33. अनेक मनोरम चित्रों की सहायता से आपने एक ऐसा चलचित्रात्मक प्रभाव उत्पन्न किया है जो पाठक को शुरु से अंत तक बांधे रखता है। इसे पढकर ऐसा लगा मानों इसकी रचयिता की अनुभूति, सोच, स्मृति और स्वप्न सब मिलकर काव्य का रूप धारण कर लिया हो। परिचयात्मक भाव और विचार कहीं ऊपर से चिपकाए नहीं लगते, इसलिए परिचय में कहीं झोल नहीं असीम संभावनाओं की झलक है! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं आप दोनों को!
    फ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
    विचार-शिक्षा

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय