Tuesday, November 2, 2010

कानी गदहिया बनाम बैंजनी मूली

नैनीताल के ड़ेढ़ दिन के प्रवास में एक आने की भी चीज नहीं खरीदी। वापसी की यात्रा में देखा कि टेढ़ी मेढ़ी उतरती सड़कों के किनारे कुछ लोग स्थानीय उत्पाद बेच रहे थे। एक के पास मूली थी, दूसरे के पास माल्टे। पीले गोल माल्टे की खटास दूर से ही समझ आ रही थी। वे नहीं चाहियें थे। मूली बैंजनी रंग लिये थी। आकर्षित कर रही थी। एक जगह रुक कर चबूतरे पर बैठे किशोर से खरीदी। दस रुपया ढ़ेरी। दो ढ़ेरी।

DSC02765

DSC02772अगले दिन (आज) इलाहाबाद में घर पंहुचने पर पूछा गया – क्या लाये? बताने को सिर्फ मूली थी। बैंजनी रंग लिये मूली। मेरी पत्नी जी ने मूली देख एक पुरानी कजरी याद की -

सब कर सैंया गयें मेला देखन
उहां से लियायें गैया, भैंसिया।
हमार सैंया गये मेला देखन
ऊतो लियायें कानी गदहिया . . .

(सबके पति मेला देखने गये। वे खरीद लाये गाय-भैंसें/झुलनी/बटुली/कलछुल/सिंधोरा – सब काम की चीजें। मेरा पगलोट आदमी मेला देखने गया तो कानी गधी (प्रथमदृष्ट्या बेकार चीज) ले कर चला आया!)

इति मम पर्यटनम् फर्स्ट इन्टरेक्शनम्!!!


21 comments:

  1. यह तो अच्छा है कि कजरी सुना क्रोध बह गया, कहीं भोजन में केवल मूली ही होती, तब।

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  2. मूली बाहर से जैसी भी हो पर अंदर से सफ़ेद ही रहेगी| इसमे एक दर्शन छिपा हुआ है, आपकी हर पोस्ट की तरह|

    बालक के चेहरे के भाव से उसके पैर की अंगुलियाँ मैच नहीं कर रही हैं| ऐसा कम होता है पर अच्छी तस्वीर ली है आपने|

    तस्वीर इसलिए भी अच्छी लगी क्योंकि इसे बड़ा करके देखने पर बालक के पीछे कम से कम दस तरह की नैनीतालीय बूटियाँ देखने को मिली| बालक को इसका ज्ञान और भान नहीं था अन्यथा लाखों की जड़ी-बूटियों से पीठ करके कुछ रुपयों की मूली नहीं बेचता|

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  3. क्या सर ... जलते पर नमक छिड़क दिए ....
    नहीं समझे ...
    आज अंग्रेज़ी में गया था Morning Walk करने। तो ऐसने मूली देख हमरो मन ललच गया। ले आए। अब जो सुबह सुबह शुरु हो गया गया सास्त्र-पुराण ... "क्या ले आए सब अपने ऐसन ... सड़ा गला ...!"
    त हम बोल दिए इसी को तो आप अभी तक संभाल कर रखे हैं एतना दिन से ...
    उसके बाद ... छोड़िए ... आपका भी इस्टोरी यहीं खतम हो गया है ...!

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  4. अब मूली कैसे बेकार की चीज हो गयी ? जौन्पुरियों की खास पसंद

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  5. ओ हो हो हो।
    नैनीताल की कानी गदहिया।

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  6. सब कोई लाए फूल तो हमारी गोभी की तरह मूली. कहा जाता है कि इजिप्‍ट के पिरामिड निर्माण में लगे श्रमिकों को भोजन के रूप में मूली ही दी जाती थी.

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  7. कुछ लाये तो सही... मथुरा-आगरा में मूली बेचने वाले मिर्च की चटनी के साथ देते हैं... बैंगनी मूली खाने में कैसी है...

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  8. इब इंटरभेल के बाद का नज़ारा देझेण :)

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  9. @ भारतीय नागरिक - जी, खाने में तो बढ़िया ही है। कड़वी नहीं है। बैंजनी रंग शायद पहाड़ी पानी में किसी मिनरल के कारण आया होगा।

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  10. अब ऐसे काम करोगे तो और क्या उम्मीद करें ...हार्दिक शुभकामनायें भाई जी

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  11. हम जब टूर पर जाते थे, हमें कुछ खरीदने की सख्त मनाही थी।
    Daily allowance बचाकर वापस आने पर श्रीमति के हाथ में दे देने का सिस्टम बरसों से चल रहा है।
    अच्छा सिस्टम है। हमें सोचना नहीं पढता क्या खरीदूँ, क्या नहीं।
    उसे भी विशेष आनन्द प्राप्त होता है बचा हुआ DA खर्च करने का।

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  12. आते जाते बहुत बार यह मूली रखी देखी है लेकिन आज तक खरीदी नही . अगले हफ़्ते फ़िर जा रहा हूं तब जरूर ही आपकी पसन्द की बैगनी मूली खरीदुन्गा

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  13. muki bade kaam ki hai sab kuch pacha deti hai lakin khud nahi pachti hai.

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  14. हा हा ... मजा आ गया! अब थोडा रीता आंटी की आवाज में वो कजरी भी हो जाए :)

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  15. हा हा हा. बिलकुल सटीक उदहारण :)

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  16. आप तो 'संगम' के राज कपूर की तरह व्‍यवहार कर रहे हैं।

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  17. अगली बार हम भी ट्राई मार लेंगे...

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  18. बहुत अच्छी प्रस्तुति। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई! राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    राजभाषा हिन्दी पर – कविता में बिम्ब!

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  19. शाक-सब्जी खरीदने के अधिकार का अतिक्रमण करें और कजरी सुनने को न मिले ऐसा कैसे हो सकता है।

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  20. जबसे वर्धा आया हूँ तबसे मूली खाने को नहीं मिली। बरसात बीतने के बाद आजकल कहीं दिखायी भी दे रही है तो इतनी बेडौल, बदरंग और बासी कि खरीदने की हिम्मत नहीं हुई। कीमत चालीस रुपये किलो।

    शुक्र है कि कजरी सुनने को नहीं मिली।

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  21. नैनीताल का मालरोड काहे नहीं देखा-दिखाया?
    बहुत नाइन्साफ़ी है जी।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय