टिप्पणियों में प्रणामवादी युग का प्रारम्भ
टिप्पणियों का साधुवादी युग समाप्त हुआ। रवीन्द्र प्रभात चाहें तो इसे अपने इतिहासनामे में दर्ज कर लें। आई नो, समीरलाल शायद आपत्ति दर्ज करायें। शायद ना भी करायें - शादी-वादी के इंतजाम में बिजी हों तो। सुकुल चाहें तो साहित्त वालों से पुछवा लें। ज्यादा डाऊट लगे तो नामवर सिंह जी; या जे हे ने से, नये सम्मेलन में जो कोई कवी जी आये थे, उनका विचार भी ले लें। अपुन को कोई फरक नहीं पड़ता।
साधुवादी युग से टिपेरतंत्र प्रवेश करता है प्रणामवादी युग में। हमने ज्यादा नहीं पढ़ा है, पर हमारे विचार से इसके प्रवर्तक हैं अंतर सोहिल, शिवकुमार मिश्र और संजीव तिवारी। और क्या; आपका मत है कि नये युग का प्रवर्तन करने वाला कोई हिन्दी में डब्बल पी.एच.डी. होना चाहिये?
ये लोग अभी पोलिटिकली करेक्ट टिप्पणी कर प्रणाम ठेल रहे हैं। सीधे-सच्चे लोग हैं ये। वैसे भी, अभी प्रणामवादी/प्रणामीयुग बालपन में है। आगे प्रणामीयुग जब अपने असली रंग में आयेगा तो स्तरीय टिप्पणियां आयेंगी। जैसे:
सिरीमान सुकुल जी, परनाम।
आप जो ये जबरी छ पन्ने का ठेले हैं, उसका माने सिर्फ और सिर्फ यह है कि आप यह साबित करना चाहते हैं कि लिखना आपई भर को आता है। ये गलतफहमी दूर होने में कित्ते साल और लगेंगे? आप ठीक लिखने को ताऊ की पाठशाला क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते। भले ही ताऊ आपके खेमे के नहीं हैं।
फिर भी आप ठीकैठाक लिख लेते हैं। आपको प्रणाम!
या फिर:
प्रणाम, आप अपनी होशियारी ज्यादा ही छांटने लगे हैं बन्धुवर। हमारी रिसर्च बताती है कि ब्लॉगवाणी आपने नहीं, काव्यशिक्षक नामक सज्जन ने बन्द कराया। प्रणाम पुन: स्वीकार करें।
बकिया तीन नामी और चार बेनामी ब्लॉग पर रोजन्ना चार चार बार पोस्टने की बजाय आप ढ़ंग की ब्लॉगिंग कब तक सीखेंगे?
आप मुझे बहुत प्रिय हैं; आपको बारम्बार परनाम!
यह तो प्रणामवादी/प्रणामीयुग की ट्रेलर पोस्ट है। यानी, हम तो मात्र सब्जेक्ट स्टीयरर हैं! टिपेरने के जब आदि-मध्य-अन्त और बीच बीच में प्रणाम स्प्रिंकल होने लगेगा, तब प्रोत्साहित हो कर ढ़ंग की पोस्टें तो मित्र लोग लिखेंगे! :)
सर प्रणाम!
ReplyDeleteकुछ समझ में नहीं आया।
बड़ा घुरा-फिरा कर लिखे हैं।
सीधे लिखते तो कुछ बुझाता भी।
परनाम।
पाण्डेय् जी प्रणाम,
ReplyDeleteपोस्ट को कई बार पढा, कभी मॉनिटर घुमाकर, कभी खुद शीर्षासन करके परन्तु कुछ विशेष समझ नहीं आयी। रविवार को दोबारा पढने का मुहूर्त निकला है। यदि तब भी समझ नहीं आयी तो कृपया इस पोस्ट की एक टीका पोस्ट अवश्य लिखिये।
धन्यवाद,
आपका एक नियमित पाठक!
[और आपके गंगा-सफाई अभियान का प्रशंसक]
nice
ReplyDeleteये नाइस वाले सुमन जी आ गये! असल में नाइस युग भी चला टिप्पणी में पर ज्यादा ठहरा नहीं। लेकिन प्रणाम कर टिप्पणी देने का युग लम्बा चलेगा। इसमें आत्मीयता भी ज्यादा है, और टिप्पणी भी विषयोन्मुख होती है।
ReplyDeleteबाकी, प्रणाम स्टाइल में कट-पेस्टिया टिप्पणी, हिन्दी सेवा वाली टिप्पणी आदि कैसे सम्भव है; उसके प्रयोग अभी किये जाने शेष हैं!
एक ठो आसीरबाद की गुंजायस हो तो परनाम भी चलैगो।
ReplyDeleteप्रणाम करते ही वार्तालाप में मिठास आ जाती है, अब उसके अन्दर भरकर कोई भी कड़वी दवा ठेल दीजिये। प्रणामवादी युग तो बहुत पहले से चल रहा है और चलता रहेगा बस सही चिकित्सक उसके अन्दर उचित औषधि ठेल दे।
ReplyDeleteटिप्पणी कभी साहित्यिक मानी जा सकती हैं और कभी मन के त्वरित विचार बाँचती हुयी। दोनों में अन्तर स्थापित कर ग्रहण करे साधुजन।
कन्फ़ुज्या गये है यह पढकर इसलिये सबको बारम्बार प्रनाम ............
ReplyDeleteकिधर निशाना है जनाब-ए-आली...
ReplyDeleteवैसे कभी लगता है समझ गये और कभी लगता है कि गोले का छोर ढूंढ़ रहे हैं.. :)
पहले ब्लॉग्गर को थप्पड मारो।
ReplyDeleteफ़िर उसके गाल तो सहलाओ।
इससे उसे एक और थप्पड सहने की शक्ति प्राप्त होगी।
इस बार हमारी शुभकामनाओं को withhold कर रहे हैं।
बदले में हमारा प्रणाम स्वीकार कीजिए
variety is the spice of life.
जी विश्वनाथ
@ श्री विश्वनाथ - बहुत जबरदस्त टिप्पणी! इस बार हम अपना धन्यवाद विथहोल्ड कर रहे हैं।
ReplyDeleteसादर प्रनाम स्वीकारें!
आप तो प्रणाम स्वीकारें.
ReplyDelete"साधुवाद" सुना था कवि सम्मेलन में
ReplyDeleteलगा ज्यादातर साहित्यिक लोग ही साधुवाद देते हैं और साहित्यिक रचनाओं पर ही दिया जाना चाहिये।
विचारों से सहमति हो या सहमति नमस्कार करना अच्छा लगता है और बडों से आशिर्वाद भी मिल जाता है।
फोन पर भी काफी बार प्रणाम ही बोलता हूँ।
प्रणाम स्वीकार करें
nice :)
ReplyDelete(ताकि सनद रहे कि मैं भी टिप्पणी कर के जा रहा हूं)
प्रणाम वादी युग मैं कुछ साधुवाद युग के बूढ़े अभी मौजूद हैं
ReplyDeleteयह टिप्पणी के साधुवाद युग के एक इंसान की शब्द हैं. आप सत्य कहते हैं
मेरी भी पहुंचे ..प्रणाम !
ReplyDeleteमेरे ख़याल से किसी भी रचना पर पाठक का भी उतना ही अधिकार है जितना कि लेखक का| टिप्पणी असल में पाठक का दृष्टिकोण दर्शाता है, जिसे लेखक जबरदस्ती नहीं बदल सकता| रचना एक तरह का आइना है| कभी कभी टिप्पणियाँ देखकर क्षोभ होता है, लेकिन फिर, एक बार पोस्ट होने के बाद ये कृति सिर्फ मेरी तो नहीं...
ReplyDeleteशायद मैं आपकी पोस्ट का मंतव्य सही समझा हूँ...
sir mujhe lagta hai.kuch tipiniya log isliye karte hai taaki log unhe bhi pahchane, ki hum bhi hai. isiliye wo bina padhe nikal lete hai,......... likh kar. ab kya likh kar nikalete hai ye nahi likhunga. par apna bataun, to me to bahut khoob likh kar nikal jata tha.lekin ab socha hai, jab likhna apne liye suru kiya tha. to tipini ka intzaar kyon.
ReplyDeleteगर्व है कि आप और हम इस प्रणाम वादी युग के ब्लॉगर हैं ...
ReplyDeleteप्रणाम !
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ek naye yug ki suruaat.
n ram ram n parnam.
@ अनूप जोशी - अरे अनूप, टिप्पणी ब्लॉगिंग का जरूरी तत्व है। पर टिप्पणी-बार्टर सिस्टम ने सार्थक टिप्पणी का कचरा कर दिया है हिन्दी ब्लॉगजगत में।
ReplyDeleteदूसरे, ब्लॉगिंग का सही प्रयोग शायद नहीं हो रहा है। आपके नामराशि अनूप सुकुल तो कहेंगे कि सब टिचन्न है हिन्दी ब्लॉगरी में, पर मुझे लगता है ब्लॉगरी डी-रेल सी, थकेली सी है।
हो सकता है हम गलत हों। हम ही डी-रेल से थकेले से हों! :)
इस आलेख के लिए आपको भी प्रणाम !
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ के माथा खाजुआने लगे कि इसमें का कहने का कोसिस किया गया है..माने कि निशाना किधर को है..
ReplyDeleteफिर अपने को ही गरियाए कि " चुप मंदबुद्दी,ज्यादा दिमाग न लगाओ,नहीं बुझाएगा "
लेकिन टिपण्णी तक पहुंचे तो आत्मविश्वास फिर से टाई ठीक किया...
खाली हमही नहीं है जो चोन्हियाये रह गया है...
क्रिपया...जरा ई पोस्ट का सप्रसंग व्याख्या भी कर दीजियेगा न..
BAHUT ACHHE DADDAJI,
ReplyDeleteAAP KAISE HAIN.....
JINKE GYAN-SAGAR SE HUM APNI PIPASA
KO....PALLAWAIT/PUSHPIT KARTE HAIN
SAYAS HI UNKE PRATI MAN ME ADARBHAW
.....JAGRIT HOTI HAI....SO...OOS ADAR BHAW KO HUM 'PRANAM' JAISI KALANTAR SE PRAYOG HO RAHE SHABD(BHAW) KIABHIVYAKITI PRADAN KARTE HAIN.......
PRANAM.
अब प्रणाम स्वीकार करने की उम्र आ गई है .... आप तो अब बस स्वीकार करें
ReplyDeleteआभार
प्रणाम
ल्लो जी हमहूं आ गए, परणाम करके देखने कि किधर नजरें और कहां निशाना।
ReplyDelete;)
मैं तो इस प्रणामवादी युग के प्रारंभ होने से पहले ही आपको प्रणाम करता रहा हूँ। यहाँ जो प्रणामवादी टिप्पणियों के उदाहरण दिये गये हैं उनमें प्रणाम का भाव पारंपरिक भाव जैसा नहीं है।
ReplyDeleteकभी-कभी देश-काल-परिस्थिति के सापेक्ष शब्द अपना अर्थ भी बदल लेते हैं, यही सिद्ध हो रहा है अब।
इस बोल्ड पोस्ट के लिए सादर प्रणाम।
nice! प्रणाम :-)
ReplyDeleteसादर प्रणाम,
ReplyDeleteयुग प्रवर्तकों की टिपण्णी नहीं दिख रही. मेरे हिसाब से एक ठो युग प्रवर्तक पुरस्कार की भी घोषणा होनी चाहिए.
इस कालजयी पोस्ट के लिए आपको धन्यवाद. सॉरी... प्रणाम.
ये वाली लाइन आप भूल गए: "अपना आशीर्वाद देने के लिए हमारे ब्लॉग 'भीगी पलकें' पर पधारे."
लीजिए सर
ReplyDeleteएक ठो और प्रणाम झेलो.
@'झेलो' शब्द कैसा रहेगा.
आज बहुत दिन बाद चिट्ठाकारी का समय मिला है तो आपके चिट्ठे पर पढने आया हूँ...मगर यह पोस्ट कुछ समझ में नहीं आई. खैर पिछली कुछ पोस्ट पढ़ ली हैं :-)
ReplyDeleteटिपिया नहीं पा रहा हूं, क्या कहूं .... इतिहास में नाम जुड़ जाने से रोमांचित हूं, एक ठो प्रणाम नें हमें अमर कर दिया.
ReplyDeleteका करें, तनि भिजी है, आपके पोस्टानुरूप प्रणामीयुग के असली रंगत में टिप्पणी करने के लिए बखत नहीं मिल रहा है, नहीं तो वैसा ही टिपियाये को मन चाहता है. हमारा अनेकोनेक परनाम स्वीकारें.
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ReplyDeleteसँप्रति एक प्रणाम मेरा भी पकड़िये,
बकिया ब्लॉगों का ज़ायज़ा लेकर आते हैं ।
अब जब इत्ता इत्ता आसिरबाद बंट रहा है तो हम भी सोच रहे हैं कि बहती गंगा में हाथ भिजा लें..
ReplyDeleteपरनाम स्वीकारें और आसिरबाद फिरावें..
ऐसी परनामिया टिपण्णी तो पहले कभी नहीं किये हैं पर जब आपने आईडिया दे ही दिया है तो इसका भी परयोग कर लेंगे..
वाट एन आईडिया सरजी!! :)
परनाम :)
ReplyDeleteयुग प्रवर्तन को पहचान कर दर्ज कर देने वाले इतिहासकार की सजग दृष्टि को बधाई फिर एक और प्रणाम भी.
ReplyDeleteइत्ती मुश्किल पोस्ट काहे लिखते हैं आप? पहले बताइए प्रणाम बाद में करेंगे.
ReplyDeleteनीरज