गूगल महान है। मैं गूगल न्यूज का हिन्दी संस्करण अपने होमपेज की तरह प्रयोग करता हूं। कल यह नभाटा की खबर गूगल ने पकड़ी - मेट्रो के महिला कोच में घुसे युवक को महिलाओं ने धुना|
इसको गूगल ने खेल-कूद के वर्ग में रखा -
अब पता नहीं महिलाओं के लिये आरक्षित कोच में युवक का घुसना खेल-कूद है, या युवक की धुनाई खेल-कूद है? या आरक्षित कोच में घुसे युवक को धुनना खेल-कूद है! यहां पूर्वांचल में तो युवक ठाठ से महिलाओं के आरक्षित डिब्बों में चलते हैं, इस तर्क के साथ कि “हम भी तो महिलाओं के लिये हैं”। यहां यह धुनना कब खेल-कूद का दर्जा पायेगा?
यहां तो युवकों की दबंगई और टिर्रेखां बनना ही खेल-कूद है।
दो बातें – पहली तो यह कि मैं एक महिला का उपन्यास पढ़ रहा हूं। श्रीमती निशि श्रीवास्तव का “कैसा था वह मन”। और पढ़ते हुये लग रहा है कि प्रतिष्ठित लेखकों की प्रतिष्ठा सामान्यत: उनकी नेटवर्किंग का नतीजा होता है, उनकी प्रतिभा का नहीं। आपको स्तरीय लेखक/लेखन अकस्मात भी मिल जाता है। अमूमन जैसा नारी लेखन हिन्दी में पाया जाता है, उससे हट कर है यह उपन्यास। मैं इस पुस्तक के विषय में जल्द पोस्ट करूंगा।
दूसरे, नवम्बर खत्म होने जा रहा है। गंगा किनारे खेती शुरू हो गयी है। जरा यह बिरवा देखें, किस फल/सब्जी का है?
कल ये समाचार टीवी पर देखा था , मगर खेल- कूद वर्ग में नहीं , सामान्यज्ञान में बढ़ोतरी हुई ...:)
ReplyDeleteउपन्यास के विषय में जानना रोचक रहेगा ...!
पोस्ट के शीर्षक को पढ़ते ही लगा शायद आपने अंग्रेजी समाचार को गूगल से हिंदी में ट्रांसलेट किया है. वह शायद और ज्यादा मजेदार होता.
ReplyDeleteएक नया शब्द मिला - टिर्रेखां.
आप कह रहे हैं तो उपन्यास स्तरीय होगा ही. आपने पढ़ लिया तो हमने भी पढ़ लिया.
फल सब्जी के पौधे पहचानने में दिक्कत होती है. हमेशा कंक्रीट के जंगल में ही रहे, गाँव खेत देखे नहीं. टिप्पणियों से पता चल जाएगा.
खेल खेल खेल में,
ReplyDeleteमेट्रो के कोच में,
हुयी पिटाई,
सेंडल पडे जोर से :)
बहुत मजा आया...
आशिकों के दो ही पते होते हैं,
तन दुबले और कपडे फ़टे होते हैं।
या फ़िर,
एक चौराहे पर मार पडी,
दूसरे पर मुंह धोया, तीसरे पर कंघे से बात दुरूस्त किये और चौथे पर वही घोडा वही मैदान...
हा हा हा....
इस खेलकूद में तो महिलाओं को गोल्ड मिलना ही चाहिये..
ReplyDeleteबाकी जगह भी हों यही खेलकूद..
पुरुस्कार भी इसी सोशल नेटवर्किंग का नतीजा होते हैं..
आप को उपन्यास पढ़ने का समय मिल रहा है, अच्छा है। मैं ने तो दो अंग्रेजी उपन्यास पिछले माह लाया था। अभी एक को भी पूरा नहीं कर पाया हूँ।
ReplyDeleteइस खेल का ग्लोबलैजेशन होना चाहिए.
ReplyDeleteसिर्फ खबरी ही नजर नहीं रखते खबरों पर, और भी नजरें हैं खबरों की खबर लेने के लिए.
ReplyDeleteमहिलाओं के लिये आरक्षित बोगी ज्यादातर खाली रहती है और बाकि तीन खचाखच
ReplyDeleteआपने भी पहेली श्रृंखला शुरु कर दी है क्या
प्रणाम
गूगल की क्षमताएं अद्वितीय हैं और कई बार तो अकल्पनीय लगती हैं. यह कड़ी देखिये:
ReplyDeletehttp://www.codinghorror.com/blog/2010/09/youtube-vs-fair-use.html
मगर फिर भी कई बार ऐसे तिकड़म मात खा जाते हैं. मैंने भी यह अनुभव किया है. स्क्रीन प्रिंट भी लिए हैं .. कभी पोस्ट करूँगा.
खैर उम्मीद है उन युवकों (और भी कई प्रत्याशित युवकों) को सबक मिला होगा. मेट्रो ने हाल ही में दैनिक १६ लाख यात्रियों की संख्या पार की है और भीड़ देखते हुए महिलाओं के लिए डिब्बे का आरक्षण बहुत जरुरी है. खैर १-२ महीने में मेट्रो डिब्बों की संख्या बढ़ाने वाला है... आशा है कुछ समाधान होगा तब.
युवक की धुनाई तो निश्चित रुप से खेलकूद है ही, वरना मणिपुरी बालाएं एशियाड और CWG में यूं ही मुक्केबाजी के स्वर्ण न जीततीं… :)
ReplyDelete==========
फोटो ज्यादा साफ नहीं है लेकिन फिर भी कुछ हद तक भिण्डी का पौधा लग रहा है।
ReplyDeleteबढ़िया है ...
ReplyDeleteब्लागिंग में आपको गुरु बना कर सीखने की कोशिश कर रहा हूँ ...
आप इलाहाबाद में रहकर दिल्ली की ख़बरें क्यों पढ़ते हो ?
- एक ब्लागर
इन रुचिकर खेलों का आयोजन तो हर स्तर पर हो और हर माध्यम में हो। मोहल्ले में, नगर में, राज्य में, देश में, परदेश मे। बस में, ट्रेन में, प्लेन में, हर जगह। प्रोत्साहन योग्य है यह खेल।
ReplyDeleteखेल कूद!
ReplyDeleteगूगल ने सोचा होगा लडकों के लिए यह खेल है।
कूद कर अन्दर घुसे थे।
तो यह खेल कूद क्यों नहीं हुआ?
कभी गूगल का ट्रांस्लेट टूल आजमाइए।
कुछ भी असंभव नहीं।
एक ब्लॉग्गर को भी किताबें पढने के लिए समय मिलता है आजकल?
ठीक है, आप पढिए और हम आपकी समीक्षा पढेंगे।
बिरवा हम पहचान नहीं सके
निशांतजी जैसे हम भी शहर में ही पले हैं।
कभी गाँव में रहे ही नहीं। कुछ बहुत ही आम पेडों को छोडकर, हम पेड पौधों को पहचान नहीं सकते।
पत्नि से पूछा, यह सोचकर कि जिसने Chemistry/Botany/Zoology में BSc की है वह तो जानती होगी। पर वह भी आजकल सब्जी के दाम बता सकती हैं नाम नहीं।
यहाँ इतने सारे बच्चे गाय / भैंस दुहते देखे ही नहीं।
उनके लिए दूध तो प्लास्टिक के पैकट से निकलता है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
@ Saurabh - आपकी कड़ी देख कर तो लगा कि गूगल को मूर्ख बनाने की कोशिश व्यर्थ है। पर आपकी पोस्ट रोचक होगी। कब प्रस्तुत कर रहे हैं?
ReplyDelete@ अन्तर सोहिल - पहेली? नहीं मित्र? पहेली तो तब हो जब मुझे उत्तर मालुम हो! :)
बहुत तीक्ष्ण दृष्टि.
ReplyDeleteआपको प्रणाम!
मेट्रो में लोंग खेल खेल कर कूद रहे थे :):) इसीलिए गूगल ने खेल कूद में रखा होगा इस खबर को ...पुस्तक के बारे में जानने की जिज्ञासा है ..
ReplyDeleteउपन्यास के बारे में जानने को उत्सुक हूँ ...
ReplyDeleteमनोज
---
यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल - ४
शायद आप समाचार देक कन्फ्यूज़िया गए हैं। पहले वाला समाचार है जिसमें युवक की धुलाई आरक्षित डिब्बे में चढने के कारण की गई। दूसरा समाचार खेल कूद का है जिसमें बाक्सिंग प्रेक्टिस के लिए युवक का उपयोग किया गया है :)
ReplyDeleteगंगा फ़ल है यह शायद जिसे सीताफ़ल भी कहते है और कद्दू भी .
ReplyDeleteसाहित्त पठन आवश्यक है।
ReplyDeleteखेल कूद की खबरें अखबार के खेल कूद पन्ने पर देखनी चाहिए। वैसे खेल के अलावा हम लोग सब कुछ खेल खेल में कर देते हैं - 70000 करोड़ का घोटाला, 5 साल तक लगातार बिना परमिशन के सिटी बना देना और फिर तोड़वाने की नोटिस भेज देना, जी जी करते हुए टू जी और तीन जी में कंफूजन पैदा कर देना वगैरा वगैरा...
पौधा शायद पहचान लेते अगर रिजोल्यूशन बड़ा होता।
बिरवा कोहडा लग रहा है, तनिक तस्वीर छोटी रह गयी.
ReplyDeleteपांडे जी ! परनाम !!
ReplyDeleteइ त तरबूज के बिरवा जैसन लोहकत बाटे . ....भिन्डी त बिल्कुलय नहीं है ...एकदम पक्का ......
रही बात मारपीट के त ऊ कौनो बड़का बात नाहीं बाटे ....बस मेट्रो म भइल बा इहे बड़का ह.