Saturday, November 27, 2010

महिलाओं से धुनाई खेलकूद?!

गूगल महान है। मैं गूगल न्यूज का हिन्दी संस्करण अपने होमपेज की तरह प्रयोग करता हूं। कल यह नभाटा की खबर गूगल ने पकड़ी - मेट्रो के महिला कोच में घुसे युवक को महिलाओं ने धुना|

sports_2

इसको गूगल ने खेल-कूद के वर्ग में रखा -

Sports1

अब पता नहीं महिलाओं के लिये आरक्षित कोच में युवक का घुसना खेल-कूद है, या युवक की धुनाई खेल-कूद है? या आरक्षित कोच में घुसे युवक को धुनना खेल-कूद है! यहां पूर्वांचल में तो युवक ठाठ से महिलाओं के आरक्षित डिब्बों में चलते हैं, इस तर्क के साथ कि “हम भी तो महिलाओं के लिये हैं”। यहां यह धुनना कब खेल-कूद का दर्जा पायेगा?

यहां तो युवकों की दबंगई और टिर्रेखां बनना ही खेल-कूद है।


दो बातें – पहली तो यह कि मैं एक महिला का उपन्यास पढ़ रहा हूं। श्रीमती निशि श्रीवास्तव का “कैसा था वह मन”। और पढ़ते हुये लग रहा है कि प्रतिष्ठित लेखकों की प्रतिष्ठा सामान्यत: उनकी नेटवर्किंग का नतीजा होता है, उनकी प्रतिभा का नहीं। आपको स्तरीय लेखक/लेखन अकस्मात भी मिल जाता है। अमूमन जैसा नारी लेखन हिन्दी में पाया जाता है, उससे हट कर है यह उपन्यास। मैं इस पुस्तक के विषय में जल्द पोस्ट करूंगा।

दूसरे, नवम्बर खत्म होने जा रहा है। गंगा किनारे खेती शुरू हो गयी है। जरा यह बिरवा देखें, किस फल/सब्जी का है?


23 comments:

  1. कल ये समाचार टीवी पर देखा था , मगर खेल- कूद वर्ग में नहीं , सामान्यज्ञान में बढ़ोतरी हुई ...:)
    उपन्यास के विषय में जानना रोचक रहेगा ...!

    ReplyDelete
  2. पोस्ट के शीर्षक को पढ़ते ही लगा शायद आपने अंग्रेजी समाचार को गूगल से हिंदी में ट्रांसलेट किया है. वह शायद और ज्यादा मजेदार होता.
    एक नया शब्द मिला - टिर्रेखां.
    आप कह रहे हैं तो उपन्यास स्तरीय होगा ही. आपने पढ़ लिया तो हमने भी पढ़ लिया.
    फल सब्जी के पौधे पहचानने में दिक्कत होती है. हमेशा कंक्रीट के जंगल में ही रहे, गाँव खेत देखे नहीं. टिप्पणियों से पता चल जाएगा.

    ReplyDelete
  3. खेल खेल खेल में,
    मेट्रो के कोच में,
    हुयी पिटाई,
    सेंडल पडे जोर से :)

    बहुत मजा आया...

    आशिकों के दो ही पते होते हैं,
    तन दुबले और कपडे फ़टे होते हैं।

    या फ़िर,

    एक चौराहे पर मार पडी,
    दूसरे पर मुंह धोया, तीसरे पर कंघे से बात दुरूस्त किये और चौथे पर वही घोडा वही मैदान...

    हा हा हा....

    ReplyDelete
  4. इस खेलकूद में तो महिलाओं को गोल्ड मिलना ही चाहिये..
    बाकी जगह भी हों यही खेलकूद..
    पुरुस्कार भी इसी सोशल नेटवर्किंग का नतीजा होते हैं..

    ReplyDelete
  5. आप को उपन्यास पढ़ने का समय मिल रहा है, अच्छा है। मैं ने तो दो अंग्रेजी उपन्यास पिछले माह लाया था। अभी एक को भी पूरा नहीं कर पाया हूँ।

    ReplyDelete
  6. इस खेल का ग्लोबलैजेशन होना चाहिए.

    ReplyDelete
  7. सिर्फ खबरी ही नजर नहीं रखते खबरों पर, और भी नजरें हैं खबरों की खबर लेने के लिए.

    ReplyDelete
  8. महिलाओं के लिये आरक्षित बोगी ज्यादातर खाली रहती है और बाकि तीन खचाखच

    आपने भी पहेली श्रृंखला शुरु कर दी है क्या

    प्रणाम

    ReplyDelete
  9. गूगल की क्षमताएं अद्वितीय हैं और कई बार तो अकल्पनीय लगती हैं. यह कड़ी देखिये:
    http://www.codinghorror.com/blog/2010/09/youtube-vs-fair-use.html

    मगर फिर भी कई बार ऐसे तिकड़म मात खा जाते हैं. मैंने भी यह अनुभव किया है. स्क्रीन प्रिंट भी लिए हैं .. कभी पोस्ट करूँगा.

    खैर उम्मीद है उन युवकों (और भी कई प्रत्याशित युवकों) को सबक मिला होगा. मेट्रो ने हाल ही में दैनिक १६ लाख यात्रियों की संख्या पार की है और भीड़ देखते हुए महिलाओं के लिए डिब्बे का आरक्षण बहुत जरुरी है. खैर १-२ महीने में मेट्रो डिब्बों की संख्या बढ़ाने वाला है... आशा है कुछ समाधान होगा तब.

    ReplyDelete
  10. युवक की धुनाई तो निश्चित रुप से खेलकूद है ही, वरना मणिपुरी बालाएं एशियाड और CWG में यूं ही मुक्केबाजी के स्वर्ण न जीततीं… :)
    ==========

    ReplyDelete
  11. फोटो ज्यादा साफ नहीं है लेकिन फिर भी कुछ हद तक भिण्डी का पौधा लग रहा है।

    ReplyDelete
  12. बढ़िया है ...
    ब्लागिंग में आपको गुरु बना कर सीखने की कोशिश कर रहा हूँ ...
    आप इलाहाबाद में रहकर दिल्ली की ख़बरें क्यों पढ़ते हो ?
    - एक ब्लागर

    ReplyDelete
  13. इन रुचिकर खेलों का आयोजन तो हर स्तर पर हो और हर माध्यम में हो। मोहल्ले में, नगर में, राज्य में, देश में, परदेश मे। बस में, ट्रेन में, प्लेन में, हर जगह। प्रोत्साहन योग्य है यह खेल।

    ReplyDelete
  14. खेल कूद!
    गूगल ने सोचा होगा लडकों के लिए यह खेल है।
    कूद कर अन्दर घुसे थे।
    तो यह खेल कूद क्यों नहीं हुआ?
    कभी गूगल का ट्रांस्लेट टूल आजमाइए।
    कुछ भी असंभव नहीं।

    एक ब्लॉग्गर को भी किताबें पढने के लिए समय मिलता है आजकल?
    ठीक है, आप पढिए और हम आपकी समीक्षा पढेंगे।

    बिरवा हम पहचान नहीं सके
    निशांतजी जैसे हम भी शहर में ही पले हैं।
    कभी गाँव में रहे ही नहीं। कुछ बहुत ही आम पेडों को छोडकर, हम पेड पौधों को पहचान नहीं सकते।
    पत्नि से पूछा, यह सोचकर कि जिसने Chemistry/Botany/Zoology में BSc की है वह तो जानती होगी। पर वह भी आजकल सब्जी के दाम बता सकती हैं नाम नहीं।
    यहाँ इतने सारे बच्चे गाय / भैंस दुहते देखे ही नहीं।
    उनके लिए दूध तो प्लास्टिक के पैकट से निकलता है।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
  15. @ Saurabh - आपकी कड़ी देख कर तो लगा कि गूगल को मूर्ख बनाने की कोशिश व्यर्थ है। पर आपकी पोस्ट रोचक होगी। कब प्रस्तुत कर रहे हैं?

    @ अन्तर सोहिल -
    पहेली? नहीं मित्र? पहेली तो तब हो जब मुझे उत्तर मालुम हो! :)

    ReplyDelete
  16. बहुत तीक्ष्ण दृष्टि.
    आपको प्रणाम!

    ReplyDelete
  17. मेट्रो में लोंग खेल खेल कर कूद रहे थे :):) इसीलिए गूगल ने खेल कूद में रखा होगा इस खबर को ...पुस्तक के बारे में जानने की जिज्ञासा है ..

    ReplyDelete
  18. उपन्यास के बारे में जानने को उत्सुक हूँ ...

    मनोज
    ---
    यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल - ४

    ReplyDelete
  19. शायद आप समाचार देक कन्फ्यूज़िया गए हैं। पहले वाला समाचार है जिसमें युवक की धुलाई आरक्षित डिब्बे में चढने के कारण की गई। दूसरा समाचार खेल कूद का है जिसमें बाक्सिंग प्रेक्टिस के लिए युवक का उपयोग किया गया है :)

    ReplyDelete
  20. गंगा फ़ल है यह शायद जिसे सीताफ़ल भी कहते है और कद्दू भी .

    ReplyDelete
  21. साहित्त पठन आवश्यक है।

    खेल कूद की खबरें अखबार के खेल कूद पन्ने पर देखनी चाहिए। वैसे खेल के अलावा हम लोग सब कुछ खेल खेल में कर देते हैं - 70000 करोड़ का घोटाला, 5 साल तक लगातार बिना परमिशन के सिटी बना देना और फिर तोड़वाने की नोटिस भेज देना, जी जी करते हुए टू जी और तीन जी में कंफूजन पैदा कर देना वगैरा वगैरा...

    पौधा शायद पहचान लेते अगर रिजोल्यूशन बड़ा होता।

    ReplyDelete
  22. बिरवा कोहडा लग रहा है, तनिक तस्वीर छोटी रह गयी.

    ReplyDelete
  23. पांडे जी ! परनाम !!
    इ त तरबूज के बिरवा जैसन लोहकत बाटे . ....भिन्डी त बिल्कुलय नहीं है ...एकदम पक्का ......
    रही बात मारपीट के त ऊ कौनो बड़का बात नाहीं बाटे ....बस मेट्रो म भइल बा इहे बड़का ह.

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय