Wednesday, August 25, 2010

गौतम शंकर बैनर्जी

उस दिन शिव कुमार मिश्र ने आश्विन सांघी की एक पुस्तक के बारे में लिखा, जिसमें इतिहास और रोमांच का जबरदस्त वितान है। सांघी पेशेवर लेखक नहीं, व्यवसायी हैं।

कुछ दिन पहले राजीव ओझा ने आई-नेक्स्ट में हिन्दी ब्लॉगर्स के बारे में लिखा जो पेशेवर लेखक नहीं हैं – कोई कम्प्यूटर विशेषज्ञ है, कोई विद्युत अभियंता-कम-रेलगाड़ी प्रबन्धक, कोई चार्टर्ड अकाउण्टेण्ट, कई वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रबन्धक और टेक्नोक्रेट हैं। और बकौल राजीव टॉप ब्लॉगर्स हैं।

क्या है इन व्यक्तियों में?

GS Bannerjee मैं मिला अपने मुख्य वाणिज्य प्रबन्धक श्री गौतम शंकर बैनर्जी से। श्री बैनर्जी के खाते में दो उपन्यास – Indian Hippie और Aryan Man; एक कविता संग्रह – Close Your Eyes to See हैं; जिनके बारे में मैं इण्टरनेट से पता कर पाया। उनकी एक कहानी Station Master of Madarihat पर श्याम बेनेगल टेली-सीरियल यात्रा के लिये फिल्मा चुके हैं। वे और भी लिख चुके/लिख रहे होंगे।

Indian Hippie इण्डियन हिप्पी मैने पढ़ी है। सत्तर के दशक के बंगाल का मन्थन है – उथल पुथल के दो परिवर्तन चले। अहिंसात्मक हिप्पी कल्ट और हिंसामूलक नक्सलबाड़ी आन्दोलन। दोनो का प्रभाव है इस पुस्तक में और पूरी किताब में जबरदस्त प्रवाह, रोमांच और पठनीयता है। श्री बैनर्जी ने अपनी दूसरी पुस्तक आर्यन मैन के बारे में जो बताया, उससे आश्चर्य होता है कि यह रेल प्रबन्धक कितना सशक्त प्लॉट बुनते हैं।

उनसे मैने उनकी पुस्तक आर्यन मैन के संदर्भ में पूछा, एक पूर्णकालिक लेखक और आप जैसे में अन्तर क्या है? बड़ी सरलता से उन्होने कहा – “ओह, वे लोग समाज में जो है, उसे कॉपी करते हैं; हम वह प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसे समाज कॉपी कर सके (They copy the society, we can write what society can copy)।”

क्या प्रतिक्रिया करेंगे आप? यह अहंकार है श्री बैनर्जी का? आप उनसे मिलें तो पायेंगे कि कितने सरल व्यक्ति हैं वे!

और मैं श्री बैनर्जी से सहमत हूं। प्रोफेशनल्स के पास समाज की समस्यायें सुलझाने की सोच है।   


23 comments:

  1. क्या प्रतिक्रिया करेंगे आप? यह अहंकार है श्री बैनर्जी का?
    देखने वाली नज़र न हो तो सरलता अहंकार ही लगती है. परिचय कराने का धन्यवाद. उनकी पुस्तकें कहाँ मिल सकती हैं?

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  2. Shri Gautam shanker bannerjee se parichay karane ka dhnyawad. Aatmwishas kabhi kabhi ahankar lag sakta hai.

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  3. @4040075211514314545.0
    >>> Smart Indian - स्मार्ट इंडियन - Writer on Line के इस पन्ने पर श्री बैनर्जी की एक कविता है और (काफी पुराना लिखा) उनका परिचयात्मक नोट है:
    Apart from a slim volume of poetry, Close Your Eyes to See, Gautam Shankar Banerjee has written two novels, Indian Hippie and Aryanman, all three published by Cambridge India, a middle-order publishing house in Calcutta, India. Banerjee is working on a third novel, Enemies of the People. He has signed a contract for the filming of Indian Hippie.
    For a living, Banerjee works in the railways.

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  4. श्री गौतम शंकर बैनर्जी जी से मिलवाने का आभार. कोई क्या कहता या सोचता है उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है गौतम जी ने क्या कहा...उनका कहा हमें जमा, बस इतना काफी है हमारे लिए.

    इच्छा रहेगी कभी इन पुस्तकों को पढ़ने की.

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  5. प्रोफेशनल्स के पास समाज की समस्यायें सुझाने की सोच है।
    बिलकुल है।

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  6. अच्छा लगा गौतमजी का परिचय!

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  7. प्रोफेसनल्स के पास समाज सुलझाने की सोच है इससे सहमत हूँ लेकिन फुलटाइम लेखक के पास ऐसी सोच नहीं होती ये नहीं मानता मैं !

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  8. @1895373048527999612.0
    >> अभिषेक ओझा - समस्या सुलझाने की सोच तो किसी में हो सकती है। स्वतंत्रता के आंदोलन में लेखन की भूमिका से कौन इनकार कर सकता है। पर पिछले कई दशकों से लेखन में समाज को लीड देने का अभाव स्पष्ट नजर आता है। और शायद यह एक कारण हो कि पाठक कम होते जा रहे हैं। :)
    लिहाजा प्रोफेशनल्स की हाथ अजमाई का स्वागत होना चाहिये। नहीं?

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  9. हम आप से सहमत हैं.

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  10. >अक्सर आप नया देते हैं , अच्छा लगता है , आज गौतम जी के बारे में जानकार अच्छा लगा !
    >ओझा-उवाच से सहमत हूँ - '' प्रोफेसनल्स के पास समाज सुलझाने की सोच है इससे सहमत हूँ लेकिन फुलटाइम लेखक के पास ऐसी सोच नहीं होती ये नहीं मानता मैं !''
    >लेखन को क्या सिर्फ उपयोगितावादी ढंग से ही देखा जा सकता है ? .. तब तो 'उपभोक्तावादी' सोच की बलिहारी जाता हूँ ! .. 'उपयोगिता' और 'उपभोक्ता' को लेकर सबके मूल्य भी तो अपने अपने हैं !
    >बात बहुत पुरानी हो चुकी है , एक ग्रीक फिलासफर ने भी कहा था कि लेखक उतना भी काम का नहीं जितना कि एक तलवार ! , और तो और , साहित्त-कार मोहनिद्रा में सुला देता है , यह समाज के लिए 'अनुपयोगी' है ! .. शायद केवल और केवल 'प्रोफेसनल' चाहिए थे उसे !
    >जनता से लेखन से कटने का कारण क्या इतना सरलीकृत है ? . तब तो समाधान भी बहुत आसान होगा ! .. वेदप्रकाश शर्मा जैसे लेखक तो जनता से 'कटे' नहीं हैं , क्यों न इन्हें ही व्यापक प्रतिष्ठा दिलाई जाय ! . लेखन जनता से 'जुड़ेगा' ही !

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  11. @4409036571685511113.0
    >> अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी - सवाल काटने-जोड़ने का नहीं। वह काम तो हमारा शंटिंग पोर्टर भी कर लेता है। शायद बेहतर! सवाल उपभोक्तात्मक उपयोगिता का भी नहीं।
    जो मैने कहा वह है - (१) समाज की समस्याओं का समाधान और (२) समाज को नेतृत्व।

    और वेदप्रकाश शर्मा? बहुत समय हो गया लुगदी साहित्य पढ़े। पर लुगदी में भी बहुत कैलोरीफिक वैल्यू है! जिगर की आग की माफिक! :)

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  12. स्वागत, सहमत, धन्यवाद।

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  13. उनसे मैने उनकी पुस्तक आर्यन मैन के संदर्भ में पूछा, एक पूर्णकालिक लेखक और आप जैसे में अन्तर क्या है? बड़ी सरलता से उन्होने कहा – “ओह, वे लोग समाज में जो है, उसे कॉपी करते हैं; हम वह प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसे समाज कॉपी कर सके .....

    ओह...क्या बात कही...सचमुच !!!!

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  14. समाज को कॉपी कर लिखना कहानीकार का कार्य है, समाज को कॉपी करने योग्य लिखना विचारक का कार्य है।

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  15. श्री गौतम शंकर बैनर्जी जी से परिचय कराने का धन्यवाद.आप से सहमत है जी

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  16. गौतमजी की बात बिलकुल सच है। किन्‍तु उनकी बात को केवल पेशेवरों तक सीमित करना भी समझदारी नहीं है। हमारे आसपास ऐसे पचासों लोग हैं जिनके पास हमारी कई समस्‍याओं के निदान हैं। ऐसे लोगों का दोष मात्र यह है कि वे 'आम आदमी' हैं।

    उपरोक्‍त सन्‍दर्भ में गौतमजी की बात को विस्‍तारित करते हुए मेरा सुनिश्चित मत है कि 'अलेखकों को लेखक' बनाया जाना चाहिए और कहने की आवश्‍यकता नहीं कि ब्‍लॉग इसका श्रेष्‍ठ और सर्व-सुलभ औजार है।

    गौतमजी के बारे में जानकर अच्‍छा लगा। शुक्रिया।

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  17. प्रोफेशनल्स के पास समाज की समस्यायें सुलझाने की सोच है।

    यह सोच अमल में आने के लिये किस मूहूर्त का इंतजार कर रही है?

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  18. @अनूप शुक्ल -
    अमल में क्या आ रहा है?

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  19. जितने फ़िक्शन हैं, उन्हें बाद में यथार्थ होते हुए देखा गया है... तो बनर्जी साहेब जो कह रहे हैं, वह सत्य हो सकता है, बशर्ते कि उसकी नोटिस समाज लें। देखना यह है कि आपकी तरह समाज भी इन्हें समझ पाता है या नहीं :)

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  20. श्रीमती रीता पाण्डेय की टिप्पणी -
    @ अनूप शुक्ल, ज्ञानदत्त पाण्डेय -
    जो अमल में आ रहा है, जो पॉजिटिव हो रहा है वह इण्डीवीजुअल की अपनी कोशिश से हो रहा है। मसलन आदमी अपनी लड़की को पढ़ा रहा है तो स्त्रियों की दशा सुधर रही है। अगर एक नेता परिवर्तन ला रहा है तो उसकी इण्डीवीजुअल कोशिश है। जमात (चाहे लेखक, प्रोफेशनल, पॉलिटीशियन, धार्मिक गुरु) महज बहस बाजी करती करती है। पैनल डिस्कशन करती है!

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  21. परिचय और परिचय कराने की शैली दोनों अच्छी है.

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  22. They copy the society, we can write what society can copy)

    अच्छा लगा यह quote.

    कई अच्छे लेखक हैं जिन्हें अपने लेखन से मुनाफ़े से कोई मतलब नहीं।
    यदि लाभ हुआ, तो बोनस माना जाए। बिना मज़बूरी के जो लिखते हैं वे ऐसा सोच सकते हैं।
    journalism और literature में काफ़ी जर्क होता है।

    मुझे इस quote में घमंड या अहंकार बिल्कुल नही दिखा।

    श्री बनर्जी को हमारी शुभकामनाएं और उनसे परिचय कराने के लिए धन्यवाद।

    जी विश्वनाथ

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  23. @1984695258602759762.0
    " पर पिछले कई दशकों से लेखन में समाज को लीड देने का अभाव स्पष्ट नजर आता है"
    सहमत हूँ..

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय