ज्ञानदत्त जी, आपके ब्लॉग पर तो ट्वीट चल रहा है ..... चार लाइन आप लिख देते हो बाकी ३०-४० टिप्पणियाँ जगह पूरी कर देती हैं. कुल मिला कर हो गया एक लेख पूरा.
शायद बुरा मान जाओ ......... पर मत मानना ....... इत्ता तो कह सकते हैं.
दीपक जी ने मेरी सन २००७-२००८ की पोस्टें नहीं देखीं; टिप्पणी के हिसाब से मरघटीय पोस्टें!
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जब मैं नयी थी ब्लॉग जगत में , तो ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग पर सबसे ज्यादा आती थी। लेकिन मेरी द्वारा लिखी गयी ५६ पोस्टों में से एक पर भी नहीं आये ज्ञान जी।
ज्ञान जी को मेरा अंतिम प्रणाम ।
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निश्चय ही, बहुत से ब्लॉगर्स के लिये मेरा ब्लॉग टिप्पणी के बार्टर सिस्टम में पिछले तीन महीने में नफे का सौदा नहीं रहा। मैं लोगों को प्रोत्साहित करने के लिये ब्लॉग पढ़ा और लगभग मुक्त भाव से टिप्पणी करता था। अस्वस्थता ने वह चौपट कर दिया। मेरे पास विकल्प थे कि अपना ब्लॉग पॉज पर बनाये रखूं, जब तक कि बार्टर सिस्टम में ट्रेडिंग करने लायक न हो जाऊं। फिर लगा कि वह सही नहीं है।
अन्तिम प्रणाम? बहुत से खिझिया कर बोल कर जाते हैं। बहुत से चुपचाप जाते हैं – कि लौटने की गुंजाइश बनी रहे।
मैं भी इसी लिये चल रहा हूं – अनियमित रक्तचाप के बावजूद, कि संवाद की गुंजाइश बनी रहे। एक ब्लॉगर का धर्म वही तो है! जैसा कुश ने शब्द क्वॉइन किया, खालिस ब्लॉगर का!
ऑफ द वे; जवाहिर लाल (मंगल/सनिचरा) गंगा किनारे मुखारी करते दीखने की बजाय सड़क के नल पर दिखा। नहाने के उपक्रम में। साल में कितने दिन नहाता होगा?
अन्तिम प्रणाम (The Last Salute), संदर्भ प्रवीण शाह जी की नीचे टिप्पणी।
मैने यहां एक स्केच लगाया था, मित्रों के आग्रह पर वह निकाल दिया है।
शायद बार्टर सिस्टम (हिन्दी) ब्लॉगिंग का यथार्थ है :)
ReplyDeleteपर यकीन मानिए बिना टिपण्णी दिये पढ़ने वाले बहुत हैं और वो टिपण्णी देने वालों से अधिक डीजर्व करते हैं कि आप पोस्ट लिखते रहें.
बार्टरीय सिस्टम छोड़ फ्री-फ्लोटिंग सिस्टम अपनाएंगे ही लोग.
और जवाहिर कितने दिन नहाता होगा ये एस्टिमेट करना तो बड़ा कठिन है. हम तो आप से ही इसके उत्तर की अपेक्षा रखते हैं.
आज ही कहीं एक पोस्ट दिखी जिसमें पढ़कर चुपचाप निकलनेवालों को चोर बताया गया है.
ReplyDeleteब्लौगिंग को टिपण्णी मोह से निकलने में खासा वक़्त लगता दीख रहा है. हर पढ़नेवाला टिपण्णी देने लगे तो पेज खुलने भी मुश्किल हो जाएँ.
आजकल समयाभाव के कारण टिप्पणियां नहीं कर पाता. कुल जमा दो तीन बार कुछ मिनटों के लिए लॉग इन करता हूँ तो क्या पढूं और क्या टिपण्णी दूं. सोच रहा हूँ अपने ब्लौग पर टिप्पणियां डिसेबल कर दूं, क्या पता कब कौन बुरा मान जाये. न मैं किसी की पीठ खुजाऊंगा न कोई मेरी पीठ खुजाएगा. अंग्रेजी उक्ति यहाँ सटीक बैठ रही है.
वैसे आजकल आप भी हमारे यहाँ नहीं आ पा रहे, कारण आपने स्पष्ट कर ही दिया है और सभी जानते ही हैं. बार्टर सिस्टम क्या खूब सूझा.
अच्छे खासे बैठे थे आप, फिर स्वास्थ्य की ये गड़बड़ियाँ शुरू हो गईं. आप इतना कर लेते हैं यही देखकर रश्क होता है.
प्रणाम स्वीकार करें.
आपका लिखा विचारणीय होता है सो पढते हैं। बहुत कुछ सीखने को मिला है। शायद मेरे लेखन पर भी असर पडा होगा। जिन्हें बार्टर में मूल्य दिखता है उन्हें बार्टर करने दीजिये न जिन्होने अपनी नदियाँ पहाडों से खुद ही काटी हैं वे तो अपना काम निर्लिप्त होकर कर रहे हैं!
ReplyDeleteआपका लेखन एक अलग स्तर रखता है . इसीलिये पढा जाता है .
ReplyDeleteटिप्पणी वस्तु नहीं है औऱ हो भी नहीं सकती। आप लिखते रहिए। कोई आए या न आए। पाठक तो आते रहेंगे।
ReplyDeleteब्लॉगिंग की प्रशिक्षण कार्यशालाओं में जब विशेषज्ञ इस बार्टर सिस्टम को अपनाने की सलाह देते हों तो इसे गलत कैसे माना जाय। एक नया ब्लॉगर इसके अतिरिक्त और कर ही क्या सकता है? दूसरों का मेलबॉक्स भरने से तो अच्छा ही है कि घूम-घूमकर दूसरों की पीठ खुजाता रहे। खुजली तो होती ही है भाई...। जो नये हैं उन्हें कुछ ज्यादा:)
ReplyDeleteआपसे तो सबको बहुत ज्यादा उम्मीद रहती है। बड़ी निष्ठुर दुनिया है शायद।
@ सिद्धार्थ> विशेषज्ञ इस बार्टर सिस्टम को अपनाने की सलाह देते हों तो इसे गलत कैसे माना जाय।
ReplyDeleteओह, मेरी पोस्ट ने यह तो नहीं कहा कि आप पोस्टें न पढ़ें या टिप्पणी न करें बतौर ब्लॉगर। वह जरूरी है और नये ब्लॉगर के लिये और भी जरूरी!
हिंदी ब्लॉग जगत ने सबसे पुरानी वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक बार फिर से व्यापक स्तर जिंदा कर दिया है. इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है?
ReplyDeleteआस -पास देखे गए दृश्यों से एक नया परिदृश्य शब्दों में प्रकट कर देना आपकी विशेषता रही है ...और आपकी मौलिक पोस्ट को इतने पाठकों द्वारा पढ़े जाने का कारण भी यही है ...
ReplyDeleteकमेन्ट नए ब्लॉगर्स को उत्साहित करते हैं ,इसमें कोई शक नहीं ...
मगर टिप्पणियां पोस्ट को गंभीरता से पढ़े जाने की निशानी भी नहीं है ..
सिर्फ कमेन्ट पाने के लिए कमेन्ट किया जाए ...वाहियात सोच है ...!
ये जवाहर/मनोहर/बैजनाथ/सनीचरा ......जो भी हो इसके नहाने पर संदेह करना उचित नहीं है|
ReplyDelete...जवाहिर लाल को नहाते-धोते देख याद आया कि संडे का ये मतलब तो नहीं कि नहाना इतना डिले किया जाए... चलो मैं भी नहा लूं :)
ReplyDeleteआज तो बस ..
ReplyDeleteमाँगन मरण समान है, तोहि दई मैं सीख।
कहैं कबीर समझाए के, मति कोई माँगै भीख॥
टिप्पणी के बदले टिप्पणी, तब गुणवत्ता कब आयेगी? यदि सारा समय टिप्पणी में चला गया तब अच्छी पोस्ट के लिये विचार कब आयेंगे।
ReplyDeletesir kya kahein, ravish g ne apni ek post me kaha tha ki, tipinibaaj mujhe apne ristedaar lagte hai.
ReplyDeletebus me bhi wahi sochta hun lekin ravish kumaar g ko apni post me tipni karne wale ristedaar lagte hai. or mujhe apni post me tipini karne wale ke saath saath, jinki post me karta hun wo bhi lagte hai....
@ अनूप जोशी - निश्चय ही! टिप्पणियां सम्बन्ध बनाती हैं। मेरे एक बिहारी मित्र थे। उनका शाम दफ्तर आने पर नियम था कि एक दो मित्रों के घर मिल आते थे - "चलें, फलाने के डेरा पर हो आयें!" उनका प्रिय वाक्य था। और वे सब को बहुत प्रिय थे।
ReplyDeleteटिप्पणियां बहुत कुछ डेरा पर हो आने जैसी हैं।
जी हां, सिर्फ गिनती के लिए यह टिप्पणी. पोस्ट का आनंद तो पढ़कर ले लिया.
ReplyDeleteस्तरीय लेखन का टिप्पणियों से विनिमय बेहूदी बात होगी. आपके आलेखों को पढने से ही गंगा में डुबकी का आनंद प्राप्त होता रहा है. शीघ्र ही आप पूर्ण रूपेण स्वस्थ हो जाएँ.
ReplyDelete''मेरे एक बिहारी मित्र थे। उनका शाम दफ्तर आने पर नियम था कि एक दो मित्रों के घर मिल आते थे - "चलें, फलाने के डेरा पर हो आयें!" उनका प्रिय वाक्य था।''
ReplyDeleteमेरे विचार में समयाभाव में ब्लॉगजगत में भी यह रूटीन बड़े काम का है। मैं खुद अक्सर यही करता रहा हूं। यह कोशिश जरूर रहती है कि किसी के डेरे पर जाउं तो सबसे मुलाकात कर लूं.... अभी आपके डेरे पर आया हूं तो कोशिश रहेगी कि पिछली पोस्ट भी पढ़ कर ही हटूं :)
मैं तो बिना रिटर्न की अपेक्षा के टिप्पणी करता हूँ।
ReplyDeleteकुछ लिखने लायक लगता है तो लिख आता हूँ। कई लोग तो इतना चमत्कृत कर देते हैं कि लिखे बिना नहीं रहा जाता।
सड़क के नल में अगर टोटी न हो तो लगवाने को कहिए।
@ गिरिजेश - कुछ विचित्र बात है कि टोंटी है! खुली रहती है। कई बार बन्द कर देता हूं। कई बार औरों को बन्द करने का पुण्य लेने को यूं ही छोड़ देता हूं। :)
ReplyDeleteखीझ और खिसियाहट भी उतनी ही स्वाभाविक मानवीय भावनाएँ हैं जितनी खुशी - जो टिप्पणी पाने वालों को मिलती है।
ReplyDeleteटिप्पणी का खेल ब्लॉगीय अर्थ्व्यवस्था के मौद्रिक प्रचलन की नियति से परे नहीं हो सकता है।
मैं उस दिन की आतुरता, जिज्ञासा और उत्कण्ठा से प्रतीक्षा कर रहा हूँ जब लोग यह शिकायत करते हुए टिप्पणी लौटा जाएँगे कि "ये फटी-पुरानी है, हम से नहीं चलती। अगली बार से देख-भाल कर टिप्पणि दिया करें"
या फिर ऐसी ब्लॉग-मुद्रा-अंतरण साइटें खुल जाएँगी कि "पुरानी सौ टिप्पणी दे जाइये - नई अस्सी टिप्पणी ले जाइये"
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रही बात टोंटी की - तो अगर आप दस-बीस टिप्पणी का वादा करें तो बन्द करवाने वाले हम ढूँढ दें - इलाहाबाद में ही - आपके अड़ोस-पड़ोस में ही मिल जाएँगे, न होंगे तो पहले उन्हें ब्लॉगिंग का शौक लगवा देंगे फिर बेचारे टोंटियाँ बन्द करते घूमेंगे…मगर देश की पेय-जल समस्या पर अन्तर नहीं पड़ेगा। टोंटियों से आना ही तो जल के पेय होने की गारण्टी नहीं है न!
अच्छा है, टिपण्णी हमने कर दी और आप लोगों के विचार सुनाने को मिल गए. बाकि पाण्डेय जी को मेरी टिपण्णी से दुःख पहुंचा, अत हमने रात को ही मेल भेज कर क्षमा मांग ली थी....
ReplyDeleteएक बार फिर सभी के सामने .... में स्वीकार करता हूँ की मेरी टिपण्णी से पाण्डेय जी के दिल को ठेस पहुंची...... अत में उनके ब्लॉग पर माफ़ी मांगता हूँ..........
]
गुरूजी,
ReplyDeleteबाकि हम आपके मुरीद तो २००७-२००८ की पोस्टों से ही हैं......... ये बात दीगर है की तब हमे टिपण्णी देने का शौंक नहीं था.
ज्ञानजी,
ReplyDeleteएक शर्मनाक घोषणा करना चाहता हूँ।
आज मैं एक चोर बन गया हूँ!
जी हाँ, मैने आज चोरी की! अपराध स्वीकार करता हू!
पहली बार दिव्याजी के ब्लॉग पर जाकर उनका एक provocative पोस्ट पढा।
उनका एक उकसाने वाला आरोप पढ़कर प्रसन्न हुआ!
(क्या आप भी चोर हैं- २७ अग्स्त की पोस्ट)
पोस्ट का भरपूर आनन्द उठाया। और कीमत नहीं चुकाई। कोई टिप्पणी नहीं की।
कृपया दिव्या जी से सलाह करके मुझे यह बताईए:
क्या दिव्याजी मुझे मार देगी?
या छोड देगी?
बोलिये, मेरे साथ क्या सलूक करेगी?
बेचारे समीर लालजी तो मेरे permanent victim हैं।
उनका पोस्ट पढे बिना नहीं रहा जाता।
उनके लेख तो मेरे mail box में नियमित रूप से पहुँचते रहते हैं।
कभी टिप्पणी करने का दिल करता है लेकिन जब देखता हूँ की टिप्पणीकारों की लंबी लाईन लगी रहती है, तो चुप चाप टिप्पणी किए बिना निकल जाता हूँ, इस आशा से की इस भीड भाड में समीर जी को यह भी पता नहीं चलेगा कि कोई विश्वनाथ भी कहीं से आया था, पोस्ट पढा था और चला भी गया था।
समय समय पर अन्य मित्रों के यहाँ भी जाता हूँ और गुमनाम रूप से आनन्द उठाता हूँ।
यदि दिव्याजी की theory सही है तो मेरा पाप का कटोरा (cup of sins) भरता जा रहा है और आगे और तेज गति से भरता जाएगा क्योंकि आज से दिव्या जी के ब्लोग भी पढने का विचार है। शायद टिप्पणी नहीं करूंगा। दिव्याजी के यहाँ भी लंबी लाईन लगी हुई है टिप्पणीकारों की। क्या उस भीड में दिव्याजी मुझे पह्चानेगी भी? खासकर एक non - blogger ko? जिसकी चोरी की आदत छूटती ही नहीं?
छोडिए इस बार्टर सिस्टम को। यह क्या अजीब सिस्टम है ? ब्लॉगरों को भगवद गीता का उपदेश ध्यान में रखना चाहिए। लिखते रहिए। इस की पर्वाह न कीजिए कि कोई इसे पढता है या नहीं, टिप्पणी करता है या नहीं।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
@ दीपक बाबा - दुख/ठेस/क्षमा मांगने की जरूरत? बिल्कुल नहीं जी!
ReplyDeleteआपने और दिव्या जी ने इतने वैलिड प्वाइण्ट्स उठाये थे, जिनसे नित्य ब्लॉगर दो-चार होता है कि मुझे पोस्ट लिखने का निमित्त मिल गया। धन्यवाद!
पोस्ट पर मनन करते हुये मेरे मन का व्यापारी भी जागा। कुछ गुणा भाग किया और उससे निष्कर्ष निकाला।
ReplyDeleteजितनी टिप्पणियाँ मैं करता हूँ उसकी लगभग एक तिहाई टिप्पणियाँ मेरे ब्लॉग में आती हैं।
और जितने ब्लॉगरों के ब्लॉग पर जोता हूँ, उसके आधे मेरे ब्लॉग पर आते हैं।
इस तथ्य को बार्टर की तरह से देखूँ तो मैं व्यापारी बन ही नहीं सकता पर आत्म-संतुष्टि की दृष्टि से देखूँ तो मैं औसत से तीन गुना अधिक संतुष्ट हूँ क्योंकि मैं उतना अधिक पढ़ पा रहा हूँ।
पता नहीं कि मैं कितना ठीक हूँ?
@ दीपक बाबा - और मैं आपकी सज्जनता से अभिभूत हूं! पुन: धन्यवाद दीपक जी।
ReplyDeleteJab ek tweet par itni tippadi hai to lekh par kitni hogi kuch lines is par bhee tweet ho----
ReplyDeletetweet par tweet,
ReplyDeleteज्ञानजी,शायद यह बच्चे लोग है अन्जाने मै लिख दिया होगा, आप दिल पर ना ले, हम तो आते है कुछ नही तो कुशल मंगल ही पुछ लेते है,फ़िर यहां कोन सा लेन देन है टिपण्णियो का, सब से पहले आप जल्दी से ठीक हो जाये वो ही सब से बडी टिपण्णी है हम सब के लिये,हमारी शुभकामनायें
ReplyDeleteसिर्फ कमेन्ट पाने के लिए कमेन्ट किया जाए ...वाहियात सोच है ...!
ReplyDeleteyes by giving comments which are not even related to the post people try to make a comment gang war
" संवाद की गुंजाइश बनी रहे। "
ReplyDeleteहम तो पडोसी देश से भी यही कह रहे हैं :)
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ReplyDelete.
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आदरणीय ज्ञानदत्त पाण्डेय जी,
जाने दीजिये... खालिस ब्लॉगर नहीं फिक्र करते टिप्पणियों की... मुझे तो आज की पोस्ट की उपलब्धि लगी जवाहिर को नहाते देखना... अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखिये... हम सबके लिये...
...
@ प्रवीण शाह -> जाने दीजिये... खालिस ब्लॉगर नहीं फिक्र करते टिप्पणियों की...
ReplyDeleteओह! प्रवीण जी, टिप्पणियों की फिक्र नहीं; यह अन्तिम प्रणाम की है। टिप्पणी न करने से कोई व्यक्ति मृत माना जाये कि अन्तिम प्रणाम (Final Salute) योग्य हो जाये, वह कुछ अजीब लगा।
यह पढ़ कर मैने आड़ी तिरछी लाइनों का स्केच चनाया था, वह लगा देता हूं पोस्ट में! :)
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ReplyDelete.
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सर,
वाकई में इस नजर से नहीं देख पाया था मैं... क्षमा चाहता हूँ...अब पता नहीं टिप्पणीकार का आशय ऐसा रहा होगा या नहीं... परंतु एक अर्थ ऐसा निकल तो रहा ही है...यह वाकई अजीब है... अब जिसने टिप्पणी दी है वही कुछ कहे तो बात बने...
दुनिया है...चलता है सब...चीयर अप सर... :))
...
व्यापार और ब्लोगिंग में फर्क होता है.. टिपण्णी वायदा व्यापार है.. लेन देन कायदे है वहां के.. आपको सौदा करना है तो लगे रखिये.. पर ब्लोगरी करनी है तो उन्हें छोडिये.. आप खालिस ब्लोगर है ये तो मैं हमेशा से ही कहता हूँ.. पर यहाँ खालिस पाठक कम है.. हाँ टिपण्णीकार भरे पड़े है जो इसी शर्त पर टिपण्णी करेंगे कि आप उन पर करे.. कई सो कोल्ड पोपुलर ब्लोगर मुझसे लिटरली कह चुके है कि तुम फलां जगह कमेन्ट करते हो हमारे यहाँ नहीं इसलिए अब हम तुम्हे नहीं करेंगे..उस दिन के बाद से हमसे नाता ही तोड़ लिए कई लोग.. उस से सबक मिला ये कि "टिपण्णी रिश्तो की गर्माहट बरकरार रखती है"
ReplyDeleteखुद को एक्सप्रेस करने का एक मंच ही तो है ब्लॉग, ट्विटर, फेसबुक, मेमे.. ये ज़रूरी तो नहीं कि मंच के माध्यम से अभिव्यक्ति के शब्द बढ़ते घटते जाए.. मैं एक ही बात कहूँगा कि आप सिर्फ आज के लिए ना लिखे.. हमारी पोस्ट्स हमेशा पढ़ी जाती है.. ऐसे लोग पढ़ते है जिन्हें हम जानते भी नहीं.. मैंने कल ही एक इंग्लिश ब्लॉग की पिछले दो साल की सारी पोस्ट्स पढ़ी और उसे एक बड़ी सी मेल लिखी जवाब में उनका भी मेल आया और वो बहुत खुश हुए..
मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि आज के लिए मत लिखिए.. बस लिखिए!!! और हाँ अपने लिए लिखिए यही आपकी यू एस पी है..
और हाँ एक बात और दिव्या को समय दीजिये कुछ बाते समय के साथ बेहतर समझ आती है..
मैं तो आपको पढती नियमित हूं .. पर टिप्पणियां कभी कभी देती हूं .. वैसे भी मैं पुराने से अधिक नए ब्लोगरों को प्रोत्साहित करने के लिए टिप्पणियां अधिक दिया करती हूं .. मुझे भी लोग पढें .. इतने से ही संतोष है !!
ReplyDeleteआदरणीय पाण्डेय सर, आप यथाशीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें--ब्लागिंग और टिप्पणियां तो आगे भी चलती रहेंगी। आपके जल्द स्वस्थ होने की शुभकामना के साथ।
ReplyDeleteबाबाजी को दिव्यत्व प्राप्त हुआ. अब दिव्या जी का बचपनत्व भी जल्द विदा ले, कामना करते हैं.
ReplyDeleteक्षमा चाहता हूं, अनियमित हो गया हूं. रूटीन गड़बड़ा गया है पोस्ट पठन का.
लेखन के लिहाज से आपका लेखन सबसे ज्यादा उत्पादक है। उत्पादक बोले तो आपका इनपुट/आउटपुट अनुपात सबसे ज्यादा झकास है। आप अगर टिप्पणी न कर पा रहे हों कहीं तो टिप्पणी करने के मासूम बहाने देखिये न हम लिख चुके हैं। देखिये तो सही:
ReplyDeleteखाली लिखने से नहीं ,अब बनती कोई बात,
आज् उसी की पूछ् है ,जो रहे सदा टिपियात।
रहे सदा टिपियात , बढाये जनता का उत्साह,
रोती-धोती पोस्ट पर भी कहे -क्या लिखा वाह!
कहे क्या लिखा वाह,बजाये बार-बार फिर ताली,
हम तारीफ़ करेंगे भैया, बस पोस्ट करो तुम खाली॥
संयोग देखिये कि इसमें अंतिम प्रणाम वाली मन:स्थिति की एक ठो कविता भी है। आपकी टिप्पणी भी। क्या मैं इस स्थिति को तीन साल पहले समझकर इसके लिये हल लिख चुका था। :)
देव जी ,
ReplyDelete'अंतिम प्रणाम' को ऐसे ही समझिये कि 'बूँद अघात सहैं गिरि कैसे / खल के वचन संत सहैं जैसे //' , खल-वचनों से अप्रभावित रहें , देव !
निशांत जी की तरह मुझे भी ''आज ही कहीं एक पोस्ट दिखी जिसमें पढ़कर चुपचाप निकलनेवालों को चोर बताया गया है.'' ! अब इतने 'चोर' (?) स्पष्टीकरण पर उतारू हो जायेंगे तब तो हो बीती !
,,,,,,,,, और पोस्ट में बाद में जोड़ा गया यह प्रवीण जी द्वारा संदर्भित 'अंतिम प्रणाम' का स्केच दुःख दे रहा है , क्या हम पाठकों की शुभकामनाओं पर भरोसा नहीं रहा आपको !/?
सादर
अमरेन्द्र
ज्ञान जी,
ReplyDeleteमेरी लिखी बात को अच्छा भुनाया आपने।
बार्टर के लिए टिप्पणियां नहीं करती, जब आपकी पोस्ट्स पर आती तब तो मैं ब्लॉगर ही नहीं थी, जब पोस्ट ही नहीं लिखती थी तो बार्टर का सवाल कहाँ से आया ?
निशांत, प्रवीण पाण्डेय और हिमांशु जी की टिपण्णी ने अंतरात्मा तक छलनी कर दी।
फिर भी कोई शिकायत नहीं किसी से। वो तो सिर्फ अपनों से होती है। और मुझे मालूम है , मेरा कोई भी अपना नहीं यहाँ।
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ReplyDelete@- विश्वनाथ जी--
आपको लाखों और करोड़ों में भी पहचान लुंगी। आप जैसे नेकदिल बुद्धिजीवी विरले ही होते हैं। कभी मुलाक़ात हुई तो आपके चरण स्पर्श अवश्य करुँगी।
हो सके तो अपना आशीर्वाद बनाये रखियेगा।
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ReplyDeleteपाठकों से अपील है कृपया , मुझ पर टिप्पणियों का लालची होने का गलत आक्षेप न लगायें । ज्ञान जी को बहुत अपना समझती थी , इसलिए एक छोटी सी हसरत थी की वो भी अपना आशीर्वाद देने एक बार मेरी पोस्ट पर आयें। जैसे एक छोटा बच्चा एक पेंटिंग बनाकर, बड़ों से शाबाशी चाहता है, बस इतनी सी ख्वाहिश थी ।
आपकी इस पोस्ट से मेरी आखें खुल गयी हैं और बहुत से भरम टूट गए हैं।
आपके स्वास्थय लाभ की कामना करती हूँ।
आभार।
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I hope you will publish my comments.
ReplyDeleteचलिए...देर से आने का फायदा मिला कि सब कोई सब कुछ कह गये, अब मेरे लिये कुच्छो नहीं बचा है कहने को :)
ReplyDeleteलेकिन इतना जरूर कहूंगा कि समीर जी के यहां टिप्पणिया मैं भी इस कारण नहीं करता कि वैसे ही यहां पर लंबी लाइन लगी है, अब इसमें क्या तो जोडूं और क्या घटाउं।
एक बार शायद समीर जी की किसी पोस्ट में दूसरे या तीसरे नंबर पर टिप्पणी किया था अपने शुरूवाती दिनों में, तुर्रा यह कि फॉलोअप पर चेकमार्क कर दिया और अगले दो दिन तक धपाधप फॉलोअप टिप्पणियां आती रहीं :)
ऐसे हालात और ऐसी ढेरों वजहों से टिप्पणी करना न करना मेरे हिसाब से पूरी तरह पाठक पर निर्भर है न कि पोस्ट लेखक से।
आप शीघ्र स्वस्थ हों ।
अभी आपकी पोस्ट पर स्कैच लगा देखा.
ReplyDeleteदेखकर अच्छा नहीं लगा. कृपया इसे हटा दें.
ब्लौगजगत एक परिवार जैसा न भी हो तो मोहल्ले जैसा तो है ही. आपसी मतभेद, मनभेद, या कटुता ही क्यों न हो, सुबह-शाम पोस्टों या टिप्पणियों के रूप में हम सभी एक-दूसरे को देख ही लेते हैं. बातें चाहें छोटी हों या बड़ी, वे इतनी बड़ी भी नहीं होतीं कि हम उन्हें जीवन-मरण से जोड़कर देखने लगें. दिव्याजी ने अपनी टिपण्णी में जो लिखा उसका आशय निस्संदेह वह नहीं रहा होगा जो आपने चित्रित कर दिया है.
अब दिव्याजी ने अपनी बात स्पष्ट कर दी है. वे बेहतरीन टिप्पणीकार हैं. मैं अपनी पोस्टों पर उनकी खरी और स्पष्ट टिप्पणियां याद करता हूँ. यदा-कदा मैंने उनकी पोस्टें पढीं है और उनकी तार्किकता का कायल हूँ.
समय बढ़ने-बदलने के साथ सभी ब्लौगर एक-दूसरे को बेहतर समझ पाते हैं, यही मैंने तीन साल में जाना है. और जैसा दिव्याजी ने अपनी पोस्ट में कहा है, हम पल-प्रतिपल बदल रहे हैं. कुछ अरसे बाद या तो हम इस वाकये पर हंस रहें होंगे या इसे भूल चुके होंगे. जीवन में जो कुछ कभी घनघोर लगता है वह इतना ही छिछला नहीं होता क्या?
सर नमस्कार,
ReplyDeleteबहुत डरते डरते नमस्कार लिखा है जी। करीब डेढ़ साल पहले नेट लगाया तो एक याहू की आईडी बनाई थी। सिर्फ़ नेट खंगालते खंगालते ही आपका ब्लॉग पा लिया था और सब्सक्राईब कर लिया था। आपकी छोटी छोटी पोस्ट्स बहुत आकर्षित करती रही हैं शुरू से ही। टिप्पणी कभी नहीं की। बस पढ़कर ही अभिभूत होते रहे हैं। ये भी सोचते थे कि आप जैसों को हम जैसों की टिप्पणी से क्या फ़र्क पड़ेगा? कह सकते हैं कि चोरी चलती रही, हा हा हा। बाई चांस ही पिछले दिनों ’आखिरी शुम्मार’ वाली पोस्ट पर टीपा था। आज ढेला ढाली हो रही है, हम भी फ़ेंक लेते हैं एकाध। दीपक जी की टिप्पणी मुझे तो तारीफ़ ही लगी आपकी, कि आप छोटी सी पोस्ट भी लिख देते हैं तो औरों को बहुत कुछ कहने सुनने का मसौदा मिल जाता है। खैर इन्हें तो आप अभय दे ही चुके हैं।
अंत में निवेदन है यह जो स्केच बना कर आपने लगाया है, कृपया इसे हटा लें, पीड़ा पहुँचा रहा है।
स्वतोव्याघात (१) --- ''मेरी लिखी बात को अच्छा भुनाया आपने''(डाटडपट वाला अधिकारपूर्ण-बड़प्पन{?}) .......&........''... बड़ों से शाबाशी चाहता है, बस इतनी सी ख्वाहिश थी '' (मासूम-छुटप्पन{?}) !!
ReplyDeleteस्वतोव्याघात (२)---'' आप जैसे नेकदिल बुद्धिजीवी विरले ही होते हैं।'' & '' और मुझे मालूम है , मेरा कोई भी अपना नहीं यहाँ।'' !! { नेकदिल , बुद्धिजीवी 'अपने' नहीं होते शायद } !!
स्वतोव्याघात (३)--- प्रवीण-वाक्य , ''....... पर आत्म-संतुष्टि की दृष्टि से देखूँ तो मैं औसत से तीन गुना अधिक संतुष्ट हूँ क्योंकि मैं उतना अधिक पढ़ पा रहा हूँ। पता नहीं कि मैं कितना ठीक हूँ? '' और फिर '' .... प्रवीण पाण्डेय और ..... जी की टिपण्णी ने अंतरात्मा तक छलनी कर दी। '' { भाव-ग्रहण में पूर्वाग्रह पूर्ण विचलन और उससे पनपा निराशापूर्ण-आरोप } !!
स्वतोव्याघात (४)--- '' मेरी लिखी बात को अच्छा भुनाया आपने।'' और ''आपकी इस पोस्ट से मेरी आखें खुल गयी हैं और बहुत से भरम टूट गए हैं।'' .,,,,,,,,,,फिर भी '' आपके स्वास्थय लाभ की कामना करती हूँ। '' { 'अंतिम प्रणाम' के उपरान्त भी सु-काम-ना-वह्नि दिलों में धधकती ही रहती है , कहाँ मानते हैं लोग !!}
यह सब इसलिए लिखा कि आप इन अनर्गल-असंगत-प्रलाप से दुखी न हों , जैसा कि 'अंतिम प्रणाम' से हो चुके हैं ! और जिसका 'रिटर्न' भी 'अच्छा भुनाया आपने' के रूप में आ चुका है ! पुनः कहूंगा कि रूग्न-मानसिकता से चालित और बाल-विकल-बुद्धिपूर्ण खल-वाक्यों की परवाह न करें , देव !
अब यह कुश-वाक्य लगभग अनावश्यक ही लगता है कि , '' और हाँ एक बात और दिव्या को समय दीजिये कुछ बाते समय के साथ बेहतर समझ आती है..'' !!
पुनः कहूंगा कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें , ब्लागरी के इन अस्वास्थ्यकर चोचलों को अनदेखा करें ! आभार !
अमिताभ बच्चन के ब्लॉग पर भी रोज ६०० लोग टीपते हैं. वहाँ भी बार्टर सिस्टम की गुँजाईश नहीं है.
ReplyDeleteआपके शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना. तस्वीर अंतिम सलाम वाली खतरनाक टाईप की है.
@ दिव्या - बार्टर सिस्टम की बात तो पिछली पोस्ट पर आपकी टिप्पणी का आशय है।
ReplyDeleteपिछले पोस्ट पर अन्तिम प्रणाम पर अपनी खिन्नता मैने टिप्पणी और ई-मेल से व्यक्त की थी। आपने टिप्पणी के स्पष्टीकरण की टिप्पणी या ई-मेल का जवाब भी दिया होता तो कोई बात न बढ़ती।
यद्यपि कई मित्रों को अनावश्यक रूप से कौरवों की खल सभा की तरह रंगने का यत्न किया है आपने और "अन्तिम प्रणाम" जिसे मरे व्यक्ति को दिया जाता है, पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है; यह प्रकरण समाप्त माना जाये।
जैसा मैने ई-मेल में कहा था - "I feel very sad Divya. Thanks for all your comments and being along in my blogging journey." वह सत्य है।
(एक टिप्पणी मिट चुकी है लापरवाही से -मिट जाना अच्छा था ,आप सरीखे व्यक्ति को कोई अंतिम प्रमाण कह दे तो उसकी सौजन्यता और बौद्धिक स्तर का पता लग जाता है ..)
ReplyDeleteसारी मैं थोडा व्यस्त हूँ-मगर आपके ब्लॉग पर आना सदैव आह्लादकारी अनुभव रहता है !
.
ReplyDelete@--@ दिव्या - बार्टर सिस्टम की बात तो पिछली पोस्ट पर आपकी टिप्पणी का आशय है।
Gyan ji--
आशय तो समझा दिया टिपण्णी के जरिये , आपकी समझ में नहीं आया , ये आपका दुर्भाग्य है।
अंतिम प्रणाम से मेरा तात्पर्य यही है की आप मेरे लिए मर चुके हैं। आपके लिए मेरे ह्रदय में कोई स्थान नहीं है।
मुझे भी अपने लिए मरा हुआ ही समझिये।
इस मृत्यु का biological death से कोई लेना देना नहीं है।
इससे ज्यादा spoon feeding नहीं कर सकती
आप अपनी कौरव सेना के साथ स्वस्थ्य एवं प्रस्सन रहिये।
आपकी पोस्ट पर भी पप्पू से मुलाकात हुई। जानकार प्रस्संता हुई की पप्पू ज़रा भी नहीं बदला है। आपके पप्पू की शान में एक पोस्ट लिख रही हूँ....
" पप्पू [ कमीना ] फेल हो गया !
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@ _ निशांत-
धन्यवाद।
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कमेन्ट कमेन्ट कमेन्ट....
ReplyDeleteक्या बिजनेस है...
दुनिया रंग रंगीली बाबा...
ReplyDelete@उफ़ प्रणाम को प्रमाण लिख गया -अब विद्वान् लोग बायोलाजिकल और क्लीनिकल डेथ समझा रहे हैं :) इसके आलावा भी कुछ आता है -तहजीब और मानवीयता ! ?
ReplyDeleteकितनी अहमन्यता हैं न लोगों में और ये पप्पू कौन है जो पास फेल हो रहा है ?
एक लेख लिखने का मन हो रहा है -ब्लॉग जगत की जिद्दी और पुरुष विरोधी नारियां ..आफत कर दिया है इन लोगों ने ,,
पंचों की राय हो तो लिखूं -अब सब्र का बांध सचमुच ओवर फ्लो कर गया है !
ज्ञान भाई !
ReplyDeleteआप आदरणीय हैं, कृपया आप बिना दिल पर लिए, स्वास्थ्य लाभ करें ...मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि शीघ्र पहले की तरह सक्रिय हो जाएँ ! सादर
दीपक बाबा शब्द अच्छा लगा ।
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी आप सही कह रहै हैं ब्लॉग तो है ही वार्तालाप का जरिया आप कुछ लिखें और दूसरे उसे पढें । पढने वाला कोई न हो तो बुरा तो लगता है । पर आपका स्नेह मुझे बहुत मिला है । आप जल्द ही स्वास्थ्य लाभ करेंगे और फिर से हमारा हौसला बढायेंगे इसी आशा के साथ ।
ReplyDeleteमन ऐसा कसैला हो गया है कि लगता है कट लूँ यहाँ से...लेकिन फिर लगता है ....अच्छे लोगों की कमी थोड़े न है यहाँ...
ReplyDeleteभैया, जाने दीजिये ये सब....आप स्वस्थ का ध्यान रखिये और बस लिखते रहिये...राम जी मालिक भी कहाँ सबको संतुष्ट कर पाए थे...तो हम लोगों की क्या औकात है...बस प्रभु को ध्यान में रख सार्थक करने का प्रयास करते रहना चाहिए...और क्या...बाकी जिसको जो बुझाये सो बुझाए...
दिव्या जी की अंतिम टिप्पणी लगता है विक्षिप्तावस्था में लिखी गयी है। अफ़सोसजनक है यह।
ReplyDeleteइस प्रकार संतुलन खोना ठीक नहीं है।
यह तो अन्तहीन मुद्दा है। यह सही है कि स्थापित ब्लॉगीए की टिप्पणी से नौनिहाल, निहाल हो जाते हैं। टिप्पणी की प्रतीक्षा तो प्रत्येक ब्लागीए को होती है - स्थापित हो या नौनिहाल, किन्तु 'ब्लॉग दुनिया' धीरे-धीरे सब समझा देती है, चुपचाप।
ReplyDeleteआप स्वस्थ बने रहें और लिखते रहें।
der se aaya, par yaha jin mohtarmaa ke comment ki baat ho rahi hai unke blog aur unki lekhni se to mera mann
ReplyDelete14 july 2010 se hi khinn ho chuka hai. agar jan na chahein to niche link par jaakar padhiye, fir dekhiye kaise baat kaa batangad banaya jaata hai jab tark na ho kahne wale ke paas tab...
http://zealzen.blogspot.com/2010/07/blog-post_14.html
padhne ke baad kahiyega kuchh jo lagaa ho aapko