Monday, August 23, 2010

आखरी सुम्मार

मन्दिर को जाने वाली सड़क पर एक (अन)अधिकृत चुंगी बना ली है लुंगाड़ो नें। मन्दिर जाने वालों को नहीं रोकते। आने वाले वाहनों से रोक कर वसूली करते हैं। श्रावण के महीने में चला है यह। आज श्रावण महीने का आखिरी सोमवार है। अब बन्द होने वाली है यह भलेण्टियरी।

आज सवेरे-सवेरे एक स्कूटर सवार को रोका। तीन की टीम है। एक आठ-दस साल का लड़का जो सडक के आर पार की बल्ली उठाता गिराता है; एक रिंगलीडर; और एक उसका असिस्टेण्ट।

स्कूटर के पीछे बैठी महिला वसूली पर बहुत चौंचियायी।

घूमने के बाद वापसी में आते देखा। रिंगलीडर स्टूल पर बैठे थे। पिच्च से थूक कोने में फैंकी। प्रवचे – आज आखरी सुम्मार है बे! आज भो**के पीट पीट कर वसूलना है।

पास में ही बेरोजगारी के खिलाफ ईमानदार अभियान का पोस्टर पुता था दीवार पर! Last Monday

32 comments:

  1. पीपली लाईव देख आईये -

    ReplyDelete
  2. बेरोजगारी का टेम्परेरी हल, घुस जाओ पोल में।

    ReplyDelete
  3. काहे दूसरे की कमाई पर टोक मारते है .सावन के सुम्मार रोज़ थोडे आते

    ReplyDelete
  4. हम नहीं सुधरेंगे।

    ReplyDelete
  5. यहाँ बेंगळूरु में भी एक नया "रैकट" और "न्यूसेन्स" शुरू हुआ है।
    कुछ महीनों से, हिजड़ों का एक गुट ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई वाहन चालकों को परेशान करते आए हैं।
    जबरदस्ति अपनी दुआएं देने की ज़िद्द करते हैं और पैसा एंठते हैं। महिलाओं को परेशान नहीं करते। हम अघेड उम्र वालों को भी छोड देते हैं पर नौजवानों को काफ़ी परेशान करते हैं। पिंड छुडवाने के लिए कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। बारी बारी से ये गुट नगर की अन्य ट्रैफ़िक सिग्नलों पर ढेरा जमाते हैं। पुलिस कर्मचारी देखते रहते हैं और कुछ करते भी नहीं।

    ReplyDelete
  6. रिंग लीडर को देख कर लग रहा है कि मार्निंग-वाक करते-करते स्टूल पर बैठे गया...बेरोजगारी मिटाने के बारे में बच्चा किताब लिख सकता है. आखिर सावन के बाद भादों भी आता है. उसमें भी कोई न कोई सुम्मार मिल ही जाएगा.

    ReplyDelete
  7. jai ho..........

    mahangai dayaan,,,,,,,,,,,

    ReplyDelete
  8. किस काम के लिये वसूली कर रहे हैं?
    रसीद पर लिखा तो होगा ही। या थाने में जमा करने के लिये भाडे के हैं?
    खींच कर कान के नीचे दो झापड लगाने थे। स्टूल, बल्ली छोडकर भाग जाते।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  9. यह क्या बकवास हो रही है. हप्ता वसुली... खांमखा. कोई क्यों दे? यही समझ नहीं आ रहा.

    ReplyDelete
  10. बेरोजगारी उन्मूलक अभियान अपने हाथ में ले लिया है। राज्य, केन्द्र व नगर में धन कैसे बटेगा, यदि बटेगा।

    ReplyDelete
  11. बचवा जिनगी भर खुशाल रहेगा...कभी बेरोजगार नहीं रहेगा...वह जानता है "हाथ में लाठी ले लो ,फिर ऐसी कौन सी भैंस है जो न हंकेगी" ... फोटो संरखित रख लीजिये...देख लीजियेगा,इसी रस्ते कभी संसद तक भी पहुंचेगा...

    ReplyDelete
  12. रंजना जी की बात सही लगती है.


    भावी सासंद/मंत्री महोदय के दर्शन कराने का आभार.

    ReplyDelete
  13. धर्म जीवन आधार, कभी सुम्‍मार, कभी दुर्गा, कभी गणेश, साल भर कोई न कोई त्‍यौहार, इसीसे चलता जीवन ब्‍यौपार.

    ReplyDelete
  14. बेरोजगारी उन्मूलक अभियान!

    अच्छी रचना!!!!!!!!!!!!! क्या अंदाज़ है बहुत खूब

    रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
    समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html

    ReplyDelete
  15. ये हमारे भावी नेता हैं ...... इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के :)

    ReplyDelete
  16. 'शिवकुटी श्रृंखला' की पहली कडी पर टिपिया कर 'इन-बॉक्‍स' में लौटा तो आपकी यह पोस्‍ट तैयार मिली।

    धर्म के नाम पर इस देश में जो भी हो जाए, कम है। धर्म के नाम रोजगार की यह श्रेणी प्रत्‍येक तीर्थ क्षेत्र में समानता से उपलब्‍ध है।

    ReplyDelete
  17. अच्छी प्रस्तुति। आभार

    ReplyDelete
  18. टिप्पणियों को देखकर लगता है किसी केवल एक गुजराती को ही ये हफ्ता वसूली अटपटी लगी। बाकी लोगों ने इसे एक सामान्य घटनाक्रम के रूप में लिया। इन्दौर में भी वैध के साथ अवैध पार्किंग फलीभूत है। नेताओं का वरदहस्त होता है इन पर।

    ReplyDelete
  19. ऐसे ही 'समाजसेवी' आजकल मंत्री विधायक बनते हैं।

    ReplyDelete
  20. सर,
    आपकी इस ’स्टिंग पोस्ट’ को शिव कुमार जी और रंजना जी के कमेंट ने चार चांद लगा दिये हैं।
    सावन के बाद और महीने भी आयेंगे, ये आखिरी सुम्मार नहीं है और होनहार बिरवान के पात चीक्कन हैं, बनेगा तरूवर जरूर।

    ReplyDelete
  21. @6270649468804795513.0
    >>> Atul Sharma
    - निश्चय ही मामला बेरोजगारी और बीमारू प्रदेशों की छुद्र मानसिकता का है। गुजरात में हालात बेहतर हैं।
    मेरे घर के एक चाचाजी कई दशकों से कांडला में रहते हैं। उनके परिवार की मानसिकता कहीं बेहतर है रोजगार और मेहनत की कमाई को ले कर।

    ReplyDelete
  22. इस गुंडई का ईलाज बस ठुल्लई है, अपने आप सुधर जाएंगे ये शोहदे जब दारोगा जी अपना हिस्सा कलेक्शन से ज़्यादा फिक्स कर देंगे.?

    दिल्ली की लाल बत्तियों पर एक दूसरी तरह का गैंग कभी कभी मिलता है. से मुश्टंडे, ग्रुप में होते हैं, हाथ में सांप लिए हुए. कारों में ज़बरदस्ती सांप ढेल कर डरे हुए लोगों से पैसे ऐंठते हैं. एक बार मैंने गाड़ी में बैठे-बैठे उसका सांप पकड़ कर जैसे ही रेस दी तो उसके होश फ़ाख़्ता हो गए घिघियाते हुए सांप के मर जाने का वास्ता देकर उसने पीछा छुड़ाया था मुझसे...

    ReplyDelete
  23. जय हो बाबा की. अब सबका ख्याल रखना होता है, सब उनकी कृपा है :)

    ReplyDelete
  24. गुन्डागर्दी और लठैती हमारे राष्ट्रीय खेल हैं, लोग खामखाँ ही बाकी खेलों में पदक न मिलने का रोना रोते रहते हैं।

    ReplyDelete
  25. ओह ! ये तो अच्छा है ना बेरोजगारी का सरल हल... चंदा वसूली...!

    ReplyDelete
  26. इस गुंडई का ईलाज बस ठुल्लई है, अपने आप सुधर जाएंगे ये शोहदे जब दारोगा जी अपना हिस्सा कलेक्शन से ज़्यादा फिक्स कर देंगे.?

    दिल्ली की लाल बत्तियों पर एक दूसरी तरह का गैंग कभी कभी मिलता है. से मुश्टंडे, ग्रुप में होते हैं, हाथ में सांप लिए हुए. कारों में ज़बरदस्ती सांप ढेल कर डरे हुए लोगों से पैसे ऐंठते हैं. एक बार मैंने गाड़ी में बैठे-बैठे उसका सांप पकड़ कर जैसे ही रेस दी तो उसके होश फ़ाख़्ता हो गए घिघियाते हुए सांप के मर जाने का वास्ता देकर उसने पीछा छुड़ाया था मुझसे...

    ReplyDelete
  27. @6270649468804795513.0
    >>> Atul Sharma
    - निश्चय ही मामला बेरोजगारी और बीमारू प्रदेशों की छुद्र मानसिकता का है। गुजरात में हालात बेहतर हैं।
    मेरे घर के एक चाचाजी कई दशकों से कांडला में रहते हैं। उनके परिवार की मानसिकता कहीं बेहतर है रोजगार और मेहनत की कमाई को ले कर।

    ReplyDelete
  28. धर्म जीवन आधार, कभी सुम्‍मार, कभी दुर्गा, कभी गणेश, साल भर कोई न कोई त्‍यौहार, इसीसे चलता जीवन ब्‍यौपार.

    ReplyDelete
  29. jai ho..........

    mahangai dayaan,,,,,,,,,,,

    ReplyDelete
  30. यहाँ बेंगळूरु में भी एक नया "रैकट" और "न्यूसेन्स" शुरू हुआ है।
    कुछ महीनों से, हिजड़ों का एक गुट ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई वाहन चालकों को परेशान करते आए हैं।
    जबरदस्ति अपनी दुआएं देने की ज़िद्द करते हैं और पैसा एंठते हैं। महिलाओं को परेशान नहीं करते। हम अघेड उम्र वालों को भी छोड देते हैं पर नौजवानों को काफ़ी परेशान करते हैं। पिंड छुडवाने के लिए कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। बारी बारी से ये गुट नगर की अन्य ट्रैफ़िक सिग्नलों पर ढेरा जमाते हैं। पुलिस कर्मचारी देखते रहते हैं और कुछ करते भी नहीं।

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय