मन्दिर को जाने वाली सड़क पर एक (अन)अधिकृत चुंगी बना ली है लुंगाड़ो नें। मन्दिर जाने वालों को नहीं रोकते। आने वाले वाहनों से रोक कर वसूली करते हैं। श्रावण के महीने में चला है यह। आज श्रावण महीने का आखिरी सोमवार है। अब बन्द होने वाली है यह भलेण्टियरी।
आज सवेरे-सवेरे एक स्कूटर सवार को रोका। तीन की टीम है। एक आठ-दस साल का लड़का जो सडक के आर पार की बल्ली उठाता गिराता है; एक रिंगलीडर; और एक उसका असिस्टेण्ट।
स्कूटर के पीछे बैठी महिला वसूली पर बहुत चौंचियायी।
घूमने के बाद वापसी में आते देखा। रिंगलीडर स्टूल पर बैठे थे। पिच्च से थूक कोने में फैंकी। प्रवचे – आज आखरी सुम्मार है बे! आज भो**के पीट पीट कर वसूलना है।
पास में ही बेरोजगारी के खिलाफ ईमानदार अभियान का पोस्टर पुता था दीवार पर!
पीपली लाईव देख आईये -
ReplyDeleteबेरोजगारी का टेम्परेरी हल, घुस जाओ पोल में।
ReplyDeleteकाहे दूसरे की कमाई पर टोक मारते है .सावन के सुम्मार रोज़ थोडे आते
ReplyDeleteकर्मठ युवा.
ReplyDeleteयह बीमारी हर जगह है
ReplyDeleteहम नहीं सुधरेंगे।
ReplyDeleteयहाँ बेंगळूरु में भी एक नया "रैकट" और "न्यूसेन्स" शुरू हुआ है।
ReplyDeleteकुछ महीनों से, हिजड़ों का एक गुट ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई वाहन चालकों को परेशान करते आए हैं।
जबरदस्ति अपनी दुआएं देने की ज़िद्द करते हैं और पैसा एंठते हैं। महिलाओं को परेशान नहीं करते। हम अघेड उम्र वालों को भी छोड देते हैं पर नौजवानों को काफ़ी परेशान करते हैं। पिंड छुडवाने के लिए कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। बारी बारी से ये गुट नगर की अन्य ट्रैफ़िक सिग्नलों पर ढेरा जमाते हैं। पुलिस कर्मचारी देखते रहते हैं और कुछ करते भी नहीं।
रिंग लीडर को देख कर लग रहा है कि मार्निंग-वाक करते-करते स्टूल पर बैठे गया...बेरोजगारी मिटाने के बारे में बच्चा किताब लिख सकता है. आखिर सावन के बाद भादों भी आता है. उसमें भी कोई न कोई सुम्मार मिल ही जाएगा.
ReplyDeletejai ho..........
ReplyDeletemahangai dayaan,,,,,,,,,,,
किस काम के लिये वसूली कर रहे हैं?
ReplyDeleteरसीद पर लिखा तो होगा ही। या थाने में जमा करने के लिये भाडे के हैं?
खींच कर कान के नीचे दो झापड लगाने थे। स्टूल, बल्ली छोडकर भाग जाते।
प्रणाम
यह क्या बकवास हो रही है. हप्ता वसुली... खांमखा. कोई क्यों दे? यही समझ नहीं आ रहा.
ReplyDeleteबेरोजगारी उन्मूलक अभियान अपने हाथ में ले लिया है। राज्य, केन्द्र व नगर में धन कैसे बटेगा, यदि बटेगा।
ReplyDeleteबचवा जिनगी भर खुशाल रहेगा...कभी बेरोजगार नहीं रहेगा...वह जानता है "हाथ में लाठी ले लो ,फिर ऐसी कौन सी भैंस है जो न हंकेगी" ... फोटो संरखित रख लीजिये...देख लीजियेगा,इसी रस्ते कभी संसद तक भी पहुंचेगा...
ReplyDeleteरंजना जी की बात सही लगती है.
ReplyDeleteभावी सासंद/मंत्री महोदय के दर्शन कराने का आभार.
धर्म जीवन आधार, कभी सुम्मार, कभी दुर्गा, कभी गणेश, साल भर कोई न कोई त्यौहार, इसीसे चलता जीवन ब्यौपार.
ReplyDeleteबेरोजगारी उन्मूलक अभियान!
ReplyDeleteअच्छी रचना!!!!!!!!!!!!! क्या अंदाज़ है बहुत खूब
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html
ये हमारे भावी नेता हैं ...... इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के :)
ReplyDelete'शिवकुटी श्रृंखला' की पहली कडी पर टिपिया कर 'इन-बॉक्स' में लौटा तो आपकी यह पोस्ट तैयार मिली।
ReplyDeleteधर्म के नाम पर इस देश में जो भी हो जाए, कम है। धर्म के नाम रोजगार की यह श्रेणी प्रत्येक तीर्थ क्षेत्र में समानता से उपलब्ध है।
अच्छी प्रस्तुति। आभार
ReplyDeleteटिप्पणियों को देखकर लगता है किसी केवल एक गुजराती को ही ये हफ्ता वसूली अटपटी लगी। बाकी लोगों ने इसे एक सामान्य घटनाक्रम के रूप में लिया। इन्दौर में भी वैध के साथ अवैध पार्किंग फलीभूत है। नेताओं का वरदहस्त होता है इन पर।
ReplyDeleteऐसे ही 'समाजसेवी' आजकल मंत्री विधायक बनते हैं।
ReplyDeleteसर,
ReplyDeleteआपकी इस ’स्टिंग पोस्ट’ को शिव कुमार जी और रंजना जी के कमेंट ने चार चांद लगा दिये हैं।
सावन के बाद और महीने भी आयेंगे, ये आखिरी सुम्मार नहीं है और होनहार बिरवान के पात चीक्कन हैं, बनेगा तरूवर जरूर।
@6270649468804795513.0
ReplyDelete>>> Atul Sharma
- निश्चय ही मामला बेरोजगारी और बीमारू प्रदेशों की छुद्र मानसिकता का है। गुजरात में हालात बेहतर हैं।
मेरे घर के एक चाचाजी कई दशकों से कांडला में रहते हैं। उनके परिवार की मानसिकता कहीं बेहतर है रोजगार और मेहनत की कमाई को ले कर।
इस गुंडई का ईलाज बस ठुल्लई है, अपने आप सुधर जाएंगे ये शोहदे जब दारोगा जी अपना हिस्सा कलेक्शन से ज़्यादा फिक्स कर देंगे.?
ReplyDeleteदिल्ली की लाल बत्तियों पर एक दूसरी तरह का गैंग कभी कभी मिलता है. से मुश्टंडे, ग्रुप में होते हैं, हाथ में सांप लिए हुए. कारों में ज़बरदस्ती सांप ढेल कर डरे हुए लोगों से पैसे ऐंठते हैं. एक बार मैंने गाड़ी में बैठे-बैठे उसका सांप पकड़ कर जैसे ही रेस दी तो उसके होश फ़ाख़्ता हो गए घिघियाते हुए सांप के मर जाने का वास्ता देकर उसने पीछा छुड़ाया था मुझसे...
जय हो बाबा की. अब सबका ख्याल रखना होता है, सब उनकी कृपा है :)
ReplyDeleteगुन्डागर्दी और लठैती हमारे राष्ट्रीय खेल हैं, लोग खामखाँ ही बाकी खेलों में पदक न मिलने का रोना रोते रहते हैं।
ReplyDeleteओह ! ये तो अच्छा है ना बेरोजगारी का सरल हल... चंदा वसूली...!
ReplyDeleteइस गुंडई का ईलाज बस ठुल्लई है, अपने आप सुधर जाएंगे ये शोहदे जब दारोगा जी अपना हिस्सा कलेक्शन से ज़्यादा फिक्स कर देंगे.?
ReplyDeleteदिल्ली की लाल बत्तियों पर एक दूसरी तरह का गैंग कभी कभी मिलता है. से मुश्टंडे, ग्रुप में होते हैं, हाथ में सांप लिए हुए. कारों में ज़बरदस्ती सांप ढेल कर डरे हुए लोगों से पैसे ऐंठते हैं. एक बार मैंने गाड़ी में बैठे-बैठे उसका सांप पकड़ कर जैसे ही रेस दी तो उसके होश फ़ाख़्ता हो गए घिघियाते हुए सांप के मर जाने का वास्ता देकर उसने पीछा छुड़ाया था मुझसे...
@6270649468804795513.0
ReplyDelete>>> Atul Sharma
- निश्चय ही मामला बेरोजगारी और बीमारू प्रदेशों की छुद्र मानसिकता का है। गुजरात में हालात बेहतर हैं।
मेरे घर के एक चाचाजी कई दशकों से कांडला में रहते हैं। उनके परिवार की मानसिकता कहीं बेहतर है रोजगार और मेहनत की कमाई को ले कर।
धर्म जीवन आधार, कभी सुम्मार, कभी दुर्गा, कभी गणेश, साल भर कोई न कोई त्यौहार, इसीसे चलता जीवन ब्यौपार.
ReplyDeletejai ho..........
ReplyDeletemahangai dayaan,,,,,,,,,,,
यहाँ बेंगळूरु में भी एक नया "रैकट" और "न्यूसेन्स" शुरू हुआ है।
ReplyDeleteकुछ महीनों से, हिजड़ों का एक गुट ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी हुई वाहन चालकों को परेशान करते आए हैं।
जबरदस्ति अपनी दुआएं देने की ज़िद्द करते हैं और पैसा एंठते हैं। महिलाओं को परेशान नहीं करते। हम अघेड उम्र वालों को भी छोड देते हैं पर नौजवानों को काफ़ी परेशान करते हैं। पिंड छुडवाने के लिए कुछ लोग कुछ रुपये दे देते हैं। बारी बारी से ये गुट नगर की अन्य ट्रैफ़िक सिग्नलों पर ढेरा जमाते हैं। पुलिस कर्मचारी देखते रहते हैं और कुछ करते भी नहीं।