आज सवेरे मन्दिर के गलियारे में शंकर-पार्वती की कच्ची मिट्टी की प्रतिमायें और उनके श्रृंगार का सस्तौआ सामान ले कर फुटपाथिया बैठा था। अच्छा लगा कि प्रतिमायें कच्ची मिट्टी की थीं – बिना रंग रोगन के। विसर्जन में गंगाजल को और प्रदूषित नहीं करेंगी।
गंगाजी में लोग लुगाई नहा रहे थे। पानी काफी है वहां। मन्दिर में दर्शन के बाद एक दम्पति लौट रहे थे। औरत, आदमी और बच्चा। एक बकरी पछिया लियी। बच्चा बोला - “बकरी मम्मी”! पर मम्मी ने मोटरसाइकल पर पीछे बैठते हुये कहा - “गोट बेटा”।
गोटमाइज हो रहा है भारत!
आज तीज-ईद-गणेश चतुर्थी मुबारक!
अभी भी काफी गर्मी पड़ रही है...ऐसे में निराजली व्रत रखना काफी कठिन कार्य है...कुछ पतियों को यह शायद समझ में भी न आये|
ReplyDeleteमुबारकबाद आप को भी! रुहेलखंड में तो मूर्ति की जगह पिंडोल मिट्टी को ही गौरीशंकर का प्रतीक मानकर पूजा जाता था, प्रदूषण का प्रश्न ही नहीं था।
ReplyDeleteबंगलोर में जनचेतना व सरकारी प्रयासों के कारण पेंट वाली मूर्तियों की बिक्री में भारी गिरावट आयी है।
ReplyDeleteबकरी को गोट रटाने से न बकरी अधिक आंग्ल हो पायेगी न बालक ही।
Quote:
ReplyDelete“बकरी मम्मी”! पर मम्मी ने मोटरसाइकल पर पीछे बैठते हुये कहा - “गोट बेटा”।
गोटमाइज हो रहा है भारत!
Unquote:
"गोटमाइज तो बाद में हुआ। इससे पहले "मम्मिआइज" हो गया था।
Welcome back.
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
कच्ची मिटटी की मूर्तिओं को देख बहुत अच्छा लगा. जन चेतना अभियान के माध्यम से परिवर्तन लाया जा सकता है.
ReplyDeleteअनुराग जी थीक याद दिलाया . पिन्डोल से ही शंकर गौरी बनाती थी मेरी मां .
ReplyDeleteऔर यह देसी माम इन्से तो गोड ही बचाये .
Goatamize :)
ReplyDeleteरिवर्स में बकरीकरण भी बढ़िया शब्द रहेगा.
ReplyDeleteमिट्टी की प्रतिमाएं वास्तव में ही सुंदर हैं. रंग के बिना कहीं अधिक सुघड़ लग रही हैं.
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteसम सामयिक।
आपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा …पढिए!
G फॉर बकरी बतायेगा स्कूल में तो PTM में अध्यापिका कहेगी, आप घर में नहीं पढाते हैं।
ReplyDeleteगोट बताना जरुरी है जी
वरना पिछड जायेग।
प्रणाम
बच्चा बोला - “बकरी मम्मी” अब बच्चे को पता है कि उस की मम्मी क्या है?इस का चित्र भी देते तो बात कुछ अलग थी:) देखे तो सही बकरी मोटर साईकिल पर बेठी केसी लगती है
ReplyDeleteआप अच्छा लिखते हैं पर शिव भाई कालजयी लिखते हैं:) ये मात्र आपकी जानकारी के लिए.. हम पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं है
ReplyDeleteतो कुल मिला कर सार संग्रह ये कि ....अब तक भारत ने जो भी तरक्कीज़ की है ..या जितना भी आधुनिकतास्टिक परिवर्तन हुआ है .........उसके लिए फ़िफ़्टी परसेंट मम्मी जी जिम्मेदार हैं ...और बांकी फ़िफ़्टी परसेंट के लिए ..ओह दीज़ बकरीज़ ....और कौन ???
ReplyDeleteआज मेरे घर में भी निर्जला उपवास चल रहा है। माँ और धर्मपत्नी दोनो ने आज कुछ नहीं लिया। हम छुट्टी में उन्हीं से हलुआ बनवाकर खा रहे हैं। कल भोर में खुद बनाकर उन्हें खिलाएंगे। इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते।
ReplyDeleteबकरी का गोटिफ़िकेशन करने वाली मम्मी जी भी गंगा नहाने आयी ही थीं।
एक साथ कई धाराएं है यहाँ। बल्कि भारत में एक साथ कई सदियाँ निवास कर रही हैं।
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया. मूर्तियां बहुत ही सुन्दर हैं. प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, जनचेतना ही इससे निजात दिला पाएगी.
ReplyDeleteमम्मी और गोट.. :)
मम्मीआइज़ :o)
ReplyDeleteअक्सर गरीब ही पर्यवरण के हक में काम करते हैं ।
ReplyDeleteगोटमाइज हो रहा है भारत!
ReplyDeletesach kahu to pata nahi iske alava bhi kya kya ho raha hai bharat, bas bhartiykaran nahi hota dikh raha...
aapke yahan ke is futhpathiya dukanadar ki tarah kaash sabhi jagah ke aise dukandar ho jayein to kitna accha ho...
haritalika teej ya chhattisgarhi me kahu to Teeja par meri ek purani post, jis par aapki tippani kya thi yad karne ke liye dekhiye...
http://sanjeettripathi.blogspot.com/2007/09/blog-post_11.html
हरतालिका की पूजा करना और बकरी को गोट कहना। क्या जोरदार विरोधाभास है।
ReplyDeleteकारुणिक आनन्द है।
गोटमाइज..:):)
ReplyDeleteहम में से अधिकतर बच्चों के सिर्फ अंगरेजी ज्ञान से संतुष्ट नहीं होते बल्कि उसकी फर्राटा अंगरेजी पर पहले चमत्कृत फिर गौरवान्वित होते हैं. चैत-बैसाख की कौन कहे हफ्ते के सात दिनों के नाम और 1 से 100 तक की क्या 20 तक की गिनती पूछने पर बच्चा कहता है, क्या पापा..., पत्नी कहती है आप भी तो... और हम अपनी 'दकियानूसी' पर झेंप जाते हैं. आगे क्या कहूं.
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