अपनी मूर्खता पर हंसी आती है। कुछ वैसा हुआ – छोरा बगल में ढुंढाई शहर में!
राहुल सिंह जी की टिप्पणी थी टल्लू वाली पोस्ट पर -
अपरिग्रही टल्लू ने जीवन के सत्य का संधान कर लिया है और आपने टल्लू का, बधाई। जगदेव पुरी जी से आपकी मुलाकात होती रहे। अब आपसे क्या कहें कि एक थे शिव प्रसाद मिश्र "रूद्र" काशिकेय।
मैने उन्हे पूछा कि ये रुद्र काशिकेय कौन हैं? और राहुल जी ने बताया कि उनकी पुस्तक है बहती गंगा, जिसके चरित्रों सा है टल्लू। उनकी मेल के बाद मुझे बहुत तलब हुई बहती गंगा प्राप्त करने की। बोधिसत्व जी की प्रोफाइल में जिक्र था इस पुस्तक का, लिहाजा उनसे पता किया कि यह राधाकृष्ण प्रकाशन ने छापी है। अगले दिन लंच से पहले यह पुस्तक मेरे पास दफ्तर में थी!
बहती गंगा के शुरू के तीन पन्ने पढ़ते ही पता चल गया कि यह पुस्तक मैने दो साल पहले खरीद रखी है! उस समय हिन्दी/भोजपुरी/अवधी में पढ़ने में वह फर्राटी चाल न थी, लिहाजा यह पुस्तक अनपढ़ी किताबों के जंगल में खो गई थी। और खो गया था रुद्र काशिकेय जी का नाम भी। यह देखिये पहले (सन २००६) और अबके (सन २०१०) संस्करण में बहती गंगा के प्रथम पृष्ठ:
है न; छोरा बगल में ढुंढाई शहर में!
मैने दो साल पहले यह पुस्तक क्यों नहीं पूरी की? पहली बात तो यह कि शुरू के पन्नों की भोजपुरी पुट-ऑफ कर रही थी। दूसरे यह कि किसी ने इस प्रकार से इण्ट्रोड्यूस नहीं किया था, जैसे राहुल जी और बोधिसत्व जी ने किया।
और मुझे लगता है कि हिन्दी साहित्य की खेमेबन्दी “रुद्र” जी के बारे में वह प्रचार-प्रसार होने नहीं देती!
खैर, आगे लिखूंगा “रुद्र” जी के बारे में। अभी तक जो समझ पाया, उसके अनुसार वे हर कोने-अंतरे से देशज चरित्र ढूंढ़ने और कथायें तलाशने/बुनने वाले सिद्धहस्त साहित्यकार थे। उनकी बनारसी इश्टाइल की “गुरुआई” (जिसमें भांग का नित्य सेवन अनिवार्य हो) एम्यूलेट (emulate) करने की साध भले न हो, उनका बहुत कुछ है जो सीखने समझने का मन करता है।
नन्दी जी की गर्लफ्रेण्ड:
खेमे बाज़ी तो हर जगह विध्यमान है क्या साहित्य और क्या ब्लाग .
ReplyDeleteज्ञाता कहते हैं कि हर पुस्तक का एक सर्वश्रेष्ठ समय होता है पढ़ने के लिये। इतना उछाल पाने के बाद, अब न केवल आपको आनन्द आयेगा वरन औरों को भी आयेगा। कितने ही उदीयमान व सिद्ध रचनाकार इस उछाल को तरस रहे हैं।
ReplyDeleteचलिये..लिखियेगा.इन्तजार करेंगे.
ReplyDeleteओह! बड़ी दुर्घटना है, पुस्तक पहले खरीद ली गई हो और उस का स्मरण तक न रहे।
ReplyDeleteमेरे विश्वास की रक्षा कर ली आपने, यह बता कर कि पुस्तक आपके पास पहले से मौजूद थी. मैंने इसी विश्वास से अधिक कुछ कहे बिना, बहती गंगा का उल्लेख किया था कि इस पुस्तक से आप अनभिज्ञ न होंगे. पोस्ट का इंतजार है.
ReplyDeleteसाहित्य के मामले में हम तो कंगाल हैं परन्तु आपके पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी. नंदी जी की गर्ल फ्रेंड बहुत भाई.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का इन्तजार रहेगा । पर ये बकरी और नंदी क्या कानाफूसी कर रहे हैं ? शायद कह रही हो आय .. यू
ReplyDeleteहमको तो गर्ल फ़्रेंड पसन्द आयी :)
ReplyDeleteचलिए अब आपको ज्यादा आनंद मिलेगा.....साथ ही साथ हमें भी सूचित करते रहिएगा|
ReplyDeleteनंदी जी की गर्ल फ्रेंड ...अच्छी है|
ब्रह्माण्ड
i was reading your post & my two "chhories" were sitting by. Little one has a never ending demand of "tell me a story". i read your post loudly and sked them what is "chhora bagal me dhundhaai shar me". It was an intresting puzzle for them.
ReplyDeletethey pondered over it and came out with a meaning for chhora as "to leave"-- not a bad attempt. I tried to explain the difference of "chhora" and "chhoda". i dont think i was very successful. anyway i explained them the meaning of the idiom and they were amused. i am sure i will this many time for many days from them.
waiting for your post on aswin sanghi's book
@ Rakesh Ravi -
ReplyDeleteOh, Rakesh Ravi ji, my love to your little chhories! Good that my blog is making them nearer Hindi!
I do not think I would write more on Ashwin's Book than in last post. But on Rudra ji's Bahatee Ganga, yes. A couple of posts.
बहुत बढ़िया जी,नंदी बाबा अब अकेले नही रहे, उन्हे खुबसुरत दोस्त मिल गया है, आप की पुस्तक समीक्षा का इंतजार है
ReplyDeleteसंभवतः समय नियत होता है कि कब क्या किस रूप में हमारे सामने आयेगी,भले यह किताब की ही बात क्यों न हो..
ReplyDeleteमेरे साथ भी कई बार यह हो चुका है..
नंदी बदनाम हुआ गोटनी तेरे लिये
ReplyDeleteप्रणाम
Nandi Girlfriend1, बाकी की कहाँ है? :)
ReplyDeleteक्या जनाना आ गया है!
ReplyDeleteआजकल लोग किताबों की चर्चा ज्यादा करते हैं और पढ़ते कम।
हम भी ऐसे ही हैं, मानता हूँ।
घर में एक अलमारी भरी हुई हैं किताबों से।
अब मुझे भी याद नहीं मरे पास कौन कौनसी किताबें हैं।
आजकल कंप्यूटर और अंतर्जाल ने मेरा पुराना reading habit को समझो खत्म ही कर दिया।
कुछ साल पहले हम टी वी को दोष देते थे पर आज कंप्यूटर और इंटर्नेट की बारी है।
इन्तजार करेंगे आपका वह पोस्ट जिसमे बहती गंगा के बारे में कुछ जानकारी मिलेगी
शुभकमनाएं
जी विश्वनाथ
@ अभिषेक - इतनी जासूसी! Nandi Girlfriend तो 2.5MB की है। इण्टरनेट के लिये अनुपयुक्त! :)
ReplyDelete`हिन्दी साहित्य की खेमेबन्दी “रुद्र” जी के बारे में वह प्रचार-प्रसार होने नहीं देती'
ReplyDeleteये गुटबाज़ी गुट्खा खा कर अपना मुंह बंद क्यों नहीं रखती :)
और हां, विश्वनाथ जी, ज़नाना तो ठीक है पर ज़माना बुरा आ गया है :) :)
@cmpershad
ReplyDeleteधत्त तेरी की!
क्या मुसीबत आ गई है।
एक तो हिन्दी में "स्पेल-चेक" की सुविधा नहीं है।
पर इस बार यदि स्पेल-होता भी, तो पता नहीं चलता!!
वर्तनी के हिसाब से ज़नाना और जमाना दोनों ठीक ही हैं|
त्रुटि सुधार के लिए धन्यवाद। आपकी आँखें हमारी आँखो से तेज है
पोस्ट करने से पहले एक बार फ़िर पढने के बाद भी हमने "नोटिस" नहीं की।
हिन्दी में "स्पेल-चेक" के अभाव का यह जमाना कब खत्म होगा?
जी विश्वनाथ
जब आप पढ़ लें तब इस पुस्तक के बारे में विस्तार से बताइयेगा, मैं भी पढ़ना चाहूंगा...
ReplyDeleteइस प्रकार से इण्ट्रोड्यूस नहीं किया था, जैसे राहुल जी और बोधिसत्व जी ने किया।
ReplyDeleteकरेक्ट !
................वेटिंग फॉर अपडेट्स