शिवकुमार मिश्र का सही कहना है कि ब्लॉग चरित्र महत्वपूर्ण है। बहुत से ब्लॉगर उसे वह नहीं दे पाते। मेरे ब्लॉग का चरित्र क्या है? यह बहुत कुछ निर्भर करता है कि मेरा चरित्र क्या है – वह इस लिये कि आठ सौ से अधिक पोस्टें बिना अपना चरित्र झलकाये नहीं लिख सकता।
एक चीज तो मुझे दिखती है – मेरा और मेरे ब्लॉग, दोनो का चरित्र बहुत i-सेंट्रिक (i-centric) है। बहुत आत्म-केन्द्रित। अपने अंतरमुखी “आप” का विज्ञापन करता हुआ। कभी मुझे लगता था/है कि ब्लॉग का उपयुक्त नाम i-हलचल होता। यह आई-सेंट्रिसिटी सद्गुण तो नहीं ही है। इसे अगर अन्य तत्वों से ब्लॉग चरित्र में न्यून न किया किया गया तो ब्लॉग के क्षरण का यह महत्वपूर्ण कारण बन सकता है। कोई किसी की बड़बोली बड़बड़ाहट सुनने नहीं आता ब्लॉगजगत में!
मुझे यह भी लगता है कि ब्लॉग का चरित्र होना बहुत कुछ इसपर भी निर्भर करता करता है कि आप अपने चरित्र को ब्लॉग के साथ या ब्लॉग के आगे, कितना परिमार्जित करते हैं। अगर ब्लॉगर इस पक्ष को दरकिनार करता है तो उसका ब्लॉग दीर्घजीवी नहीं हो सकता।
ब्लॉग लेखन पर फुटकर सोच:
लेखन को मैं अधिकाधिक ब्लॉग का एक अंग मात्र मानता था, पर इन दिनों जब ब्लॉगिंग में ज्यादा सक्रिय नहीं हूं, पाता हूं कि लेखन एक महत्वपूर्ण अंग है। मैं देखता हूं कि व्यापक तौर पर ब्लॉग-लेखन में क्रिया की प्रधानता है। वाक्य के अन्य अंग, संज्ञा, विशेषण, सर्वनाम गौंण हैं। लिहाजा लेखन में अधिक सोचना नहीं है। बहुत क्रिया (एक्टिविटी) है और कम सोच!
टिप्पणी-सेंट्रिसिटी ब्लॉग को प्रारम्भिक थर्स्ट देती है। निश्चय ही। पर कालान्तर में अगर टिप्पणियां वैल्यू-ऐड नहीं करतीं पोस्टों का तो वे क्षरण का कारण भी बनती हैं। लिहाजा ब्लॉग चरित्र तय करने में टिप्पणियों की संख्या से अधिक उनकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण है।
क्षमा करें, स्वास्थ्य की समस्या के कारण अभी भी टिप्पणी प्रबन्धन करना सम्भव नहीं है। लिहाजा पोस्ट पर टिप्पणियां बन्द हैं।
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