आरोपों के काल में कुत्ते बिल्लियों के ऊपर लिखे गये ब्लॉग हेय दृष्टि से देखे गये थे। इसलिये जब बिटिया ने बिल्ली पालने के लिये हठ किया तो उसको समझाया कि गाय, कुत्ते, बिल्ली यदि हिन्दी ब्लॉग में हेय दृष्टि से देखे जाते हैं तो उनको घर में लाने से मेरी भी हिन्दी ब्लॉगिंग प्रतिभा व रैंकिंग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
बालमन पशुओं के प्रेम व आत्मीयता से इतने ओतप्रोत रहते हैं कि उन्हें ब्लॉगिंग के सौन्दर्यबोध का ज्ञान ही नहीं। बिटिया ने मेरे तर्कों पर भौंहे सिकोड़कर एक अवर्णनीय विचित्र सा मुँह बनाया और साथ ही साथ याद दिलाया कि कुछ दिनों पहले तक इसी घर में सात गायें और दो कुत्ते रहते थे। यह देख सुन कर मेरा सारा ब्लॉगरतत्व पंचतत्व में विलीन हो गया।
हम विदेशियों से प्रथम दृष्ट्या अभिभूत रहते हैं और जिज्ञासा के स्तर को चढ़ाये रहते हैं। विदेशी बिल्लियाँ, यह शब्द ही मन में एक सलोनी छवि बनाता है। देखने गये एक दुकान में। सुन्दरतम पर्सियन कैट्स 15000 से 20000 के बीच मिल रही थीं। उनकी दिखाई का भी मूल्य होगा, यह सोचकर अंग्रेजी में उनके प्रशंसा गीत गाकर उसे चुकाया और ससम्मान बाहर आ गये।
बिटिया को लगा कि उसे टहला दिया गया है। अब देश की अर्थ व्यवस्था तो समझाने लायक नहीं रही तो कुछ धार्मिक व स्वास्थ्य सम्बन्धी तर्क छोड़े गये। हमारे चिन्तित चेहरे से हमारी घेरी जा चुकी स्थिति का पता चल रहा था। इस दयनीयता से हमारे ड्राइवर महोदय हमें उबार कर ले गये। दैव संयोग से चार दिन पहले उनके पड़ोस में कुछ बिल्ली के बच्चों का जन्म हुआ था।
घर में एक नहीं दो बिल्लियाँ पधारीं। तर्क यह कि आपस में खेलती रहेंगी। नाम रखे गये सोनी, मोनी। कोई संस्कृतनिष्ठ नाम रखने से हिन्दी की अवमानना का लांछन लगने की संभावना थी। अब जब घर का अंग बन ही चुके थे दोनों तो उनके योगक्षेम के लिये हमारा भी कर्तव्य बनता था। डूबते का सहारा इण्टरनेट क्योंकि शास्त्रों से कोई सहायता नहीं मिलने वाली थी। ब्लॉगीय सौन्दर्यबोध के परित्यक्त इनका अस्तित्व इण्टरनेट पर मिलेगा, इसकी भी संभावना कम ही थी। अनमने गूगलवा बटन दबा दिया।
बिल्लिया-ब्लॉग का एक पूरा संसार था। हम तो दार्शनिक ज्ञान में उतरा रहे थे पर बिटिया बगल में बैठ हमारी सर्च को और नैरो कर रही थी। खाना, पीना, सोना, नित्यकर्म, व्यवहार, एलर्जी और मनोरंजन, सबके बारे में व्यवहारिक ज्ञान समेटा गया।
तीन बातें मुझे भी अच्छी लगीं और कदाचित ब्लॉगजगत के लिये भी उपयोगी हों।
- बिल्लियों को खेलना बहुत पसंद है। अतः उनके साथ खेल कर समय व्यतीत कीजिये।
- बिल्लियाँ अपने मालिक से बहुत प्रेम करती हैं और उसे अपने अगले पंजों से खुरच कर व्यक्त करती हैं।
- बिल्लियाँ एक ऊँचाई से बैठकर पूरे घर पर दृष्टि रखती हैं। सतत सजग।
पिछले चार दिनों से दोनों को सुबह सुबह किसी न किसी उपक्रम में व्यस्त देखता हूँ। मेरी ओर सशंकित दृष्टि फेंक पुनः सरक लेती हैं। आपस में कुश्ती, खेल, अन्वेषण, उछल कूद, बीच में दो घंटे की नींद और पुनः वही प्रक्रिया।
देखिये तो, बचपन का एक क्षण भी नहीं व्यर्थ करती हैं बिल्लियाँ, तभी कहलाती हैं शेर की मौसी, बिल्ली मौसी।
प्रवीण भी कुकुर-बिलार के स्तर पर उतर आये पोस्टों में। अत, इस ब्लॉग की अतिथि पोस्टों के माध्यम से ही सही, इमेज बनाने के सम्भावनायें नहीं रहीं। पर मेरे विचार से कुत्तों-बिल्लियों पर समग्र मानवीयता से पोस्ट लिखना कहीं बेहतर ब्लॉगिंग है, बनिस्पत मानवीय मामलों पर व्युत्क्रमित प्रकार से!
प्रवीण ने एक फुटकर रूप से कविता भी भेजी थी; उसे भी यहां चिपका देता हूं (कु.बि. लेखन – कुकुर-बिलार लेखन की विण्डो ड्रेसिंग को!):
व्यक्त कर उद्गार मन के
व्यक्त कर उद्गार मन के,
क्यों खड़ा है मूक बन के ।
व्यथा के आगार हों जब,
सुखों के आलाप क्यों तब,
नहीं जीवन की मधुरता को विकट विषधर बना ले ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।१।।
चलो कुछ पल चल सको पर,
घिसटना तुम नहीं पल भर,
समय की स्पष्ट थापों को अमिट दर्शन बना ले ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।२।।
तोड़ दे तू बन्धनों को,
छोड़ दे आश्रित क्षणों को,
खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।३।।
यहाँ दुविधा जी रही है,
व्यर्थ की ऊष्मा भरी है,
अगर अन्तः चाहता है, उसे खुल कर चीखने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।४।।
आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।
ReplyDeleteआचार्य जी
एक उम्दा ब्लॉग पोस्ट और साथ ही एक बोनस कविता प्यारी !
ReplyDeleteव्यक्त कर उद्गार मन के -ऐसी प्रबोधात्मक कवितायेँ कितनी कम हो गयीं है न अब ...शायद लिखी ही नहीं जा रहीं
सोनी मोनी के शुभागमन पर परिवार का आनंद समझ सकता हूँ -बधाई !
बिल्ली पालन यूरोप में अच्छा खासा प्रचलित है -
बिल्ली व्यवहार -
वे खुद को घर की मालकिन समझती हैं ( सावधान श्रद्धा जी! )
लोग बाग़ घर भले छोड़ दें वे जिस घर में रहने लगती हैं नहीं छोड़ना चाहतीं (कुत्तों से पृथक व्यवहार ,कुत्ते मकान स्वामी की स्वामिभक्ति करते हैं ,बिल्ली घर को समर्पित होती है )
यह जानना कैसा लगा ?
हैं दोनो बहुत प्यारी ? देवला और पृथु तो अभिभूत होंगे !
"कुत्तों-बिल्लियों पर समग्र मानवीयता से पोस्ट लिखना कहीं बेहतर ब्लॉगिंग है, बनिस्पत मानवीय मामलों पर व्युत्क्रमित प्रकार से!"
ReplyDeleteसहमत.
मैं किन्ही को जानता हूं जिन्होंने बच्चों के ख़रगोश पाल लिया था फिर बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया. धन्य हैं जानवर पालने वाले.
ReplyDeleteWelcome back Gyan sahaab !
ReplyDeleteकभी कभी मन के सत्य उद्गार व्यक्त कर देना बड़ी मुश्किल में डाल देते हैं :)
ReplyDeleteबहुत ही बिल्लीमय पोस्ट है :))
प्रवीण जी ने एक रोचक लेख लिखा है, आपके उत्तम बल्कि चकाचक स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना..
@1098400716385793049.0
ReplyDelete> निशान्त मिश्र को जेन कथाओं के साथ सामान्य व्यक्तियों के कथन में भी कुछ सहमत होने लायक ढूंढ़ निकालने की महारत मिल गयी है! :)
कु.बि. पोस्ट लिखने पर दस बारह किलो बधाई स्वीकार करें। ज्यादा हो तो वापस भी कर सकते हैं, जवाबी थैला साथ भेज रहा हूँ :)
ReplyDeleteभई ये बिलार पालन से अपना भी सामना हो चुका है। करीब चार साल पहले मेरे घर में बिल्ली ने तीन बच्चे जने थे गैलरी में। बड़े प्यारे प्यारे। उनकी सेवा में पूरा घर पहले तो डटा रहा। समय पर दूध वगैरह दे दिया जाता। उनकी माँ भी इसी बहाने दूध पाने लगी।
बिल्ली दिन भर बाहर बाहर रहती लेकिन समय पर घर में दूध पीने के लिए निश्चित स्थान पर बैठ जाती। अम्मा ने उस दौरान जमकर बिलार परिवार की सेवा की।
लेकिन मुसीबत तब शुरू हुई जब तीनों बच्चों ने घर में गंदगी करना शुरू किया। कभी इस कोने तो उस कोने। हरदम घर साफ करते रहो। धीरे धीरे बच्चे बड़े होते रहे और गंदगी बढ़ती रही। बिलार पालन का खुमार उतरने लगा और एक दिन तीनों बच्चो को घर से दूर छोड आया गया।
इधर अम्मा अलग चिंतित कि - काहे रे, कैसे होंगे बच्चे....क्या खा रहे होंगे वगैरह वगैरह। दूर से अम्मा देख भी आई कि बच्चों की मम्मी बिलार उन बच्चों के साथ ही है सुरक्षित हैं बच्चे। इतने पर भी मन नहीं माना और दूध का कटोरा ले पहुंची बिलार परिवार के पास। देखते ही तीनों बच्चे और बिलार पास आ गये। पहचान गए। विचार हुआ कि वापस इनको ले चलूँ लेकिन घर में मची गंदगी की बात ने रोक लिया :)
कु.बि. पोस्ट लेखन भी अपना महत्व रखते हैं। लेकिन कोफ्त तब होती है जब कु.बि. की तरह मनुष्य भी झगड़ने लगते हैं....तब ऐसे में कु.बि. खटकता है :)
रोचक लेख ...
ReplyDeleteव्यक्त कर उदगार मन के ..कविता बहुत अच्छी लगी ..मगर भारतीय नागरिक की टिप्पणी भी गौर करने योग्य है ...
शीघ्र स्वास्थय लाभ करे ...शुभकामनायें ...!!
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
ReplyDeleteएक उम्दा ब्लॉग पोस्ट और साथ ही एक बोनस कविता प्यारी !
ReplyDeleteभूल सुधार = "के चलते ख़रगोश"
ReplyDelete@सतीश जी ,
ReplyDeleteकल की किसी बात की और तो संकेत नहीं कर रहे ! ;)
बिल्लियां पालना कुत्ते पालने से आसान है फिर भी अपने देश में बिल्ली पालने का रिवाज़ नहीं है। हमें कुत्ते ही पालने ज्यादा अच्छे लगते हैं।
ReplyDeleteइस बात की सोहरत न केवल अपने देश में पर साउथ अफ्रीका में भी। वहां एक बार में उसकी महिला साकियः बताया कि हिन्दुस्तानी, बिल्लियों से क्यों डरते हैं।
@2866194576602515826.0
ReplyDeleteधन्यवाद, उन्मुक्त जी। एक सटीक और बढ़िया लिंक ब्लॉग वैल्यू बढ़ा देता है
दरअसल ब्लोगर्स सिर्फ गलतफहमिया पालते है इसलिए बिल्ली पालन को उचित स्थान नहीं मिला ब्लोगिंग में.. पर लगता है आप उन्हें उनका हक़ दिला के ही रहेंगे..कविता तो उम्दा है ही..
ReplyDeleteएक और बात.. सोनी मोनी नाम की दो जुड़वाँ बहने हमारे मोहल्ले में ही रहती थी.. और हमारा उन पर क्रश भी था.. आज फिर से याद आ गयी.. :)
आप स्वस्थ होकर ब्लॉग जगत की शोभा फिर से बढ़ा रहे हैं यह देखकर और पढ़कर अच्छा लगा ,हमेशा की तरह यह पोस्ट भी आपका सार्थक विवेचना के साथ कुछ अच्छा ढूँढने का प्रयास भी कर रहा है | धन्यवाद और शुभकामनायें |
ReplyDelete@6585025304007789032.0
ReplyDeleteसतीश पंचम जी, यह प्रवीण की पोस्ट है, अत: ज्यादा कहना नहीं चाहूंगा। पर मेरा भी मानना है कि कुकुर पालना ज्यादा सरल है। सैर को निकलता हूं तो आस-पास भी कुकुरहाव ज्यादा नजर आता है। बिल्लियां तो मात्र प्रतिद्वन्दिता को एक आयाम देने आती हैं।
पर कुबि लेखन तो मात्र अतिसाधारणता को सभ्य नाम देना भर है। जो हम किये जा रहे हैं।
प्रवीण जी ,
ReplyDeleteसोनी मोनी के पालनहार बनने पर बधाई .
पशु पालन तो सनातन से चला आ रहा है अब आप भी पशु पालक हो गये एक बार फ़िर से बधाई .सोनी मोनी का सरनेम क्या रखा आपने . गोलू पान्डे या बन्दर पान्डे की श्रंखला तो आगे बडाने का इरादा तो नही
@Arvind Mishra जी,
ReplyDeleteमेरे कमेंट के आलोक में कहीं आप कल साईब्लॉग पर चली चर्चा को लेकर शंकित तो नहीं हो गए :)
मेरा मानना है कि आपकी पोस्ट के बहाने एक स्वस्थ बहस दनदनाती हुई चल रही है वहां ....मैं भी मनोविज्ञान का छात्र रहा हूँ और विषय को समझने के कारण काफी रूचि से आपकी पोस्ट पढ़ रहा था और कमेंट भी लिखा उसी हिसाब से। अन्यथा न लें।
कु.बि. पोस्टों से मेरा तात्पर्य ब्लॉगजगत में एक दूसरे पर लिखी जानी वाली धत्कर्मात्मक पोस्टों से है कि जब लोग एक दूसरे के प्रति असम्मान प्रदर्शित करने के लिए कुकुर बिलार को लेकर पोस्ट दर पोस्ट लिख रहे होते हैं और पानी पी पी कर एक दूसरे को गाली देते हैं...उस ओर मैंने इंगित किया था न कि आपकी पोस्ट की तरफ।
पिछले दिनों कई इस तरह की कु.बि. पोस्टें देखी...आधी अधूरी पढ़ी और निकल लिया वहां से। पढ़कर लगता था मानों उपमा, अलंकार, समास आदि सब का उपयोग लोग एक ही साथ कर लेना चाहते हों....हत्त तेरे की धत्त तेरे की...वगैरह वगैरह।
और कोई बात नहीं है। कृपया अन्यथा न लें
ज्ञान जी,
ReplyDeleteव्यवहारिक तौर पर कुकुर पालना बिल्ली पालने के हिसाब से आसान तो है लेकिन मैं बहुत डरता हूं इस प्राणी से।
दरअसल कई साल पहले मेरे इलाके के एक शख्स के यहां कोई कुत्ता पाला गया था। कुत्ते की सेवा टहल भी होती थी...इंजैक्शन या दवाईयां जो कुछ समय समय पर लगवाया जाता था वह सब किया जाता था कुत्ते के लिए।
लेकिन एक दिन एक घटना हुई कि जब उनके घर का एक बंदा शेविंग करने के जस्ट बाद बैठा था तभी आकर उस कुत्ते ने उस शख्स के गाल चाट लिया और उसी दौरान संक्रमण या ऐसा ही कुछ हुआ।
कुछ समय बाद बंदे मे रेबीज के लक्षण पाए गए और उसे बचाया न जा सका।
यह घटना मेरे अंदर कुत्तों के प्रति एक तरह का पूर्वाग्रह सा रखे हुए है या कहें घिन की ओर ले जाती है। तब से कहीं कुत्ता आदि देखने पर बिदक जाता हूँ :)
बाकी, तो पोस्ट के मूल भाव को मैं समझ रहा हूँ। मेरे भी बच्चे जिद करते हैं कि तोता पालना है ये लाना है वो लाना है, लेकिन मै ही नकार जाता हूँ। पता नहीं कब मेरे अंदर प्राणी प्रेम जगेगा :)
प्रवीण जी खुशकिस्मत हैं कि उन्हें बिल्लीयाँ मिल गईं हैं...अब बच्चे दिक न करेंगे वरना जब बच्चे जिद कर लेते हैं तो ....उफ्....सारा घर सिर पर उठा लेंगे :)
हम इन्सान हर कृत्य में कमी ढूँढने में समर्थ हैं, संस्कृत निष्ठ नाम रखने से अवमानना का लांछन लगने की वास्तविक सम्भावना है सो इन मूक बहनों का नाम सही ही रखा है ! इन जीवों की प्यार और स्नेहमय दुनियां में आप सानंद रहेंगे ऐसी मेरी आशा है ! भाई ज्ञानदत्त जी जल्द स्वास्थ्यलाभ करें, हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteआपकी कविता ने आश्चर्यचकित किया है !
सादर शुभकामनाएं !
सोनी मोनी की जोडी बहुत सुन्दर दिख रही है।
ReplyDeleteबिल्ली पालना भी आसान है, बस गंदगी वाली प्राब्लम ज्यादा रहती है।
ज्यादातर बिल्लियां घर में ही और छुपी हुई जगहों पर हगती मूतती हैं और पूरे घर में तेज बदबू फैल जाती है।
प्रणाम
SIR KAM LOG SAMJHE HONGE, PAR ME SAMJH GAYA AAPKA BILI ME LIKHNE KA ISAARA?????
ReplyDeleteसोनी मोनी के आगमन पर बधाई. चार पांच दशकों पूर्व की बात है. भारतीय बोलियों पर शोध कर रही एक अमरीकी महिला नें हमें सयामीस बिल्ली के बच्चे दिए थे.. दूध के ऊपर ओवलटिन छिड़क कर देना पड़ता था और ब्रेड पर चीस. दो महीने के बाद हमने अपने बॉस को दे दिया. उन्हें पालने की हमारी औकात नहीं थी.
ReplyDelete@1561092205443017609.0
ReplyDeleteपहले ही दिन से घर के हर कोनों में निरीक्षण चल रहा है इन मालकिनों का । अन्वेषणात्मक प्रवृत्ति तो निश्चय ही सीखने योग्य है । अब पहचानने लगी हैं तो आते जाते स्वर बदल प्रेम प्रदर्शन में भी नहीं चूकती हैं ।
@1098400716385793049.0
ReplyDeleteइन बिल्लियों के बारे में पशुता जैसा तो कुछ दिखा ही नहीं । सामान्य सा मानवीय जीवन, बस गूढ़ चिन्तन के बिना । पर यदि मनुष्य का चिन्तन ही पाशविक हो जाये तो काहे का मानव । उससे तो श्रेष्ठ हमारी बिल्लियाँ ।
@8895299876267201337.0
ReplyDeleteपर आन्तरिक मानसिक ऊष्मा को व्यक्त न करना कदाचित हमारी आत्मा को कितना कचोटेगा, इसका भान नहीं होता हमें ।
pyari billiyan ...pyari post...pyare comments..
ReplyDeleteहमारे एक देशी मतलब भारतीय मित्र की एक अंग्रेजी गर्ल फ़्रेंड थी, और फ़िर उन्होने उसको एक बिल्ली गिफ़्ट की जो गर्ल फ़्रेंड के साथ उनके ही घर में शिफ़्ट हो गयी। फ़िर जब वो एक महीने के लिये भारत गये और उनकी गर्ल फ़्रेंड अलग शहर में थी तो हमें बिल्ली असल में बिलौटे की जिन्मेवारी सौंपीं गयी।
ReplyDeleteबिल्ली पालना आसान है क्योंकि उन्हे कुत्तों की तरह सैर पर ले जाने का झंझट नहीं होता। फ़िर अगर उनकी ठीक ट्रेनिंग हुयी हो तो घर भी गन्दा नहीं करते। शुरू में थोडा अजीब लगा और मैं उसे अपने कमरे से बाहर लिविंग रूम में सुलाता था, फ़िर एक दिन देखा तो वो दरवाजे के बाहर कूं कूं कर रहा था आधी रात को तो अपने कमरे में बुला लिया।
समस्या ये कि बिलौटा बडा सजग था, हम जरा सी भी करवट लेते और वो जमीद से कूदकर हमारे बिस्तर पर, फ़िर हम कहते कि दैट्स इट, अब तुम कमरे के बाहर जा रहे हो। बिल्ली जब मन लग जाती है तो जमीन पर लोट कर अपने पेट/बैली को दिखाने लगती है, लोग कहते हैं कि इसका अर्थ है कि वो आप पर भरोसा कर रही है। हमारे बिलौटे ने भी ये काम ७-८ दिन बाद शुरू किया। उसके बाद, स्कूल से घर आने पर अगर उसके साथ न खेलो, तो पास में आकर आपके पैर को दांतो से हल्के से छूकर दूर भाग जाता था कि आप उसके साथ खेलें।
फ़िर हम भी उसे पकड्कर जकड लेते थे, हिलने भी न देते थे, फ़िर २-३ मिनट में परेशान होकर छूटकर दूर भाग जाता था, लेकिन फ़िर थोडी देर में वापिस आ जाता था। आज उसकी याद आ गयी, कल मित्र को फ़ोन करके उसका हाल चाल पूछेंगे।
@7068705715755176918.0
ReplyDeleteगाय, कुकुर और अब बिल्ली, तीनों पालने के बाद यह निष्कर्ष निकाल पा रहा हूँ कि तीनों ही प्यार को समुचित समझते हैं, बिना वाह्य रूप से व्यक्त किये । आप उनकी आँखों में प्यार से देखिये, वो आप से दुलराना प्रारम्भ कर देंगे । आप क्रोध में हो तो दूर बैठ आपके क्रोध ठंडा होने तक प्रतीक्षा करेंगे । आप व्यथित हैं तो आपको ढाढ़स बँधाने आप को प्यार से चाटने लगेंगे ।
यह देखकर तो लगता है कि यदि हम भी ऐसे निश्छल हों तो संभवतः एक दूसरे के मन की बात समझ सकते हैं ।
@2944321784461839860.0
ReplyDelete# Neeraj Rohilla बहुत जानदार-शानदारश्च संस्मरणात्मक कमेण्ट। ब्लॉग पोस्ट का ध्येय यही होता है? नहीं?
@1225511979367637291.0
ReplyDeleteप्रकृति का नियम है (ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम) कि ऊष्मा सदैव उस दिशा में जाती है जिसस दिशा में समग्र अव्यवस्था न्यूनतम हो । व्यथा को व्यक्त करना संभवतः मेरी आन्तरिक अव्यवस्था न्यूनतम करने के लिये प्रकृति का आदेश भर हो ।
@2866194576602515826.0
ReplyDeleteघर के अन्दर के लिये बिल्ली, बाहर के लिये कुत्ता, स्वास्थ्य के लिये गाय तो पाली ही जा सकती है ।
कल एक परिचीत के यहाँ जाना हुआ, उन्होने कभी बहुत से प्राणी पाले थे. बिल्ली भी उनमें एक थी. हाल ही में उनका एक तोता मर गया तो दुखी थे.हमसे पूछा कुछ पालते क्यों नहीं? जवाब दिया ये जानवर जल्दी मरते है, पीछे दुख छोड़ जाते है. बिछड़ने के दूख के डर से नहीं पालते.
ReplyDeleteबिल्लियों की बधाई. दुध दही सलामत रहे :)
@8106913750818420772.0
ReplyDeleteहम गलतफहमियाँ न सिर्फ पालते हैं वरन उन्हें सयत्न अपने अहंकार से पोषित भी करते रहते हैं । मिलता कुछ नहीं है । पशु पालने में कम से कम प्रेम तो मिलता है ।
@8106913750818420772.0
ReplyDeleteजुड़वा बहनों पर तो क्रश घातक था भी । आपको यादों के कुयें में ढकेलने का कोई मन्तव्य नहीं था । अब कहाँ हैं वो, यदि न मालूम चले तो इसी फोटो से मन को सांत्वना दे दें ।
@221773599098724258.0
ReplyDeleteगाय, कुत्ते और अब बिल्ली । एक गुण विकसित हो रहा है पशुपालन का । उनका भी एक संसार है, संवाद शब्दों का ना भी हो फिर भी बतिया लेते हैं उनसे ।
निशान्त जी ने डरा दिया है सोरेन कीर्केगार्ड के अनमोल वचन पढ़ा कर ।
01 – मुझपर लेबल लगाते ही तुम मेरा खंडन करने लगते हो.
अब बताइये कोई सरनेम रखकर सोनी,मोनी का खंडन कैसे किया जाये । आप ही सरनेम बताइये, वैसे दोनो शेर की मौसी हैं ।
@6547372669386400775.0
ReplyDeleteबच्चों को टालने से कम कष्टकारी है बिल्लियों को पालना ।
@2526188061862409517.0
ReplyDeleteएक के ऊपर सुनहरे धब्बे थे अतः उसका नाम रखा गया सोनी । अब सोनी की बहन मोनी ही होगी ।
@8694880410736742389.0
ReplyDeleteअभी उत्पात मचाना प्रारम्भ नहीं किया है । यदि सिखाया जाये तो नियत स्थान पर ही नित्यकर्म करती हैं । कुछ वीडियो देखकर हिम्मत बँधी हुयी है ।
@3435590179335503710.0
ReplyDeleteहमारी अभी तो दूध रोटी में मगन हैं । मशरूम को चिकन के धोखे खिला दिया तो खुश हो गयीं । माँस, मदिरा तो हम नहीं खिलायेंगे ।
@3246405287438111957.0
ReplyDeleteऔर ब्लॉग पर आपकी प्यारी दृष्टि ।
@2944321784461839860.0
ReplyDeleteया तो कुछ न कुछ खेलती रहेंगी, नहीं तो विश्राम करेंगीं । आप नहीं खेलेंगे तो कई प्रकार से आपको रिझायेंगी । पूर्णतया नया अनुभव है ।
@4293769540831089191.0
ReplyDeleteदूध तो अभी तक बचा है क्योंकि बच्चे अपनी तरफ से पिलाने में लगे रहते हैं ।
बहुत बढ़िया पोस्ट. कविता भी गज़ब की.
ReplyDeleteबिल्लियाँ दिखने में बहुत सुन्दर हैं. मेरे घर के पास ही एक परिवार है. उनके घर में ढेर सारी बिल्लियाँ हैं. जब आफिस के लिए निकलता हूँ तो रोज सबेरे मिल जाती हैं. इच्छा तो होती है कि बैठकर उनसे बात कर लेता. बहुत प्यारी दिखती हैं. कई बार सोचा कि घर में मैं भी ले आऊँ लेकिन ऐसा हो नहीं सका. शायद एक-दो वर्ष बाद ऐसा कर सकूँ.
प्रवीण जी बिल्लियां बहुत प्यारी लग रही हैं देखते ही उठाने का मन कर रहा है। बिल्ली का आगमन तो बहुत शुभ हुआ आप को कवि बना दिया…सात में से गाय अब कितनी शेष हैं, उनके दर्शन भी तो करवाइए
ReplyDelete@5330603502364745840.0
ReplyDeleteऑफिस जाते समय और आते समय दरवाजे पर उपस्थित रहती हैं दोनों । अभी टिप्पणी लिखते समय ब्लॉग निहार रहीं हैं दोनों ।
@358391699427096224.0
ReplyDeleteझाँसी में घर बहुत बड़ा था, वहाँ पर सात गायें और दो कुत्ते थे । बंगलोर में फ्लैटनुमा घर में केवल एक कुत्ते को ही लेकर आ पाये । गायों को योग्य पालकों को सौंप आये ।
बिल्लिओं को बधाई दीजियेगा....:)
ReplyDeleteबिल्लियों की खूबसूरती पर एक गीत याद आ गया है...
बिल्लो रानी कहो तो अपनी जान दे दूँ....
दूसरा गाना याद आया...सोनी और मोनी की है जोड़ी अजीब....
आपकी कविता तो basssssssssss कमाल है.. !!
ऊपर के पोस्ट (बिल्ली पालन) के विरुद्ध कुछ लिखा तो कहेंगे कैसे कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ रहा है!
ReplyDeleteअगर कुछ न कहा चुप रहा तो कहते हैं
व्यक्त कर उद्गार मन के,
क्यों खड़ा है मूक बन के ।
दोनों ही पोस्ट पढा। नीचे वाली बहुत अच्छी लगी।
अभी तो सिर्फ पोस्ट पढ़ी है. टिप्पणियाँ पढकर बाद में टिप्पणी करुँगी. मैं अभी-अभी कली के दुःख से उबरी हूँ. अतः ईश्वर से प्रार्थना है कि इन दोनों को लंबी (मतलब इनकी औसत आयु जितनी) आयु प्रदान करे.
ReplyDeleteमैंने मेरे घर में बचपन से भैंस, बकरी, खरगोश, सफ़ेद चूहे, तोता और कुत्ते पले देखे हैं, पर बिल्लियाँ नहीं. क्योंकि मेरे भाई को बचपन में एक बिल्ली ने गला पकडकर घायल कर दिया था. इसलिए अम्मा हमेशा बिल्ली विरोधी बनी रहीं. मेरे हॉस्टल में जरूर एक बिल्ली का बच्चा हमलोगों से घुलमिल गया था. जब हमलोग धूप सेंकने बैठते थे तो हमसे सटकर बैठता था और हाथ के नीचे सर कर देता था मानो कह रहा हो कि "सहलाओ" ...इसलिए मैं तो मानती हूँ कि सभी जानवर प्रेम की भाषा समझते हैं...बस आदमी भूल गया है.
@2795860678066049962.0
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी,
एक्दम सही, वैसे भी आजकल मेरा लिखना बन्द है तो लम्बी टिप्पणियों का ही सहारा है कुछ लिखने के लिये :)
"कुत्तों-बिल्लियों पर समग्र मानवीयता से पोस्ट लिखना कहीं बेहतर ब्लॉगिंग है, बनिस्पत मानवीय मामलों पर व्युत्क्रमित प्रकार से!"
ReplyDeleteबहुत जानदार-शानदारश्च पोस्ट ।
पहले बड़े-बुजुर्गों से सुनता रहा और फिर बाद में पारंपरिक चिकित्सकों से कि बिल्ली की सांस कभी भी मनुष्य को नहीं लेनी चाहिए| बिल्ली के शरीर से निकली हुयी सास बहुत से रोगों की जनक समझी जाती है| यही कारण है कि हमारे देश में बिल्ली पालना लोकप्रिय नहीं है| प्राचीन ग्रंथो में भी बिल्ली के कारण मनुष्यों को होने वाले बहुत से रोगों का वर्णन है| पता नहीं हमारा आधुनिक विज्ञान इसकी व्याख्या करता है या नहीं पर मुझे लगता है कि इस पर विचारना जरुरी है| विशेषकर जब हम बच्चों को बिल्लियों के पास रखते हैं|
ReplyDeleteहो सकता है कि बर्गर खाने ने आजकल की बिल्लियों में ऐसे दोष न होते हों| ;)
सबसे पहले तो यह कह दूं कि इस पोस्ट ने मुझ मजबूर किया कि आधी रात में हिंदी में लिखकर कमेंट दूं ;)
ReplyDeleteनहीं तो अक्सर रात के एक-दो बजे रोमन में कमेंट लिख के खिसक लेता हूं ;)
जैसे ही शीर्षक देखा, इंट्रो पढ़ा, मुझे याद आ गया कि जब बचपन में अपनी बुआ जी के घर उनके गांव जाता था। तब वहां ढेरों बिल्लियां होती थीं। बड़ा ही अजीब लेकिन अच्छा लगता था। आज सोचता हूं कि कैसे बुआ हमारी इतनी बिल्लियों की देखरेख करती थी। उनके खानपान से लेकर साफ-सफाई तक्। हाल ही में ही फिर से उनके गांव जाना हुआ जब वे बीमार थीं तो पाया कि
एक भी बिल्ली नहीं। उनसे पूछा तो जवाब मिला कि अब कौन उन्हे देखेगा इसलिए सब चली गईं।
सच कहूं तो बिल्ली पालन से बुआ जी के माध्यम से ही परिचय हुआ था। वैसे यह सही है कि बच्चों को व्यस्त रखना है घर में ही कुत्ता या बिल्ली जरुर रखा जाए। बाकी जिस अलंकार में आपने शुरुआती लाइन लिखी है मस्त हैं।
कमेंट में देख रहा हूं तो सतीश पंचम जी और खासतौर से नीरज रोहिल्ला जी के कमेंट सही लगे।
"संवाद शब्दों का ना भी हो फिर भी बतिया लेते हैं उनसे" ---- ऐसा ही मौन लिए संवाद हमारा भी हुआ था जर्मन शैफर्ड के पपी के साथ ...कुछ दिनों का नन्हा पपी छोटे बेटे को तोहफे के रूप मे मिला था.. वैसे रियाद में पालतू जानवर पालने पर एतराज़ किया जाता है...खैर 15 दिन तक मासूम मूक प्राणी दोपहर ढाई बजे तक अकेला कैसी त्रासदी झेलता होगा...यह घर लौटने पर उसकी आँखों में पढ़ते तो कलेजा मुँह को आता.उसकी बोलती आँखों को देख कर दोनो बच्चे रुआँसे होकर कहते कि मम्मी प्लीज़ उसे गोदी ले लो वह अपनी मम्मी को मिस कर रहा है . अंत में उसे आँसू भरी विदाई के साथ वापिस लौटा दिया सौ रियाल का शगन भी दिया कि उस पर ही खर्च किए जाएँ....
ReplyDeleteप्रवीण जी, बढ़िया पोस्ट रही जी ये तो.
ReplyDeleteवैसे इतनी महँगी बिल्लियाँ ? मुझे पता नहीं क्यों अच्छी नहीं लगतीं पर आपकी पोस्ट कुछ दिमाग बदल रही है :)
काव्य भाव जबरदस्त रहा ....
@1095423311826400025.0
ReplyDeleteआपका गीत दोनों को सुना दिया है । मगन हो कभी हमें देखतीं, कभी स्क्रीन को ।
ये दोनों गाने भी गा दें तो हमारे साथ साथ सोनी मोनी भी लाभान्वित हो जायेंगी ।
पता नहीं, कहीं मैं इन दोनों को ब्लॉगिंग की आदत तो नहीं डलवा रहा हूँ ।
@6043535751138392472.0
ReplyDeleteआपने दोनों भागों के अन्तर्निहित सम्बन्ध को समझ लिया, बधाई । ऊष्मा को मन में रखने से श्रेयस्कर मानता हूँ उसे व्यक्त कर देना । विरले ही होंगे जो ऊष्मा भी पचा जाते होंगे ।
@7200547098127773879.0
ReplyDeleteआराधना जी, सुविधा का उपयोग कम, दुरुपयोग अधिक होता है । उन्नत सोचने की शक्ति मनुष्य को देकर भगवान संभवतः भविष्य की कल्पना न कर पाये होंगे । यहाँ तांडव मचा देख, क्षीर सागर में नींद खुल जाने के बाद भी सोने का बहाना कर रहे होंगे ।
अरे कोई तो उन्हें बताये,
"देख तेरे संसार की हालत, क्या हो गयी भगवान,
कि कितना बदल गया इन्सान "
@4422396012383437319.0
ReplyDeleteइण्टरनेट खंगाला था तो कुछ एलर्जी के बारे में पढ़ा था । जहाँ हमारी साँसों में मोटरों और मिलों ने इतना जहर उड़ेल रखा हो, बिल्लियाँ क्या कर लेंगी भला ।
अभी तो बच्चों का खून ही बढ़ रहा है प्रसन्नता से । आभार है बिल्लियों का ।
@5065228500494048363.0
ReplyDeleteअभी तक घर की दैनिकचर्या में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं किया है । एक जिम्मेदार सदस्य की भाँति अपने आप को व्यवस्था में ढाल लिया है । आपकी बुआ जी के अनुभव का लाभ मिल जाता तो इन दोनों का भी भविष्य बन जायेगा ।
@299912119579010482.0
ReplyDeleteइनकी आँखें ही इनकी भाषा है । सब कह डालती हैं सच सच ।
@5114830139343681069.0
ReplyDeleteबाद में दुकानदार ने बताया कि और भी मँहगी 50000 रु की रेंज में मिलेंगी पर बाहर से मगानी पड़ेंगी । हम तो देशी में ही खुश हैं ।
कविता ने तो मंत्रमुग्ध कर लिया और पोस्ट....उन दिनों में ले गयी जब गाँव में दर्जन भर पालतू बिल्लियों से हम घिरे रहते थे...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पोस्ट ....
बिलारों की मुग्धता से उबर नहीं पा रहे थे कि कविता ने और बाँध लिया. शानदार पोस्ट.
ReplyDeleteकविता के बारे में तो कुछ कहना भूल गयी थी... मुझे ये प्रबोधात्मक कविता बहुत अच्छी लगी ... !
ReplyDeleteBahut sundar chitra aur lekh donon hee-----vaise bhee kaha jata hai ki palatoo jeev hamare upar ane valee prakritik apdaon ko khud jhel jate hain.
ReplyDeletePoonam
"बालमन पशुओं के प्रेम व आत्मीयता से इतने ओतप्रोत रहते हैं कि उन्हें ब्लॉगिंग के सौन्दर्यबोध का ज्ञान ही नहीं।"
ReplyDeleteडायलौग पसंद आया. बालमन की बात ही क्या है. कुत्ते तो हमें भी बुरे नहीं लगते हाँ कुत्तों को हम शायद ही पसंद आते हों. वैसे बचपन में बिल्लियों ने भी खूब नोंचा है.
कुकुर बिल्ली की पोस्ट बहुत अच्छी लगी \अभी कल ही एक न्यूज चैनल पर दिखा रहे थे की आजकल बिल्ली पालने का फैशन हो गया है और लोग उसको खरीदने के लिए ५ से ५० हजार रूपये तक खर्च करने लगे है अपने देश में |
ReplyDeleteआपकी सोनू मोनू बहुत अच्छी लगी |हमारे पास भी एक कुकुर है जिसका नाम जूही है और उसकी उम्र अब १८ साल की होने को आई है पामेरियन है बहुत ही शांत स्वभाव की है अब अशक्त हो चली है उसकी खासियत है की बिल्ली का नाम लो तो डरती है और अगर बिल्ली सामने खड़ी है तो दोनों एक दूसरे को प्यार से देखती है |
कविता बहुत ही पसंद आई |खाकर ये पंक्तिया |
यहाँ दुविधा जी रही है,
व्यर्थ की ऊष्मा भरी है,
अगर अन्तः चाहता है, उसे खुल कर चीखने दे ।
व्यक्त कर उद्गार मन के ।।४।
aur ha aap dhoklo me hri sbjiya dalkar use aur paoushtik bna skte hai .is sujhav ke liye dhnywad
आपके घर में इन नई सदस्याओं के आगमन पर शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकुत्ते बिल्ली हमारे परिवार के लिए तो बेहद महत्वपूर्ण हैं।
वैसे बिल्ली शाकाहारी प्राणी नहीं है।
घुघूती बासूती
@ बिल्लियां तो मात्र प्रतिद्वन्दिता को एक आयाम देने आती हैं।
ReplyDelete--- इस बात से सहमत हूँ ..
वहीं कुत्ता वफादारी का पर्याय है ..
'बुर्ज्होम' से आज तक इसका प्रमाण देखा जा सकता है !