यह स्लाइड-शो है मधुगिरि के चित्रों का। पिकासा पर अप-लोड करना, चित्रों पर कैप्शन देना और पोस्ट बनाना काफी उबाऊ काम है। पर मैने पूरा कर ही लिया!
ललकारती-गरियाती पोस्टें लिखना सबसे सरल ब्लॉगिंग है। परिवेश का वैल्यू-बढ़ाती पोस्टें लिखना कठिन, और मोनोटोनी वाला काम कर पोस्ट करना उससे भी कठिन! :-)
चर्चायन - ललकार छाप ब्लॉगिंग के मध्य कल एक विज्ञान के प्रयोगों पर ब्लॉग देखा श्री दर्शन लाल बावेजा का – यमुना नगर हरियाणा से। वास्तव में यह ब्लॉग, हिन्दी ब्लॉगिंग में आ रही सही विविधता का सूचक है! यहां देखें मच्छर रिपेलेंट लैम्प के बारे में।
काश बावेजा जी जैसे कोई मास्टर उस समय मुझे भी मिले होते जब मैं नेशनल साइंस टैलेण्ट सर्च परीक्षा के लिये प्रयोग की तैयारी कर रहा था – सन् १९७०-७१ में!
गज़ब के चित्र. इस दुर्गम दुर्ग को एक बार भी जीता कैसे गया?
ReplyDeleteचित्र सुन्दर है |
ReplyDeleteबावेला जी का विज्ञान ब्लॉग देखकर तो मजा आ गया | बहुत बढ़िया व् काम का ब्लॉग है |
मेरी उपरोक्त टिप्पणी में बावेला जी की जगह बावेजा जी पढ़ें
ReplyDeleteसुन्दर तस्वीरें ...
ReplyDeleteविज्ञानं ब्लॉग रोचक लगा ...!!
बढिया चित्र हैं।
ReplyDeleteरही ललकार छाप ब्लॉगिंग की बात कि इस तरह की ब्लॉगिंग काफी सरल है तो इस पर सहमत हूँ। अभी जब ब्लॉगवाणी रूका हुआ है तो पिछले तीस दिनों की पोस्टें सेलेक्ट कर शीर्षक देख रहा था और सब से ज्यादातर वही ललकार टाईप।
यहां एक चीज और नोटिस की है कि यदि आपके शीर्षक में ब्लॉगिंग या ब्लॉग जैसा एकाध शब्द आ जाय तो पढ़ने वालो का जमघट लग जायगा लेकिन किसी विषय से संबंधित कोई सहज शीर्षक लगाया जाय तो कम लोग पढ़ते हैं।
जाहिर है लोगों को मजमा लगाना पसंद है और मजमें में शामिल हो देखना कि भई क्या हो रहा है। यह एक तरह की झगड़ही ब्लॉगिंग का दौर सा लग रहा है।
यदि मुझे ललकारती फुफकारती और मजमा जुटाती पोस्टों की सहज-ब्लॉगिंग के क्रियाकलापों से तुलना करनी हो तो मैं गेहूँ की दंवाई करते थ्रेशर से तुलना करूंगा। ये क्रियाकलाप एक तरह की थ्रेशर ब्लॉगिंग ही हैं।
थ्रेशर से भूसा, डंठल आदि को पंखे के जरिए उड़ा कर एक जगह ढेर सा लगा दिया जाता है....भूसे का उंचा डीह बन जाता है और देखने में लगता है कि यही असल सत्व है लेकिन असली चीज तो थ्रेशर के पास वाले हिस्से में होता है जहां कि गेहूँ के दाने अपने वजन के कारण जमा होते जाते हैं।
जबकि हल्की चीजें दूर एक जगह जमा होती जाती हैं।
सहज ब्लॉग पोस्टों को मैं वहीं गेहूँ के दाने समझूंगा और ढेर लगे, मजमा जुटाती पोस्टों को भूसे का ढेर।
बाकि तो भूसे के ढेर का भी अपना महत्व है ही...बिना उसके तो गाय भैंसों का भी गुजारा नहीं हो पाता.... तो ....जरूरत तो भूसे की भी है ही।
चलने दिजिए थ्रेशर ब्लॉगिंग....यह भी एक फिनोमिना है :)
बहुत बढिया ..मजेदार !!
ReplyDelete@3724281443423012824.0
ReplyDelete>>>सतीश पंचम
शायद थ्रेशर्ब्लॉगिंग नौ लोगों को आकर्षित करती होगी तो एक को रिपेल भी करती होगी। पर जहां मामला भाषा के इण्टरनेटीय विकास का है तो थ्रेशर्ब्लॉगिंग महत्वपूर्ण है। बहुत कुछ वैसे जैसे चन्द्रकान्ता सन्तति हिन्दी के लिये किसी जमाने मे रही होगी!
@3724281443423012824.0
ReplyDeleteथ्रेशर से तुलना बड़ी ही उपयुक्त है । पर गेहूँ मात्र से ही आनन्द नहीं आयेगा । गेहूँ को साफकर, धोकर, सुखाकर, पीसकर, माड़कर और अन्ततः सेंककर रोटी खाईयेगा, घी और गुड़ के साथ, तब आयेगा असली आनन्द । भूसा भी व्यर्थ नहीं जायेगा, वह भी अन्ततः खाया ही जायेगा ।
ब्लॉग विचार विनिमय का एक स्थान है । जितने अधिक विषय होंगे उतना ही सुन्दर । नीम के तेल वाली पोस्ट पढ़कर अब एक प्रयोग होगा और यदि ठीक ठाक चला तो स्वास्थ्य नाशक गुडनाइट रिपेलेन्ट को तड़ीपार घोषित कर दिया जायेगा ।
ReplyDeleteबच्चों को भी ब्लॉग पसन्द आया ।
@प्रवीण पाण्डेय
ReplyDeleteगुड़ के साथ रोटी खाना तो मेरा भी एक प्रिय शगल है, कभी कभी घर मे बनी सब्जी को साईड में रख, गुड से ही रोटी चबा चबा कर खाता हूँ....एकदम स्वादिष्ट लगता है।
अपने ऑफिस में एक दिन टिफिन में गाँव वाला लाल गुड़ लेकर गया था। दोपहर में जब खाने बैठा तो जिसने अब तक नहीं चखा था उसने भी रोटी के साथ उसका आनंद लिया था। नतीजा, अगला एक हफ्ता गंवई गुड़ और रोटी के नाम रहा :)
पाण्डेय जी,
ReplyDeleteये मधुगिरि है कहां? नाम तो सुना है। इलाहाबाद के आसपास ही है क्या?
ग्लोबल वार्मिंग की छाया तले चीज़ें सिकुड़ रही हैं - जैसे दुनिया और न्यूक्लियस परिवार। इधर हमारा दायरा बड़ा हो रहा है सोच का - पहचान का - विचार-क्षेत्र बड़ा हो रहा है। क्या यह समझें कि विज्ञान के - भौतिकी के नियम दुनिया पर लागू नहीं होते? परिवारों पर? या सोच और ख़्यालात जैसी चीज़ें - जो भौतिकी के नियमों के अनुसार ही ताप बढ़ने के साथ बढ़ती जाती हैं - वे भौतिक हैं?
ReplyDeleteआपको सक्रिय देखना सुखद है। आश्वस्त हुए।
चित्रों के लिए आभार - प्रवीण जी का, आपका आभार उबाऊ श्रम के लिए।
गज़ब के चित्र!
ReplyDelete"दँवइया" ब्लॉगिंग या "थ्रेश-ब्लॉगिंग" या "थ्रेशर-ब्लॉगिंग" आज का रत्न घोषित हुआ। बहुत सटीक पारिभाषिक शब्द।
ReplyDeleteअब चलते हैं और ब्लॉग-सागर-मंथन पर। देवासुर संग्राम से कतरा कर निकलेंगे, अगर ज़रूरत पड़ी - अपने आभिजात्य के दम्भ में; और समय, संस्कारों व ऊर्जा के सम्मान में भी।
कभी-कभी उबाऊ काम नहीं करने से भी काम चल जाता है।
ReplyDeleteकभी-कभी कर भी लेना चाहिए!
अब जैसे योर कमेंट विल बी पबलिश्ड आफ़्टर अप्रूवल, मैं नहीं देखता, काफी उबाऊ काम है!
कभी-कभी देख भी लेता हूं!
कभी-कभी उबाऊ काम नहीं करने से भी काम चल जाता है।
ReplyDeleteकभी-कभी कर भी लेना चाहिए!
अब जैसे योर कमेंट विल बी पबलिश्ड आफ़्टर अप्रूवल, मैं नहीं देखता, काफी उबाऊ काम है!
कभी-कभी देख भी लेता हूं!
@8133067036818587236.0
ReplyDelete>>मनोज कुमार
जी हां! और कमेण्ट मॉडरेट करना; वह भी तब जब ९९.९% टिप्पणियां आपको मात्र पब्लिश करनी हों, भी खासा उबाऊ काम है मनोज जी! :-)
@3644460633832815123.0
ReplyDelete>>>नीरज जाट जी
आप पिछली पोस्ट देखें नीरज जी, जिसका लिंक पोस्ट में है।
बंगलोर से लगभग 110 किमी की दूरी पर स्थित मधुगिरि तुमकुर जिले की एक सबडिवीज़न है।
खाली ब्लॉगिंग की बात हुई। कुछ टिप्पणी पर भी बात करते तो मज़ा आ जाता। चलिए मैं ही शुरु कर देता हूं।
ReplyDelete1. ललकारती-गरियाती पोस्टें लिखना सबसे सरल ब्लॉगिंग है।
---- इसी तरह से सरल टिप्पणी करना।
२. परिवेश का वैल्यू-बढ़ाती पोस्टें लिखना कठिन,
---- इसी तरह से पोस्ट का वैल्यू-बढ़ाती टिप्पणी करना।
और
३. मोनोटोनी वाला काम कर पोस्ट करना उससे भी कठिन!
--- बहुत कठिन टिप्पणी करना मतलब अपना वैल्यू-बढ़ाना ... नहीं?
@2919740918988386310.0
ReplyDelete>>>मनोज कुमार -निश्चय ही मनोज जी! सरल टिप्पणी हिंदी ब्लॉगरी मेँ,बकौल मसिजीवी, बहुत ओवरवैल्यूड कमॉडिटी है! और यह हर ओर खर पतवार की तरह फैली है! खरपतवार नहीँ, कहेँ तो गाजर घास की तरह!
@8154131089565154848.0
ReplyDeleteगुड़, कहते हैं कि, शरीर के अन्दर पहुँचे धुँये आदि के प्रदूषण को सोख लेने की क्षमता रखता है । कोंकण रेलवे के एक अभियन्ताजी ने मुझे यह बताया कि दिनभर चट्टानों की ब्लास्टिंग करने के बाद सायं को एक ढेली गुड़ खाने से वह दुष्प्रभाव निष्क्रिय होता था ।
बंगलोर का वायु प्रदूषण तो जीवन में बाद में आया, गुड़ का सोंधापन तो सदैव से ही खींचता रहा है, घी और रोटी के साथ ।
@3644460633832815123.0
ReplyDeleteनीरज जी, आप मधुगिरि को दक्षिण यात्रा की डायरी में लिख लें । अब लगता है कि हमें भी एक पहेली की श्रंखला प्रारम्भ करनी होगी । :)
बहुत बढ़िया चित्र. पिछली पोस्ट में मधुगिरी के बारे में जानना सुखद रहा. वहां पर फोटो की कमी खल रही थी. आज पूरी हुई. और ये 'ललकार छाप ब्लागिंग' बहुत मस्त टर्म निकाला गया है. कह सकते हैं यह टर्म ऑफ़ द डिकेड है....:-)
ReplyDelete@919628386617287533.0
ReplyDeleteग्लोबल वार्मिंग से चीजें बढ़ती ही हैं । घर तो सिकुड़ रहे हैं पर माता पिता की चिन्तायें बढ़ती जा रही हैं । ज्ञान बढ़ने से बेवकूफियाँ भी कम होती हैं ।
प्यार बढ़े, संसार बढ़े,
ब्लॉगों का आकार बढ़े ।
सिकुड़ें वस्तु सिकुड़ने वाली,
मेधा का व्यवहार बढ़े ।
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आप ऐसे ही हिंदी की सेवा करते रहें.
ReplyDeleteकभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
www.shiv-gyan.blogspot.com
@4105894810241158236.0
ReplyDeleteथ्रेशर ब्लॉगिंग का पहला नियम
भारी पोस्ट कम दूर जायेगी, हल्की पोस्ट दूर तक जायेगी । दूरी आनन्द की व्युतक्रमानुपाती है ।
उबाऊ काम ही ज्यादा सार्थक होते हैं।
ReplyDeleteस्लाईड शो बहुत ही बढिया बना है।
प्रणाम
@4688896512526095207.0
ReplyDeleteसच में, यह तो सोचा ही नहीं । प्रश्न का उत्तर ढूढ़ता हूँ ।
@7885166913662401061.0
ReplyDelete>> Shiv - आपके जैसे मूर्धन्य अललकारी ब्लॉगर मेरा हौसला बढ़ा रहे हैं; इस पर आपको धन्यवाद और मुझे बधाई! :)
वाह, चलो फोटो भी इंतजार के बाद आ ही गए.
ReplyDeleteकाम तो कठिन है फोटो अपलोड करने इत्यादी का ...
गले की kharash और उससे उपजे बुखार का नतीजा की सो नहीं पा रहा था और बैठ गया लैपटॉप खोलकर तो देखा की इतने बढ़िया तस्वीर सामने. शायद थोडा बेहतर फील कर रहा हूँ.
वैसे दूसरे टोपिक पर कहूँगा की हम सबको चटपटी चीजें पसंद हैं, इसीलिए चाट की दुकानों पर लाइन लगी मिलेगी और गाँधी केंद्र पर लोग मच्छर मारते मिलेंगे. यही हाल इधर ब्लॉग्गिंग में है. आप गाली दो, या ब्लॉग्गिंग के गुर सिखाती पोस्ट लिखो या फिर किसी की बुराई वाली पोस्ट लिखो या फिर ब्लॉग्गिंग के शीर्ष वाले खोजी नंबर इत्यादी दोगे तो कस्टमर अधिक आएगा ....:)
@3575077649293521948.0
ReplyDelete>> राम त्यागी - आप स्वास्थ्य लाभ जल्दी करें, शुभकामनायें। और आपके कहे से पूरी सहमति।
ब्लॉग्स में चर्चा और स्वस्थ विचार विमर्श कहीं से अनुचित नहीं। पर वह जब घिसे रिकार्ड की तरह बजने लगता है, तब लगता है कि कहीं ऊर्जा का क्षरण हो रहा है। खैर, जब ऊर्जा अधिक होगी तो क्षरण होगा ही!
अब यही देखिये कि जब पोस्ट पब्लिश की थी, तो सोचा था कि मात्र टिप्पणियां पब्लिश कर दूंगा, पर धीरे धीरे चर्चा में पड़ता गया! अब वह बन्द करता हूं। शायद कुछ दिनों के लिये कम्प्यूटर से दूर ही रहना चाहिये! :-(
@ज्ञान जी,
ReplyDeleteमेरे हिसाब से पोस्ट तो जरिया है या भूमिका है, चर्चा ही तो टोपिक को जीवंत बनाएगी, इसलिए मेरे हिसाब से चर्चा अहम् है.
चर्चा जारी रहनी चाहिए :)
पोस्ट देख कर लग रहा है स्वास्थ्य में कैसा सुधार है, प्रसन्नता हुई।
ReplyDelete@7408063757965148940.0
ReplyDelete2010 को पिछले दशक में डाला जाये या आने वाले में ।
@7885166913662401061.0
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर जाकर हिन्दी सेवा करने से क्रेडिट रतन नूरा ले जाते हैं । हिन्दी सेवा व ब्लॉग पर आमन्त्रण एक साथ कैसे संभव है ?
बहुत सुंदर, लेकिन अपलोड करने मै कोई कठिनाई नही आती हमे तो, हां चित्रों पर कैप्शन देना थोडा समय लेता है. धन्यवाद
ReplyDeleteओर अब तबीयत केसी है?
अच्छा संकलन
ReplyDeleteकई दिन बाद लौटा हूँ ,आशा है आप अब स्वस्थ होंगें.
ReplyDeleteज्ञानदत्त पाण्डेय जी
ReplyDeleteधन्यवाद जी
दर्शन
फोटो देख यह तो पक्का है अपन इस जन्म मे तो मधुगिरि नही चढ सकते
ReplyDeleteबढिया चित्र हैं।
ReplyDeleteचर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
चर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
बड़ी दूर तक गया।
लगता है जैसे अपना
कोई छूट सा गया।
कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
ख्वाहिश छीन ली सबकी।
लेख मेरा हॉट होगा
दे दूंगा सबको पटकी।
सपना हमारा आज
फिर यह टूट गया है।
उदास हैं हम
मौका हमसे छूट गया है..........
पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:
http://premras.blogspot.com
picasa par sabhi photos dekha, boss mann lalchaa raha hai jane ko..... lekin locha chhuttiyon ka hai :(
ReplyDeletedekhte hain, upar dhiru singh ji se ekdam hi asehmat hote hue yahi kahunga ki bhaiya apan to ja ke hi rahenge isi janm me....
vakai tasveerein aisi hain ki barbas hi kisi ko bhi lalach aa jaye vaha jaane ka..
baki aapne jo kaha ki "ललकारती-गरियाती पोस्टें लिखना सबसे सरल ब्लॉगिंग है। परिवेश का वैल्यू-बढ़ाती पोस्टें लिखना कठिन, और मोनोटोनी वाला काम कर पोस्ट करना उससे भी कठिन! :-) "
is se to 100 take sehmat ji. ib dekkho na, satish pancham ji ne kitne acche se paaribhashhit kiya hai ise. lekin bat vahi atak gai na ki bhusa bhi jaruri hai jeevan me ;) je alag baat hai ki aajkal bhusa hi jyada ho liya hai gehun kam ;) bataiye bhalaa...
स्लाइड शो ने तो दुर्गम दुर्ग की सैर बडी ही सरलता से करा दी। धन्यवाद।
ReplyDeleteबावेजाजी का ब्लॉग तो बहुत ही उपयोगी है। इसके लिए अतिरिक्त धन्यवाद।
क्या मस्त फोटोग्राफी है ..वाह!
ReplyDeleteफोटो बहुत अच्छी है। आपने गरियाने की बात कही। ब्लॉगिंग ही नहीं हर क्षेत्र में गरियाना आसान है। सॉल्यूशन देना कठिन। पत्रकारिता, खासकर हिंदी पत्रकारिता में तो यह जगह-जगह दिखाई देती है। अधिकारी, नेता, संसद, न्यायपालिका गरियाई जाती है, लेकिन शायद ही कोई अखबार गहराई से जानने या बताने की कोशिश करता है कि यहां लापरवाही इस तरह की है और इसका विकल्प यह है।
ReplyDeleteअच्छा किया आपने चित्रा में दिखा दिया...इतने में ही संतोष और तृप्ति पा ली हमने...अब कभी यहाँ गयी और अवसर मिला भी तो इसपर चढ़ने की न सोचूंगी...
ReplyDeleteस्लाईड शो की मेहनत...फिर उ पहाड़ पर चढ़ने की मेहनत...हम तो सोच सोच कर ३५० ग्राम करीब कम हो गये वजन में. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteLovely pics! Wonderful photography!
ReplyDeleteThanks Gyan ji, Praveen ji.
आपकी पोस्ट ने तो नहीं, अलबत्ता शिव जी की टिप्पणी ने मुझे भी अपने ब्लॉग की मार्केटिंग करने को मजबूर कर दिया. दो नई पोस्टें मारी हैं... नजरें इनायत हों... - वैसे, शीर्षक भी तगड़े रखे हैं :)
ReplyDeleteइंडली – देसी डिग का अवतार – क्या ये ब्लॉगवाणी चिट्ठाजगत् का विकल्प हो सकता है?
मैं बहुत अरसे से कहता आ रहा हूँ कि जब लाखों की संख्या में हिन्दी चिट्ठे होंगे, तो ब्लॉगवाणी व चिट्ठाजगत् का वर्तमान अवतार हमारे किसी काम का नहीं रहेगा. ऐसे में डिग, स्टम्बलअपॉन जैसी साइटें ही कुछ काम-धाम की हो सकेंगी
इंडली को ब्लॉगर ब्लॉग में कैसे जोड़ें?
अपने ब्लॉग में इंडली वोटिंग विजेट लगाकर आप अपने पाठकों को आपके पोस्ट को इंडली में साझा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.
@Raviratlami
ReplyDeleteजो कम से कम हो सकता था - मैने इण्डली का बटन लगा लिया है! :)
मधुगिरी की यात्रा स्लाईड शो से कर ली बावेजा जी का बडिया लैंप भी देक्ग लिया प्रयोग भी करूँगी इनके लिये धन्यवाद और कमेन्त्स मे भी बहुत कुछ जानकारी मिली ये हिन्दीवाणी पहली बार सुन रही हूँ पढ्ती हूँ क्या है। आप स्वस्थ हुयी बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
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