Friday, December 31, 2010

नैराश्य के हीरो

प्रिण्ट में दो लोगों का वन्दन चल रहा है। विकीलीक्स के श्री असांजे और कंट्रोलर एवम ऑडीटर जनरल श्री विनोद राय। ये हीरो हमें कोई नया पथ नया लक्ष्य नहीं दिखा रहे; केवल आसपास फैली सड़ान्ध और बजबजाहट की परत उघाड़ कर दिखा रहे हैं।

इनमें से कोई आने वाले समय को बदलने का ब्लू-प्रिण्ट नहीं जानता। इनकी जितनी सोचता हूं, उतना मन में नैराश्य उपजता है।

महारानी, युवराज, तिलकधारी/त्रिशूल वाले, लाल पट्टी वाले - कोई नहीं थे मेरे हीरो। दे डोण्ट इंस्पायर। एण्ड सो डोण्ट असांजे/विनोद राय।

क्या नहीं मालुम था कि सब बजबजा रहा है? क्या नहीं मालुम था कि राजनेता चरित्र-भ्रष्ट हैं? क्या नहीं मालुम था कॉरपोरेट-पोलिटीशियन-मीडिया-नौकरशाही लूटतंत्र का मधुर बेसुरा संगीत बजा रहे हैं कई दशकों से? बस फर्क यह है कि असांजे/राय छाप लोग बता रहे हैं और उसपर सोशल मीडिया ट्विट-ट्विट-ट्विटर कर रहा है।
फॉर्ब्स इण्डिया में श्री विनोद राय पर एक पन्ना
सोशल मीडिया यूजक (Social Media Users) बन्दे खाये-अघाये हैं। ही-ही-फी-फी में माहिर लोग। जब तक भ्रष्टाचार में सनसनी रहेगी, ट्विटियायेंगे। थक जायेंगे। फिर कोई नई मुन्नी बदनाम हाथ लगेगी तो नये रंग में आ जायेगे।

कहा जा रहा है कि नये दशक में बहुत कुछ लीक होगा। वाकई? कितना नैराश्य झेलेंगे हम हाशिये पर बैठे लोग? इसी नैराश्य से खेलते बाजार के खिलाड़ी जो उठापटक करेंगे, उससे तो कहीं मेरा गाढ़ी कमाई का प्रॉविडेण्ट फण्ड/बचत झर्र न हो जाये!

अगर ये कोई राह नहीं दिखाते तो ये नैराश्य के हीरो मेरे हीरो नहीं हैं!

और हां, नये दशक की मंगल शुभकामनायें!

13 comments:

  1. यह सही है कि नैराश्य के कोहरे ने रोशनी को रोका है। लेकिन रोशनी तो फिर भी है। बहुत लोग हैं जो छोटे छोटे ही सही अलाव सुलगाए बैठे हैं, कोहरे के छंटने की प्रतीक्षा में। आशाएँ अभी जीवित हैं।

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  2. राजनीति कलंक की कोठारी है ...उसमे घुसेगे तो काजल लगेगा ही
    आगे का ब्लू प्रिंट वे बतावे ....
    नया साल मंगलमय हो

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  3. बहुत सुन्दर शब्द दिया है, नैराश्य के हीरो। इनके बस का कुछ नहीं है। बस तो किसी का नहीं चलता है, जीवन को कितने ही धागों से बाँध रखा है औऱ हिलना भी अपराध की श्रेणी में आता है, कहीं धागे चटक गये तो?

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  4. समाज के दुर्निवार हिस्‍से.

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  5. कोई तो खुशफहमी ढूंढ़नी ही है... चचा गालिब की तरह मन को प्रसन्न रखने के लिये... झूठा ही क्यों न हो ख्याल... और फिर खामखयाली का मजा ही अलग है...

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  6. नए वर्ष की शुभकामनाएं आप सभी को सपरिवार -आशा बनी रहनी चाहिए !

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  7. गिडगिडाने से नही सुनता यह जंहा
    मूह भर के गालिया दो पेट भर कर बददुआ

    हम हाशिये पर खडे लोग यह तो कर ही सकते है
    आपको नव वर्ष की शुभकामनाये

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  8. सटीक निरूपण और अभिव्यक्ति.
    आपको और पूरे परिवार को नव वर्ष की मंगलमय शुभकामनायें.

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  9. बात यदि राष्‍ट्रीय और अन्‍तरराष्‍ट्रीय स्‍तर की है तब तो मैं भी आपके साथ हूँ। किन्‍तु यदि आप स्‍थानीय स्‍तर की बात करें तो मेरे आसपास अनेक 'आशा नायक' हैं। आपके आसपास भी होंगे ही। खेद है कि उनकी चर्चा 'डेश न्‍यूज' से अधिक का स्‍थान नहीं पाती।

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  10. ये हीरो इसलिए नहीं हैं कि ये दिखा रहें हैं कि 'देखो यहाँ गंदगी है, देखो ये लोग नंगे हैं.. तुम्हे तो पता ही नहीं था'.. ये इन्हें भी पता है कि सब सब जानते हैं....
    इन्हें हीरो माना जाता है दुनिया की सारी ताकत के खिलाफ बोलने की इनकी हिम्मत और जज्बे के लिए.. दुनिया के उस हर उस आदमी के लिए वो एक प्रेरणा के स्रोत हैं जो कहीं न कहीं डरता है व्यवस्था से...... मुझमें तो इन्हें देखकर या पढ्कर कहीं से भी नैराश्य का भाव नहीं आता बल्कि आशा की किरण दीखती है...
    नववर्ष आपके और आपके सभी अपनों के लिए खुशियाँ और शान्ति लेकर आये ऐसी कामना है
    मैं नए वर्ष में कोई संकल्प नहीं लूंगा

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  11. नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो और आपके जीवन में सुख सम्रद्धि आये…एस.एम् .मासूम

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  12. सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
    सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
    सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
    सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
    सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्‌ दुःखभाग्भवेत्‌॥
    सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!

    साल ग्यारह आ गया है!

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  13. महारानी, युवराज, तिलकधारी/त्रिशूल वाले, लाल पट्टी वाले - कोई नहीं थे मेरे हीरो। दे डोण्ट इंस्पायर। एण्ड सो डोण्ट असांजे/विनोद राय।
    ये सब हीरो नहीं हैं यह तो समझ आया लेकिन हीरो है कौन, कौन हो सकता है ? यह भी बताया जाये। ये तो नेति-नेति वाद हो गया।

    नयासाल मुबारक!

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय