Sunday, October 31, 2010

पर्यटन क्या है?

मैं पर्यटन पर नैनीताल नहीं आया। अगर आया होता तो यहां की भीड़ और शानेपंजाब/शेरेपंजाब होटल की रोशनी, झील में तैरती बतख नुमा नावें, कचरा और कुछ न कुछ खरीदने/खाने की संस्कृति को देख पर्यटन का मायने खो बैठता।


DSC02698 पैसे खर्च कर सूटकेस भर कर घर लौटना क्या पर्यटन है? या अब जब फोटो खीचना/वीडियो बनाना सर्व सुलभ हो गया है, तब पिंकी/बबली/पप्पू के साथ सन सेट का दृष्य उतारना भर ही पर्यटन है?

पता नहीं, मैं बहुत श्योर नहीं हूं। मैं इसपर भी पक्की तरह से नहीं हुंकारी भर सकता कि फलानी देवी या फलाने हनुमान जी को मत्था टेक पीली प्लास्टिक की पन्नियों में उनके प्रसाद के रूप में लाचीदाना ले लौटना भी पर्यटन है। मैने काठगोदाम उतर कर सीधे नैनीताल की दौड़ नहीं लगाई। मुझे वहां और रास्ते के अंग्रेजी बोर्डिंग स्कूलों में भी आकर्षित नहीं किया। एक का भी नाम याद नहीं रख सका।DSC02670

ड्राइवर ने बताया कि काठगोदाम में कब्रिस्तान है। मेरी रुचि वहां जा कर उनपर लगी प्लेक पढ़ने में थी। ड्राइवर वहां ले नहीं गया। पर वह फिर कभी करूंगा। मुझे रस्ते के चीड़ के आसमान को चीरते वृक्षों में मोहित किया। और मैं यह पछताया कि मुझे कविता करनी क्यों नहीं आती। ढ़ाबे की चाय, रास्ता छेंकती बकरियां, पहाड़ी टोपी पहने झुर्रीदार बूढ़ा, भूस्खलन, दूर पहाड़ के ऊपर दीखती एक कुटिया – ये सब लगे पर्यटन के हिस्से।DSC02687

खैर, यह मुझे समझ आता है कि सूटकेस भर कर घर लौटने की प्रक्रिया पर्यटन नहीं है।

चीड के पेड़, धान के खेत, पाकड़ के वृक्ष, पहाड़ी  सर्पिल गौला नदी शायद अपनी सौन्दर्य समृद्धि में मगन थे। पर अगर वे देखते तो यह अनुभव करते कि ज्ञानदत्त का ध्यान अपनी घड़ी और अपने पर्स पर नहीं था – वह उनसे कुछ बात करना चाहता था। वह अभी पर्यटक बना नहीं है। अभी समझ रहा है पर्य़टन का अर्थ।

इतनी जिन्दगी बिता ली। कभी तो निकलेगा वह सार्थक पर्यटन पर!


मेरा सार्थक पर्यटन कहना शायद उतना ही सार्थक है जितना अपनी पुस्तक को समर्पित करती अज्ञेय की ये पंक्तियां:
यद्यपि उतना ही निष्प्रयोजन, जितना
एक प्राचीन गिरजाघर से लगे हुये एक भिक्षु-विहार में बैठ कर
अन्यमनस्क भाव से यह कहना कि "मैं जानता हूं
एक दिन मैं फकीर हो जाऊंगा।"


36 comments:

  1. इतनी जिन्दगी बिता ली। कभी तो निकलेगा वह सार्थक पर्यटन पर!

    सार्थक पर्यटन के सन्दर्भ में मैं सन्दर्भ में हमखयाल हैं हम. शायद पर्यटन तो घर से बाहर निकलते ही शुरू हो जाती है.

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  2. शुक्रिया ,
    शेर और पर्यटन ,दोनों 'सार्थक' लगे

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  3. भाई ..आपका लेख पढने से पहले मैं भी यही सोचता था ...प्रकृति के सौन्दर्य का आनंद लेता था ....मेरे लिए भी अब पर्यटन के माने बदल गए है ....कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारे बड़े भाई
    http://babanpandey.blogspot.com

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  4. अज्ञेय यह लिख सकते थे क्यों कि वे फकीर नहीं थे लेकिन बाबा नागार्जुन? और मैं ....

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  5. .... और पर्यटन का अर्थ बाबा नागार्जुन और राहुल सांकृत्यायन के जीवन से जाना जा सकता है।

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  6. प्रकृति के सौंदर्य का रसास्‍वादन नहीं किया .. उस क्षेत्र के जीवन और सांस्‍कृतिक खूबियों पर नजर नहीं पडी .. तो पर्यटन सार्थक कैसे हो सकता है ??

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  7. रोचक कविता है।
    पूरा विश्वास है कि इस ब्लॉग का शीर्षक फ़कीराना हलचल नहीं होगा आने वाले समय में।

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  8. हमारे लिए जब कभी रोज का रुटीन से हटकर अपने काम/चिन्ता/स्मस्याएं को भूलकर कुछ अलग ही करते हैं तो हम पर्यटक बन जाते हैं।

    कभी कभी तो इसके लिए घर से बाहर निकलना ही नहीं पडता।

    आजकल हम अंतरजाल-पर्यटन खूब करते हैं।
    aimless browsing करते करते कभी कभी हम कुछ ऐसी जगह पर पहँच जाते हैं जहाँ से निकलना मुश्किल हो जाता है।

    नैनी ताल कभी नहीं गया। बहुत सुना हूँ इस जगह के बारे में।
    आशा है एक दिन असली पर्यटक बनकर वहाँ जाने का अवसर मिलेगा।
    शुभकामनाएं

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  9. ज्ञान जी,
    मैं मूलत: आपको गद्य का ब्लागर (लेखक जानबूझ कर नहीं लिखा), लेकिन इस प्रविष्टी में पद्य की झलक भी है। बहुत अच्छा लगा ।

    पर्यटन का असली सुख पीठ पर एक बैकपैक लादे सस्ते में देश विदेश की सैर करने में है, जैसा कि मेरे एक मित्र टाड करते हैं। उनके ब्लाग को देखियेगा कभी (विशेषकर उनकी पिछले साल भारत और इस साल यूरोप वाली प्रविष्टियां)

    http://worldtravelerandthinker.blogspot.com

    यहां पर मेरे एक मित्र ने अमेरिका में भारतीयों की एक आदत पर ध्यान दिलाया जिसे वो पटेलगिरी कहते हैं। इस आदत का उद्देश्य है कि जहां जाओ ज्यादा से ज्यादा फ़ोटो खींचकर कैमरा भर लो इस आस में कि बाद में देखने के लिये यादें रहेंगी। जबकि ऐसा करते हुये आप ठीक उस क्षण उस दृश्य का अनुभव करने से अपने को वंचित कर लेते हैं।

    फ़िल्म नेमसेक पता नहीं आपने देखी या नहीं, लेकिन उसका एक दृश्य मेरी समझ से पर्यटन को परिभाषित करता है। होता यूँ है कि पिता अपने छोटे बच्चे के साथ समुद्र की लहरों को देख रहा होता है और फ़ोटो खींचने चाहता है लेकिन वो कैमरा साथ लाना भूल गया है। इस पर वो अपने बेटे से कहता है कि इस द्रश्य को हमेशा याद रखना अपने मन में, यही शायद पर्यटन है।

    इसके अलावा पर्यटन एकदम अकेले करने का भी अपना ही मजा है।

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  10. आपको कविता करनी नहीं आती, सहमत!! मगर आज ये कहा से?

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  11. मैं तो पर्यटन के अर्थ समझती हूँ कि उस शहर की सांस्‍कृतिक धरोहरों को जानना और समझना। उस शहर की मिट्टी में कौन सी ऐतिहासिक खुशबू बसी है उसे जानना। अटैची भरने का नाम तो बिल्‍कुल भी नहीं है पर्यटन। बस मन की अटेची भरने का नाम ही है पर्यटन।

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  12. 'अथातो घुमक्‍कड़ी...' और 'एक बूंद सहसा...' जैसी पुस्‍तकें तो मानों पर्यटन पाठ्यक्रम की ऐसी पुस्‍तके हैं, जिनसे पर्यटन की डिग्री नहीं मिलेगी, घूमना चाहे सीख लें, फिर यह अपनी पसंद है कि किसके पर्यटन का उद्देश्‍य घुमक्‍कड़ी है और किसे परीक्षा में नंबर हासिल कर डिग्री लेनी है.पर्यटन में नापास, मैंने पर्यटन न सीख पाने की दास्‍तां बयां करने की कोशिश अपनी पिछली पोस्‍ट 'फिल्‍मी पटना' में की है.

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  13. पर्यटन मेरी समझ में तन और मन को नयापन देने के लिये होना चाहिये। मैं हबड़ हबड़ में बहुत स्थान छू लेने के चक्र में नहीं रहता हूँ अपितु आराम से और धीरे धीरे प्रकृति का आनन्द लेने पर विश्वास रखता हूँ।

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  14. मेरे ख्याल से आज की तारीख में पर्यटन की कई किस्में और उनके भिन्न भिन्न उद्देश्य हैं जो इस एक शब्द को कई अर्थ देते हैं .
    अच्छा प्रश्न उठाया है .

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  15. मैं बताता हूं अपने मन की बात इस बारे में।
    पर्यटन है अटैची भर कर और पर्स खाली करके घर वापस लौटना।
    जबकि आप जिस चीज की बात कर रहे हैं वो घुमक्कडी है। घुमक्कडी में आदमी ना तो अपने पर्स को खाली होने देता और ना ही अटैची भरने देता।

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  16. @ नीरज जाट जी - सही! शायद पर्यटन शब्द नव धनाढ्यता ने हड़प लिया है। या सही शब्द देशाटन या घुमक्कड़ी हो।
    जो भी हो, मेरा आशय स्पष्ट है। शब्द को क्या छीलना? उसके लिये अजित/अभय/अनूप हैं न!

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  17. हमारे यहाँ डोंगर माफिया का प्रकोप है| हर छोटी पहाड़ियों और डोंगर पर मंदिर उग आये हैं, जाने कहां से और फिर लाउडस्पीकर के शोर और प्लास्टिक पन्नियों की बाढ़ से जंगल पट जाते हैं| मानव बस्ती से दूर पहाड़ियों पर शरण लिए वन्य प्राणी ऐसे में जाएँ तो जाएँ कहां----

    मनुष्य के कदम जहां पड़ते हैं गंदगी पहुंच जाती है| महाराष्ट्र का कास क्षेत्र जंगली फूलों के लिए प्रसिद्द है| यहां हजारों की संख्या में पर्यटक आने लगे हैं| जिन जंगली फूलों के लिए कास प्रसिद्ध है उन्ही जंगली फूलों को रौंदकर पार्किंग की जाती है|

    चलिए कोई तो मिला जिसे बर्बादी लाने वाले पर्यटन से प्रेम नहीं-----

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  18. Quote @नीरज जाट जी
    ============================================
    पर्यटन है अटैची भर कर और पर्स खाली करके घर वापस लौटना।
    ===========================================
    Unquote

    पुरानी यादे!
    वर्ष १९९३
    कंपनी ने हमारा पोस्टिन्ग दक्षिणी कोरेया में तीन महिने के लिए किया था।
    मेरे मित्र भी साथ थे।
    रहने के लिए तीन महीने का Daily allowance, US Dollar में advance में ले गया था।
    मेरे मित्रों के लिए वह काफ़ी नहीं था क्योंकि वे तो अपने उपर अधिक खर्च करते थे।
    हम तो सीधे सादे आदमी हैं। हमारे पास, तीन महिने के बाद कुछ dollar बच हुए थे।
    केवल इसे खर्च करने के लिए लौटते समय हम सिन्गापोर होते हुए आए।
    सिन्गपोर में पहुँचते ही एक सूटकेस खरीदी और सेरंगून रोड पर मुह्म्मद मुस्टाफ़ा का वह मशहूर दूकान पर जाकर, अन्धाधुंध खरीदी की। सूटकेस भर गया था और पर्स खाली हुआ।
    इधर से पत्नि फ़ोन पर shopping list बता रही थी!
    इस shopping और purse emptying की चक्कर में हमने ठीक से सिन्गापोर देखी ही नहीं। उस उम्र में हम तो immature थे।
    पर्यटन करना जानते भी नहीं थे।
    आज, इस उम्र में मेरा सोच बिलकुल अलग है। खाली हाथ जाउंगा, खाली हाथ लौटूंगा और जैसा अजीत गुप्ताजी कहती हैं "मन की अटैची" को भरूंगा। हाल ही में मेरा अमरीका का प्रवास इस श्रेणी में आता है।
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  19. पर्यटक को जो भाये, सो पर्यटन का तात्पर्य है उसके लिए.

    मगर आपका गद्य पद्य की खुशबू देने लगा है. :) बधाई. कम से कम इतना तो भर ही लाये आप झोली में पर्यटन से.

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  20. प्रकृति से निरन्‍तर सम्‍वादरत रहते हुए खुद को तलाशते रहना और कभी तृप्‍त, सन्‍तुष्‍ट न होना पर्यटन नहीं?

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  21. पर्यटन अपने आप में एक ज़िलियन डॉलर इंडस्ट्री है. कितनी कम्पनियाँ अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापन छपवाती हैं, कई बार उनमें शोपिंग भी कराने के ऑफर होते हैं.

    खैर मेरे लिए पर्यटन सिर्फ़ खुद के साथ रहने और अजनबी जगह और अजनबी लोगों से मिलना होता है.

    manojkhatrijaipur.blogpsot.com

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  22. आपकी नज़र से नैनीताल का विवरण पढने मे मज़ा आयेगा .

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  23. सैर सपाटा शायद ज्यादा सटीक और सार्थक है -
    सैर कर दुनिया की गाफिल कि ये जिन्दगी फिर कहाँ
    जिन्दगी गर है भी तो ये नौजवानी फिर कहाँ ?
    सैर सपाटे की एक उम्र होती है -
    किस्मत पे उस मुसाफिरे बेकस के रोईये ,
    जो थक गया हो राह में मंजिल के सामने

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  24. ये पोस्ट कविता ही तो है!
    मैं
    पर्यटन पर
    नैनीताल नहीं आया।
    अगर आया होता
    तो यहां की भीड़
    और होटल की रोशनी,
    झील में तैरती
    बतख नुमा नावें,
    कचरा
    और
    कुछ न कुछ
    खरीदने/खाने
    की संस्कृति देख
    पर्यटन के मायने खो बैठता।

    पैसे खर्च कर
    सूटकेस भर कर
    घर लौटना क्या पर्यटन है?
    या अब
    जब फोटो खीचना
    वीडियो बनाना सर्व सुलभ हो गया है,
    तब पिंकी/बबली/पप्पू के साथ
    सन सेट का दृष्य उतारना भर ही पर्यटन है?

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  25. मनोज कुमार जी का
    हार्दिक धन्यवाद
    उन्होंने हमें
    एक क्षन में ही
    सिखा दिया
    कैसे कविता
    लिखी जाती है।

    ज्ञानजी से
    यह अनुरोध है
    कि मेरी
    इस कविता को
    उल्टी युक्ति से
    गद्य में बदलकर
    मेरी टिप्प्णी समझें।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ
    (बेंगलूर स्थित कुख्यात quack कवि)

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  26. ये बोलती हुई पंक्तियां, ये बोलते हुए चित्र, ये सब एक कविता की ही रचना तो करते हैं। अगर आपको बुरा न लगे तो क्षमायाचना सहित कहने की धृष्टता करना चाहूंगा कि आप जब यात्रा पर निकलते हैं तो आपके ब्लोग के विषय रिच हो जाते है। जब आप इलाहाबाद में रह्ते हैं तो आप...।
    काश आप ज्यादा यात्रायें करें और और ज्यादा लिखें।

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  27. अजी हम तो सर्द देश मे रहते हे, ओर गर्मियो मे गर्म देश मै जा कर खुब घुमते भी हे, धुप भी लेते हे, बचत भी करते हे, जब गये ही हे तो फ़ोटू ओर विडियो भी खींच लेते हे, खर्च तो होता हे ही हे लेकिन पर्स खाली कर के नही आते, ओर यही गर्मी हमे फ़िर से जवान बना देती हे, अब इसे आप कुछ भी समझे, मजबुरी या पर्यटन हम तो इसे छुट्टियां मनाना कहते हे, इस साल हमारे यहां खुब गर्मी रही तो घर मे ही छुट्टिया मना ली :)

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  28. हम ने तो आज तक प्रयटन का अर्थ ही नही समझा। आपसे ही सुन रहे हैं--- कहीं जाते जो नही। शुभकामनायें

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  29. पर्यटन तो डूबते सूरज के साथ 'लील्यो ताहि मधुर फल जानी' वाली मुद्रा में फोटू खिंचवाना ही है. (ये मुद्रा शिव भैया की किसी पोस्ट में थी). बाकी शब्द ना भी छिलें तो असल चीज तो वही है जो 'घुमकड्डी' से निकलता है. बिना किसी प्लान के कहीं निकलिए कभी झोला लेके, बहुत आनंद आएगा. प्लान कर के गए तो क्या गए. और कहीं भी टूरिस्ट प्लेसेस को छोड़कर बाकी जगहों में भटकने में ज्यादा आनंद है. आपकी साइकिल-कम-पद यात्रा भी अभी पेंडिंग है !

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  30. पर्यटन तो डूबते सूरज के साथ 'लील्यो ताहि मधुर फल जानी' वाली मुद्रा में फोटू खिंचवाना ही है. (ये मुद्रा शिव भैया की किसी पोस्ट में थी). बाकी शब्द ना भी छिलें तो असल चीज तो वही है जो 'घुमकड्डी' से निकलता है. बिना किसी प्लान के कहीं निकलिए कभी झोला लेके, बहुत आनंद आएगा. प्लान कर के गए तो क्या गए. और कहीं भी टूरिस्ट प्लेसेस को छोड़कर बाकी जगहों में भटकने में ज्यादा आनंद है. आपकी साइकिल-कम-पद यात्रा भी अभी पेंडिंग है !

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  31. अजी हम तो सर्द देश मे रहते हे, ओर गर्मियो मे गर्म देश मै जा कर खुब घुमते भी हे, धुप भी लेते हे, बचत भी करते हे, जब गये ही हे तो फ़ोटू ओर विडियो भी खींच लेते हे, खर्च तो होता हे ही हे लेकिन पर्स खाली कर के नही आते, ओर यही गर्मी हमे फ़िर से जवान बना देती हे, अब इसे आप कुछ भी समझे, मजबुरी या पर्यटन हम तो इसे छुट्टियां मनाना कहते हे, इस साल हमारे यहां खुब गर्मी रही तो घर मे ही छुट्टिया मना ली :)

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  32. 'अथातो घुमक्‍कड़ी...' और 'एक बूंद सहसा...' जैसी पुस्‍तकें तो मानों पर्यटन पाठ्यक्रम की ऐसी पुस्‍तके हैं, जिनसे पर्यटन की डिग्री नहीं मिलेगी, घूमना चाहे सीख लें, फिर यह अपनी पसंद है कि किसके पर्यटन का उद्देश्‍य घुमक्‍कड़ी है और किसे परीक्षा में नंबर हासिल कर डिग्री लेनी है.पर्यटन में नापास, मैंने पर्यटन न सीख पाने की दास्‍तां बयां करने की कोशिश अपनी पिछली पोस्‍ट 'फिल्‍मी पटना' में की है.

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  33. हमारे लिए जब कभी रोज का रुटीन से हटकर अपने काम/चिन्ता/स्मस्याएं को भूलकर कुछ अलग ही करते हैं तो हम पर्यटक बन जाते हैं।

    कभी कभी तो इसके लिए घर से बाहर निकलना ही नहीं पडता।

    आजकल हम अंतरजाल-पर्यटन खूब करते हैं।
    aimless browsing करते करते कभी कभी हम कुछ ऐसी जगह पर पहँच जाते हैं जहाँ से निकलना मुश्किल हो जाता है।

    नैनी ताल कभी नहीं गया। बहुत सुना हूँ इस जगह के बारे में।
    आशा है एक दिन असली पर्यटक बनकर वहाँ जाने का अवसर मिलेगा।
    शुभकामनाएं

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  34. भाई ..आपका लेख पढने से पहले मैं भी यही सोचता था ...प्रकृति के सौन्दर्य का आनंद लेता था ....मेरे लिए भी अब पर्यटन के माने बदल गए है ....कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारे बड़े भाई
    http://babanpandey.blogspot.com

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय