Saturday, January 1, 2011

चिठ्ठाचर्चा की एकतर्फियत

CCआप चर्चा करें, पर आप एक वाद की तरफदारी करें तो हम जैसे क्या टिपेरें? एक सज्जन नृशंस माओवादी नक्सली हत्यारों के समर्थक/सहायक हैं। एक कोर्ट उन्हे दण्डित करती है तो बहुत पांय पांय मचती है। वैसे भी आजकल समझ का उलटफेर चल रहा है। हम जिसे गद्दार समझते हैं, वह बुद्धिजीवियों की समझ में महान देश भक्त या मानवता भक्त निकलता है। जिसे बुद्धिवादी महान समाजवादी समझते हैं, वह वह देश बेच-खाने वाला निकलता है। जिसे राजनेता समझते हैं वह … लिहाजा बिनायक सेन के मामले में हम जजमेण्टल कैसे बनें? कुछ हिन्दूवादी थामे गये हैं, उनके बारे में भी जजमेण्टल नहीं हैं।

पर यह देखते आये हैं कि यह नक्सलवाद कोई क्रान्ति फ्रान्ति करने वाला नहीं। शुद्ध माफिया है। रंगदारी वसूलक। तरह तरह के असुर इससे जुड़े हैं। कुछ सिद्धान्तवादी भी शायद होंगे। पर वे चीन के इशारे पर तीस साल से खुरपेंच कर रहे हैं। वे अदरवाइज रिकेटी डेमोक्रेसी का रक्त निकाल रहे हैं। साथ साथ जनता का भी। और इनसे आदिवासी का चवन्नी  अठन्नी भर भी कल्याण हुआ हो, लगता नहीं।

यह हिन्दी ब्लॉगजगत जितना बुद्धि का दर्शायक है; उतना भावना का भी। जनता का बहुत बडा वर्ग नक्सल आतंक से तंग आ चुका है। पोलीस अगर लड़ रही है नक्सल से तो वह पोलीस के साथ है। और बुद्धि का एलीट अगर उस जनता से तरस खाने की मुद्रा अख्तियार करता है तो बुद्धि पर तरस आता है।

मैं इस बात में नहीं जाता कि बिनायक सेन किस हद तक नक्सली के साथ हैं और किस हद तक सरकारी जुल्मों का विरोध करते हुये नक्सली जुल्मों का भी विरोध करते हैं। पर ऐसे मामले में जिस तरह के लोग टर्राने लगते हैं, वे ही अब टर्रा रहे हैं। और उनका लिखा पढ कर रियेक्ट करने का मन नहीं होता। 

ऐसे में चिठ्ठाचर्चा की एकतर्फियत जमी नहीं! अगले जनम में भगवान इण्टेलेक्चुअल बनायें तो शायद बात कुछ और हो। फिलहाल तो जो है सो है।  

अगर ब्लॉगजगत में मात्र रचनाधर्मिता की चर्चा होती है, तो चर्चाकार अपनी पसन्द की कविता/कहानी/पोस्ट की चर्चा करें तो ठीक। पर अगर एक विवादास्पद मुद्दे की चर्चा हो तो एक तरफा विवरण चर्चामंच का मिसयूज है, एक वाद की तरफदारी फैलाने के लिये। यह हो सकता है कि चर्चाकार अपनी पसन्द से ६०:४० या ७०:३० का अनुपात बना सकते हैं। पर एक तरफा बात करना चारित्रिक दोष है ऐसे मंच का।


47 comments:

  1. डकैतो को पहले बागी कहा जाता था अब नक्सली .

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  2. हम तो अभी तक आपको बुद्धिजीवी ही समझते हैं (ऊ वाला नहीं जो बुद्धि को बेच देता है) :)

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  3. स्वयं चर्चा में रहने का एक क्षुद्र जुगाड़ भर बन कर रह गया है चिठ्ठा चर्चा. एक संभावनाशील मंच था कभी लेकिन बदलते समय के साथ कदमताल नहीं कर सका. दुखद है.

    ईसाई नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  4. मुझे नहीं मालूम ज्ञान जी ..के मार्क्सवाद क्या होता है ओर हिन्दुवाद क्या ....एक मोहतरमा अरुंधति के मामले में मुझे हिंदूवादी घोषित कर चुकी है ....कबाडखाना के कुछ पुराने पोस्ट पढ़िए .......खैर मुझे लगता था आप लेख पढ़कर टिपियाने वाले लोगो में से एक है ..... पर अफ़सोस आपने बेहद तात्कालिक प्रतिक्रिया कर दी ......उसमे पिछली चिटठा चर्चा का लिंक था जिसे आपने गौर से पढना जरूरी नहीं समझा ...ये इस देश का दुर्भाग्य है के .लालू यादव ....राजा ....मधु कौड़ा ..वाडिया...जैसे लोग खुलेआम घूमते है ..ओर हम उस भरष्टाचार पर समझदारी भरी चुप्पी जेब में डाले घूमते है ....जिस इन्सान ने इतना वक़्त उस क्षेत्र में गुजारा है उसे आप यूँ ही खारिज नहीं कर सकते ......वे सजा के हक़दार हो सकते है पर उम्र कैद के नहीं .....देशभक्ति का मतलब बोर्डर पर बन्दूक थामे रहना भर नहीं है ....अपने सीमीत दायरे में रहकर ईमानदारी से काम करना भी है ......खैर वक़्त मिले तो गौर से वहां सब शब्दों को पढिये .....आत्म विवेचन कीजिये ..वैचारिक असहमतिया हमें एक बेहतर इन्सान बनाने में मदद करती है ......

    ओर हाँ आदिवासी ओर नक्सली दो अलग चीज़े है !!!!!!!

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  5. डा. अनुराग > खैर वक़्त मिले तो गौर से वहां सब शब्दों को पढिये .....आत्म विवेचन कीजिये ..
    डाक्टर साहब आप मुझे भी नहीं पढ़ते। खैर, दोष आपका नहीं - किनारे की चीज को नोटिस न लेना हो ही जाता है।
    यह जरूर है कि आपकी पिछली चर्चा पर भारी भरकम टिप्पणियों पर नजर मैने डाली थी - महज ब्राउज करते हुये। आत्मविवेचन के लिये नहीं।
    आत्मविवेचन तो यहां है।
    आप अपने ब्लॉग का प्रयोग करें बिनायक सेन के महिमा मण्डन के लिये। चिठ्ठाचर्चा का क्यों करते हैं?

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  6. यह निश्चित रूप से चिट्ठाचर्चा का दुरूपयोग है.. अगर किसी विवादास्पद पोस्ट पर चर्चा हो भी तो दोनों पक्षों को बराबर महत्व दिया जाना चाहिए...
    मैंने कल यह टिप्पणी लिखी थी उस पोस्ट पर.. कई बार देखा जाकर अब तक तो कोइ जवाब आया नहीं है.. मुझे इनसे बहस करने में खुशी होगी...

    "बिनायक सेन को सजा पर अमेरिका और यूरोप के सारे अखबार चिल्ला रहे हैं.. कोई न कोइ बड़ी बात तो होगी ही. भारत को पूरी न्यायिक प्रणाली को ही मानवाधिकारों का दुश्मन बताया जा रहा है.. द गार्जियन ने एक लेख का शीर्षक दिया "शान्ति के पुजारी के खिलाफ भारत का युद्ध"...
    बिनायक सेन की देशभक्ति पर मुझे कोइ शक नहीं, न ही उनके द्वारा किये गए पुनीत कार्यों पर..निश्चित रूप से वे मेरे जैसे कई युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं.. लेकिन....
    इसे वामपंथी विचारधारा वाले और अंग्रेज इस तरह क्यों प्रचारित कर रहे हैं जैसे बिनायक सेन को हटाने के लिए भारत का पूरा तंत्र लगा था.. भारत की निर्वाचित सरकार, न्यायपालिका और यहाँ की पूरी जनता भी.. लोग ऐसे हल्ला मचा रहे हैं जैसे आज से पहले दुनिया की किसी अदालत ने गलत फैसला दिया ही न हो.. छात्तीसगढ़ की अदालत ने राज्य के कानूनों और वहाँ की पुलिस द्वारा उपलब्ध कराये गए साक्ष्यों पर अपना निर्णय दिया.. कोइ भी अदालत अभियुक्त के महान चरित्र को देखकर फैसला नहीं देती.. उन प्रमाणों के आधार पर अगर कोर्ट ने यह पाया कि नक्सलियों से संपर्क करने के मामले में क़ानून की सीमाओं का उल्लंघन किया तो और उसके लिए उन्हें सजा दी तो इसका बिनायक के महान व्यक्तित्व और कार्यों से क्या सम्बन्ध है? और जरूरी नहीं कि यह फैसला सही हो.. पर हमारी न्यायिक प्रक्रिया अपील का पूरा अधिकार देती है.. यदि बिनायक ने कहीं भी कानूनी रूप से गलत कार्य नहीं किया तो वे अंततः बाइज्जत रिहा होंगे.. इतना विश्वास है मुझे भारत की न्यायिक प्रणाली पर.. भले उनकी जगह कोइ गरीब ऐसे केस में फंसता तो न बच पाता क्योंकि उसके लिए बुद्धिजीवी लोग इतने बड़े-बड़े लेख थोड़े न लिखते.. न ही गार्जियन में उसपर लेख आता और न ही नोबेल विजेता बयान देते उसपर...
    आप उस भारत को मानवाधिकार की सीख मत दीजिए जहां संसद पर हमला करने वाले को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आवेदन करने का अधिकार है.. और यह भारत ही है कि हम इतना चिल्ल-पों मचा लेते है सरकार से लेकर अदालत तक पर.. और लोकतंत्र तथा मानवाधिकार की रक्षा करना हमें अमेरिका, रूस या चीन से सीखने की जरुरत नहीं है... वे पहले अपना रेकार्ड देख लें... "

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  7. हमारी विचारधारा का भी डिजटलीकरण होता जा रहा है। या तो 1 सोचते हैं या 0। किसी के एक कृत्य से पूरे व्यक्तित्व का निर्माण कर डालते हैं। एक अच्छे कार्य से महिमामण्डन और एक गलत कार्य से चरित्रहनन। विषयगत संदर्भों में देखें तो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को कुचल दिया जाये, इसमें मानवाधिकार कहाँ से आयेगा? जब दूसरे देशों के नापाक इरादों को सत्कार्यों की पोशाक बनाकर पेश किया जाये, तब तो नग्नता प्रशंसनीय है।

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  8. मुझे तो आप के लेख ओर अन्य टिपण्णियो से देस मे हो रही हलचल के बारे पता चल जाता हे, ओर आम लोगो के विचार भी पता चल जाते हे, बाकी इस बारे हमे कुछ नही पता, लेकिन गलत सिस्टम से लडना अच्छी बात हे, लेकिन दुसरे देश की नीति देश मै लाना गलत हे सोबियत संग के देशो का हाल क्या था यह तो हम जेसे लोग ही जानते हे, जो वहां घुम कर आये थे, इस लिये वो सिस्टम सब से खराब था ओर हे. धन्यवाद

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  9. नक्सलवाद का किसी भी रूप में महिमा मंडित किया जाना, चाहे किसी भी श्रेष्ट बुद्धिजीवी के द्वारा हो, अक्षम्य है. मेरी ज़िन्दगी बस्तर में गुजरी है.

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  10. डा अनुराग, नक्सलवादी देश के घोषित दुश्मन हैं और सेन पर आरोप है उनकी मदद का| इसे ही देश द्रोह कहते है|

    अब आप लाख कोशिश करे देशद्रोह तो देशद्रोह ही रहेगा| आमतौर पर ऐसे लोगों को फांसी की सजा होती है| हमें उम्मीद है कि आगे के कोर्ट यह फैसला देंगे|

    आप कह रहे हैं कि आदमी अच्छा है तो उसे कम सजा होनी चाहिए| आप एक घोषित देशद्रोही के लिए ऐसा कह रहे है|

    इस देशद्रोही को एक भी पुरूस्कार नहीं मिला पर जैसे ही सजा हुयी पुरुस्कारों का अम्बार लग गया| नक्सली केवल जंगल में नहीं है बल्कि शहरों में भी फैले है| देशद्रोही के साथ खड़े लोग एक तरह से वही काम कर रहे हैं|

    इस देशद्रोही को बचाने के लिए अरबो रुपया फूंके जा रहे हैं| शायद चिठ्ठाचर्चा के लिए खूब पैसे मिले हो| यदि इसका आधा पैसा भी बस्तर पर खर्च किया जाता तो दसों गाँवों की भूख मिट जाती|

    हम आज अपनी चुनी हुयी सरकार और पुलिस के साथ हैं| खुले तौर पर| बिना डर के| इस देश का क़ानून इजाजत देता तो हम ऐसे देशद्रोहियों को सड़क पर ले आते और ऐसा व्यवहार करते कि पीढीयाँ भी ऐसा देशद्रोही बनने से डरती|

    डा. अनुराग क्या कोई आप की माताजी के साथ बुरा व्यवहार करे और फिर जब आप उसे सजा देने लगे तो लोग आपको रोके कि वह एक सामाजिक कार्यकर्ता है उसे सजा मत दो तो फिर भी आप वही कहते जो अभी कह रहे हैं| याद रखे छत्तीसगढ़ महतारी यानी हमारी माँ के साथ इसने गद्दारी की है|

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  11. आया अपने प्रिय ब्लॉगर को शुभकामना देने और यहाँ कुछ और ही फंसाने वाला मिल गया !
    .
    पहले तो मेरी तरफ से आपको सपरिवार नए वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं !
    .
    बार बार यही कहता रहा हूँ कि शब्दों की दुनिया शायद इतनी तंग नहीं जहां हम असहमतियों को न देख सकें / न पचा सकें . बाह्य दुनिया को ज्यादा संवादपरक बनाने की कोशिश इस शब्दों की दुनिया में नहीं तो कहाँ !
    @ चर्चाकार अपनी पसन्द की कविता/कहानी/पोस्ट की चर्चा करें तो ठीक। पर अगर एक विवादास्पद मुद्दे की चर्चा हो तो एक तरफा विवरण चर्चामंच का मिसयूज है ..& एक तरफा बात करना चारित्रिक दोष है ऐसे मंच का।
    --- इससे पूर्णतया असहमत हूँ .
    कविता-कहानी-पोस्ट और अन्य के बीच की यह आत्मनिष्ठ बनाम वस्तुनिष्ठ की बात उचित नहीं . प्रश्न वहाँ भी उठाये जा सकते हैं और यहाँ भी !
    चर्चाकार अनुराग जी ने जो चर्चा की वह विषय से सम्बद्ध कुछ प्रविष्टियों पर आधारित है न कि उनकी एक प्रविष्टि पर ! कदाचित यही चर्चा की शक्ति भी है ! सरकारी तंत्र से किसी भी मुद्दे पर असहमति के विविध स्वरों की चर्चा चारित्रिक दोष नहीं , वह भले ही अल्पमत का स्वर ही क्यों न हो . आपको उनके तर्कों से असहमत होने का पूरा अधिकार है पर बात को एक्तर्फियत दोष कहना तर्क से इतर सरलीकरण है . मुझे लगता है शायद यह ठीक नहीं !
    .
    जहां तक बात राजद्रोह की है तो याद दिलाना चाहता हूँ कि सुकरात पर भी यही अभियोग था और जहर के प्याले के साथ याद आता है कि काश उस समाज में संवाद का स्पेस होता . सुकरात को उस समय एक्तर्फियत गलत न माना जाता . मैं सेन जी को सुकरात नहीं कह रहा , बस एक प्रसंग का स्मरण मात्र कर रहा हूँ जहां किसी के भी पक्ष/तथ्य/तर्क को संवादपरक ढंग से देखा जाय , भाषा की दुनिया के अपेक्षित औदार्य के साथ ! प्रभु , अब बहस करने का बूता मुझमें नहीं रहा , सो इसे ही मेरा पक्ष मान लिया जाय . गलतियों के लिए क्षमा चाहूँगा !
    .
    पुनः नव वर्ष की अनेकानेक शुभकामनाएं !

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  12. @ अमरेन्द्र - चिठ्ठाचर्चा एक वाद समर्थक मोनोलॉग को सम्वाद कहता है? अगर यह उसका चारित्रिक दोष नहीं तो डिजाइन डिफेक्ट है! चिच एक ब्लॉग नहीं, ब्लॉगों की चर्चा है। अगर उसे साम्यवादी/तथाकथित बौद्धिकतावाले यूसर्प (usurp) कर लेते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
    और वैचारिक असहमति? जब मैं वह जता रहा हूं तो चर्चाकार मुझे आत्मविवेचन करने की नसीहत दे रहे हैं - मानो आत्मविवेचन करने की क्षमता मुझ जैसे प्लेबियन (plebeian) के पास हो ही नहीं! :)

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  13. मीडिया के चितेरे बुद्धीजीबी कभी ग़लत नहीं हो सकते...बल्कि ग़लत हो नही नहीं सकते जी..

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  14. Bravo! Satish Chandra Satyarthi

    Yes, this great nation has many avenues left for appeal. I'm unable to understand the decibel level of noise. No comments of Shri Binayak Sen because I don't know much about him.
    But I have reasons to suspect the 'Hallabols'.

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  15. सर जी , मैं चिट्ठाचर्चा के दूध में धुले होने की बात कह भी नहीं रहा, यह अपेक्षा भी नहीं की जा सकती . जब व्यक्ति निरपेक्ष नहीं रह पाता तो मंच/संगठन कैसे रह सकता है . यह भी वैसे ही है जैसे किसी भी अखबार से निष्पक्ष की दरकार . हर अखबार की पक्षपाती हकीकत कोई भी विवेकजाग्रत जान सकता है . पर सब अपनी अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र हैं . उसी चिट्ठाचर्चा का एक लिंक अनुराग जी ने दिया है वह उसकी साम्यवादी छवि का भंजन भी करता है . तो क्या कहा जाय ? ऊपर से कोई भी चासनी लिपटी हो पर यह तो यथार्थ है कि ये पक्ष कुछ लोगों के स्वर तो हैं ही और वे इस भाषा के लोकतंत्र में रखे जा सकते हैं , उनपर संवाद हो सकता है , विचार हो सकता है या किया जाना चाहिए . एक 'लेबल' दे देना एक सरलीकरण ही लगता है ! वहीं विचार-तर्क-संवाद एक स्वस्थ परम्परा से जुड़ता है . रही बात 'आत्मविवेचन' वाले सन्दर्भ की , तो उसमें निश्चय ही एक औद्धत्य निकाला जा सकता है , पर महान लोग इसे टाल भी सकते/देते हैं ! :-) सादर..

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  16. @आदरणीय अमरेन्द्र जी, यहाँ विरोध इस बात से नहीं है कि अनुराग जी ने इस विषय की पोस्टों पर चर्चा क्यों की अथवा वे बिनायक को देशभक्त क्यों मानते हैं.. वैचारिक असहमतियों को स्वीकार करने की इतनी शक्ति है हममें... विरोध इस बात का है कि चिट्ठाचर्चा अनुराग जी का अपना ब्लॉग नहीं है.. यह एक सामूहिक मंच नहीं है.. और चिट्ठाकार को कुछ भी लिखने की इजाज़त नहीं दी जा सकती.. वरना कल को कोइ मुसलमानों या हिंदुओं को गरियाने वाली पोस्टों का संकलन लेकर चर्चा करता नज़र आएगा.. उसे क्या कहेंगे आप?
    पहली बात तो यह कि चर्चाकार को निष्पक्ष होना चाहिए.. अगर आपने ऐसा मुद्दा लिया ही था तो एक पक्ष की ४ पोस्टों के साथ दो पोस्टें दूसरे पक्ष की दिखा देते और खुद कोइ निर्णय सुनाने की जगह यह काम पाठकों पर छोड़ देते.. पर यहाँ तो पढ़ने से ही लग रहा है कि 'सत्य' तो यही है अब या तो समर्थन में टिप्पणी दीजिए या फिर आप पिछड़े हैं...
    और "अल्पमत का स्वर" कैसे बोल सकते हैं इसको... आजकल तो देश-विदेश के सारे इंटेलेक्चुअल्स इसी पर लिख रहे हैं... जो विरोध करने वाले थोड़े बहुत लोग हैं वो इतने सारे इंटेलेक्चुअल्स से भिड़ने और ब्राह्मणवादी सोचवाला कहलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं....

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  17. ऊपर "यह एक सामूहिक मंच है" की जगह "यह एक सामूहिक मंच नहीं है." हो गया है

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  18. भैया त्रिपाठी जी खूब संवाद करे किसने रोका है पर जिस आदमी को छत्तीसगढ़ में कुत्ता तक नहीं पूछता उसको महानायक बनाकर प्रस्तुत करने का क्या तुक है? क्या एक भी आवाज आपने इस देशद्रोही के समर्थन में सुनी है छत्तीसगढ़ से? जनता रोज रोज की हिंसा से मरी जा रही है| वह अपनी चुनी सरकार के साथ है| इसको अनदेखा कर सियारों की तरह हुंकार लगाने से कुछ नहीं होगा| यदि गलती से भी ऐसे देशद्रोही को छोड़ा गया तो लाखों लोग सड़क पर आ जायेंगे इस अन्याय के विरोध में| जनता को इतना कमजोर मत समझो| ज़रा ध्यान से संजीव तिवारी की कविता पढो आपको इस देशद्रोही की औकात पता चल जायेगी|

    और कुछ दिन यहाँ आकर रहो, अनुराग को भी ले आओ| चारो ओर गोलियां चलेंगी तो पेंट में इतने छेद हो जायेंगे कि ----- बाकी दबंग वाले सल्लू भैया से पूछ लेना|

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  19. सतीश चन्द्र की बातों में दम है ...चिट्ठाचर्चा निष्पक्ष नहीं है ......बायस्ड है कई मामलों में !

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  20. @ आदरणीय व्योम-सत्यार्थी आदि-आदि जन .., भाई आया था ज्ञान जी को शुभकामना देने . मुद्दे पर जो असहमत दिखा उसे रखा . कोशिश थी अपना पक्ष रखने भर की . बाकी बहस में हार-जीत की न तब ख्वाहिश थी न अब है . आप सब बुद्धिमान जनों के बीच मेरे संयत भाषा में असहमति के कमेन्ट ज्ञान जी ने अपनी वाल पर बचाए रखा है , यही क्या कम ! यह मेरा इन परिस्थितियों में शायद परम सौभाग्य है ! नहीं तो महज असहमति के चलते पचासों कमेन्ट इस ब्लोग्बुड में गंवा चुका हूँ ! ....पुनः सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ! सादर..

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  21. बाक़ी इस पोस्ट पर भी कुछ कहना है क्या?

    मुझे प्रवीण जी की बात याद आती है, शब्दशः नहीं, कुछ यूं कि मेरा गूगल जो विवादास्पद है उसे फ़िल्टर कर आने नहीं देता।

    दूसरे सरकारी नौकर हूं, वही आचार संहिता ..

    तीसरे ... चर्चा मंच टाइप की चीज़ (मेरा मानना है ... ) जैसे ब्लोगवाणी और चिट्ठा जगत बंद है, बंद हो ही जानी चाहिए। जैसे उनके बिना शांति है, इनके बिना भी हो जाएगी।

    “हम” शांति में विश्वास में विश्वास रखते हैं।

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  22. नक्सलियों पर आपके विचारों से १००% सहमत

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  23. वर्धा विश्वविद्यालय में विनायक सेन के पक्ष में एक विमर्श हुआ है। राजकिशोर जी ने उनका प्रबल समर्थन किया है। लेकिन हिंसक विद्रोह का किसी ने समर्थन नहीं किया। विनायक सेन ने हिंसावादियों की मदद की थी। अब सजा का विरोध हो रहा है। बहुत घाल-मेल है भाई। एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी।

    फिलहाल, नये साल की शुभकामनाएँ।

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  24. आपकी पोस्‍ट और इस पर आई टिप्‍पणियों क अतिरिक्‍त मैंने कुछ भी नहीं पढा है।

    सम्‍भव है, चिट्ठा चर्चा ने जजमेण्‍टल हो, सब कुछ एकतरफा ही लिखा हो। किन्‍तु मैं अनुमान लगा रहा हूँ कि यदि आपने उस सब पर अपनी टिप्‍पणी दी होगी तो उसे जगह मिली ही होगी। यदि मेरा अनुमान सही है तो आपके द्वारा आरोपित उसका 'एकतरफापन' तो 'कथित एकतरफापन' बन कर ही रह गया। हॉं यदि आपकी असहमतिवाली टिप्‍पणी को जगह नहीं दी गई हो तो मैं आपके साथ हूँ।

    अतिरेकी भावुकता में कही बातें किस तरह अपना औचित्‍य और प्रभाव खो देती हैं, यह यहॉं आसानी से देख पाया।

    मैं किसी भी प्रकार की हिंसा के पक्ष में नहीं हँ-उस हिंसा के पक्ष में भी नहीं जिसका तार्किक औचित्‍य स्‍थापित किया जा चुका हो। किन्‍तु व्यक्तिगत रूप से मुझे भी लगता है कि विनायक सेन के मामले में न्‍यायालय ने न्‍याय नहीं किया, निर्णय दिया है। विनायक सेन सही हैं या नहीं इस पर तो विवाद/विमर्श हो ही रहा है किन्‍तु न्‍यायालय भी सन्‍देह के घेरे में आ गया है। यह खुद न्‍यायालय के हक में अच्‍छी स्थिति नहीं है। जिस प्रकार 'राजा को ईमानदार होना तो चाहिए ही, ईमानदार दिखना भी चाहिए' उसी प्रकार न्‍यायालय का न्‍यायदान, न्‍यायदान दिखना भी चाहिए। जैसा कि मैं कह चुका हूँ, मुझे लगता है, यहॉं न्‍याय होता हुआ दिख्‍ा नहीं रहा।

    अच्‍छी बात यह है कि विनायक सेन और उनके परिजनों/समर्थकों ने भारतीय कानूनों और न्‍याय व्‍यवस्‍था में भरोसा जताया है और वे अपील में जा रहे हैं। तब तक तमाम असहमतियों और आक्षेपों के बीच, अपील के निर्णय की प्रतीक्षा की जानी चाहिए।

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  25. जान कर अच्छा लगा कि व्यक्तिगत ब्लॉग पर अपनी बात कहने की बजाए ब्लॉगों पर चर्चा करने वाले कथित सामूहिक प्रयास वाले मंच चिट्ठाचर्चा का उपयोग करने को अनुचित मानने वाला मैं अकेला नहीं

    कभी इस मंच का परिचय देते हुए लिखा जाता था कि
    दुनिया की किसी भी भाषा के चिट्ठे की चर्चा का प्रयास। इस प्रस्तुति में हमारी कोशिश होगी कि विभिन्न भाषाओं की चुनिंदा प्रविष्टियों का ज़िक्र करें।
    आज तो यह पंक्तियाँ ही गायब हैं वहाँ से

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  26. विनायक सेन के बारे में एक बार पहले कहीं पढ़ा था ज्यादा उनके बारे में जानकारी नहीं मालूम। हम लोग ऐसे लोगों को जानते ही तब हैं जब कहीं हो हल्ला मचता है। इसलिये उनका काम क्या है, किससे संबंध आदि है इसके बारे में जो अखबारों में पढ़ा है वही जाना।

    बाकि तो, चिट्ठाचर्चा पर विनायक सेन के मामले में पढ़ने पर लगा कि हाँ वाकई एकतरफा नजरिया रखा गया है। इस तरह की पसंदगी नापसंदगी जाहिर करने वाली पोस्टों को निजी ब्लॉग पर स्थान दिया जा सकता है, किंतु सामूहिक मंच पर नहीं।

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  27. @ श्री पाबला - ढेरों चिठ्ठा-चर्चा करने वाले समूहों में चिठ्ठाचर्चा फिर भी सबसे अच्छा चिठ्ठाचर्चक है। बहुत पहले इसका प्रयोग एक गुट समूह जैसी चर्चा में हुआ था, पर वह प्रवृत्ति कालांतर में दब गई।
    मेरी बात सिर्फ यह है कि चर्चाकार अपना विचार मत ठेले; अगर किसी विवादास्पद मामले की चर्चा कर रहा है तो दोनो तरफ की पोस्टों की चर्चा करे। और (अंत में) पाठक की मेधा को चुनौती न दे।
    चर्चाकार की प्रतिभा चर्चा में झलकेगी ही, अगर वह इन सीमाओं में भी है। शायद और बेहतर झलकेगी।

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  28. दृष्टिकोण आपका अपना होगा ही, लेकिन तथ्‍यों और जानकारियों के लिए नंदिता हक्‍सर की पुस्‍तक Indian Doctor in Jail: The Story of Binayak Sen इस संदर्भ में पठनीय है.
    एक अन्‍य प्रसंग में की गई अपनी टिप्‍पणी दुहरा रहा हूं- ''अपनी सीमा खुद निर्धारित कर रहे हैं, ऐसे मण्‍डूकों को उनके शाश्‍वत कूप और बाकी को नये साल का उन्‍मुक्‍त आकाश मुबारक''

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  29. बहुत सारे विचार आ चुके हैं। मेरा अनुभव यह है कि ईसाई संगठनों से प्रभावित कोई भी व्‍यक्ति को भूलवश यदि इस देश में सजा मिल गयी है तो उसके लिए सारी दुनिया हल्‍ला तो मचाएगी ही ना। ऐसे तो सभी की पोल खुल जाएगी। नक्‍सलवाद किसके इशारे पर चल रहा है, सारी दुनिया जानती है। लेकिन हमें तो खुशी है कि पहली बार भारत की अदालत ने हिम्‍मत दिखायी है।

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  30. मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकती क्योंकि मैंने चिट्ठा चर्चा की वह पोस्ट पढ़ी नहीं.
    आपको नव वर्ष की शुभकामनाएँ !

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  31. इस देश में कई लोगों को सजा मिलती है । नक्सलियों के समर्थक को सजा मिलने से पश्चिम के पेट में दर्द क्यों होता है !!
    - डॉ महेश सिन्हा, छत्तीसगढ़

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  32. माननीय बैरागी जी, कस्साब को तो ठीक सजा मिली है ना? या कुछ ज्यादा हो गयी? आप बताये कहीं न्यायालय पर सवाल तो नहीं उठेंगे? अगली बार से ऐसे मामलो में फैसले से पहले आपसे पूछ लिया करेंगे|

    हद हो गयी भई| लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पराकाष्ठा हो गयी| जिसे देखो वो मुंह उठाये बौद्धिक जुगाली का प्रपंच कर रहा है| किसी कवि ने ठीक ही लिखा है

    "खाते हैं मेरे देश का
    और बकते हैं परदेश का
    आस्तीन के सांप भी लजाते हैं
    हाल ऐसा है इस वर्ग विशेष का"

    और राहुल जी, आप की भी गजब की हिम्मत है, सरकारी नौकर होते हुए देशद्रोही के पक्ष में खड़े दीखते हैं| आप जिस पुस्तक की बात कर रहे हैं उसका शीर्षक ही तथ्य से परे है| डाक्टर!!!!! भई माफ़ करे पुलिस को इस देशद्रोही के घर छापे में एक भी डाक्टरी सामान नहीं मिला| आपने तो अखबारों में पढ़ा ही होगा| फिर काहे का डाक्टर| सूर्या अपार्टमेन्ट का पुरातत्व थोड़ा झाँक आये| आपको पता चल जाएगा कि इस सो काल्ड डाक्टर के बारे में|
    अजित जी और सिन्हा जी ने कम शब्दों में सब कह दिया|

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  33. मैने भी चिट्ठाचर्चा की पोस्ट नही पढी। 8 -9 दिन बाद नेट पर आयी हूँ। लेकिन मैं बिलकुल शान्तिप्रिय हू। नक्सलवाद किसी समस्या का हल नही। आपको भी सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।

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  34. डॉ. अनुराग से सहमत। बार-बार सवाल उठ रहा है कि विनायक सेन माओवादी या नक्सलवादी हैं। मुझे अब तक यह नहीं समझ में आया कि कैसे? पीयूसीएल, जिसकी छत्तीसगढ़ शाखा के वे उपाध्यक्ष हैं- जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित संस्था है, जिसका माओवाद से कोई लेना देना नहीं है। उसके पहले कांग्रेस की अजीत जोगी सरकार में वे लंबे समय तक छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सलाहकारों की टीम में शामिल थे।

    हां, उनकी गिरफ्तारी से कांग्रेस और भाजपा दोनो को ही राजनीतिक रोटी सेंकने का मौका मिला है और सेन के बहाने वे माओवाद को काउंटर कर रहे हैं। कांग्रेस देर सबेर इस गिरफ्तारी के लिए बीजेपी को दोषी ठहराने जा रही है, अगले न्यायालय का फैसला बस आने दीजिए। कांग्रेस ने भी सलवा जुडूम का विरोध किया, सेन ने भी किया। पता नहीं किस तरह से सेन के माओवादियों से रिश्ते निकाले गए और उन्हें राजद्रोह (राष्ट्रदोह नहीं) की सजा दे दी गई। वैसे भी राजद्रोह कोई बड़ी बात नहीं है, सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता को भड़काने वाले को यह सजा दी जाती थी, और गांधी तथा तिलक को भी अंग्रेजों के जमाने में यह सजा मिली थी।

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  35. प्रिय सत्येन्द्र आप लिखते हैं "वैसे भी राजद्रोह कोई बड़ी बात नहीं है,"

    तो भैया इतनी सी बात पर इतनी आग क्यों लगाई जा रही है? क्यों न्यायालय से लेकर जनता द्वारा चुनी गयी सरकार को कोसा जा रहा है? क्यों एक ही तरह की रपट पूरे देश में पैसे देकर छपवाई जा रही है कि किसी मसीहे को पकड़ लिया गया है?

    राजद्रोह बड़ी बात है जनाब इसलिए तो आप जैसों के सीने में सांप लोट रहा है| आप खुदै ही फंस गए अपनी बात पर|

    ये आपका कैदी मुझे तो नपुंसक लगता है| उसकी गिरफ्तारी के बाद जितने भी पकडे गए सबने स्वीकारा कि वे देश विरोधी विचारधारा को मानते हैं (अखबार पढ़ें) | इस कैदी में तो इतना भी ग्त्ट्स नहीं है| दिन रात अपनी आत्मा (अगर बची होगी तो) से लड़ रहा होगा| गांधी का उदाहरण देते हो, क्या कभी गांधी ने अंग्रेजो से कहा कि मुझे फंसा रहे हो मैंने तो कभी आजादी नहीं माँगी| ये तुम्हारे नपुंसक कैदी में इतनी कूबत नहीं कि सच को सीना चौड़ाकर स्वीकार सके|

    इस फैसले के बाद नेपाल का एक माओवादी सांसद इस कैदी के पक्ष में आग उगलता है| फिर अचानक ही जंगल में नक्सलवादी हिंसा तेज कर देते हैं और मंत्रियो के पुतले फूंकते जाते हैं| यदि यह कैदी उनका आदमी नहीं तो उन्हें यह सब करने की जरूरत ही क्या है?

    तो प्रिय सत्येन्द्र, सार यही है कि जनता उतनी भी बेवकूफ नहीं है जितना तुम समझते हो|

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  36. कहीं जाने अनजाने गुरुदेव की शान में गुस्ताख़ी न हो जाये इसलिये मैं यहाँ कमेन्ट करने से बचता आया हूँ । आज सिर्फ़ यह कहना है कि बिनायकसेन पर अनायास लपकने वाले सज्जन कभी वहाँ तक पहुँच कर भी देखते, जो उन्हें डकैत बागी देशद्रोही इत्यादि के रूप में देखते हैं । यह सब कवायद समय साक्षेप है, मुझे याद है कि पँडित गोवेन्द वल्लभ पन्त ने काकोरी के "मुज़रिमों" का केस लड़ने से मना कर दिया था, जब्कि पँडित जगत नारायण मुल्ला सरकारी वकील थे.. जिनके लिये अतीव क्षोभ में बिस्मिल ने अपनी डायरी में लिखा था कि, "मेरा अन्तिम नमस्कार पूजनीय पं० जगतनारायण मुल्ला की सेवा तक भी पहुंचा दीजिये । उन्हें हमारी कुर्बानी और खून से सने हुए रूपये की कमाई से सुख की नींद आवे ।" क्या हम में से किसी को नागा विद्रोही लालडेंगा की याद है ?
    मेरा आग्रह यह है कि यदि हम किसी विचारधारा और बलिदान के उसूलों तक नहीं पहुँच सकते, तो न सही... मगर हीटर के सामने बैठ अपने ड्राइँगरूम में चमगोँइयाँ न चुभलायें !

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  37. @ डा. अमर कुमार - 1. मैं बिनायक सेन मामले में जजमेण्टल नहीं हूं, पहले ही बता दिया है। तब आपकी टिर्राहट समझ नहीं आती। 2. मैं हीटर के सामने बैठ बौद्धिक जुगाली करने वाला जीव नहीं हूं। तब आप मुझे गाली कैसे दे रहे हैं?
    3. यह मैं इस लिये लिख रहा हूं कि आपने किसी को सम्बोधन कर टिप्पणी नहीं की है, लिहाजा वह पोस्ट लेखक पर मानी जायेगी। अगर किसी टिप्पणी विशेष पर है तो आपको वह स्पष्ट करना चाहिये, जिससे वे सज्जन समझ/उत्तर दे सकें।

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  38. अमर जी, आप भी!!!!!! आज न जाने इस पोस्ट के माध्यम से कितने सारे चेहरे बेनकाब होंगे-------

    चलिए आपकी टिप्पणी पर आते हैं| आपने द्रोह पर ही कितनी सारी पंक्तियाँ लिखी है| यानी आप भी मानते हैं कि कैदी विद्रोह कर रहा है| अरे यही बात तो माननीय न्यायालय कह रहा है और हम भी यही कह रहे है| फिर कैसा बवाल????

    कृपया राष्ट्रवाद से जुड़े घटनाक्रम को देशद्रोहियों से जोड़कर भारत मां के महान सपूतों को आहत मत करो| आपने तो पढ़कर अपना ब्रेन वाश किया है हमने उस कैदी को करीब से देखा है| बहुत देर कर दी ईश्वर ने सजा देने में-----

    आपका आग्रह आप ही से

    "मेरा आग्रह यह है कि यदि हम किसी विचारधारा और बलिदान के उसूलों तक नहीं पहुँच सकते, तो न सही... मगर हीटर के सामने बैठ अपने ड्राइँगरूम में चमगोँइयाँ न चुभलायें !"

    देशभक्तों और देशद्रोहियों को एक तराजू में मत तौलो अमर कुमार| इस देश ने रोटी दी है, उसका तो मान करो -----

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  39. बड़े दिनों बाद आया हूँ सर आपके ब्लौग पर। विनायक सेन का अंदरूनी मामला जो भी हो, अपने विवादित समर्थन और आपत्तिजनक वक्तव्यों से महज इसलिये बरी नहीं किये जा सकते कि वो तबके-विशेष के उत्थान से जुड़े हैं या समाजसेवी हैं। हमसब अपनी सहमति-असहमति दर्शाने के लिये स्वतंत्र है। मैं विनायक की गिरफ्तारी को जायज मानता हूं और मेरे कई करीबी मित्र इसे जायज नहीं मानते...सब का अपना अपना सोचने का ढ़ंग है, सर। लेकिन इससे जोड़ कर ये कहना कि चिट्ठा-चर्चा की एक मंच के तौर पर ये एकतरफी है, थोड़ा जँच नहीं रहा। दिन-विशेष की चर्चा चर्चाकारों के व्यक्तिगत एटिच्यूड पर तो निर्भर करेगा ही। अब कोई चर्चाकार यदि एक दिन सिर्फ प्रेम-कविताओं की चर्चा करे तो क्या ये भी मंच के चारित्रिक दोष में आयेगा कि कवितायें तो इतनी है, फिर प्रेम-कविताओं का जिक्र ही क्यों?किसी त्योहार-विशेष के दिन सिर्फ उस त्योहार से जुड़ी पोस्टों का जिक्र होता है, तो क्या ये भी चर्चा-मंच की एकतरफी हो गयी? दिन-विशेष, मुद्दा-विशेष चर्चायें तो होंगी ही सर, एक चर्चाकार अपनी सामर्थ्य, अपनी पसंद के हिसाब से ही चर्चा करेगा। शेष सहमति-असहमति के टिप्पणी में कोई मोडेरेशन भी नहीं है वहाँ तो...

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  40. @ गौतम - ओह, आप चिठ्ठाचर्चाकार का विचारधारा/एक व्यक्ति की हैगियोग्राफी ठेलना सही मानते हैं (वह भी तब, जब ब्लॉग्स पर विपरीत पर्याप्त रूप से मौजूद है); आपकी मर्जी। बाकी, मैने अपनी बात रख दी है।

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  41. ज्ञान जी से इस मुद्दा विशेष पर असहमत और अमर कुमार जी की कुछ बातों से सहमत होने के बाद भी अमर कुमार जी द्वारा प्रयुक्त ज्ञान जी पर व्यक्तिगत आक्षेप करती भाषा की भर्त्सना करता हूँ ! कभी अमर कुमार जी ने मुझसे पूछा था कि ''इतने प्रखर बुद्धि के बाद इतने कुंठित क्यों हो , अमरेन्द्र !'' आज मैं उनके इस 'टिर्राहट' पूर्ण लहजे को देखकर कहना चाहूँगा कि '' इतने तर्क आदि से युक्त होने पर भी आप इतने कुंठित क्यों हैं , डॉ. अमर कुमार !'' ........ मैं तो लौंडा-लफाड़ी हूँ पर आप स्वयं को अनुभवी लगाते हैं अतः आपको किसी वरिष्ठ ब्लॉगर से संवाद के दौरान भाषा में कुंठाहीनता बरतनी चाहिए ! सादर..

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  42. @ज्ञानदत्त सर,

    आपने अपनी बात बिल्कुल स्पष्ट और अच्छे तरीके से रखी है और आपकी यही मर्यादा आपको हिंदी ब्लौग-जगत के कुछ गिने-चुने पसंदीदा लोगों में शुमार करती है। लेकिन डा० अनुराग की ये पोस्ट चर्चा-मंच की एकतरफीयत को दर्शाती है, इससे सहमत नहीं हूँ मैं। अपने तर्क अपनी सीमित समझ के मुताबिक से रख चुका हूँ मैं। डा० अनुराग ने वहाँ पोस्टों के लिंक रख कर चर्चा ही तो की है एक मुद्दा-विशेष को लेकर। ये जरूर है कि लिखने के क्रम में उनका झुकाव स्पष्ट हो जा रहा और जो कि लाजिमी है। डा० साब को मैं बहुत पसंद करता हूँ, लेकिन इस मुद्दे पर उनसे सहमत नहीं। लेकिन ये तो अपनी-अपनी राय है ना, सर...और लिखते समय व्यक्ति-विशेष की अपनी राय तो लक्षित होगी ही, उससे पूरे मंच की एकतर्फी कहाँ से साबित होती है। डा० साब ने एक आम चर्चा की तरह वहाँ पोस्टों के लिंक रखे हैं। वो कहीं से भी किसी व्यक्ति विशेष की हैगियोग्राफी नहीं ठेली हुई। लोग टिप्पणी में अपनी सहमति-असहमति जता ही रहे हैं। यही तो मंच का मुद्दा है।

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  43. धन्यवाद, पर्याप्त टिप्पणियां/प्रतिक्रियायें आ गयीं! अब बन्द किया जाये टिप्पणी आमंत्रण।

    (मॉडरेशन बहुत समय लेता है!)

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  44. अनूप शुक्ल, चिठ्ठाचर्चा वाले की टिप्पणी मेल में मिली है:
    आपने लिखा - चिठ्ठाचर्चा की एकतर्फियत जमी नहीं!
    अच्छा किया कि आपने इस तरफ़ इशारा किया कि चर्चा एकतरफ़ा है। इसके बाद दूसरे पहलूओं की बात खुली। इस लिहाज से चर्चा सफ़ल ही रही कि मिसरा वहां पढ़ा गया और यहां आपने गजल मुकम्मल की।

    आपने लिखा- अगर ब्लॉगजगत में मात्र रचनाधर्मिता की चर्चा होती है, तो चर्चाकार अपनी पसन्द की कविता/कहानी/पोस्ट की चर्चा करें तो ठीक। पर अगर एक विवादास्पद मुद्दे की चर्चा हो तो एक तरफा विवरण चर्चामंच का मिसयूज है, एक वाद की तरफदारी फैलाने के लिये। यह हो सकता है कि चर्चाकार अपनी पसन्द से ६०:४० या ७०:३० का अनुपात बना सकते हैं। पर एक तरफा बात करना चारित्रिक दोष है ऐसे मंच का।

    मेरा कहना जो है वह मैं साल भर पहले अपनी पोस्ट में कह चुका हूं :

    चिट्ठाचर्चा के बारे में लोगों ने कोई सवाल नहीं किये लेकिन कई बार शुरू से ही यह बात उठती रही है और लोग कहते रहे कि चर्चा में लोग मनमानी करते हैं। कुछ खास चिट्ठों की चर्चा करते हैं। मंच का दुरुपयोग होता है। चिट्ठाचर्चा मतलब चिथड़ा चर्चा। आदि-इत्यादि। वगैरह-वगैरह।

    हम इस मसले पर खाली यही कहना चाहते हैं कि चिट्ठाचर्चा का कोई गुप्त एजेंडा नहीं है कि इनकी चर्चा होनी है, इनकी नहीं होनी है। चर्चाकारों को जो मन आता है, जैसी समझ है उसके हिसाब से चर्चा करते हैं। इस मसले पर चर्चाकारों में आपसै में मतैक्य नहीं है। हर चर्चाकार का अलग अंदाज है। हर चर्चाकार अपने चर्चा दिन का बादशाह होता है।
    डा.अनुराग को इस मसले पर जो समझ में आया और जैसी उनकी सोच थी /है वैसी चर्चा उन्होंने की। आप उससे सहमत/असहमत हों यह आपकी सोच पर है। जो बात आपको एकतरफ़ा लगती है संभव है चर्चाकार की समझ में वही किसी बात का पूरा पहलू हो। आपकी अपेक्षा जायज है कि बातें संतुलित हों लेकिन लिखते समय यह कौन तय करेगा चर्चाकार ही न। उसके बाद अपनी राय जाहिर करने के लिये आप हैं हीं।

    आपने डा.अनुराग आर्य को अपनी टिप्पणी सलाह दी कि इस तरह की पोस्टें उनको चिट्ठाचर्चा में नहीं लगानी चाहिये। अपने ब्लॉग पर करनी चाहिये।

    मेरी समझ में यह बात कुछ ज्यादा हो गयी। डा.अनुराग आर्य ने इसके पहले भी कई चर्चायें की हैं। और लोगों ने भी। लेकिन इस तरह की सलाह नहीं आई। आप चिट्ठाचर्चा को हड़काते हुये डा.अनुराग पर ही फ़िरंट हो लिये। क्या आपकी नाराजगी डा.अनुराग से ही है?

    आपने कुछ टिप्पणियों के जबाब काम भर से ज्यादा तीखे दिये हैं। बिन मांगी सलाह यह है कि जो बातें आपको खराब लगती हों उनके जबाब तसल्ली दे दिया करें। कौनौ ट्रेन थोड़ी छूटी जा रही है।

    डा.विनायक सेन के बारे में यहां कछ न कहूंगा क्योंकि उससे संबंधित टिप्पणी मैं सबंधित चर्चा में कर चुका हूं।

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  45. संजीत त्रिपाठी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी:

    आदरणीय ज्ञान जी,

    समय की कमी के चलते एक लम्बे समय से आपकी पोस्टें देर से पढ़ रहा हूँ, कमेन्ट तो कम ही दे रहा हूँ,
    आज स्वास्थ ठीक न होने की वजह से घर पर ही हूँ दिन भर से, तो ऐसे में आपके इस पोस्ट पर कमेन्ट किया , कमेन्ट डिसेबल्ड हैं इसलिए ईमेल से भेजने की गुस्ताखी कर रहा हूँ,


    http://halchal.gyandutt.com/2011/01/blog-post.html
    ---
    हम्म, पता नहीं डॉ विनायक सेन निर्दोष हैं या दोषी लेकिन छत्तीसगढ़ में आमजन इस फैसले को सही मान रहा है. इसके पीछे भी कारण हैं, वो यह कि यहां हर दिन नक्सली वारदात हो रही है, लोग रोजाना ही मरे जा रहे हैं, कभी सड़क खोदी जा रही है तो कभी पुलिया उडाये जा रहे हैं, अब ऐसे में कोई नक्सलियों से सहानुभूति रखे तो आमजन क्या सोचे?
    दूसरी बात जो कही जा रही है कि डॉ विनायक सेन ने यह किया वह किया. मैं छत्तीसगढ़ में ही पैदा हुआ हूँ , लेकिन छत्तीसगढ़ के अख़बारों में डॉ विनायक सेन द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेखन कभी पढ़ा हो ऐसा मुझे याद नहीं, मिडिया पर सरकारी दबाव की बातें तो पिछले दस साल की ही है न, उस से पहले तो दबाव नहीं था या कम था, फिर क्यों नहीं छापा अख़बारों ने डॉ विनायक सेन के यहाँ किए गए कार्यों को, जबकि यहाँ वामपंथ विचारधारा वाले अख़बार भी रहे हैं? और जब अख़बारों तक में उनके कार्य नहीं छपे हैं तो आमजन क्या जानेगा और उनकी सहानुभूति का वही अर्थ निकलेगा जो निकाल ही रहा है.
    ऊपर एक सज्जन ने कहा कि "पीयूसीएल जेपी द्वारा स्थापित संस्था है, उसका माओवाद से कोई लेना देना नहीं है". सहमत हूँ लेकिन यह कहने से पहले यह याद रखें कि कोई भी संस्था अपने किसी सदस्य की पूर्णरुपेण गारंटी कैसे ले सकती है की उसकी सहानुभूति किसके साथ है? बतौर उदाहरण कांग्रेस की स्थापना और शुरूआती सदस्य काफी भले लोग थे, लेकिन अब उसका क्या हाल है?
    दोस्तों, दूर बैठ कर गाल बजने वालो से हमेश ही एक निवेदन करता आया हूँ कि कभी छत्तीसगढ़ आइये और एक महीने ही बस बस्तर के अंदरूनी इलाको में रह कर देखिये.... हालात क्या हैं...... फिर सहानुभूति किसके तरफ होगी ये देखते हैं....
    वैसे मेरा मानना है कि डॉ सेन को सुप्रीम कोर्ट से रहत मिल जाएगी.
    बाकी रही चिटठाचर्चा की बात, तो करने वाले और समूह बनाने वाले ही भला जानें ...
    नव वर्ष की बधाई और शुभकामनाएं

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  46. ई मेल से टिप्पणी, सतीश सक्सेना जी की:
    ज्ञान भाई ,
    विनायक सेन के बारे में अभी तक अधिक नहीं जानता हूँ अतः टिप्पणी नहीं कर सका, मगर आपकी बेबाकी पसंद आ रही है ...मगर इस देश में अदालत को सराकारी नहीं कहा जा सकता वे अधिकतर निष्पक्ष कार्य करती हैं और सरकारी दखलन्दाजी बिलकुल नहीं होती ! कानून की इज्ज़त तो करनी ही चाहिए ...
    - ब्लॉग जगत के इतिहास की चर्चा में चिटठा चर्चा का एक योगदान और महत्व अवश्य रहेगा ऐसा मेरा विश्वास है
    -चिटठा चर्चा पर एक से एक बेकार लेखक अपना ज्ञान उंडेलते रहते हैं और शायद इसीलिए चिटठा चर्चा की साख बहुत गिरी है...
    -अनूप शुकुल को चाहिए कि वे कुछ अच्छे लेखकों विचारकों से वहां लिखने का आग्रह करें तो शायद वह चर्चा अच्छी बन पड़े...
    अंत में आपके बारे में ....
    चीज हो आप भी गुरु देव !
    आपके स्वास्थ्य के लिए कामना करता हूँ !

    --
    सतीश सक्सेना
    मेरे गीत

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