Friday, September 3, 2010

टल्लू की मछरियाँ

टल्लू का भाई भोला बिजनिस करता है और बचे समय में दारू पीता है। टल्लू दारू पीता है और बचे समय में अब तक माल ढोने की ट्राली चलाता था। दारू की किल्लत भई तो नौ सौ रुपये में ट्राली बेच दी। अब वे नौ सौ भी खतम हो चुके हैं।

Fishery Training4 उस दिन भरत लाल से मिला टल्लू। मिलते ही बोला – भाइ, एठ्ठे रुपिया द। राजस्री खाई, बहुत टाइम भवा। एठ्ठे अऊर होइ त तोहरे बदे भी लियाई (भाई, एक रुपया देना। राजश्री (गुटखा की एक ब्राण्ड) खानी है, बहुत समय हुआ है खाये। एक रुपया और हो तो तुम्हारे लिये भी लाऊं!)।

टल्लू को दारू के लिये पैसा मिलने की उम्मीद हो तो आपके पीछे पीछे सात समन्दर पार भी जा सकता है।

भोला ने टल्लू को घर से निकाल दिया है। घर से चोरी कितना बर्दाश्त करता। अब कैसे जीता है टल्लू? जितना मासूम यह सवाल उतनी रोचक रही तहकीकात!

रात नौ बजे वह गंगा के किनारे मछरी (मछली) मारने जाता है। गंगा उफान पर हैं, सो खूब मछलियां मिल जाती हैं। एक दो बचा कर शेष गुड़ से शराब बनाने वालों को बेच देता है। बदले में उनसे लेता है देसी शराब। यह सब कारोबार गंगा किनारे होता है। मध्य रात्रि तक बची मछलियां भून कर शराब के साथ सेवन करता है। फिर खा पी कर वहीं रमबगिया में सो जाता है।

सरल आदमी। सरल जिंदगी। गंगामाई सब तरह के लोगों को पाल रही हैं। टल्लू को भी!

उफान पर गंगामाई

 


कल फिर वहीं हनुमान मन्दिर के पीपल के थाले पर जगदेव पुरी जी से मिला। उन्हे अपने नेट बुक के माध्यम से उनके ऊपर लिखी पोस्ट दिखाई और तय किया कि हफ्ते में एक दिन उनसे मिल कर इस क्षेत्र का इतिहास नेट-बद्ध करेंगे हम लोग।

मुझे लगा कि पोस्ट देख कर जगदेव जी में रुचि जगी है। और हर सप्ताह एक पोस्ट उनके सानिध्य में बन सकेगी! 


28 comments:

  1. जय गंगा मैया की और जय टल्लू भैया की ।

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  2. वस्तु विनमय की परम्परा तो पौराणिक है . इस हाथ दे उस हाथ ले . और मछ्ली के बदले शराब तो सोने मे सुहागा है

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  3. धन्य हैं आप - हिन्दी ब्लॉगिंग का सार्थक प्रयोग कोई आपसे सीखे।

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  4. राजश्री वालों का पता ढूँढ़ रहा हूँ। यह पोस्ट उन्हें भेजनी है।

    एक दोहा भूल सा गया है जिसमें मेघों के सबके ऊपर समान रूप से बरसने की बात है। आप की गंगा माई वैसी ही हैं। संत भी ऐसे ही होते हैं। बहुत ऊँचाई पर

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  5. सही है...गंगा माई और धरती माई सबको पाल रही हैं..पल ही जा रहे हैं सब!

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  6. टल्लू लोगों को गंगा की ही ज़रूरत नहीं रहती, कहीं भी पल लेते हैं.

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  7. मुझे जंगल में मिला गड़रिया याद आया जो दूध पीता था, गाय-भैंस चराता था और बंसी बजाता था। उस के जीवन में कोई राजश्री नहीं थी।

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  8. आदमी तो सरल ही है. अपनी तरह की मौत चुनने की स्वतंत्रता तो सभी की है.

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  9. टल्लू द्वारा मछलीयों के सानिध्य में रहना और उन्हें बेच बाचकर अपना गुजर बसर करना, दारू पीना.... काम चलाना देखकर लगता है कि जरूर टल्लू कभी तनहाई में अपनी उन मछलियों से अमिताभ बच्चन की तरह बतियाता होगा -

    कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

    कि तुम थोड़ा और होती तो एक नाव खरीदता
    थोड़ा और होती तो एक घर बनाता
    कुछ औऱ भी ज्यादा होतीं तो कार लेता
    मैं ऐसा करता....मैं वैसा करता

    कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है

    लेकिन साला ये खयाल कभी कभी ही क्यों आता है :)

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  10. "टल्लू को घर से निकाल दिया है"

    टल्लु घर से और लल्लु बिहार से :)

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  11. टल्लू भैया की जय !!
    यहाँ भी पधारें:-
    अकेला कलम

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  12. गंगा मैया में जब तक के पानी रहे,
    टल्लू भैया तेरी ज़िन्दगानी रहे!

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  13. वाह टल्लू महाराज...

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  14. सर्वप्रथम तो आपका प्रसन्न मुखमण्डल देखकर मन प्रसन्न हो गया है। सरल जीवन यदि टिल्लू का है तो गरल काहे चढ़ाये रहते हैं। जीविका वैसे अच्छी है पर गंगा मैया उतर गयीं तब क्या करेंगे? पर यदि इतना सोचे तो टिल्लू नहीं रहेंगे।

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  15. ये टल्लू जैसे लोग बडे भाग्यशाली हैं जी।
    हम (जो अपने आप को मध्य वर्गीय बुद्धिजीवी समझते हैं) टल्लू पर तरस खाने की गलती करते हैं
    उसे हमारी सहानुभूती की कोई आवश्यकता नहीं।
    मस्त रहता है और आजीवन मस्त रहेगा।
    थोडे में ही गुजारा करना सीख लिया है।

    "ऊफ़ान पर गंगामाई" तसवीर बहुत ही आकर्षक लगी।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  16. काश गंगा माई के किनारे हमरा भी एक तो .. कुटिया होती ......... वहीँ बैठ कर लिखते और तिपायाते रहते...........

    और हाँ शाम को भोला कि संगत भी हो जाती....

    भाई भोला एक तो टिप्पी हमरे ब्लॉग पर दो .... दारू का इंतज़ाम हमही करते हैं.

    और एक बात तो पक्की ही ज्ञानदत्त जी की अगली पोस्ट के हीरो हमही होते.

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  17. मछली पकड़ने जितनी मेहनत भी काहे करनी, बस संसार से विरक्त हो गया हूँ, घोषित कर दो. लोग ही ट्ल्लू का पेट पाल देंगे. जै हो ट्ल्लू बाबा की.

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  18. भारी श्रद्धा उमढ रही है टिल्लू बाबा के प्रति हमारे मन में. पोस्ट पर राग दरबारी की छाप है. मस्त.

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  19. अपरिग्रही टल्‍लू ने जीवन के सत्‍य का संधान कर लिया है और आपने टल्‍लू का, बधाई. जगदेव पुरी जी से आपकी मुलाकात होती रहे. अब आपसे क्‍या कहें कि एक थे शिव प्रसाद मिश्र रूद्र काशिकेय.

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  20. एक बचे समय में बिजनेस करता है दूसरा बचे समय में दारु. दोनों ही दोनों काम करते हैं... पर बहुत फर्क लग रहा है आउटपुट में. बाकी गंगामाई तो हैं ही सबके लिए.

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  21. टल्लू तो ’लगा कर’ चैन से सो रहा होगा,
    उसे भला हमारी टिप्पणी की चिन्ता क्यों होने लगी ?
    वह ठहरा फ़क्कड़, जिन्दगी की अपनी परिभाषाओं को जी रहा है ?
    परेशान तो हम हैं, कि आजकल फलाँना ढेर बुद्धि का जाल क्यों बुन रहा है ?
    सबकी अपनी चिन्तायें, सबकी अपनी अपनी बीमारियाँ, उसने तो स्वेट मार्टेन का नाम भी न सुना होगा ।

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  22. नया कलेवर बहुत जम रहा है।
    रमबगिया की याद अच्छी दिलाई आपने। जल्दी ही जाता हूँ एक चक्कर लगाने…
    और जगदेव पुरी जी के सान्निध्य में आप से और भी रोचकता अपेक्षित है।

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  23. आपका नया प्रोफाइल तो बिलकुल आर्मी के कर्नल या जनरल जैसा लग रहा है. शायद crew cut hair की वज़ह से. लेख अच्छा लगा. जैसा की ज्ञानी लोग सिखाते है वर्तमान में जीयो तो टल्लू भी शुद्ध रूप से वर्तमान का ही प्राणी है मज़े की बात ये है कि टल्लू मेरे छोटे भाई का nick name है जो यहाँ मुंबई में ONGC में Chief Engineer है और उसकी छोटी सी बेटी भी अपने पापा के इस नाम पर हँसती है. टल्लू को भी आपका लेख पड़वाऊंगा :-))

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  24. आप वह इतिहास लिख रहे हैं जो किसी विश्‍व विद्यालय के पाठ्यक्रम में कभी नहीं मिलेगा - जीवन का पाठ्यक्रम।

    लिखते रहिए। ईश्‍वर आपको पूर्ण स्‍वस्‍थ बनाए और और बनाए रखे - आपके लिए नहीं, हम सब के लिए।

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  25. जितना सरल टल्लू, उतना सरल उसका जीवन. काश ! इतनी सरलता हममें भी होती... जिंदगी इतनी उलझी हुयी ना होती.
    गंगा मैया सच में बहुत लोगों को पाल रही हैं और आप हम तक उनकी बातें पहुँचा रहे हैं. अपने आस-पास की जिंदगी के प्रति संवेदनशीलता... यही तो ब्लोगिंग है...
    अब कैसी तबीयत है आपकी. मैं भी काफी दिनों से ब्लॉगजगत से दूर थी, तो इधर नहीं आ पा रही थी.

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  26. धरती माँ कभी पीछे नहीं हटती.. चाहे उसके बनाए हुए मानव या मानव के बनाए सरकार हट जाएँ..
    जय गंगा मैया!!

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  27. वाह ...जबरदस्त जुगाड़ है........
    सही है, माँ कभी किसी को भूखा नहीं रहने देती.......

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  28. शिवकुटी का इतिहास रोचक भी होगा और महत्वपूर्ण भी। इसे जरूर पूरा करें। जगदेवपुरी जी निश्चित रूप से इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे। यह साहित्य, संस्क्रिति और पाठक सभी के लिये बहुत जरूरी है। आपकी फोटोग्राफी भी अद्भुत है, यह शिवकुटी के इतिहास को और सम्रिद्ध करेगी।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय