Thursday, October 30, 2008

सफलता की अचूक नीति


श्री अरविन्द को उधृत करते हुये रीता पाण्डेय ने लिखा:
mother-vijayकिसी महत और दुरुह कार्य को सम्पन्न करने के लिये दो शक्तियां कार्य करती हैं। एक है दृढ़ और अटूट अभीप्सा और दूसरी है भाग्वतप्रसादरूपा मातृशक्ति। पहली मानव के प्रयत्न के रूप में नीचे से कार्य करती है और दूसरी ईश्वर की कृपा से सत्य और प्रकाश की दशा में ऊपर से सहायता करती मातृ शक्ति है।

और इस पर श्री अनुराग शर्मा (स्मार्ट इण्डियन) ने प्रस्थानत्रयी से उसके समकक्ष सूत्र निकाल कर रखा (यह भग्वद्गीता का अन्तिम श्लोक है):
Vijayयत्र योगेश्चर: कृष्णो, यत्र पार्थौ धनुर्धर:|
तत्र श्रीविजयो भूतिर्धुवा नीतिर्मतिर्मम॥
(हे राजन, जहां योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं, और जहां गाण्डीव धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है – ऐसा मेरा (संजय का) मत है।)
अद्भुत! अर्जुन मानवीय दृढ़ और अटूट अभीप्सा का प्रतीक है। और कृष्ण के माध्यम से डिवाइन ग्रेस का वरद हस्त मिल रहा है। फिर भला विजय कैसे न मिलेगी, दुरुह कार्य सम्पन्न कैसे न होगा!

भला हो! निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन! हम तो निमित्त बनें – पूर्ण सत्य और सरेण्डर की भावना के साथ।
Photobucket मन हो रहा है कि मानसिक हलचल जय, विजय, सत्य, समर्पण जैसे सद्गुणों पर ही हो सतत तो कितना शुभ हो! क्या जाने ईश्वर इसी दिशा में ही प्रेरित करें।

Sooranmoleमुझे बताया गया कि दीपावली के दिन जो सूरन (जिमीकन्द) नहीं खाता वह अगले जन्म में छछूंदर पैदा होता है! लिहाजा हमने तो खाया। अपने बगीचे में ही बड़ा सा सूरन का बल्ब निकला था। खाया भी डरते डरते कि गला न काटने लगे। पर श्रीमती जी ने बहुत कुशलता से बनाया था। गला भी न काटा और छछुन्दर बनने से भी बचा लिया। आजकल पंकज अवधिया नहीं लिख रहे वर्ना जिमीकन्द और छछूंदर पर कुछ बताते।
आप में से कौन कौन छछूंदर बनेगा!

29 comments:

  1. ये सूरन के बारे मेँ हमने तो आज ही सुना !
    गुजरात मेँ जिमिकम्द मिलता है वह भातर से पर्पल = जामुनी रँग का हूता है उसे रतालू या कम्द कहते हैँ
    और उसका स्वाद भी बहुत बढिया होता है - पँकज अवधिया जी जानते होँगेँ -ये अमरीका मेँ भी मिलने लगा है --

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  2. भई सूरन तो हमने भी खाया था पर वजह कुछ और बताई गई कि वन मे रहते हुए रामजी को यही सब खाने मिलता था, उनके वापसी पर्व पर इसलिये सूरन खाया जाता है। वैसे मेरे यहाँ, सूरन को काटने का काम मेरा था और पकाने का काम श्रीमतीजी का। हालत ये थी कि सूरन काटने के बाद मैं कुछ ऐसा लेप ढूंढ रहा था जिसके हाथों मे लगाने से सूरन काटने से हुई खुजली कम की जा सके :) अब सोच रहा हूँ...सूरन काटते वक्त हमारे आराध्यजनों को कितना कष्ट हुआ होगा :)

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  3. हमारा तो छछूंदर पैदा होना तय ही मान कर चलिये अगले जनम के लिए. वैसे अभी भी उसी टाईप के हैं.. :)

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  4. दीपावली के दिन जो सूरन (जिमीकन्द) नहीं खाता वह अगले जन्म में छछूंदर पैदा होता है!
    तब तो समझो हमारे अगले चालीस जन्म बेकार गए समझो. एकाध बार खाकर जीभ भी छिलाई और वह दिन भी दीवाली से इतर था सो अगला जन्म भी व्यर्थ गया. यहाँ पर तो वैसे ही आजकल हालोवीन का भूतिया माहौल चल रहा है और आपने यह छछूंदर बन जाने का डर और दिखा दिया. अगली दिवाली के लिए पंचांग पर पहले ही ज़मींकंद का रिमाइनडर लिख कर रखना पडेगा वरना फ़िर भूल जायेंगे.

    मन हो रहा है कि मानसिक हलचल जय, विजय, सत्य, समर्पण जैसे सद्गुणों पर ही हो सतत तो कितना शुभ हो! क्या जाने ईश्वर इसी दिशा में ही प्रेरित करें।

    बहुत अच्छा विचार है, स्वागत है.

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  5. आज का आपका विचार अत्यन्त ही सुंदर है ! अब एक सवाळ मन में पैदा हो गया है की हम तो इसी जन्म में छछूंदर हैं तो अगले जन्म में क्या होगा ? चिंता सताने लग गई है ! :)

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  6. आज के टाइम में सारे बि‍ना सूरन खाए छुछवाए छछूंदर के माफि‍क भटक रहे हैं, अब सूरन ढूँढ़ने के लि‍ए कहॉं भटका जाए।

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  7. अगले जनम की बात तो छोडिये हम लोगो के यहाँ जो इमली और सिरका से उपचार किए बिना देसी सूरन खता है वह तत्छन छछूंदर योनि को प्राप्त हो जाता है . मैंने ख़ुद अपनी आँखों से लोंगो को छछूंदर होते देखा है .

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  8. पैशन, हर हाल में करके दिखाना, यही सफलता के मूल में है। ऊपर वाले की कृपा अपने हाथ में नहीं है। हम खुद पर ही कृपा कर लें मेहनत, लगन से काम कर लें। तो बहुत है। बाकी आप जमाये रहिये, इन दिनों स्वामी ज्ञानानंदजी हुए जा रहे हैं। आदरणीय रीताजी की प्रेरणा काम कर रही है। ज्ञान अंतत आता पत्नी की तरफ से ही है, वह चाहे तुलसीदासजी का मामला हो, या स्वामी ज्ञानानंदजी का हो.।
    बोल स्वामी ज्ञानानंद की जय।

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  9. अब जिन्हों ने नहीं खाया छछून्दर ही बनना है। छछूंदरों की आबादी बढ़ना तय है।

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  10. वाह! छछुन्दर बिक रहा है, सफलता की बोली ही न लग पा रही है!

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  11. छछूंदर हिन्दी ब्लॉग जगत का प्रतीक है. लोग अपने आप को उसके साथ बेहतर आइडेंटीफाय कर पाते हैं, सो ताज्जुब नहीं कि ज्यादा आकर्षण का केन्द्र बन रहा है. कृष्ण-अर्जुन, जय-विजय, सत्य-समर्पण जैसी कठिन शब्दावली आमने आते ही अधिकतर तो सांप-छछूंदर की गति को प्राप्त हो लेते हैं.

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  12. सूरन हमें बहुत पसन्द है। काम की चीज़ है।
    खरीदकर आलू और प्याज़ के साथ टोकरी में रख दो, कई दिनों तक।
    फ़्रिज में रखने की ज़रूरत नहीं होती।

    तैंतीस साल तक शादी का अनुभव है मुझे और फ़लस्वरूप खाल गेंडे जैसा बन गया है और खुजली नहीं होती।
    लाभ उठाकर पत्नि सूरन छीलने और काटने का काम हमें सौंप देती है। बाद में मेज़ पर जमे मिट्टी साफ़ करने का काम सो अलग।
    लेकिन सबज़ी बढ़िया बनाती है। इतना स्वादिष्ट होता है की मेहनत से कतराता नहीं हूँ। और आपके ब्लॉग पढ़ने के बाद अतिरिक्त "बोनस" के तौर पर पता चला कि अगले ज्न्म में कभी छ्छूंदर नहीं बनूँगा।
    धन्यवाद।

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  13. वैसे तो हमने जिमिकंद खा लिया है , इसलिए अगले जन्‍म में छूछूंदर बनने का तो कोई सवाल नहीं है , पर दीपावलि से छठ तक हर छोटी छोटी वस्‍तुओं की भी जरूरत क्‍यों पड पड जाती है ,इस परंपरा का अर्थ जाने के लिए मैं चिंतन कर रही थी। मुझे लगा कि वह शायद इसलिए कि किसी के घर पर कोई भी वस्‍तु हो तो वह उसका अदल बदल कर आराम से त्‍यौहार मना सके। शायद आप हमसे सहमत न भी हों।

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  14. सूरन छछूंदर वाली बात तो हम लोगों के यहाँ भी कही जाती है और इसीलिए दिवाली के दिन सूरन खाया जाता है ।और बाकि पूरे साल सूरन खाने की याद भी नही आती है । :)
    वैसे यहाँ गोवा मे तो लोग बारह मास सूरन खाते है ।

    मन हो रहा है कि मानसिक हलचल जय, विजय, सत्य, समर्पण जैसे सद्गुणों पर ही हो सतत तो कितना शुभ हो ।
    अच्छा विचार है ।

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  15. चलिए हम तो छछूंदर बनने की तैयारी करते हैं । परन्तु यही बात दीवाली से पहले बता देते तो ?
    घुघूती बासूती

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  16. वाह! छछुन्दर बिक रहा है, सफलता की बोली ही न लग पा रही है!

    'बड़ें भाग मानुष तनु पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा' और आप हैं की एक सूरन को लेकर छछुन्दर बनाए दे रहे हैं. अब लोग छछुन्दर सोचेंगे की सफलता :-)

    वैसे हम भी छछुन्दर बनेंगे अब तो!

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  17. आप यह भी बता दें कि क्या छछूंदर अपनी चोंच से इसे कुतर सकता है? ताकि अगले जन्म की चिन्ता थोड़ी कम हो। क्योंकि हमारा तो छछूंदर बनना तय करा दिया करवा दिया है आपने यह लिख कर।

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  18. हमने अपना काम किया, अब भागवत्प्रसाद कैसे मिले? इसे पाने का क्या तरीक़ा है आपके हिसाब से?

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  19. भाई अब हम तो ३० बार छछूंदर ही बनेगे, चलिये आप क धन्यवाद ३१ बार बच लिया, अगली दिपावली पर अगर छछूंदर नही बने तो जरुर जीमी कंद खाये गये दिपावली के दिन , लेकिन यह तो बता दो की खाना कच्चा ही है या सब्जी बन कर भी खा सकते है, कच्चा खाना...
    धन्यवाद एक अति सुन्दर पोस्ट के लिये

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  20. बॉस अपन तो नई बनेंगे क्योंकि जिमीकंद अपनी फ़ेररेट सब्जी है

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  21. एक लक्ष्य एक निष्ठ हो कर किया गया कर्म फलीभूत होता ही है।शिव(चरम लक्ष्य)की प्राप्ति के लिए शक्ति(शुचिता युक्त साधन)तो होना ही चाहिये।स्वामि समर्थ रामदास नें बार बार विजयश्री से वंचित शिवाजी को कहा था बिना शक्ति के आराधन के शिव कैसे प्राप्त कर सकता है?विजय हुई तुलजाभवानी की आराधना से।आसन्न चुनावों में साँपो की सर्पीली चाल देखते हुए ‘हम’ लोगों की गति छुछून्दर वाली होनीं ही है।

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  22. जिमीकंद को छत्तीसगढ़ में गरीबों का nonveg भी कहा जाता है...इसके बनने की विधियां अलग अलग है किंतु जो मसालेदार बनाया जाता है उसकी शैली और स्वाद nonveg जैसा ही होता है. चलिए स्वाद के साथ छछूंदर न बनने का बीमा भी...अब चमेली का तेल भी नहीं ढ़ुँढ़ंना पड़ेगा.

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  23. Sooran ka chooran ya chatani khane wale agle janm me chachunder bante hain ya kuch aur lekin Deepawali ke agle din dher sare log 'Bagad Billa' bane zaroor nazar aten hain. Nahin samjhe? Deepawali ki raat PARA hua kazal lagane ki bhi parampara hai. kazal lagane ke baad subah bade bade 'banke' bhi 'Bilauta' nazar ate hain.

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  24. बॉस अपन तो नई बनेंगे क्योंकि जिमीकंद अपनी फ़ेररेट सब्जी है

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  25. एक लक्ष्य एक निष्ठ हो कर किया गया कर्म फलीभूत होता ही है।शिव(चरम लक्ष्य)की प्राप्ति के लिए शक्ति(शुचिता युक्त साधन)तो होना ही चाहिये।स्वामि समर्थ रामदास नें बार बार विजयश्री से वंचित शिवाजी को कहा था बिना शक्ति के आराधन के शिव कैसे प्राप्त कर सकता है?विजय हुई तुलजाभवानी की आराधना से।आसन्न चुनावों में साँपो की सर्पीली चाल देखते हुए ‘हम’ लोगों की गति छुछून्दर वाली होनीं ही है।

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  26. सूरन छछूंदर वाली बात तो हम लोगों के यहाँ भी कही जाती है और इसीलिए दिवाली के दिन सूरन खाया जाता है ।और बाकि पूरे साल सूरन खाने की याद भी नही आती है । :)
    वैसे यहाँ गोवा मे तो लोग बारह मास सूरन खाते है ।

    मन हो रहा है कि मानसिक हलचल जय, विजय, सत्य, समर्पण जैसे सद्गुणों पर ही हो सतत तो कितना शुभ हो ।
    अच्छा विचार है ।

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  27. सूरन हमें बहुत पसन्द है। काम की चीज़ है।
    खरीदकर आलू और प्याज़ के साथ टोकरी में रख दो, कई दिनों तक।
    फ़्रिज में रखने की ज़रूरत नहीं होती।

    तैंतीस साल तक शादी का अनुभव है मुझे और फ़लस्वरूप खाल गेंडे जैसा बन गया है और खुजली नहीं होती।
    लाभ उठाकर पत्नि सूरन छीलने और काटने का काम हमें सौंप देती है। बाद में मेज़ पर जमे मिट्टी साफ़ करने का काम सो अलग।
    लेकिन सबज़ी बढ़िया बनाती है। इतना स्वादिष्ट होता है की मेहनत से कतराता नहीं हूँ। और आपके ब्लॉग पढ़ने के बाद अतिरिक्त "बोनस" के तौर पर पता चला कि अगले ज्न्म में कभी छ्छूंदर नहीं बनूँगा।
    धन्यवाद।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय