Sunday, September 16, 2007

किस्सा-ए-टिप्पणी बटोर : देबाशीष उवाच


पिछले दिनो ९ सितम्बर को शास्त्री जे सी फिलिप के सारथी नामक चिठ्ठे पर पोस्ट थी - चिठ्ठों पर टिप्पणी न करें. इस में देबाशीष ने यह कहते हुये कि टिप्पणियां अपने आप में चिठ्ठे की पठनीयता का पैमाना नहीं है; टिप्पणी की थी -

... सचाई यह है कि मैं चिट्ठे समय मिलने पर ज़रूर पढ़ता हूं पर टिप्पणी सोच समझ कर ही करता हूँ और मुझे नहीं लगता कि ये मेरी प्रविष्टि को टिप्पणी न मिलने या चिट्ठाकारों का कोपभाजन बनने का कारक है, मेरे चिट्ठे पर “मेरी पसंद” पृष्ठ पर ऐसे चिट्ठे हैं जो मुझे पसंद हैं पर उन पर खास टिप्पणीयाँ नहीं आईं पर मैं इसे पोस्ट की गुणवत्ता से जोड़ कर नहीं देखता, मसलन अगर मैं महिला चिट्ठाकार होता तो शायद कूड़ा पोस्ट पर भी दो दर्जन कमेंट बटोर लेता। आप क्या सोचते हैं?

यह अपने आप में बड़ा प्रोफ़ाउण्ड रिमार्क है. हम लोग टिप्पणी के लिये कुलबुलाते रहते हैं. बकौल फ़ुरसतिया इस चिन्ता में रहते हैं कि "दस भी नहीं आयीं". पर देबाशीष की माने तो स्टैट काउण्टर से ही प्रसन्न रहना चाहिये.

लेकिन मसला महिला चिठ्ठाकारों का था - सो देबाशीष की टिप्पणी के बाद (ऊपर उद्धृत टिप्पणी पर चर्चा से कतराते हुये) किसी सज्जन ने कुछ नहीं कहा. यद्यपि पोस्ट पर टिप्पणियां १२ आयीं.

मैं सोच रहा था कि क्या वास्तव में ऐसा है कि महिला चिठ्ठाकारों को प्रेफरेन्शियल ट्रीटमेण्ट मिलता है टिप्पणियों में? मेरे विचार से श्री समीर लाल (जो स्त्री नहीं हैं) को अवश्य मिलता है. वे पुरानी पोस्ट भी गलती से ठेल दें तो लोग टिप्पणी करने पंहुच जाते हैं ( :-) ). पर उनके मामले में जायज है - वे स्वयम जोश दिलाने के लिये लोगों के चिठ्ठों पर जा-जा कर इतना सुन्दर टिपेरते हैं कि उनको टिप्पणियां मिलनी ही चाहियें. देबाशीष की टिप्पणी दूससे सन्दर्भ में है. उस में क्या कोई मनोविज्ञान है? क्या अनूप सुकुल अनुपमा सुकुल, आलोक पुराणिक अलका पुराणिक और देबाशीष देवयानी या हम खुद ज्ञानेश्वरी देवी के पेन नेम से अपनी पहचान छुपा कर लिखते तो टिप्पणियां दूनी होतीं?

जरा प्रकाश डालें! :-)


13 comments:

  1. आपने केश के चर्मोच्छेदन का प्रयत्न किया है :) और इससे मुझे लोगबाग भले MCP कहें पर मैंने वो लिखा जो मैंने इतने वर्षों की ब्लॉगिंग में देखा, ये बात हिन्दी ब्लॉगजगत के लिये सही हो न हो अंग्रेज़ी चिट्ठासंसार में बहुत बहुत बहुत देखा है और यकीन मानिये ये भी पूर्णतः व्यक्तिगत चिट्ठों पर भी जहाँ लेखिका ने केवल अपना निजी फ़साना लिखा। इंडीब्लॉगीज़ में एक दफा एक महिला चिट्ठाकार को मैंने खामख्वाह की इस सहानुभूति लहर से जीतते तक देखा है। हिन्दी चिट्ठाजगत में हालांकि जिन महिला चिट्ठाकारों के लेखन से मैं परिचित हूं उनका लेखन कौशल वाकई उत्कृष्ट है और वे वैसे भी मुद्दों पर लिखती हैं।

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  2. @ देबाशीष > आपने केश के चर्मोच्छेदन का प्रयत्न किया है :)

    बन्धुवर आप यदा-कदा हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी करते रहें तो भला हम क्यों यह चमड़ी उधेड़ की जहमत उठायें!

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  3. मैं सहमत नहीं भी हूँ और कुछ हद तक हूँ भी. इसे लिंक बनाते हुये और पिछले कुछ समय से इस विषय में ऊठ रहे प्रश्नों, इम्क्लूडिंग साधुवाद का अंत को लेकर मैं अलग से पोस्ट लाना चाहता हूँ, अगर इजाजत हो तो. तब मैं अपने को सिद्ध कर पाऊँगा ऐसा मुझे लगता है. बिन इजाजत मैं इसे नहीं लाऊँगा, यह भी तय रहा. अतः इजाजत दें या मना कर दं अगर आपको लगता है कि इसकी आवश्यक्ता नहीं.

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  4. @ उड़न तश्तरी (समीर लाल) - आपने इजाजत मांग कर मेरा और अन्य सबका मान बढ़ाया है. भला आपके विचार क्यों नहीं जानना चाहेंगे?
    आपको याद होगा कि बहुत पहले आपने मेरी एक पोस्ट पर टिप्पणियों के विषय मे‍ आपने लिखने को कहा भी था.

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  5. हमें तो देबाशीष जी की बात सही लगती है ।
    सवाल प्रिफरेन्शियल ट्रीटमेन्‍ट का नहीं है । दरअसल संसार में सदा सर्वदा से यही रीत चली आ रही है
    कि पुरूष महिलाओं को लुभाने का प्रयास करता है । इम्‍प्रेस करने की ये परंपरा ही शायद महिलाओं के चिट्ठों पर टिप्‍पणीयों का अंबार लगाती होगी ।

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  6. " केश के चर्मोच्छेदन"
    बाल की खाल निकालने की शुद्ध हि्न्दी!!

    धन्य-धन्य!

    वैसे ज्ञान दद्दा! यह महिला चिट्ठाकारों के चिट्ठों पर टिप्पणी वाला मामला, मामला न होते हुए भी मामला बन ही जाता है।

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  7. गुड आइडिया, प्रीति जिंटा के नाम या पामेला एंडरसन के नाम से ब्लाग शुरु करता हूं। फिर देखिये।

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  8. या हम खुद ज्ञानेश्वरी देवी के पेन नेम से अपनी पहचान छुपा कर लिखते तो टिप्पणियां दूनी होतीं?

    हाथ कंगन को आरसी क्या और पढे लिखे को फारसी क्या, आप खुद ही चैक कर लीजिए ना। नाम थोड़ा धांसू रखिएगा वो क्या है ना कि नाम थोड़ा ट्रेंडी होना मांगता,भीड़ बढाने का काम आता है। उसके बाद बांधे रखना तो लेखन का काम है।

    तो जनाब कब शुरु कर रहे है ये वाला ब्लॉग?

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  9. ज्ञानदत्त जी,

    विषय को आगे बढाने के लिये आभार. इस तरह की स्वस्थ चर्चा हर विषय पर होने लगे तो बहुत अच्छा है.

    जहां तक स्त्रियों की बात है, उनको कम से कम जूलाई महीने तक पुरुषों की तुलना में अधिक टिप्पणियां मिलती रही है. मैं ने कम से कम पाच स्त्रियों के चिट्ठों का जूलाई का आंकडा तय्यार किया था, एवं उनकी तुलना उनके तुल्य या उनसे ज्येष्ट लेखकों के चिट्ठों के साथ तुलना की थी. परिणाम इतने चौंकाने वाले थे कि मैं ने लेख नहीं छापा. मुझे लगा कि स्त्रीचिट्ठाकारों को बहुत बुरा लगेगा. हां इस अनुसंधान के कारण अपने "टिप्पणीकारों को पहचाने !!" नामक लेख में "कामिनीलंपट" नामक एक चिट्ठाकार का नाम जरूर सुझाया था.

    हमें यह पहचानना होगा कि कामिनीलंपटजी स्त्रियों के चिट्ठों पर टिप्पणियों की संख्या बहुत अधिक बढा देते है. सौभाग्य से स्तरीय चिट्ठाकर इस वर्गीकरण में नहीं आते है. स्तरीय चिट्ठा लेखकों की टिप्पणियां नरनारी भेद बिना सबको बराबर मिलती है -- शास्त्री जे सी फिलिप


    हिन्दीजगत की उन्नति के लिये यह जरूरी है कि हम
    हिन्दीभाषी लेखक एक दूसरे के प्रतियोगी बनने के
    बदले एक दूसरे को प्रोत्साहित करने वाले पूरक बनें

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  10. केवल टिप्पणियो से आस रखने वाले भूल जाते है कि वे जो लिख रहे है कई पीढीयो के लिये लिख रहे है। इसलिये दूरदर्शिता के साथ लिखे। टिप्पणीकार, मेरी नजर से, इसलिये टिप्पणी करते है, ज्यादातर, ताकि उन्हे भी मिले। यह उनके कार्य का सही मूल्याँकन नही होता है। बहुत सी टिप्पणिया तो बिना पढे ही लिख दी जाती है। मेरे विचार से यह छ्दम मोह छोड देना चाहिये। यह हिन्दी चिठठाजगत मे गुटबाज़ी पैदा कर रहा है। हम नये चिठ्ठाकारो के सामने अच्छा सबक नही छोड रहे है।


    एक बात और है। आलोक जी, मसीजीवी जी और तिवारी जी जैसे कुछ को छोड दे तो रोज स्तरीय लिख पाना सम्भव नही है। रोज का फिजूललेखन निश्चित ही व्यक्तित्व की गलत छवि पैदा करता है। इसलिये जब लिखे ऐसा लिखे कि आप जग को कुछ दे। यदि आप चाटुकारो से घिर गये तो आप बर्बादी से नही बच सकते।

    आशा है ज्ञान जी इस कडवी प्रतिक्रिया को स्थान देने का कष्ट करेंगे, हमेशा की तरह।

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  11. वह ज्ञान जी ! हमारे ज्ञान चक्षु खोलने के लिये बहुत बहुत आभार! हम तो अब तक यही समझ रहे थे कि हम अच्छा लिखते हैं ।
    घुघूती बासूती

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  12. हेलॊ जी
    मैँ केरल से हूँ। मलयालम में ब्लोग कर रहा हूँ।
    मैंने ब्लॊगिंग ब्लॊगस्पॊट में शुरू किया था। अब मेरा जॊ ब्लॊग( रजी चन्द्रशॆखर ) वॆर्ड्प्रस में है, उसी में हिन्दी प्रविष्टियाँ भी शामिल कर रहा हूँ । कृपया दॆखें और अड्वैस भी दें।

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  13. केवल टिप्पणियो से आस रखने वाले भूल जाते है कि वे जो लिख रहे है कई पीढीयो के लिये लिख रहे है। इसलिये दूरदर्शिता के साथ लिखे। टिप्पणीकार, मेरी नजर से, इसलिये टिप्पणी करते है, ज्यादातर, ताकि उन्हे भी मिले। यह उनके कार्य का सही मूल्याँकन नही होता है। बहुत सी टिप्पणिया तो बिना पढे ही लिख दी जाती है। मेरे विचार से यह छ्दम मोह छोड देना चाहिये। यह हिन्दी चिठठाजगत मे गुटबाज़ी पैदा कर रहा है। हम नये चिठ्ठाकारो के सामने अच्छा सबक नही छोड रहे है।


    एक बात और है। आलोक जी, मसीजीवी जी और तिवारी जी जैसे कुछ को छोड दे तो रोज स्तरीय लिख पाना सम्भव नही है। रोज का फिजूललेखन निश्चित ही व्यक्तित्व की गलत छवि पैदा करता है। इसलिये जब लिखे ऐसा लिखे कि आप जग को कुछ दे। यदि आप चाटुकारो से घिर गये तो आप बर्बादी से नही बच सकते।

    आशा है ज्ञान जी इस कडवी प्रतिक्रिया को स्थान देने का कष्ट करेंगे, हमेशा की तरह।

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आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय