Wednesday, June 27, 2007

मुझे बिग-बाजार में क्या गलत लगता है?

मैं किशोर बियाणी की पुस्तक पढ़ रहा हूं इट हेपण्ड इन इण्डिया.* यह भारत में उनके वाल-मार्टिया प्रयोग का कच्चा चिठ्ठा है. कच्चा चिठ्ठा इसलिये कि अभी इस व्यवसाय में और भी कई प्लेयर कूदने वाले हैं. अंतत: कौन एडमण्ड हिलेरी और तेनसिंग बनेंगे, वह पता नहीं. पर बियाणी ने भारतीय शहरों में एक कल्चरल चेंज की शुरुआत तो कर दी है.

बिग बाजार के वातावरण का पर्याप्त इण्डियनाइजेशन हो गया है. वहां निम्न मध्यम वर्गीय मानस अपने को आउट-ऑफ-प्लेस नहीं पाता. वही नहीं, इस वर्ग को भी सर्विस देने वाला वर्ग - ड्राइवर, हैल्पर, घरमें काम करने वाली नौकरनी आदि, जिन्हे बियाणी इण्डिया-2 के नाम से सम्बोधित करते हैं भी बिग बाजार में सहजता से घूमता पाया जाता है. इस्लाम में जैसे हर तबके के लोग एक साथ नमाज पढ़ते हैं और वह इस्लाम का एक सॉलिड प्लस प्वॉइण्ट है; उसी प्रकार बिग बाजार भी इतने बड़े हेट्रोजीनियस ग्रुप को एक कॉम्प्लेक्स के नीचे लाने में सफल होता प्रतीत होता है.

पर मैं किशोर बियाणी का स्पॉंसर्ड-हैगियोग्राफर नहीं हूं. बिग-बाजार या पेण्टालून का कोई बन्दा मुझे नहीं जानता और उस कम्पनी के एक भी शेयर मेरे पास नही हैं. मैं बिग बाजार में गया भी हूं तो सामान खरीदने की नीयत से कम, बिग-बाजार का फिनामिनॉ परखने को अधिक तवज्जो देकर गया हूं.

और बिग-बाजार मुझे पसन्द नहीं आया.

मैं पड़ोस के अनिल किराणा स्टोर में भी जाता हूं. तीन भाई वह स्टोर चलाते हैं. हिन्दुस्तान लीवर का सुपरवैल्यू स्टोर भी उनके स्टोर में समाहित है. तीनो भाई मुझे पहचानते हैं और पहचानने की शुरुआत मैने नही, उन्होने की थी. अनिल किराणा को मेरे और मेरे परिवार की जरूरतें/हैसियत/दिमागी फितरतें पता हैं. वे हमें सामान ही नहीं बेंचते, ओपीनियन भी देते हैं. मेरी पत्नी अगर गरम-मसाला के इनग्रेडियेण्ट्स में कोई कमी कर देती है, तो वे अपनी तरफ से बता कर सप्लिमेण्ट करते हैं. मेरे पास उनका और उनके पास मेरा फोन नम्बर भी है. और फोन करने पर आवाज अनिल की होती है, रिकार्डेड इण्टरेक्टिव वाइस रिस्पांस सिस्टम की नहीं. मैं सामान तोलने की प्रॉसेस में लग रहे समय के फिलर के रूप में बिग-बाजार से उनके कैश-फ्लो पर पड़े प्रभाव पर चर्चा भी कर लेता हूं.

बियाणी की पुस्तक में है कि यह अनौपचारिक माहौल उनके कलकत्ता के कॉम्प्लेक्स में है जहां ग्राहक लाइफ-लांग ग्राहक बनते हैं और शादी के कार्ड भी भेजते हैं. (पुस्तक में नॉयल सोलोमन का पेज 89 पर कथन देखें - मैं अंग्रेजी टेक्स्ट कोट नहीं कर रहा, क्योंकि हिन्दी जमात को अंग्रेजी पर सख्त नापसन्दगी है और मैं अभी झगड़े के मूड में नहीं हूं). इलाहाबाद में तो ऐसा कुछ नहीं है. कर्मचारी/सेल्स-पर्सन ग्राहक की बजाय आपस में ज्यादा बतियाते हैं. ग्राहक अगर अपनी पत्नी से कहता है कि ट्विन शेविंग ब्लेड कहां होगा तो सेल्स-गर्ल को ओवर हीयर कर खुद बताना चाहिये कि फलानी जगह चले जायें. और ग्राहक बेचारा पत्नी से बोलता भी इस अन्दाज से है कि सेल्स-गर्ल सुनले. पर सेल्स-गर्ल सुनती ही नहीं! अनाउंसमेण्ट तो उस भाषा में होता है जो बम्बई और लन्दन के रास्ते में बोली जाती है इलाहाबाद और कोसी कलां के रास्ते नहीं.

परस्पर इण्टरेक्शन के लिये मैं अनिल किराना को अगर 10 में से 9 अंक दूंगा तो बिग बाजार को केवल 4 अंक. अनिल किराना वाला चीजों की विविधता/क्वालिटी/कीमतों मे किशोर बियाणी से कम्पीट नहीं कर पायेगा. पर अपनी कोर कम्पीटेंस के फील्ड में मेहनत कर अपनी सर्वाइवल इंस्टिंक्ट्स जरूर दिखा सकता है. ऑल द बेस्ट अनिल!

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It Happened In India

by Kishore Biyani with Dipayana Baishya

Roopa & Co, Rs. 99.

13 comments:

  1. जगह-२ का फर्क है, लोगों का फर्क है। दो घड़ियाँ बेशक समान समय बता दें लेकिन दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हो सकते। :) वैसे भी बड़ी दुकानों में जहाँ बहुत से लोग रोज़ आते हैं, ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए जो आपको पड़ोस की दुकान में मिलता है, क्योंकि दोनों जगहों में बहुत अंतर है, जो एक जगह मिलेगा वह दूसरी जगह नहीं। अब यह बात आप पर है कि आप किसका बुरा पक्ष देखते हैं और किसका अच्छा। :)

    इससे पहले आप या कोई अन्य मुझे बिग-बज़ार समर्थक आदि जैसे अलंकारों से नवाज़े, मैं स्वयं ही बता देता हूँ कि बिग बज़ार तो मुझे भी पसंद नहीं है, लेकिन दूसरे कारणों से जिनके बारे में कभी बताउंगा अपने ब्लॉग पर। :)

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  2. बंधुवर इलाहाबाद में आप कहाँ से हैं?

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  3. मुझे भी बिग बाजार और सालासार कभी रास नही आया क्‍योकि वहॉं खरीदना तो आसान होता है किन्‍तु बिलिंग करना कठिन।

    जो छूट में अपने राहुल जनरल स्‍टोर पर मिल जाती है वह कहीं कहॉं ? जो टाटा टी राहूल की दुकान और बिग बाजार पर 185 रूपये किलो मिलती है वह राहुल के पास मुझे 160 रूपये मे मिल जाती है। सच कहूँ तो 200 की MRP पर मै 20 से 30 रूपये बचा लेता हूँ।

    एक दिन तो मैने देखा कि बिंग बाजार के अन्‍दर जाने के लिये लाईन लगी है पूछने पर पता चला कि सबसे सस्‍ते दिन के लिये लाइन लगी है और लाइन में लगभग 1000 इलाहाबादी खडे थे। :)

    है न अच्‍छा सौदा राहुल जनरल स्‍टोर से :)

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  4. अब भले ही हमें आपको बिग बाजार पसंद हो ना हो इसको हमारी जिन्दगी में प्रवेश तो करना ही है और ये कर भी चुका है... कलकत्ता का बिग बाजार मेरा भी देखा हुआ है ..जो बातें किताब में कही गयी हैं उनसे मैं सहमत नहीं..

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  5. पहले उत्पादन पर कब्जा और अब विपणन पर. और क्या होगा तब आपलोग मानेंगे कि कंपनीराज लौट आया है. पाण्डेय जी आज जो लोग बिग-बाजार के पंखे बने घूम रहे हैं उनकी भी कोई रोजी-रोटी होगी, उन्हें तब समझ में आयेगा जब भूमंडलीकरण उनके भी दरवाजे दस्तक देगा. वैसे रेलवे भी है निशाने पर.

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  6. आपकी बात सही है। बिग बाज़ार जैसी जगहों से वह आत्मीयता नदारद है और शायद हो भी नहीं सकती, जितनी पड़ोस की किराना दूकान से मिलती है। लेकिन लेकिन आम तौर पर ऐसी जगहों पर सामान ख़ासा सस्ता मिलता है, क्योंकि ये लोग बल्क पर्चेसिंग करते हैं जोकि छोटा दूकानदार नहीं कर सकता है।

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  7. राग उवाच > बंधुवर इलाहाबाद में आप कहाँ से हैं?
    इलाहाबाद में मैं शिवकुटी में रहता हूं और उत्तर-मध्य रेलवे के मुख्यालय में कार्य करता हूं. यह नवाब युसुफ मार्ग पर है - सिविल लाइंस साइड में रेलवे स्टेशन के पास.

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  8. Hum Govindpur ke niwasi hai Pandey Jee, aur Jeeshan market mein Anil Agarwal aur unke bhaiyon ke yahan se hee samaan lete hain (Hum to US mein hai, lekin ab humare mata pita).

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  9. अमित > इससे पहले आप या कोई अन्य मुझे बिग-बज़ार समर्थक आदि जैसे अलंकारों से नवाज़े, ...
    बिग बाजार समर्थक होने पर भी मुझे कोई आपत्ति नहीं! आपको उक्त पोस्ट में बिग-बाजार समर्थक कई तत्व मिल जायेंगें. उनमें जो अच्छा है सो तो है ही. हां, आपके प्वॉइण्ट्स से युक्त आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा होगी.

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  10. इलाहाबाद और गुडगाँव का बिग बाजार तो हमने भी देखा है । इस बार जब हम इलाहाबाद गए थे तो बिग बाजार भी गए थे पर इतनी भीड़ की लगा मानो कटरा आ गए हो। हालांकि वो सस्ता समान मिलने वाला दिन नही था।

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  11. मुझे ऐसे संस्‍थानों में दोयम दरजे के माल की गड़बड़ बुरी लगती है । इलेक्ट्रिक गुड्स और रसोई के उपकरणों को देख लीजियेगा । गुमनाम कंपनियों को सस्‍ते के नाम पर खपाया जा रहा है । भारतीय जनता चीज़ों की गुणवत्‍ता के मामले में ज्‍यादा सतर्क नहीं रहती । सस्‍ताई के पीछे भागती है । बस इसका फायदा उठाया जा रहा है । चक्रव्‍यूह है । मत फंसना । सोच समझ के फैसला करना ।

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  12. हो सकता है इसके बाद सभी साथी मुझ पर हैरान हों, लेकिन कोई मुझे ये बताए कि ये बिग बाजार होता क्या है जी?

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  13. waise to muje big bazar se koi problem nahi magar mai inhe asand bhi nahi karta. kyonki jab bhi mai apni wife ke saath jaata hun(hum BIG BAZAR JAANE KE LIYE SAMAN KI LIST NAHI BANATE JAISE KI AAMTOUR PAR PADOSI KI DUKAN PAR JANE KE LIYE BANATE HAIN) to hum wahna se jaydatar faltu ka saaman purchase karke lautatte hain. hum sab unki saaman bechne ki stretagy mai fas jaaten hai wo log gairjarruri saaman ki itna achhe se packing karte hai ki hum log jarruri saman ki jagah gairjarruri saman lelatai hain.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय