Tuesday, June 12, 2007

लेखक और ब्लॉगर में फर्क जाना जाये

पता नहीं स्कूल के दिनों में कैसे मुझे गलतफहमी थी कि हिन्दी मुझे बहुत अच्छी आती है बस, मेरे मन में फितूर आ गया था लेखक बनने का. जिसे मेरे पिता ने कस के धोया. उनके अनुसार अगर प्रोफेशनल डिग्री हासिल कर ली तो कम से कम रोटी-पानी का जुगाड़ हो जायेगा.

मैने भी वही किया और मैं अपने को बेहतर अवस्था में पाता हूं. वर्ना हरिवंशराय बच्चन जैसी सोशल नेटवर्किंग तो कर नहीं पाता. निराला जैसा बनने की क्षमता न होती और बनता तो भी फटेहाल रहता. हिन्दी में बीए/एमए कर कई साल सिविल सेवा परीक्षा में बैठता और अंतत: किराने की दुकान या क्लर्की करता.

इस लिये जब सत्येन्द प्रसाद श्रीवास्तव जी ने ब्लॉगर को लेखक कहा तो मैं अपने को बागी महसूस करने लगा.

लेखक और ब्लॉगर में मूल भूत अंतर स्पष्ट करने को हम मान सकते हैं कि लेखक मूर्तिकार की तरह है. वह एक अच्छी क्वालिटी का पत्थर चुनता है. अच्छे औजार लेता है और फिर परफेक्शन की सीमा तक मूर्ति बनाने का यत्न करता है. ब्लॉगर तलाशता है कोई भी पत्थर सैण्ड स्टोन/चाक भी चलेगा. न मिले तो पेड़ की सूखी जड़/पत्ती/कबाड़/या इनके कॉम्बीनेशन जिसे वह फैवीकोल से जोड़ ले वह भी चलेंगे. इन सब से वह प्रेजेण्ट करने योग्य वस्तु बना कर ब्लॉग पर टांग देगा. वह भी न हो पाये तो वह किसी पत्थर को पटक कर अपना सौभाग्य तलाशेगा कि पटकने से कोई शेप आ जाये और आज की ब्लॉग पोस्ट बन जाये. यह व्यक्ति लेखक की तुलना में कम क्रियेटिव नहीं है और किसी भी लेखक की अभिजात्यता को ठेंगे पर रखता है.

ब्लॉगर के दृष्टांत देता हूं. सवेरे मॉर्निंग वाक करते मैने नीलगाय की फोटो मोबाइल के कैमरे से उतारी थी और 25 मिनट फ्लैट में ब्लूटूथ से फोटो कम्प्यूटर में डाउनलोड कर, पोस्ट लिख कर और वह फोटो चिपका कर पोस्ट कर चुका था इंटरनेट पर. उसके बाद वह पोस्ट भले ही एडिट की थी दिन में, पर ब्लॉगरी का रैपीडेक्स काम तो कर ही दिया था. कौन लेखक इस तरह का काम करेगा? चाहे जितना बोल्ड या डेयरिंग हो; पच्चीस मिनट तक तो वह मूड बनाता रहेगा कि कुछ लिखना है! फिर फोटो खींचना, डाउनलोड करना, चिपकाना यह सब तो 4-इन-1 काम हो गया !!

इसी तरह मैने अपनी पिछली ओधान कलेन पर लिखी पोस्ट आनन फानन में चिपकाई थी. बस उस बन्दे का काम पसन्द आ गया था और मन था कि बाकी जनता देखे.

मिर्ची सेठ की देखो भैया पैसा ऐसे बनता है और हवा से चलती गाड़ी मुझे बहुत पसन्द आईं. इनमें कौन सा लेखकत्व है जरा देखें. पिद्दी-पिद्दी से साइज़ वाले लेखन की, फोटो लगी पोस्टें है ये.

कई लोग ब्लॉगरी में इसी तरह लठ्ठ मार काम कर रहे हैं. यह बड़ा इम्पल्सिव होता है. कई बार थूक कर चाटने की अवस्था भी आ सकती है. पर जब आप मंज जायें तो वैसा सामान्यत: नही होता. और आप उत्तरोत्तर कॉंफीडेंस गेन करते जाते हैं.

श्रीवास्तव जी, आपको मेरे कहने में कुछ सब्स्टेंस लग रहा है या नहीं? अगर आप लेखक हैं तो शायद यह कूड़ा लगेगा वैसे भी काकेश का कहना है (?) कि यहां चिठेरी में 75% कूड़ा है!

(इसी कूड़े के बाजू में कृष्ण जी को बिठा दिया है!)

11 comments:

  1. मै सहमत हु, कोइ मुद्दा click करे, computer ओन करो, टाइप करो, चिपका दो, न भाषा कि tension, न गल्तियों कि चिन्ता....

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  2. सहमत तो हम भी है जी आपसे कि एक ब्लौगर के लिये कोई बाध्यता नहीं होती वो कैसे पोस्ट लिखे ..पर किसी भी ब्लौगर की सभी पोस्टों के लिये ऎसा कहना ज्यादती होगी... क्योकि कुछ पोस्ट ऎसी भी होती हैं जिसके लिये आपको थोड़ी रिसर्च भी करनी पड़ती है..पर्याप्त मैहनत भी करनी पड़ती है .. जैसे ..इसको लिखने में काफी समय लगा था... और भी कई हैं ...अब ये मेरे कम ज्ञान या मंद बुद्धि के कारण है या फिर किसी और कारण ये तो नहीं मालूम..

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  3. Srivastav ji ne theek hi kaha hai. Aakhir lekhan to karte hi hain. Ye alag baat hai ki jo bhi likhte hain, sabki samajh mein aa jaata hai (haalanki kuchh 'lekhakon' ka lekhan samajh mein nahin aata)....

    Shaayad 'asli' lekhak tab kahe jaate, jab lekhan sabki samajh mein nahin aata....Aur use samajhane ke liye Upkar Pocket Books ko 'kunji' ka prakashan karna padta..

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  4. सटीक कहा आपने. वाह-वाह.

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  5. कहा तो सही है। परन्तु कई ब्लॉगर ऐसे भी हैं, जो अपने ब्लॉग लेखों को सदा अपडेट (अद्यतन) और विकसित करते रहते हैं। कई पाठक ऐसे भी हैं, जो ब्लॉग-कूड़ें के ढेर में से भी चुग चुग कर कबाड़ी के पास बेच आते हैं। सबसे बड़ा लाभ तो मिलता है गूगल बाबा को, जो अपना साम्राज्य बढ़ाते जा रहे हैं, विज्ञापनों की कमाई से बिल्लू से भी धनी बनने की होड़ लगाए हुए हैं।

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  6. ठीक कहा आपने ब्लॉगर को किसी प्रकार की बाध्यता नहीं है।

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  7. बार बार कहता हूँ फिर दोहरा देता हूँ:

    "एक ब्लॉग ही तो ऐसी चीज है जिसे लिखने में दिमाग का इस्तेमाल करने की जरुरत नहीं। " :)

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  8. इस मुद्दे पर सबके विचारों का स्वागत है। मैंने ये ब्लॉगर्स कौन हैं भई! में भी यही कहा था कि ब्लागर्स कहलाने में कोई ऐतराज नहीं लेकिन बहस के दौरान जो चीजें निकल कर आईं उसमें कई गंभीर चिंता के विषय भी उभरे हैं। कोई बाध्यता नहीं-दिमाग की जरूरत नहीं-जैसे जुमले अच्छे संकेत नहीं है। लेखन चाहे कोई भी वो, वो जाहिर तौर पर जिम्मेदारी से जुड़ा है। गैर जिम्मेदाराना लेखन व्यक्ति के लिए समाज के लिए खतरनाक हो सकता है। मुझे नहीं लगता कि ब्लॉग पर भी कोई ऐसा लिखता होगा। और जब आप जिम्मेदारी के साथ लिखते हैं तो फिर कोई समस्या ही नहीं-लेखक कह लो ब्लागर कह लो। क्या फर्क पड़ता है।

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  9. बहुत चिंता का विषय नहीं है, बस दनादन लिखते चलो रेलगाड़ी की रफ्तार से. जिसे लेखक समझना होगा, समझ लेगा वरना ब्लॉगर तो हईये हैं. :)

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  10. कहा तो सही है। परन्तु कई ब्लॉगर ऐसे भी हैं, जो अपने ब्लॉग लेखों को सदा अपडेट (अद्यतन) और विकसित करते रहते हैं। कई पाठक ऐसे भी हैं, जो ब्लॉग-कूड़ें के ढेर में से भी चुग चुग कर कबाड़ी के पास बेच आते हैं। सबसे बड़ा लाभ तो मिलता है गूगल बाबा को, जो अपना साम्राज्य बढ़ाते जा रहे हैं, विज्ञापनों की कमाई से बिल्लू से भी धनी बनने की होड़ लगाए हुए हैं।

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय