Saturday, June 30, 2007

आप तो बिल्कुल खतम आदमी हैं!

शिव कुमार मिश्र ने मुझे एस.एम.एस. किया है कि कल रात एक गायन प्रतियोगिता में बप्पी लाहिड़ी ने एक प्रतियोगी से कहा – यू आर ए फ़िनिश्ड सिन्गर. और फ़िर हिन्दी में जोड़ा – तुम बहुत जल्दी फ़ेमस बनेगा. इसका हिन्दी अनुवाद करें तो कुछ ऐसा होगा – तुम तो बिल्कुल खतम गायक हो और बहुत जल्दी प्रसिद्ध हो जाओगे!

उक्त खतम के दो अर्थ हैं :
  • खतम का हिन्दी अर्थ होता है – गया-बीता, बेकार, अब-कोई-उम्मीद-नही आदि.
  • बप्पी लाहिड़ी ने उसका प्रयोग किया है – तराशा हुआ, परिपूर्ण, परिपक्व आदि के रूप में.
अर्थात एक ही शब्द पर दो अलग-अलग छोर के अर्थ. इस प्रकार का घालमेल रोचक स्थितियां पैदा कर सकता है. अब निम्न उदाहरणों में खतम का दूसरे अर्थ में प्रयोग किया गया है. पर आप पहले अर्थ में उसका आनन्द ले सकते हैं:
  • हिन्दी वाले खतम हैं.
  • अरुण अरोड़ा खतम पन्गेबाज हैं.
  • फ़ुरसतिया एकदम खतम ब्लागर हैं.
  • समीर लाल की टिप्पणियां खतमतम होती हैं.
  • अभय तिवारी ने अछूतों पर एक खतम शोध किया है.
  • इन्फ़ोसिस के नारायणमूर्ति एक खतम व्यक्तित्व हैं.
  • आप बिल्कुल खतम आदमी हैं.

सही में, क्या खतम पोस्ट है!

8 comments:

  1. दादा आज क्या बात है सुबह से हमारा ही नंबर लगाया हुआ है.चलिये ऐसे ही सही प्यार दुलार तो मिला बडो का. :)
    (कहते है ना जो प्यारा हो जुबा पर नाम उसी का आत है बारबा)

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  2. हम भी देख रहे थे वो सा रे गा मा--फिनिश्ड डायमंड टाईप का उपयोग किया भप्पी जी ने-और आपने जिस रुप में किया है, आनन्द लेने के लिये, वाकई आनन्द आया.. :)

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  3. ज्ञान जी बप्‍पी लहरी ऐसी ग़लतियां करते रहते हैं । मुझे याद नहीं आ रहा है पर गीतकार समीर ने अपने इंटरव्यू में मुझे कोई मिसाल दी थी जहां बप्‍पी दा ने उर्दू के एक शब्‍द का घालमेल कर दिया था । हां याद आया इम्तिहां हो गई इंतज़ार की ।
    उन्‍हें गाना चाहिये था—इंतेहा । बप्‍पी दा की अज्ञानता है जिससे ये लफड़े हो जाते हैं ।
    वरना बप्‍पी इंसान अच्‍छे हैं । हां भाषाई ज्ञान के मामले में ही इज़ अ फिनिश्‍ड मैन ।

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  4. खतम शोध की पोस्टें आज अपनी आखिरी कड़ी के साथ खतम हुई.. ये टिप्पणी खतम करता हूँ इस बात के साथ कि छोटी पोस्ट लिखने में आपने एक खतमता हासिल की है..

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  5. पर आप खतम रेलवे अफसर नहीं हैं, क्योंकि अभी आपका टीटीई होना बाकी है।

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  6. पढ़कर मजा आ गया।

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  7. हमरे ब्लाग पर जो आपने टिपेरा, उस बात में दम है, पर सोचिये कि ज्ञानियों को सोहबत किस जाम से कम है, सुबह से ही ज्ञानियों के सत्संग में जीते है, दिन और रात समझिये की सिर्फ यूं ही पीते हैं।
    सो
    जाम के नाम पर ना कोहराम उठा
    जाम उठा, जाम उठा, जाम उठा

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय