Monday, April 23, 2007

असली खुशी की दस कुंजियां

मैं रेलवे स्टेशन पर जीने वाले बच्चों पर किये गये एक सर्वेक्षण के आंकड़ों से माथापच्ची कर रहा था.

जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा चौंकाया; वह थी कि 68% बच्चे अपनी स्थिति से संतुष्ट थे. बुनियादी जरूरतों के अभाव, रोगों की बहुतायत, पुलीस का त्रास, भविष्य की अनिश्चितता आदि के बावजूद वे अगर संतुष्ट हो सकते हैं, तो प्रसन्नता का विषय उतना सरल नहीं, जितना हम लोग मान कर चलते हैं.

अचानक मुझे याद आया कि मैने प्रसन्नता के विषय में रीडर्स डायजेस्ट में एक लेख पढ़ा था जिसमें कलकत्ता के अभाव ग्रस्त वर्गों में प्रसन्नता का इंडेक्स ऊंचा पाया गया था. मैने उस लेख का पावरप्वाइंट भी तैयार किया था. कम्प्यूटर में वह मैने ढूंढा और रविवार का सदुपयोग उसका हिन्दीकरण करने में किया.

फिलहाल आप, असली खुशी की दस कुंजियां की फाइल का अवलोकन करें. इसके अध्ययन से कई मिथक दूर होते हैं. कहीं-कहीं यह लगता है कि इसमें क्या नयी बात है? पर पहले पहल जो बात सरल सी लगती है, वह मनन करने पर गूढ़ अर्थ वाली हो जाती है. धन किस सीमा तक प्रसन्नता दे सकता है; चाहत और बुद्धि का कितना रोल है; सुन्दरता और सामाजिकता क्यों महत्वपूर्ण हैं; विवाह, धर्म और परोपकार किस प्रकार प्रभावित करते हैं और बुढ़ापा कैसे अभिशाप नहीं है यह आप इस डाउन लोड में पायेंगे।

(चिन्ह पर क्लिक कर डाउन लोड करे)

आप इस पावरप्वाइण्ट की पीडीएफ फाइल यहां भी देख सकते हैं।

8 comments:

  1. यह प्रस्तुतिकरण वाकई लाजवाब है.

    मेरी प्रसन्नता के कुछ कारक तो मुझे मिले हैं -

    मैं सुंदर हूँ - या सुंदर महसूस करता हूं.
    मेरे गुणसूत्र में है
    मैं बूढ़ा हो चला हूँ... :)

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  2. अच्छा प्रस्तुतिकरण!

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  3. आम तौर पर ऐसे स्लाइड शो अंग्रेज़ी में होते हैं.. पहली बार हिन्दी में देखा.. अच्छा लगा.. आपको काफ़ी मेहनत करनी पड़ी होगी इसे बनाने में.. बेकार नहीं गई आपकी मेहनत.. इसका प्रभाव धनात्मक है..! (बस भाषा थोड़ी और सहज होती तो और अच्छा होता)

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  4. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति. बधाई हो.

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  5. Is tarah ki behtareen prastuti se bhi insaan khush hota hai.Mehnat karke is tarah ki prastuti karne waala aur ise parhnewaala, dono.

    Sabhi vyaawaharik baatein hain, jinhe khushi ke liye zaroori bataaya gaya hai.Ye alag baat hai ki hum inhein aasani se nahin maante.

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  6. पाण्डेय जी,

    आपकी प्रस्तुति वास्तव में सराहनीय है, यद्यपि यह एक सर्वेक्षण है, परंतु आँकलन और परिणाम ठीक ही प्रतीत होते हैं। कहीं कहीं पर मेरा कुछ मतान्तर रहा, पर समग्र रूप से मतैक्य ही।

    अब इसमें एक और संबंधित बात कही जाय।

    यह जो 10 सूत्र या 10 बिन्दु दिये गये हैं, मुझे लगता है कि इनमें भी कई एक ही बिदु के पर्याय अथवा समानार्थी हैं। इस संदर्भ में मैंने कहीं शांति कुंज के पं श्रीराम शर्मा जी द्वारा प्रकाशित एक सद् वाक्य पढ़ा था, जिसमें मात्र दो ही सूत्रों में इन सभी (तथा अन्य संभावित युक्तियों) को सहेज दिया गया था

    प्रसन्न रहने के दो ही उपाय हैं - आवश्यकताएं कम करें और परिस्थितियों से तालमेल बिठाएं

    मैं समझता हूं कि यह दो बड़े व्यापक सूत्र हैं और उपरोक्त सर्वेक्षण के परिणाम के सभी सूत्र इसके उप-सूत्र के रूप में भी विवेचित किये जा सकते हैं। इन दो व्यापक सुझावों को व्यवहार में लाना अपेक्षाकृत कठिन तो होगा ही, आखिर हम प्रसन्नता जैसी अपेक्षाकृत दुर्लभ वस्तु के आकांक्षी जो हैं।

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  7. मैं राजीव जी से पूरी तरह सहमत हूं. मोटे तौर पर निम्न समीकरण लागू होता है:

    प्रसन्नता(या संतोष)=(आर्थिक अर्जन)/(चाहतों का समग्र)

    आप या तो अर्जन बढ़ा लें या चाहतें कम कर लें.

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  8. मैंने अभी डाऊनलोड किया, आपके श्रम के लिए आभार...

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय